जलमार्गों के जरिए परिवहन बढ़े

डा. जयंतीलाल भंडारी, विख्यात अर्थशास्त्री

जल मार्ग उपयोग करने वालों को कुछ सबसिडी भी दी जानी चाहिए। इससे अंतर्देशीय जल परिवहन और तटीय जहाजरानी दोनों को बढ़ावा मिलेगा, सस्ते में परिवहन होगा और उद्योग कारोबार को प्रोत्साहन मिलेगा। खासतौर से खतरनाक सामग्री और गैस, पेट्रोल या रसायनों का एक हिस्सा जल परिवहन को आवश्यक रूप से हस्तांतरित किया जाना चाहिए। अब देश में जल मार्गों के उपयुक्त विकास के लिए नदियों की प्रकृति और उनके गहरे उथले पानी और गाद के निरंतर बहाव की समस्या पर भी ध्यान दिया जाना होगा…

यकीनन नए वर्ष 2021 में जलमार्गों के जरिए परिवहन बढ़ाए जाने की आवश्यकता दिखाई दे रही है। हाल ही में इंडियन चैंबर ऑफ  कॉमर्स के ‘मल्टी मॉडल’ परिवहन पर आयोजित कार्यक्रम में भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण (आईडब्ल्यूएआई) की चेयरपर्सन अमिता प्रसाद ने कहा कि इस समय अतंर्देशीय जलमार्ग का कुल परिवहन में हिस्सा 2.5 प्रतिशत है। यह निकट भविष्य में 5 प्रतिशत और 2030 तक 10 प्रतिशत होना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि इस समय देश में जलमार्ग के जरिए कोयले की ढुलाई बहुत कम है। ऐसे में जलमार्गों के जरिए कोयले का परिवहन बढ़ाना काफी लाभप्रद होगा तथा राष्ट्रीय जलमार्ग-1 में कोयले के परिवहन के लिए बड़ी संभावना है। निःसंदेह इस समय कोविड-19 की चुनौतियों के बीच देश के द्वारा जल परिवहन को विकास की नई जीवन रेखा बनाने की डगर पर आगे बढ़ना कई दृष्टिकोणों से लाभप्रद होगा।

चूंकि एक ओर जल परिवहन से रेल और सड़क मार्ग की तुलना में माल ढुलाई करीब 3 से 4 गुना सस्ती है, वहीं दूसरी ओर सड़क और रेल परिवहन को यात्री और माल ढुलाई के भारी दबाव से हल्का किया जाना जरूरी है। उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय जल मार्ग कानून के तहत 111 नए नदी मार्गों को राष्ट्रीय जल मार्गों के रूप में विकसित किए जाने की योजना बनाई गई है। विगत 12 नवंबर 2020 को गंगा नदी में वाराणसी और हल्दिया के बीच 1620 किलोमीटर लंबे देश के पहले राष्ट्रीय जल मार्ग-1 के शुभारंभ के बाद इसकी कार्य प्रगति दिखाई दे रही है। यह राष्ट्रीय जल मार्ग-1 उस बड़ी योजना का हिस्सा है जिसमें जल मार्ग आगे चलकर एक पूरक, कम लागत वाला और पर्यावरण के अनुकूल माल एवं यात्री परिवहन का माध्यम बनाए जाएंगे। वास्तव में देश में एक लंबे समय से जल मार्गों से परिवहन की आवश्यकता अनुभव की जा रही है। जिन जल मार्गों को देश के प्राकृतिक पथ कहा जाता है, वे अतीत में भारतीय परिवहन की जीवन रेखा हुआ करते थे।

 ये जल मार्ग शताब्दियों से कारोबार, उद्योग और आर्थिक शक्ति का मुख्य आधार हुआ करते थे। लेकिन जलमार्गों की अंग्रेजों के आगमन के बाद लगातार उपेक्षा हुई। खासतौर से बीती एक शताब्दी में भारत में जल परिवहन क्षेत्र बेहद उपेक्षित होता चला गया। देश की आजादी के बाद भी सड़क, रेल और वायु मार्गों की होड़ में परंपरागत जीवनदायी जलमार्गों को नजरअंदाज किया गया। ज्ञातव्य है कि भारत के पास करीब 7500 किलोमीटर तटीय क्षेत्र है, जबकि करीब 14500 किलोमीटर नदी मार्ग है और इस विशाल नदी मार्ग पर हमेशा बहती रहने वाली नदियों, झीलों और बैकवाटर्स का उपहार भी मिला हुआ है। समय के साथ इनकी क्षमता बुरी तरह प्रभावित हुई। यह स्पष्ट है कि जल परिवहन दुनियाभर में माल ढुलाई के लिए वरीयता वाला माध्यम है। खासतौर पर विशाल और विचित्र आकार वाली वस्तुओं के लिए। पर्यावरण मित्र और किफायती होने के बाद भी भारत इसका अपेक्षित लाभ नहीं उठा पाया है। स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि चीन और अमरीका जैसे देशों ने जैसे-जैसे विकास की ओर कदम बढ़ाए, वैसे-वैसे वे अपने जल मार्गों का अधिक उपयोग करने लगे। उन्होंने जल मार्गों को अपनी अर्थव्यवस्था का महत्त्वपूर्ण स्तंभ बना लिया। कई यूरोपीय देश अपने कुल माल और यात्री परिवहन के लिए जल परिवहन का बहुतायत से उपयोग करते हैं। इतना ही नहीं, यूरोप के कई देश आपस में इसी साधन से बहुत मजबूती से जुड़े हैं।

ऐसे में हमें अब भारत में भी विशाल जल मार्गों के उपयोग और इससे विभिन्न प्रदेशों के आपसी कारोबार के बढ़ने की संभावनाओं को मुठ्ठी में लेने के लिए तेजी से आगे बढ़ना होगा। इससे देश के परिवहन तंत्र में आ रही मुश्किलें कम होंगी और लागत घटने के कई लाभ भी होंगे। ज्ञातव्य है कि इस समय देश में विभिन्न माध्यमों से होने वाली कुल माल ढुलाई में जहां करीब 54 फीसदी ढुलाई सड़क मार्ग से और करीब 33 फीसदी ढुलाई रेलमार्ग से होती है, वहीं जल मार्ग से ढुलाई सड़क और रेल मार्ग की तुलना में बहुत कम है। ऐसे में जल मार्गों के निकट स्थित कई बड़ी विकास योजनाओं के लिए भारी-भरकम मशीनरी और संसाधनों की आपूर्ति तथा बिजलीघरों के लिए कोयला जैसी वस्तुओं की ढुलाई के लिए जलमार्गों का उपयोग अत्यधिक किफायती और अनुकूल दिखाई देता है। साथ ही अनाज और उर्वरकों की बड़ी मात्रा में ढुलाई लाभपूर्ण तरीके से जल परिवहन से संभव है। निःसंदेह अब राष्ट्रीय जलमार्गों से देश की आर्थिक-सामाजिक तस्वीर को संवारने के लिए कुछ महत्त्वपूर्ण बातों को ध्यान में रखा जाना जरूरी है। कोविड-19 के चुनौतीपूर्ण समय में जल परिवहन का बुनियादी ढांचा तैयार करने और परियोजनाओं के क्रियान्वयन के लिए भारी-भरकम संसाधन जुटाने के लिए नए उपायों पर ध्यान देना होगा। इस क्षेत्र में सेवाओं की दक्षता और गुणवत्ता में सुधार करने के लिए भी काफी संसाधन जरूरी होंगे। निश्चित रूप से जल परिवहन क्षेत्र में पूंजी लगाने वालों को प्रोत्साहन देने के लिए नई रणनीति की जरूरत है। जल परिवहन क्षेत्र के विकास के लिए इस बात की वैधानिक व्यवस्था भी सुनिश्चित करनी होगी कि विभिन्न नदी तटीय इलाकों के कारखाने तथा अन्य उपक्रम अपनी माल ढुलाई में एक खास हिस्सा जलमार्गों को दें।

जल मार्ग उपयोग करने वालों को कुछ सबसिडी भी दी जानी चाहिए। इससे अंतर्देशीय जल परिवहन और तटीय जहाजरानी दोनों को बढ़ावा मिलेगा, सस्ते में परिवहन होगा और उद्योग कारोबार को प्रोत्साहन मिलेगा। खासतौर से खतरनाक सामग्री और गैस, पेट्रोल या रसायनों का एक हिस्सा जल परिवहन को आवश्यक रूप से हस्तांतरित किया जाना चाहिए। अब देश में जल मार्गों के उपयुक्त विकास के लिए नदियों की प्रकृति और उनके गहरे उथले पानी और गाद के निरंतर बहाव की समस्या पर भी ध्यान दिया जाना होगा। वाणिज्यिक नौवहन की उपयुक्तता के लिए पर्याप्त दोतरफा जिंस उपलब्धता पर भी ध्यान देना होगा। जल परिवहन से जब भारी-भरकम सामान जैसे कोयला, खनिज, खाद्यान्न और उर्वरक आदि का बड़ा हिस्सा एक बार भेजा जाता है और उन्हें ले जाने वाले पोत अक्सर खाली लौटते हैं। इससे मुनाफे में भारी कमी आती है। अतएव कोई जहाज वापसी में खाली न जाए, इस हेतु उपयुक्त प्रबंधन जरूरी होगा। हम उम्मीद करें कि नए वर्ष 2021 में जहाजरानी मंत्रालय और भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण विभिन्न डिजिटल तौर-तरीकों और ऑनलाइन व्यवस्था के साथ जल मार्गों के रणनीतिक विकास की डगर पर तेजी से आगे बढ़ेंगे। ऐसा किए जाने से कोविड-19 की चुनौतियों के बीच जल परिवहन से माल ढुलाई के क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ा जा सकेगा और इससे आम आदमी, उद्योग-कारोबार, पर्यावरण और संपूर्ण अर्थव्यवस्था को लाभान्वित किया जा सकेगा।


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