कुलदीप चंद अग्निहोत्री

दरअसल ममता जानती हैं कि बंगाल सरकार के सभी अवरोधों के चलते भी सीबीआई पर्दे के बाहर के और पर्दे के अंदर के अपराधियों को ही पकडऩे का प्रयास कर रही है। उसी से ध्यान बंटाने के लिए ममता अपने पुराने घिसे पिटे हथकंडे अपना रही हैं...

जाहिर है विभाजन का यह तरीका अवैज्ञानिक था, लेकिन ब्रिटिश अधिकारियों को इन प्रश्नों की चिंता नहीं थी...

इस पृष्ठभूमि में एक ही निष्कर्ष निकलता है कि नेहरु ने देश का विभाजन केवल जल्दी सत्ता प्राप्त करने के लालच में स्वीकार कर लिया। मुस्लिम लीग को कम से कम यह श्रेय तो दिया जा सकता है कि वह पाखंडी नहीं थी...

इस प्रतिवेदन का अगला भाग चौंकाने वाला है, जिसमें आगा खान कहते हैं कि जब भारतीयों को किसी भी संस्थान में उनकी संख्या के बल पर हिस्सेदारी दी जाए तो मुसलमानों को हिस्सेदारी का आधार उनकी संख्या को न माना जाए, बल्कि यह आधार रखा जाए कि मुसलमानों ने ब्रिटिश साम्राज्य की कितनी सेवा की है। आज भी यह शक जाहिर किया जाता है कि आगा खान ने यह प्रतिवेदन स्वयं दिया था या फिर अंग्रेजों ने उसे ऐसा प्रतिवेदन देने के लिए कहा था। ब्रिटिश सरकार ने शायद तभी से देश को विभाजित करने की योजना बनानी शुरू कर दी थी। आगा खान की पिटीशन से वायसराय इतना तो समझ गए थे कि हिंदुओं की जनसंख्या कृत्रिम रूप से कम करने का अवसर है...

कुछ को डर है कि तलाकशुदा औरत को पूर्व पति द्वारा चार पैसे गुजारे के लिए देते रहने से इस्लाम ही खतरे में पड़ जाएगा। लेकिन भारतीय मूल की मुस्लिम महिलाएं प्रसन्न हैं क्योंकि उनको यकीन है कि इस वक्त देश की सरकार उनके साथ खड़ी है। वह उन्हें धोखा नहीं देगी। वह अपने राजनीतिक फायदे के लिए मुल्ला मौलवियों के आगे बिक नहीं जाएगी। अब केवल हलाला का नर्क बचा है। भारतीय मूल की मुस्लिम महिलाओं को इस नर्क से निकलने के लिए लडऩा है...

भारत में अयोध्या की लड़ाई तब शुरू हुई थी, जब सोलहवीं शताब्दी में मध्य एशिया के बाबर ने भारत पर हमला किया था। बाबर के इस हमले को दश गुरु परम्परा के प्रथम गुरु श्री नानक देव जी ने उसी समय अपनी ‘बाबर वाणी’ में चुनौती दी थी। और शायद भारत में अयोध्या का आंदोलन तभी शुरू हो गया था। देश के कुछ हिस्से पर कब्जा करने के बाद बाबर की सेना ने अयोध्या में भारत के इतिहास पुरुष श्री रामचन्द्र जी के स्मृति स्थल को गिरा कर, उसके स्थान पर मध्य एशिया की

स्टेनले राइस अपनी पुस्तक ‘हिंदू कस्टम्स एंड देयर ऑरिजिन’ में लिखते हैं कि, ‘अछूत मानी जाने वाली जातियों में प्राय: वे जातियां भी हैं, जो विजेताओं से हारीं और अपमानित हुई तथा जिनसे विजेताओं ने अपने मनमाने काम करवाए।’ जाहिर है वाल्मीकि समाज भी उसी में शामिल था। लेकिन महर्षि वाल्मीकि में उनकी आस्था अटल रही। इस भयंकर कालरात्रि में भी वे वाल्मीकि महाराज का रास्ता त्याग कर अरबों-तुर्कों के इस्लाम के रास्ते पर नहीं गए। हिंदी के प्रख्यात उपन्यास#Divyahimachal #HimachalNews #Blogs #Hindiblogs #Sampadkiya

शायद दुनिया भर के तानाशाहों को सैमेटिक पद्धति अपने लिए ज्यादा अनुकूल लगती है, क्योंकि इसमें जनता के मुंह पर ताले लगा दिए जाते हैं और तानाशाह निश्चिन्त हो जाता है। इंदिरा गांधी के साथ भी यही हुआ था। सत्ता की हवस में उसने अपने राजधर्म का पालन नहीं किया और आपात स्थिति लगा कर लोगों की जुबान की तालाबंदी करने की कोशिश की...

मोहन भागवत जी का यह विश्लेषण या टिप्पणियां भारत के राजनीतिक जीवन के सूत्रधारों के लिए विशेष महत्व रखती हैं, लेकिन इन टिप्पणियों के आलोक में संघ और भाजपा के रिश्तों की तलाश करना गलत दरवाजा खटखटाना ही कहा जाएगा...

मतदाताओं ने मजहबी भेदभाव की ये दीवारें तोड़ कर सैयदा के मुकाबले एक गुज्जर को और सुन्नी के मुकाबले एक शिया को भारी बहुमत से जिता दिया। जम्मू कश्मीर के दोनों राज परिवार ध्वस्त हो गए। शेख अब्दुल्ला परिवार और मुफ्ती परिवार का कोई भी सदस्य लोकसभा में नहीं होगा...