प्रताप सिंह पटियाल

अब प्रश्न उठ रहा है कि हजारों भारतीय सैनिकों के बलिदान की बुनियाद पर वजूद में आए बांग्लादेश को क्या बांग्ला हुक्मरानों को सौंपने का भारत का फैसला सही था? पाकिस्तान के नक्शेकदम पर चलने वाले एहसान फरामोश बांग्लादेश को उसकी औकात दिखानी होगी...

अराजकता, आतंकवाद, अलगाववाद, कट्टरवाद व चरमपंथ के माहौल में विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत में यदि न्यायसंगत व्यवस्था लोकतंत्र कायम है, तो इसका श्रेय ‘स्वयं से पहले राष्ट्र’ के सिद्धांत पर काम करने वाली भारतीय सेना को जाता है...

आधुनिक जीवनशैली की नैतिक उलझनों का निराकरण भगवदगीता में समाहित है। अनुशासन, निडरता व स्वाभिमान से जीवन जीने को प्रोत्साहन प्रदान करने वाला दार्शनिक ग्रंथ भगवदगीता इसीलिए विश्व में प्रेरणा व मार्गदर्शक बना है। देश के हुक्मरानों को गीता के उपदेश का अनुपालन करना होगा...

सैकड़ों इंकलाबी चेहरों के बलिदान से भारत आजाद हुआ था, लेकिन आजादी के बाद देश के नीति निर्माताओं ने हिंदोस्तान को धर्मनिरपेक्षता का नकाब पहना दिया। नतीजतन, सनातन धर्म का प्रभावशाली ग्रंथ श्रीमद्भगवदगीता राष्ट्रीय ग्रंथ घोषित नहीं हुआ...

शराबबंदी के कठोर प्रावधान सुरक्षा एजेंसियों के लिए उपयोगी साबित हो रहे हैं। कोर्ट की दलील थी कि बड़े सिंडिकेट संचालकों या प्रभावशाली व्यक्तियों के खिलाफ शायद ही कभी केस दर्ज किए जाते हों, बल्कि शराबबंदी कानून से गरीब वर्ग असंगत रूप से प्रभावित हो रहा है। नकली शराब से गरीब लोग पीडि़त हैं...

अलबत्ता पाक पोषित आतंक के मुद्दे पर देश की सभी सियासी जमातों को अपने लब-ए-इजहार की खामोशी पर रुख स्पष्ट करना होगा। राष्ट्र के लिए शहादत जैसा अजीम रुतबा हमेशा सैनिकों के हिस्से आया है। प्रश्न यह है कि राष्ट्र के मुहाफिज सैनिकों की शहादत का सिलसिला कब तक जारी रहेगा...

सागर मंथन से उत्पन्न विलक्षण गुणों वाली ‘कामधेनु’ जैसी मुकद्दस गाय के धर्मपरायण देश भारत में हरदम विनम्र स्वभाव की दुधारू गाय पालने से मोहभंग होना तथा गौधन की दुर्दशा का कारण क्या पश्चिमी शिक्षा व तहजीब का प्रभाव है, यह मंथन का विषय है...

यदि मौजूदा दौर में पीएलए एलएसी पर सशस्त्र संघर्ष से बच रही है तो यह भारतीय सैन्य पराक्रम का खौफ है। अत: यह दौर विश्व को बुद्ध के शांति पैगाम देने का नहीं है। दुनिया के सामरिक समीकरण बदल चुके हैं। लिहाजा सशस्त्र बल अचूक मारक क्षमता वाले अत्याधुनिक हथियारों से लैस होने चाहिएं...

मौजूदा दौर में जम्मू-कश्मीर राज्य के सियासी रहनुमां जश्न-ए-जम्हूरिया मना रहे हैं, मगर 1947-48 के युद्ध में कश्मीर के मुहाफिज शेर जंग थापा, कमान सिंह पठानिया, अनंत सिंह पठानिया, ठाकुर पृथी चंद व खुशाल ठाकुर की शूरवीरता पर गुमनामी का तमस छा चुका है...

मुल्क के इंतखाबी दौर में यदि बेतुकी बयानबाजी नहीं होगी तो सियासी हरारत का एक मजमून अधूरा रह जाएगा। सियासी रहनुमां की तकरीर में जहरीले बोल तथा जराफत भरे अंदाज का संगम नहीं होगा तो सियासी अंजुमन की आंखें उदास रह जाएंगी। चुनावी तशहीर में अपने मुखालिफ पर जुबान नहीं फिसलेगी या तोहमतों से भरे इल्जाम नहीं बरसेंगे तो सियासत की तबीयत नासाज हो जाएगी। इंतखाबी दौर में दहशतगर्दों की मौत का मातम नहीं मनाया जाएगा तो सियासत की तौहीन हो जाएगी। जम्हूरियत के महापर्व में यदि आब-ए-तल्ख की महफिल नहीं सजेगी तो सियासी बज्म का रंग फीका रह जाएगा। सियासी मुजाहिरों में यदि जाति, मजहब, आरक्षण, संविधा