कुलदीप चंद अग्निहोत्री

‘आज ही सारी तैयारी कर ब्रह्म मुहूर्त में यात्रा करें। घबराना मत, गुरु सदा सर्वदा आपके साथ ही हैं। जो विद्या साधारण जन बारह वर्ष में प्राप्त करते हैं, वही विद्या आप बारह मास में ही प्राप्त कर लोगे। हमारे इस वरदान से आप देश के धुरंधर विद्वान बनेंगे। स्वयं विद्या प्राप्त करने के बाद इसका पंथ में विस्तार करना। जिस प्रकार की आपकी निर्मल बुद्धि है, उसी प्रकार से निर्मला बन कर रहना।’ लेकिन गुरु जी जानते थे कि ज्ञान साधना कष्टसाध्य है। इसलिए उन्होंने इन ज्ञान साधकों को खबरदार भी किया कि ज्ञान का मार्ग कष्टसाध्य भी है। वहां मौसम भी आपके अनुकूल नहीं हो सकता। इन सभी बाधाओं को पार करते हुए विजयी होकर आओ। गुरु गो

कांग्रेस ने अंबेडकर के साथ किस प्रकार का व्यवहार किया, इसे जानने के लिए अंबेडकर की पत्नी डा. सविता अंबेडकर की आत्मकथा जरूर पढऩी चाहिए...

माता गुजरी ने परम संतुष्टि की सांस ली और वे अनंत समाधि में चली गईं। जब तक कोई कुछ समझ पाता, तब तक तो प्राण पखेरू उस अनंत में ही विलीन हो चुके थे...

पिछले दिनों कितना बड़ा गुज्जर सम्मेलन हो लिया। उसमें हिंदू-मुसलमान दोनों शामिल हुए। राज परिवार की यही सबसे बड़ी चिंता है। अब तक एक बिरादरी के मुसलमानों को उसी बिरादरी के हिंदुओं से डराकर, सुरक्षा के नाम पर एक अलग तबेले में रखा जाता था। वह राज परिवार का सुरक्षित वोट बैंक था। लेकिन अब वही वोट बैंक खिसकता नजर आ रहा है। घबराहट में किसी ने सुझाया, जल्दी फिलीस्तीन की आजादी वाले थैले तैयार करवाओ और उसे प्रियंका गांधी के कंधे पर लटका कर घुमाओ। लेकिन कांग्रेस की बात नहीं बनी...

यह औपनिवेशिक संस्कारों से अभी तक भी मुक्त न होने के कारण ही है। जार्ज इस मानसिकता को तो पहचानने ही लगे हैं। इसलिए वह गाहे बगाहे भारत के व्यक्तियों और संस्थाओं पर प्राय: आरोप लगाते रहते हैं। अप्रत्यक्ष रूप से वह विपक्ष को समय कुसमय आरोप रूपी हथियार मुहैया करवाने का काम करते हैं, जिसकी विपक्ष प्रतीक्षा ही नहीं क

अलबत्ता पुलिस ने इस बात का श्रेय लेने की कोशिश जरूर की है कि उसके एएसआई ने ही हमलावर का हाथ झटक कर गोली का रुख सुखबीर बादल की ओर से दीवार की ओर मोड़ दिया। मामला केवल चार सेकेंड का ही था। विक्रम सिंह मजीठिया ने स्पष्ट कर दिया कि वह एएसआई पिछले बाईस साल से बादल परिवार की सुरक्षा में तैनात है और अब परिवार के सदस्य की तरह ही है। पुलिस को सफलता का श्रेय तब दिया जा सकता था यदि हमलावर को बादल के पास पहुंचने से पहले ही पकड़ लिया गया होता। अलगाववादियों के मन में क्या चल रहा है, अब इसको समझने के लिए तो शोध करने की जरूरत नहीं है...

आक्रमणकारी कौन थे? किसलिए गुरु जी को मारना चाहते थे? इस सम्बन्ध में इतिहासकारों में मतभेद पाया जाता है, परन्तु प्राय: कहा जाता है कि पठान सरहिन्द के नवाब ने गुरु जी की हत्या के लिए भेजे थे। देहावसान के समय गुरु जी की आयु 42 वर्ष की थी और विक्रमी 1765 की शुचि पंचमी थी। गुरु गोबिंद सिंह जी के दक्षिण प्रयाण से भारतीय इतिहास ने नई करवट ली। उन्होंने बंदा बैरागी को जो सीख दी, उससे बंदा बैरागी ने स्वाधीनता के संघर्ष का ऐसा उदाहरण प्रस्तुत किया, जो आज भी करोड़ों लोगों को प्रेरित करता है। इसी तरह गुरु तेग बहादुर जी का बलिदान भी भारतवासियों को सीख देता है। बलिदानों की यह परंपरा गुरु गोबिंद सिंह जी ने जारी रखी...

ब्राह्मणों ने अत्याचारों की लंबी गाथा बताई। अकल्पनीय अत्याचारों की यथार्थता का बोध कराया। धर्म परिवर्तन की मदांधता का वेग बताया। हिंदू जाति पर हो रहे अत्याचारों को सुनकर गुरु तेग बहादुर गंभीर हो गए।

अमेरिका के इन सात सूबों को छोडक़र शेष 43 सूबों में परम्परा से ही निश्चित है कि किस सूबे से डेमोक्रेटिक जीतेंगे और किस सूबे से रिपब्लिकन जीतेंगे। इसलिए सारा दारोमदार इन सात स्विंग स्टेट पर रहता है...

इतनी विवेचना के बाद भी मेरा कहना है कि शहजाद पूनावाला जो कह रहे हैं कि पसमांदा होने के कारण उनसे मुसलमान भेदभाव कर रहे हैं, वह शत-प्रतिशत सही है। बस फर्क इतना ही है कि पूनावाला को लगता है कि तथाकथित छोटी जातियों से इस्लाम में चले जाने वाले देसी मुसलमानों से ही भेदभाव किया जाता है। जमीनी असलियत यह है कि अरब मूल के सैयदों व शेखों के लिए हर देसी मुसलमान पसमांदा ही है, चाहे वह ब्राह्मण या राजपूत, पश्तून या बलोच बिरादरी से ही इस्लाम पंथ में क्यों न गया हो। उनके लिए क्या पठान, क्या ‘बिरहमन’, सब दोयम दर्जे के ही हैं। यह अलग बात है कि पश्तून या ब्राह्मण सैयदों या शेखों के बराबर बैठने की बचकानी हरकतें करते रहें...