गुपकार मोर्चा में बिखराव शुरू

सज्जाद गनी लोन कश्मीर घाटी के राजनीतिक दलों में से पहले व्यक्ति थे जिन्होंने अब्दुल्ला परिवार और सैयद परिवार को चुनौती देते हुए 2014 के चुनावों में भारतीय जनता पार्टी से समझौता ही नहीं किया था, बल्कि नरेंद्र मोदी का स्वागत भी किया था। पीडीपी-भाजपा के गठबंधन की सरकार में पीडीपी ने उन्हें मंत्री बनाने से इंकार कर दिया था तो भाजपा ने उन्हें अपने कोटे से मंत्री बनाया था। उत्तरी कश्मीर में उनकी पार्टी की ज़मीनी जड़ें हैं। दो जिलों में आपसी तालमेल से उनकी पार्टी जिला परिषद के अध्यक्ष का चुनाव जीत सकती है। लेकिन अब्दुल्ला परिवार और सैयद परिवार, मोर्चा के घटक होने के बावजूद पीपुल्स कान्फ्रेंस को यह अवसर देने के लिए तैयार नहीं थे। सज्जाद लोन के पत्र से यह भी संकेत मिलता है कि इन दोनों परिवारों के लिए अनुच्छेद 370 तो एक बहाना है। उसकी आड़ में ये दोनों परिवार घाटी के बाक़ी राजनीतिक दलों को समाप्त करके घाटी की राजनीति में अपनी इजारेदारी क़ायम रखना चाहते हैं…

जम्मू-कश्मीर में गुपकार मोर्चा बने अभी मुश्किल से तीन महीने हुए थे कि उसके घटकों में फूट पड़ना शुरू हो गई है। उसके एक महत्त्वपूर्ण घटक जम्मू-कश्मीर पीपुल्स कान्फ्रेंस ने मोर्चा के कर्णधारों पर गंभीर आरोप लगाते हुए उससे किनारा कर लिया है। राज्य में जिला विकास परिषदों के चुनाव को देख कर कश्मीर घाटी की छह पार्टियों ने लगभग तीन महीने पहले गुपकार मोर्चा के नाम से गठबंधन कर लिया था।

मोर्चा का डिक्टेटर फारूक अब्दुल्ला को बनाया गया था। नेशनल कान्फ्रेंस और पीडीपी तो इस मोर्चा में थी हीं, सीपीएम भी इसी मोर्चा में जा मिला था। स्वर्गीय अब्दुल गनी लोन, जिनकी आतंकवादियों ने हत्या कर दी थी, के सुपुत्र सज्जाद गनी लोन की पार्टी पीपुल्स  कान्फ्रेंस भी मोर्चा में शामिल थी। इतना ही नहीं, लोन को मोर्चा का प्रवक्ता बनाया गया था। कहा तो यही जा रहा था कि घाटी की सभी पार्टियां इसलिए इकट्ठी हुई हैं ताकि संविधान में अनुच्छेद 370 को बहाल करवाया जाए। लेकिन इसका असली मकसद किसी भी तरीके से गांवों के उन युवाओं के लिए घाटी की राजनीति का दरवाजा बंद करना था जो अब्दुल्ला परिवार और सैयद परिवार को चुनौती देते हुए एक नई इबारत लिखना चाहते थे।

अब्दुल्ला परिवार और सैयद परिवार, दोनों ही जानते थे कि यदि इन युवकों को रोका न गया तो वे इन दोनों परिवारों को हाशिए पर धकेल देंगे। इस मोर्चा ने मिलकर चुनाव लड़ा और 280 में से एक सौ दस सीटें भी जीतीं। लेकिन परिणाम आने के कुछ दिन बाद ही सज्जाद लोन ने कहा कि उनकी पार्टी के साथ धोखा हुआ है। मोर्चा के नाम पर जो सीटें पीपुल्स कान्फ्रेंस को दी गई थीं, मोर्चा के घटकों  ने उन पर भी मोर्चा संभाल लिया और पीपुल्स कान्फ्रेंस के प्रत्याशियों को हराने का काम किया। वैसे केवल रिकार्ड के लिए बता दिया जाए कि पीपुल्स कान्फ्रेंस के हिस्से 11 सीटें आई थीं और उनमें से उसने आठ पर जीत हासिल कर ली थी। उसे लगभग 38000 वोट भी मिले। सज्जाद लोन ने नेशनल कान्फ्रेंस के मुखिया फारूक अब्दुल्ला को लिखे पत्र में कहा कि गुपकार मोर्चा ने इन चुनावों में जितने वोट हासिल किए हैं, वे ऊपर से देखने पर तसल्लीजनक कहे जा सकते हैं, लेकिन निष्पक्ष होकर देखा जाए तो जितने वोट विपक्ष को मिले वे गुपकार मोर्चा के वोटों से कहीं ज़्यादा हैं। इसका क्या अर्थ है? यानी जो लोग अनुच्छेद बनाए रखने के पक्ष में हैं, उनकी संख्या हटाए जाने वालों के मुकाबले ज़्यादा है।

यही प्रश्न सज्जाद लोन ने पूछा है। वे इसका कारण घटकों की भितरघात बताते हैं। यानी अब्दुल्ला परिवार व सैयद परिवार मोर्चा के अन्य घटकों को राजनीतिक लिहाज़ से निपटाना चाहते थे। लोन की शिकायत व इस्तीफे का कारण यही है। सज्जाद लोन ने नाम तो नहीं लिया लेकिन उनका संकेत बिल्कुल स्पष्ट था कि अब्दुल्ला परिवार ने गुपकार मोर्चा के अन्य घटकों के प्रत्याशियों की सहायता करने की बात तो दूर, उल्टे उन्हें हराने के लिए डमी उम्मीदवार उतार दिए। इस प्रकार के अविश्वास और विश्वासघात के वातावरण में गुपकार मोर्चा में बना रहना मुश्किल है, यह कहते हुए लोन अपनी पार्टी समेत अलग हो गए।

सज्जाद गनी लोन कश्मीर घाटी के राजनीतिक दलों में से पहले व्यक्ति थे जिन्होंने अब्दुल्ला परिवार और सैयद परिवार को चुनौती देते हुए 2014 के चुनावों में भारतीय जनता पार्टी से समझौता ही नहीं किया था, बल्कि नरेंद्र मोदी का स्वागत भी किया था। पीडीपी-भाजपा के गठबंधन की सरकार में पीडीपी ने उन्हें मंत्री बनाने से इंकार कर दिया था तो भाजपा ने उन्हें अपने कोटे से मंत्री बनाया था। उत्तरी कश्मीर में उनकी पार्टी की ज़मीनी जड़ें हैं। दो जिलों में आपसी तालमेल से उनकी पार्टी जिला परिषद के अध्यक्ष का चुनाव जीत सकती है। लेकिन अब्दुल्ला परिवार और सैयद परिवार, मोर्चा के घटक होने के बावजूद पीपुल्स कान्फ्रेंस को यह अवसर देने के लिए तैयार नहीं थे। सज्जाद लोन के पत्र से यह भी संकेत मिलता है कि इन दोनों परिवारों के लिए अनुच्छेद 370 तो एक बहाना है। उसकी आड़ में ये दोनों परिवार घाटी के बाक़ी राजनीतिक दलों को समाप्त करके घाटी की राजनीति में अपनी इजारेदारी क़ायम रखना चाहते हैं।

जिला परिषदों के चुनावों में इन्होंने यह करके दिखा दिया है। सज्जाद लोन के आरोप कुछ सीमा तक सही ही कहे जा सकते हैं। चुनावों के तुरंत बाद कम से कम अब्दुल्ला परिवार ने तो कहना शुरू कर ही दिया था कि गुपकार मोर्चा बनाने और उसे बनाए रखने में व्यावहारिक  तौर पर बहुत कठिनाइयां हैं। सज्जाद लोन के आरोपों का सार यह है कि अपने परिवार की भविष्य की राजनीति को सुरक्षित रखने के लिए फारूक और उमर की बाप-बेटे की जोड़ी ने गुपकार के नाम पर ऐसी रणनीति बनाई जिससे उनके परिवार को तो लाभ हो, लेकिन साथ ही लाभ देने वाले दूसरे राजनीतिक दल इस प्रक्रिया में स्वयं समाप्त हो जाएं।

अनुच्छेद 370 की ढाल लेकर अब्दुल्ला परिवार जो 1950 से करता आया है, वही रणनीति उसने 2020 में जारी रखी। शायद उसे इसका लाभ भी मिला। राज्य की 280 सीटों में से उसने 68 सीटें जीत लीं। लगता है अब्दुल्ला परिवार की इस साजि़श में भागीदार पीडीपी अब गुपकार के अंदर घुसने से इंकार करेगी क्योंकि सज्जाद लोन के चले जाने के बाद  गुपकार भवन की विश्वसनीयता संदेह के घेरे में आ गई है। सज्जाद लोन के बाहर आ जाने से यह भी सिद्ध हो गया है कि घाटी में आम लोगों के लिए 370 मुद्दा नहीं है, बल्कि भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे राजनीतिक दलों के लिए लोगों को भावनात्मक स्तर पर ब्लैकमेल करने की साजि़श है।

ईमेलः kuldeepagnihotri@gmail.com


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