भारत की नारी सम्मान संस्कृति-परंपरा

प्रताप सिंह पटियाल, लेखक बिलासपुर से हैं

देश में लव जिहाद व धर्मांतरण जैसी साजिश पर राजनीतिक गलियारों की सियासी हरारत भी खूब बढ़ती है। इन मसलों पर न्यायपालिकाएं भी चिंता जताकर सरकारों को आगाह करती आई हैं। अपराध मिटाने के लिए कानून के साथ जुल्मी मानसिकता के जहन में प्रहार की जरूरत है…

पुरातन काल से आधुनिक युग तक राष्ट्र निर्माण के कार्यों में महिलाशक्ति ने कई महत्वपूर्ण आयाम स्थापित किए हैं। मौजूदा दौर में देश की आबादी में लगभग 48.5 प्रतिशत हिस्सेदारी रखने वाली भारतीय नारीशक्ति अंतरराष्ट्रीय खेल पटल पर देश का प्रतिनिधित्व कर रही है, प्रशासनिक व स्वास्थ्य सेवाओं में अपना योगदान दे रही है। देश की तमाम सुरक्षा एजेंसियों व न्यायपालिकाओं से लेकर राजनीति के कई अहम पदों पर पदस्थ होने के साथ शिक्षा व कृषि क्षेत्र तक महिला सशक्तिकरण की काबीलियत व हुनर का लोहा मनवा रही है। जाहिर है महिलाएं अपने अधिकारों के प्रति सजग हैं तथा किसी भी क्षेत्र में निर्णय लेने की कूवत रखती हैं। मगर विडंबना यह है कि वैदिक काल से हमारे महान् मनीषियों द्वारा रचित धर्मग्रंथों से विश्व को नारी आदर के लिए ‘मातृ देवो भवः’ व   ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमन्ते तत्र देवता’ का संदेश देने वाले भारत में कुछ समय से महिलाओं के खिलाफ  दहेज प्रथा, यौन हिंसा, एसिड अटैक, अपहरण, लव जिहाद के जरिए धर्म परिवर्तन तथा हत्या जैसी जघन्य वारदातों में इजाफा हो रहा है।

 देश में महिलाओं से दुष्कर्म व कई अन्य अपराधों से आक्रोशित होकर लोग अक्सर सड़कों पर धरने, प्रदर्शन व कैंडल मार्च निकालकर अपना विरोध प्रकट करते हैं जो कि हमारी संस्कृति का हिस्सा नहीं है। विश्व गुरु भारत का अत्यंत गौरवशाली इतिहास साक्षी रहा है कि नारी अस्मिता व स्वाभिमान के लिए त्रेतायुग में वास्तुशास्त्र के महान् आचार्य विश्वकर्मा द्वारा निर्मित ‘स्वर्णपुरी लंका’ का दहन कर दिया गया था। रघुवंश के क्षत्रिय शिरोमणि प्रभु श्रीराम के ‘कोदंड’ नामक धनुष से निकली वाणवर्षा ने लंका की शक्तिशाली सेना को उसके तमाम सिपहसालारों के साथ यमपुरी का रास्ता दिखा कर सीता जी को मुक्त कराया था। उन्हीं सीता जी ने अपने ‘चंडिकास्त्र’ से मूलकासुर जैसे राक्षस को मौत की नींद सुला दिया था। इसी भारत में महिषासुर जैसे शक्तिशाली दैत्य का शीश काटने वाली दुर्गा जी के साथ कई असुरों का वध करने वाली अंबा, चामुंडा व काली जैसी शक्तियों की पूजा होती आई है। भारतीय सेना की कई बटालियनों का यु़द्धघोष ‘जय दुर्गा’ व ‘जय ज्वाला मां’ के नाम से होता है। नारी सम्मान के लिए परिणय सूत्र में बंधने वाले पवित्र ‘विवाह संस्कार’ की शुरुआत भी हजारों वर्ष पूर्व इसी भारतभूमि से हुई थी जिसके जनक गौतम वंश के ‘महर्षि श्वेतकेतु’ थे। इसी मुल्क में सन् 1398 में तैमूर लंग जैसे क्रूर आक्रांता की सेना पर धावा बोलकर तैमूर को हिंदोस्तान की सरजमीं से बेआबरू करके बेदखल करने वाली  ‘रामप्यारी गुर्जर’ भी हुई। इसी भारत में दुर्गाष्टमी के दिन बुंदेलखंड के चंदेलवंश में जन्मी रानी ‘दुर्गावती’ भी हुई।

 गौंडवाना साम्राज्य की उस बहादुर क्षत्राणी ने मुगलों के आगे पराजय या आत्मसर्मपण के बजाय रणभूमि को स्वीकार किया। अपने कुशल सैन्य नेतृत्व से अकबर के सेनापति आसफ  खां को युद्धभूमि में कई बार धूल चटाई। दुश्मन का डटकर सामना करके सन् 1564 में वीरगति को प्राप्त हुई, मगर मुगलों से शिकस्त नहीं मानी। आज जबलपुर विश्वविद्यालय उसी महान् योद्धा रानी दुर्गावती के नाम से जाना जाता है। इसी देश में अंग्रेज हुकूमत को सशस्त्र विद्रोह से ललकारने वाली ‘कितुर’ रियासत की रानी ‘चेनम्मा’ भी हुई। यह भारतभूमि 1857 के संग्राम में अपनी शमशीरों से फिरंगी सल्तनत का तख्त हिलाने वाली रामगढ़ की ‘अंबतिबाई लोधी’, झांसी की रानी ‘लक्ष्मीबाई’ व ‘अजीजन बेगम’ तथा ‘ऊदा देवी’ जैसी वीरांगनाओं की जन्मस्थली रही है, जिन्होंने समरभूमि में दुश्मन के रक्त से सनी तलवारों से शौर्य के मजमून लिखकर वतनपरस्ती की मिसाल कायम की थी। काश! आजादी के बाद हमारे देश की शिक्षा वजारत पर आसीन होने वाले रहनुमाओं ने दुश्मन का हलक सुखाने का जज्बा रखने वाली भारतीय नारीशक्ति के अदम्य साहस की प्रतीक उन वीरांगनाओं की शूरवीरता का इतिहास व वीरतापूर्ण चरित्र शिक्षा पाठ्यक्रम में पूरी शिद्दत से शामिल किया होता तो शायद आज की युवा पीढ़ी सिल्वर स्क्रीन के अदाकारों को अपना आदर्श न मानती। समाज में गिरते नैतिक मूल्यों व कई सस्कारों को दूषित करने वाले घातक वायरस की उपज इसी बॉलीवुड व हॉलीवुड तथा पश्चिमी संस्कृति की देन है। महिलाओं की अकीदत में राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मातृ दिवस, महिला दिवस, बेटी दिवस, महिला समानता दिवस जैसे कई अन्य इजलास होते हैं। वर्ष 2001 को भारत सरकार ने महिला सशक्तिकरण वर्ष घोषित किया था। महिला अपराधों के विरुद्ध देश में ‘दहेज निषेध एक्ट’, ‘लिंग परिक्षण तकनीक एक्ट’, ‘बाल विवाह रोकथाम अधिनियम’ तथा बाल यौन अपराध के खिलाफ ‘पोक्सो एक्ट’ 2012 सहित कई अन्य कानून मौजूद हैं।

वहीं महिला समाज के विकास व जागरूकता के लिए महिला मंडल, महिला शक्ति केंद्र योजना, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ व सर्व शिक्षा अभियान जैसी मुहिम तथा महिला अधिकारों की तर्जुमानी के लिए सन् 1992 से राष्ट्रीय महिला आयोग भी वजूद में आ चुका है। मगर महिलाओं की सुरक्षा के लिए इतना प्रभावशाली कानूनी मसौदा व सामाजिक संरक्षण के प्रावधानों के बाद भी अपराधों में बढ़ोतरी दर्ज हो रही है। चूंकि देश का हर पीडि़त नागरिक कोर्ट कचहरी के कानूनी दावपेचों से लड़ने में सक्षम नहीं होता, ऊपर से हमारी सुरक्षा एजेसियों, शासन व प्रशासन का रवैया, रियासी रसूख, वोट बैंक की आड़ में कई संगीन मामलों पर जाति व मजहब का सियासी रंग चढ़ने से कई मुलजमीन बच निकलते हैं। देश में लव जिहाद व धर्मांतरण जैसी साजिश पर राजनीतिक गलियारों की सियासी हरारत भी खूब बढ़ती है। इन मसलों पर न्यायपालिकाएं भी चिंता जताकर सरकारों को आगाह करती आई हैं। बहरहाल अब हिमाचल सहित कई अन्य राज्यों की सरकारों ने इन मुद्दों पर गंभीरता दिखाई है। मगर अपराध मिटाने के लिए कानून के साथ जुल्मी मानसिकता के जहन में भी माकूल प्रहार की सख्त जरूरत होती है।


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