शहनाज में बचपन से ही आत्मविश्वास था…

By: Jan 23rd, 2021 12:20 am

जीवन एक वसंत/शहनाज हुसैन

किस्त-60

सौंदर्य के क्षेत्र में शहनाज हुसैन एक बड़ी शख्सियत हैं। सौंदर्य के भीतर उनके जीवन संघर्ष की एक लंबी गाथा है। हर किसी के लिए प्रेरणा का काम करने वाला उनका जीवन-वृत्त वास्तव में खुद को संवारने की यात्रा सरीखा भी है। शहनाज हुसैन की बेटी नीलोफर करीमबॉय ने अपनी मां को समर्पित करते हुए जो किताब ‘शहनाज हुसैन ः एक खूबसूरत जिंदगी’ में लिखा है, उसे हम यहां शृंखलाबद्ध कर रहे हैं। पेश है 60वीं किस्त…

-गतांक से आगे…

जिस उम्र में दूसरी लड़कियां अपनी ही ऊहा-पोह में घिरी रहती हैं, शहनाज आत्मविश्वास से खड़ी थीं, दुनिया की आंखों से आंखें मिलाने को तैयार। उनका निजी स्टाइल लखनऊ जैसे तंगदिल शहर में भी कुलांचे मारने लगा था। मॉम हमेशा से अपने स्टाइल को लेकर बेहद सतर्क रही हैं और 22 साल की उम्र में ही उनका एक व्यक्तित्व विकसित होने लगा था, उनकी चपलता बस सुनहरे गरारे तक ही सीमित नहीं रही। नैनीताल का फेंसी ड्रैस बॉल भी उनकी क्रिएटिविटी को दिखाने का जरिया बना। हम अक्सर नैनीताल छुट्टियां मनाने जाते थे। मुझे याद है एक गर्मियों में वह क्लियोपैट्रा की तरह तैयार हुई थीं। बड़ी-बड़ी आंखों और सिर पर सजे आकर्षक सर्प की बदौलत वह हर पहलू से मिस्र की रानी लग रही थीं। एक और साल वह अनारकली बनकर बॉल में पहुंची थीं, वह रात तो खासतौर पर रोमांच की रात रही, क्योंकि अपने उत्साह में वह अपना पर्दा चोटी पर स्थित हमारे कॉटेज में ही भूल आई थीं। उस रात मेरे पापा भी किसी सलीम से कम नहीं निकले। ऊपर जाने के लिए कोई ट्रांसपोर्ट नहीं मिलने पर वह घोड़े पर ही बैठकर शिखर पर पहुंचे और ठीक समय पर मेरी मां का पर्दा लेकर आ गए।

अनारकली तो खुशी से झूम ही उठी। शहनाज का नोजपिन भी धीरे-धीरे उनकी पहचान बनता गया। उन्हें उसके चमकते नगों से बेहद लगाव था और जब भी फोटो खिचवाने का अवसर आता, तो वह फोटोग्राफर से फरमाइश करतीं कि उनकी लौंग की फोटो भी आनी चाहिए। लखनऊ की गर्मियों के दिन थे, जब उन्होंने एक दिन अपनी मां को ताज्जुब में डाल दिया, ‘मम्मी देखो, मेरी लौंग। मैंने नाक छिदवा ली।’ मेरी नानी उन्हें देखकर धक से रह गईं। ‘तुमने गलत तरफ नाक छिदवाई है, बेवकूफ लड़की। नाक हमेशा बाईं तरफ छिदवाते हैं।’ ‘पता है,’ मॉम ने चहकते हुए कहा। ‘इसलिए तो मैंने दाईं तरफ छिदवाई है।’ भीड़ में अलग दिखने की अलामत अब साफ हो चली थी। शहनाज खासतौर पर किसी की पिछलग्गू बनने वालों में से नहीं थीं, उन्होंने हमेशा अपनी राह खुद बनाई, कभी किसी के पीछे नहीं चलीं, हमेशा आगे चलीं। वह कहते हैं न कि- जहां हम खड़े हो जाएं, लाइन वहीं से शुरू होती है।

सपनों का पीछा

मोहम्मद बाग क्लब में शहनाज घास पर कुछ दोस्तों के साथ बैठकर नासिर को टेनिस खेलते हुए देख रही थीं। सर्दियों की आमद थी। हाथों में पकड़ी हुई सलाई मानों खुद ब खुद ही चल रही थीं, क्योंकि उनका ध्यान तो कहीं और ही था। मानों वह भविष्य में अपनी जगह तलाश रही हों। दोस्तों के खुशी से चिल्लाने पर वह होश में आई और तब उन्हें अहसास हुआ कि खेल खत्म हो चुका था। विजेता की अकड़ से चलते हुए प्रफुल्लित नासिर शहनाज के पास आ रहे थे।

(ब्यूटीशियन शहनाज हुसैन की अगली कडि़यों में हम आपको नए पहलुओं से अवगत कराएंगे। आप हमारी मैगजीन के साथ निरंतर जुड़े रहें तथा इस सीरीज का आनंद उठाएं। शहनाज का जीवन अन्य लोगों के लिए प्रेरणा की तरह है।)


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