हल्ला मचाओ!

By: Jan 29th, 2021 12:05 am

पूरन सरमा

स्वतंत्र लेखक

हल्ला मचाने वाले के बेर बिकते हैं। चीख जितनी तीखी होगी, असर उतना ही पुरजोर से होगा। वैसे भी जिधर देखो उधर शोर हो रहा है। ध्वनि प्रदूषण से न संसद बच पा रही और न राज्यों की विधानसभाएं। हल्ला मचाकर बात मनवाना हमारी नयी कल्चर है। जो लोग चीख नहीं पाते, वे कमजोर और दब्बू हैं। हमारे राजनेता इस मामले में सबसे अग्रणी हैं। सारे ऐब व दोषी पाये जाने के बाद भी इतना चीखते हैं कि उनके अपराध गंगाजल की तरह पवित्र हो जाते हैं। वे बेवकूफ थोड़े ही हैं, जो बेकार में चीखेंगे। हल्ला मचाकर वे किसी सरकार को गिरा सकते हैं अथवा अपनी बेसुरी चिल्ल-पों से किसी का इस्तीफा झटक लेते हैं। किसी की जांच करवानी हो तो हल्ला मचाओ, किसी विधेयक को पास नहीं करवाना हो तो हल्ला मचाओ, तिल का ताड़ बनाना हो तो हल्ला मचाओ, उनकी मनचाही न हो तो हल्ला मचाओ, संसद या विधानसभा की कार्यवाही ठप्प करनी हो तो हल्ला मचाओ, सत्तापक्ष को नहीं सुनना हो तो हल्ला मचाओ और खुद पर आंच गिर रही हो तो हल्ला मचाओ। कुल मिलाकर काम न तो करो न करने दो और खामख्वाह हल्ला मचाओ।

 चुनाव में जीत जाओ तो हल्ला मचाओ और हार जाओ तो हल्ला मचाओ। सरकार को एक काम करते एक महीना हो जाये तो हल्ला मचाओ, सरकार की विफलताओं को लेकर हल्ला मचाओ। उलटा-सीधा बयान मुंह से निकल जाये तो हल्ला मचाओ, महिला आरक्षण विधेयक में कमी हो तो हल्ला मचाओ, गरीबों के लिए कोई योजना शुरू करो तो हल्ला मचाओ, अच्छा बजट बना हो तो हल्ला मचाओ, मंत्री नहीं बनाओ तो हल्ला मचाओ, मुख्यमंत्री बनते-बनते रह जाओ तो हल्ला मचाओ, मनपसंद जांच आयोग न हो तो हला मचाओ और जब तक रिपोर्ट नहीं आ जाये तब तक हल्ला मचाओ। अयोध्या का मामला हो तो हल्ला मचाओ, राममंदिर बनाना है तो हल्ला मचाओ। सद्भाव की बात करो तो हल्ला मचाओ और चुनाव की मारा-मारी चल रही है तो हल्ला मचाओ। यानी एक सूत्री अभियान बचा है और वह है हल्ला मचाओ। मेरे घर में भी हालात यही हैं। बच्चा जवान हो गया है, कुछ तो वह कामचोर है और प्रमादी है। काम-काज करने की कहो तो हल्ला मचाने लगता है और हल्ला मचाकर वह अपनी बेजा बात मनवा लेता है। रोटी-सब्जी खायेगा तो उनको बेस्वाद बताकर हल्ला मचायेगा।

नहायेगा, धोयेगा, खायेगा, पीयेगा, सोयेगा, जागेगा, कुछ भी करेगा उससे पहले हल्ला जरूर मचायेगा। घर में पढ़ने की कहो तो हल्ला मचाओ, अच्छी संगत में बैठने की कहो तो हल्ला मचाओ, सावधानी से रहने की कहो तो हल्ला मचाओ। मोबाइल फोन, टी.वी., फ्रिज, सोफा, गाड़ी, ए.सी., कम्प्यूटर, डी.वी.डी. एक नहीं सैंकड़ों मांगे हैं, जिनके लिए कुछ मत करो-केवल हल्ला मचाओ। घर की समस्याओं पर विमर्श करो तो हल्ला मचाओ। यानी घर क्या है-बस कोहराम घर है। इघर पत्नी को लो-उससे कोई बात करो वह रोना-पीटना शुरू कर देती है। उससे कहा थोड़े दिन पीहर चली जाओ तो हल्ला मचाती है। कुछ भी लेकर आओ तो हल्ला, नहीं लेकर आओ तो हल्ला, दफ्तर से देर से आओ तो हल्ला, आराम से बैठ जाओ तो हल्ला, बिजली-पानी को बिल आ जाये तो हल्ला, अखबार का बिल आ जाये तो हल्ला, भगवान के सामने हाथ जोड़कर श्रद्धा नहीं दिखाओ तो हल्ला, कोई मित्र आ जाये तो हल्ला, साले के बारे में कोई रोचक टिप्पणी कर दो-(जिसका कि वह हकदार है) तो हल्ला, वेतन देरी से मिले तो हल्ला, बूढ़े माता-पिता की थोड़ी बहुत सार-संभाल करलो तो हल्ला। बस कुल मिलाकर हल्ला ही हल्ला।


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