सेना और बजट

कर्नल (रि.) मनीष धीमान

स्वतंत्र लेखक

पिछले दिनों हिमाचल में पंचायती चुनाव संपन्न होने के बाद जिला परिषद और बीडीसी के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष पद पाने की जद्दोजहद के लिए भाजपा और कांग्रेस एक-दूसरे के चुने हुए प्रत्याशियों में सेंध लगाने की कोशिश करती रहीं। दोनों पार्टियों के नेताओं ने इसमें पुरजोर कोशिश की, पर मुख्यमंत्री के कुछ जिलों के दौरे के दौरान आजाद निर्वाचित सदस्यों के साथ मिलना तथा भाजपा के लिए खेमेबंदी करने ने एक नए चलन को बढ़ावा दिया है। वैसे यह देखा जाता है कि भाजपा में प्रधानमंत्री, गृह मंत्री एवं मुख्यमंत्री किसी भी राज्य के चुनाव के दौरान अपने पद की वरिष्ठता को एक तरफ रख कर आम कार्यकर्ता की तरह पार्टी के लिए काम करते हैं। इसका उदाहरण हैदराबाद के नगर पालिका चुनाव में देश के गृहमंत्री तथा भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष का हिस्सा लेना तथा बंगाल के चुनावों में पार्टी के हर नेता का आत्मसमर्पण के साथ काम करना है। भाजपा ने बता दिया है कि चाहे आप सरकार में किसी भी पद पर हों, पर अगर पार्टी कोई चुनाव लड़ रही है तो आपको आम कार्यकर्ता की तरह उसमें हिस्सा लेना पड़ेगा और शायद हर पार्टी को इससे सीखना चाहिए। कुछ शिक्षाविदों और बुद्धिजनों का मानना है कि ऐसी शुरुआत पार्टी के लिए तो ठीक हो सकती है, पर गणतंत्र के लिए शायद ठीक नहीं। यह ठीक है या गलत, इस पर तार्किक बहस होना तथा संसद में इस पर सही कानून बनाना समय की जरूरत है।

इसके अलावा संसद में देश का पहला राष्ट्रीय डिजिटल बजट भी पेश किया गया, जिसकी सरकार ने सराहना तथा  विपक्ष ने आलोचना की। पर सही आकलन किया जाए तो इस बजट में निजीकरण पर ज्यादा जोर दिया गया है। भारत जैसा देश जो आजादी से सैकड़ों वर्षो तक ऐसे लोगों के हाथों में था जिन्होंने देश की अर्थव्यवस्था को बिल्कुल खोखला कर दिया था, आजादी के बाद देश की तरक्की और अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए हुए फैसलों से आज जहां पर हम खड़े हैं, वहां पर निजीकरण का निर्णय लेना समय की जरूरत है, पर किसी भी देश में निजीकरण का सीधा संबंध देश की गरीबी रेखा से नीचे की जनसंख्या से होना चाहिए। अगर हम देश के संसाधनों का निजीकरण गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों के अनुपात से ज्यादा मात्रा में कर देते हैं तो एक तबका बहुत ज्यादा अमीर हो जाएगा तथा दूसरा तबका और गरीब होता जाएगा और शोषित होगा। इसका परिणाम सामंतवादी समाज का विकास करेगा, जो आजादी के बाद के वेलफेयर स्टेट के सपने के खिलाफ  कदम होगा। मेरा मानना है कि वित्त मंत्री का आर्थिक सलाहकारों से विचार-विमर्श करके निजीकरण की गति पर लगाम लगाना जरूरी है। दूसरा इस बजट में भारतीय सेना के लिए किसी भी तरह का विशेष पैकेज का जिक्र नहीं किया गया। आज जब हमारे पड़ोसी हमारे देश की जमीन में घुसने की फिराक में हैं, उस वक्त सेना के लिए विशेष आर्थिक पैकेज का योगदान देना बजट की जरूरत थी। इस पर विचार होना चाहिए था।


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