कुलदीप चंद अग्निहोत्री

गांधी परिवार ने इस अमानुषिक कृत्य का गहराई से विश्लेषण करने के बाद इसका जो कारण बताया है वह सचमुच चौंकाने वाला है। इससे यह भी पता चलता है कि देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी किस प्रकार के हाथों में चली गई है। गांधी परिवार के दामाद राबर्ट वाड्रा ने खुलासा किया कि उन्हें लगता है भारत का मुसलमान अब अपने को असुरक्षित समझने लगा है, क्योंकि यहां हिंदुत्व की बात बहुत ज्यादा होने लगी है...

यहीं से मणिपुर की जनजातियों के विसंस्कृतिकरण का नया अध्याय शुरू हुआ। अब सभी जनजातियां जो कुकी या नागा के सामूहिक नाम से जानी जाती हैं, वे ईसाई हो चुकी हैं। उनकी भाषाओं के लिए अब सरकारें उनकी लिपि का प्रयोग नहीं करती, बल्कि रोमन लिपि का प्रयोग करती हैं। मैतेयी हिंदू हैं और उनको चारों ओर घेरे हुए कुकी ईसाई हैं। कुकी शब्द में जो जनजातियां हैं, वे मणिपुर के पड़ोस के राज्य मिजोरम में भी बसी हैं...

चैत्र-वैशाख का मास हो और हिंगलाज देवी तीर्थ स्थल की चर्चा न हो, यह संभव नहीं है। बलूचिस्तान में लासबेला कभी रियासत हुआ करती थी। लास का अर्थ है समतल मैदान और बेला का अर्थ है जंगल। लेकिन अब यह रियासत बलोचिस्तान का ही हिस्सा है। इसमें कोई शक नहीं कि यह समतल भी है और यहां जंगल भी है। लेकिन जहां जंगल होगा, वहां पहाड़ भी होना चाहिए। सचमुच यहां पहाड़ भी है। दरअसल बलोचिस्तान में मकरान के विशाल मरुस्थल में खेरथार पर्वत श्रंखला सभी को आकर्षित करती है। यह सारा क्षेत्र सिंध प्रदेश से जुड़ा हुआ है। इस खेरथार पर्वत श्रंखला के अंतिम चरण में शिखर पर सप्तसिन्धु क्षेत्र का ऐतिहासिक तीर्थ धाम स्थित है। इसी पर्वत के चरणों मे हिंगोल नदी

ईमानदार रहना, सत्य व्यवहार करना, अन्याय का यथाशक्ति प्रतिकार सभी का धर्म है। इस लिहाज से धर्म को कत्र्तव्य भी कहा जाता है। सामान्य स्थिति में तो सभी अपने-अपने धर्म या कत्र्तव्य का पालन करते ही हैं। लेकिन परीक्षा तब होती है जब धर्म के पालन के रास्ते में कोई बड़ी बाधा आ खड़ी होती है...

पिछले कुछ अरसे से महाराष्ट्र के लोग भी गुस्से में हैं। सबसे पहले उन्होंने मांग की कि अहमदनगर, जहां औरंगजेब मरा था, का नाम अहिल्या बाई होल्कर के नाम पर अहिल्यानगर किया जाए। सरकार ने लंबे संघर्षों के बाद यह मांग पूरी कर दी...

बड़ी सरकार केजरीवाल, छोटी सरकार भगवंत मान को एक्शन की कमांड देते हैं। उसके बाद छोटी सरकार भगवंत मान पुलिस को एक्शन की कमांड देते हैं। इस कमांड के बाद पुलिस एक्शन में आती है। इस पूरे आप्रेशन को ‘नशों के खिलाफ युद्ध’ का नाम दिया गया है। यानी सरकार को पता रहता ही है कि पंजाब में नशों का कारोबार चल रहा है और उसमें कौन-कौन शामिल हैं। लेकिन एक्शन कब लेना है इसका फैसला सरकार अपने हितों को ध्यान में रख कर करती है। इसकी एक दूसरी व्याख्या भी की की जा सकती है। जनता के हित और सरकार के हित अलग-अलग ही नहीं, बल्कि परस्पर विरोधी भी हो सकते हैं। जनता का हित है कि नशे बंद होने

औरंगजेब अच्छा बादशाह था या बुरा बादशाह था, इसको थोड़ी देर के लिए स्थगित कर दिया जाए, तो इस बात में तो कोई शक नहीं है कि मुगल वंश हिंदुस्तान में मध्य एशिया से आया हुआ एक विदेशी राजवंश था, जिसने हिंदुस्तान को गुलाम बना लिया था। प्रश्न उसके अच्छे-बुरे का नहीं है, प्रश्न है एक विदेशी बादशाह को भारत में से उखाडऩा। मुगलों की हुकूमत को शिवाजी मराठा, गुरु गोविंद सिंह, महाराणा प्रताप और लचित बुरफोकन ने मिलकर एक समय जर्जर कर दिया था। आज इक्कीसवीं शताब्दी

सोशल वर्क के न जाने कितने सिद्धांत पढ़ लिए। सब कुछ उपनिवेशवादी शासकों द्वारा सिखाए गए। उत्तर भारत, दक्षिण भारत, एसटी, एससी, मंगोल, द्राविड़, न जाने कितनी कितनी बातें। भारत को तोडऩे वाली बातें। लेकिन भारत के लोगों का यह महा उत्सव तो खुद भारतीयों ने सजाया था। ऐसा उत्सव जहां पैंसठ करोड़ भारतीय आ-जा रहे थे। मुझे आशा थी भारतीय विश्वविद्यालयों के समाजशास्त्र और सोशल वर्क विभागों के तंबू तो महाकुंभ में सज गए होंगे क्योंकि ‘केस स्टडी’ के लिए यह अवसर फिर कब मिलेगा, पर ऐसा नहीं हुआ...

राजनीतिक शरण के नाम पर क्या अमेरिका और कनाडा सरकारें भारत विरोधी समूह यत्नपूर्वक तैयार नहीं कर रही? इसके लिए क्या वहां परोक्ष ब्रांच काम नहीं कर रहीं? इस ब्रांच को तो गधा एअरवेज के यात्रियों का इंतजार करने की भी जरूरत नहीं होती। यह ब्रांच तो बाकायदा उनको अल्प अवधि का वीजा देकर बुलाती है। उसके बाद जांच लेती है कि क्या इनको भारत विरोधी गुट में रिक्रूट किया जा सकता है। यदि उपयुक्त पाया जाता है तो शरण के बाद उसे इस काम में लगा दिया जाता है। लेकिन इस प्रकार के रंगरूट सप्लाई करने का काम भी तो पंजाब में बैठे कुछ तथाकथित प्रतिष्ठित लोग ही तो कर रहे हैं। यह पूरी सप्लाई सिस्टम चेन है जिसका एक सिरा भारत में, दूसरा कनाडा-अमेरिका में है...

दिल्ली की जनता के सामने ऐसे कबूतर थे जो दिखाई तो दे रहे थे, लेकिन जब वे उन्हें छूने की कोशिश करते थे तो स्पर्श नहीं हो पा रहे थे। वे दिल्ली की जनता को यही कबूतर खरीदने की विज्ञापनों के माध्यम से बार-बार अपील कर रहे थे। यही काल्पनिक कबूतर बेचने के लिए उन्होंने पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान को भी लगा रखा था। वे चिल्ला रहे थे कि केजरीवाल ने सडक़ों को शानदार बना दिया है...