मीलों हम आ गए, मीलों अभी जाना है…

बा़गवानी ने हिमाचल को अग्रणी प्रदेश बनाने में अहम भूमिका निभाई है। आज बा़गवानी राज्य के आर्थिक विकास में सालाना करीब 3,300 करोड़ रुपए का भारी योगदान देती है…

25 जनवरी, 1971 को पूर्ण राज्य का दर्जा प्राप्त करने के पचास वर्षों के  दौरान हिमाचल प्रदेश ने जिस तरह जीवन के हर क्षेत्र में समग्र और सतत विकास के नित, नए आयाम स्थापित किए हैं, उससे न केवल आम हिमाचली का जीवन आसान और सुविधापूर्ण ही हुआ है, बल्कि राज्य, देश के पहाड़ी प्रदेशों अपितु बड़े राज्यों की श्रेणी में भी विकास के मॉडल के रूप में उभर कर सामने आया है। समय-समय पर प्रदेश को राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अन्य संस्थाओं और संगठनों के अतिरिक्त केंद्रीय सरकार के विभिन्न मंत्रालयों, अभिकरणों और संस्थाओं द्वारा तमाम क्षेत्रों में प्रदत्त और प्रदान किए जाने वाले सम्मान और पुरस्कार इस बात की गवाही देते हुए नज़र आते हैं कि वर्ष 2021 का हिमाचल प्रदेश, विकास के स़फर में असंख्य मील पत्थर स्थापित करते हुए विकास के सुनहरी पथ पर अग्रसर है। राज्य में अब तक सत्तासीन तमाम प्रदेश सरकारें बिना किसी भेदभाव के राज्य के विकास में जी-ज़ान से जुटी रही हैं। पिछले वर्ष समूचे विश्व में कोविड-19 के उत्पात के बावजूद मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के नेतृत्व वाली वर्तमान प्रदेश सरकार ने राज्य में विभिन्न क्षेत्रों के विकास में कोई कमी नहीं आने दी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत के सपने को पूरा करने में हिमाचल पूर्णतया कृतसंकल्प है। अपनी इन्हीं प्रतिबद्धताओं के चलते नीति आयोग ने हिमाचल प्रदेश को वर्ष 2019-20 के लिए देश भर में सतत विकास लक्ष्य प्राप्ति में दूसरे नंबर पर आंका है। कोई भी हिमाचली आज इस बात पर गर्व कर सकता है कि प्रदेश में प्रति व्यक्ति सकल आय जो सन् 1970-71 में महज़ 651 रुपए थी, साल 2019-20 में बढ़ कर 1,95,255 रुपए हो गई है। इसका श्रेय सरकार के साथ, उन तमाम हिमाचलियों को भी जाता है, जिन्होंने दिन-रात मेहनत कर प्रदेश को इस मुकाम तक पहुंचाया है। हिमाचल प्रदेश को आज संपूर्ण राष्ट्र में शिक्षा के हब में मान्यता प्राप्त हो रही है। प्रदेश की साक्षरता दर करीब 87 प्रतिशत है, जो राज्य की स्थापना के समय सिर्फ 4.8 फीसदी थी। वर्ष 1971 में शिक्षण संस्थानों की संख्या 4,960 थी, जो आज बढ़कर 15,000 से अधिक हो गई है। आज राज्य में शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्रों में बालक और बालिकाओं की संख्या का अनुपात लगभग बराबर है, जो सरकार द्वारा बालिकाओं की शिक्षा के चलाए जा रहे अभियान की सफलता का द्योतक है। जहां तक किसी भी क्षेत्र की भाग्य रेखा कही जाने वाली सड़कों का प्रश्न है, साल 1971 में राज्य के पास महज़ 7,370 किलोमीटर लंबी सड़कें थीं, जो आज बढ़कर 37,808 किलोमीटर हो गई हैं। प्रदेश की 3,162 पंचायतों के ़करीब साढ़े दस हज़ार गांवों को सड़कों से जोड़ा जा चुका है।

 वर्ष 1948 में राज्य में वाहनयोग्य सड़कों की कुल लंबाई महज़ 288 किलोमीटर थी। वर्ष 1971 में प्रति 100 वर्ग किलोमीटर राज्य में सड़कों का जो घनत्व सि़र्फ 13 किलोमीटर था, वह आज बढ़कर 67.91 किलोमीटर हो गया है। रोहतांग में दस हज़ार फुट की ऊंचाई पर 3,200 करोड़ रुपए की लागत से निर्मित 9.02 किलोमीटर लंबी सुरंग ‘अटल टनल’, स्पीति घाटी में 13,596 फुट की ऊंचाई पर चीचम और किब्बर गांवों को जोड़ने वाले एशिया के सबसे ऊंचे चीचम पुल, मनाली-लेह सड़क पर 11,020 फुट की ऊंचाई पर निर्मित 360 मीटर लंबे दारचा-बरसी पुल के अलावा कई स्थानों पर सुरंगों का निर्माण किया जा रहा है। राज्य में आज कुल 4,118 स्वास्थ्य संस्थान हैं। पूर्ण राज्य का दर्जा प्राप्त होने तक इनकी संख्या केवल 587 थी। सन् 1950-51 में प्रदेश में कुल 455 बिस्तर क्षमता वाले 91 चिकित्सा संस्थान थे। वर्तमान में राज्य में 14,527 स्वीकृत बिस्तर वाले 98 सामान्य अस्पताल, 92 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, 588 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, 16 नागरिक औषधालय, 2,104 उप-केंद्र हैं। इसके अलावा 2,898 एल्योपैथी स्वास्थ्य संस्थान, 1,252 आयुर्वेदिक तथा होम्योपैथिक संस्थान शामिल हैं। आज प्रदेश में पशुधन को उत्कृष्ट पशु स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया करवाने के लिए जो 3,449 पशुचिकित्सा संस्थान मौजूद हैं, उनमें नौ पॉलीक्लीनिक, 53 उपमंडलीय अस्पताल, 329 पशुचिकित्सालय, 30 केंद्रीय पशुचिकित्सालय औषधालय और छः पशुचिकित्सा चौकियां शामिल हैं। इसके अतिरिक्त मुख्यमंत्री आरोग्य पशुधन योजना के तहत 1,251 पशुचिकित्सा औषधालय स्थापित किए गए हैं। कृषि प्रदेशवासियों की आजीविका का मुख्य साधन है। राज्य की कुल घरेलू आय में कृषि और संबद्ध क्षेत्रों का हिस्सा 22.1 प्रतिशत है।

 यह क्षेत्र प्रदेश ़करीब 62 प्रतिशत लोगों को रोज़गार प्रदान करता है। ध्यातव्य है कि वर्ष 1970-71 में प्रदेश में जहां मात्र 14,960 हैक्टेयर भूमि पर सब्ज़ियां उत्पादित होती थीं, वहीं आज यह ऱकबा बढ़ कर 86,144 हैक्टेयर तक और उत्पादन दो लाख मीट्रिक टन से बढ़ कर ़करीब 19 लाख मीट्रिक टन तक पहुंच गया है। वहीं अगर बा़गवानी क्षेत्र की चर्चा की जाए तो वर्ष 1971 में केवल 28,000 हैक्टेयर क्षेत्र में 1.78 लाख मीट्रिक टन फल उत्पादन होता था, जो पिछले वित्त वर्ष तक बढ़ कर 2,32,139 हैक्टेयर में 4.95 लाख मीट्रिक टन पहुंच गया था। इसी तरह मत्स्य उत्पादन 1,40,20 मीट्रिक टन तक पहुंच गया है। ज्ञातव्य है कि बा़गवानी ने हिमाचल को अग्रणी प्रदेश बनाने में अहम भूमिका निभाई है। आज बा़गवानी राज्य के आर्थिक विकास में सालाना ़करीब 3,300 करोड़ रुपए का भारी योगदान देती है। प्रदेश की पन विद्युत क्षमता 24,000 मैगावाट आंकी गई है। अब तक 22,800 मैगावाट पन विद्युत क्षमता के दोहन को मंज़ूरी प्रदान की जा चुकी है, जिसमें ़करीब 11 हज़ार मैगावाट पन बिजली का दोहन किया जा चुका है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सपनों को साकार करने हेतु मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर ने प्रदेश में आम लोगों के जीवन को सरल, सुगम और सुविधापूर्ण बनाने के लिए स्वच्छ, पारदर्शी और भ्रष्टाचारमुक्त शासन प्रदान करने के लिए जनमंच, मुख्यमंत्री सेवा संकल्प हेल्पलाईन, हिमकेयर, सहारा, गुडि़या हेल्पलाईन, होशियार सिंह हेल्पलाईन, एक बूटा बेटी के नाम जैसी अनेक योजनाओं का प्रभावी एवं सफल क्रियान्वयन किया है। भविष्य के लिए भी प्रदेश को बड़ी उम्मीदें हैं।


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