कला-संस्कृति, सरकार एवं दरकार

लोक कलाओं को ढो रहे परंपरागत तथा पुश्तैनी कलाकारों की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। विभिन्न कलाओं को आगे बढ़ाने में समाज के सभी धर्मों, वर्गों, जातियों का योगदान रहता है। इन्हें आर्थिक संरक्षण दिए जाने की नितांत आवश्यकता है। प्रदेश में विभिन्न कलाकारों एवं कलाओं के संरक्षण, संवर्धन तथा सांस्कृतिक विकास के उद्देश्य से प्रदेश में एक मजबूत सांस्कृतिक नीति की आवश्यकता है…

सांस्कृतिक दृष्टि से हिमाचल प्रदेश एक समृद्ध राज्य है। यहां की सामाजिक, धार्मिक परंपराएं, देव संस्कृति, भाषा, बोलियां, खानपान, परिधान, रीति-रिवाज, रहन-सहन, मेले-त्यौहार, आस्थाएं, मान्यताएं, विश्वास, जीवन-दर्शन, गीत-संगीत, नाट्य- सब इसकी संस्कृति को परिभाषित करते हैं। यहां की मूर्तिकला, काष्ठकला, नृत्यकला, चित्रकला, शिल्पकला, पाक-कला, वास्तुकला, चर्मकला, मृदकला, सिलाई, कढ़ाई, बुनाई तथा विभिन्न लोक कलाएं अपने आप में समृद्ध हैं। इस पहाड़ी प्रदेश के लोकनृत्य, लोकगीत, लोकपरंपराएं तथा लोकसाहित्य अपनी समृद्ध संस्कृति के लिए दुनियाभर में प्रसिद्ध हैं। इसके बावजूद हम संसाधनों तथा अवसरों के अभाव में इस महान धरोहर का संरक्षण एवं संवर्धन करने में विशेष सफलता प्राप्त नहीं कर पाए हैं। हिमाचल प्रदेश ने शिक्षा, स्वास्थ्य, ऊर्जा, पर्यटन, खेल तथा उद्योग के क्षेत्र में कई आयाम स्थापित किए हैं, लेकिन अभी तक प्रदेश का संगीतकार, साहित्यकार, नाटककार तथा लोक कलाकार आर्थिक संसाधनों तथा विभिन्न सांस्कृतिक अवसरों के अभाव में अपनी धरोहर को सहेजने, संरक्षित करने तथा आगे बढ़ाने की दिशा में पिछड़ा ही रहा है। प्रदेश के अनेकों कलाकार आज भी विभिन्न कलाओं के माध्यम से पारिवारिक जीवन-यापन तथा भरण-पोषण के लिए संघर्षरत हैं। कई कलाकार अभी भी गरिमापूर्ण जीवन जीने के लिए जूझ रहे हैं। कलाकारों को उचित पारिश्रमिक नहीं मिलता। युवा कलाकारों के लिए रोजगार के साधन बहुत ही सीमित हैं। सामाजिक, धार्मिक तथा सरकारी स्तर पर आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रमों में कभी-कभार प्रस्तुति देने पर थोड़ी सी पगार से उसका पेट नहीं भरता। कई पेशेवर तथा स्थानीय कलाकारों ने अपने परंपरागत व्यवसायों से मुंह मोड़ लिया है।

 आज भी कलाकार अपने मान.-सम्मान के लिए तरस रहा है। संगीतकार, लोक-कलाकार, साहित्यकार सरकार की सांस्कृतिक नीतियों तथा बजट प्रावधानों की ओर देखते हैं। शास्त्रीय संगीत, गीत, ग़ज़ल, भजन गायक, वाद्यवादक, लोक गायक, लोकवादक, लोकनाट्य, लोकनर्तक, लोक साहित्यकार, नाटककार, अभिनेता, कहानीकार, पत्रकार, लेखक, कवि, शायर अपने-अपने क्षेत्र में आर्थिक प्रोत्साहन चाहते हैं। जब तक कलाकार अपने आप को आर्थिक रूप से सबल, संपन्न तथा सामाजिक रूप से सम्मानित महसूस नहीं करेगा तब तक सही अर्थों में कला एवं संस्कृति का विकास, संरक्षण एवं संवर्धन संभव नहीं हो सकता। प्रदेश के विकास में विभिन्न कलाओं तथा कलाकारों की अपनी भूमिका रही है जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता। प्रदेश में कला-संस्कृति तथा कलाकारों के विकास के लिए सरकार द्वारा विभिन्न सुझावों पर विचार किया जा सकता है। प्रदेश की अपनी सांस्कृतिक नीति बननी चाहिए। सांस्कृतिक नीति के कुशल संचालन तथा नियंत्रण के लिए वरिष्ठ, अनुभवी कलाकारों, साहित्यकारों, सांस्कृतिक कर्मियों तथा प्रशासनिक अधिकारियों की एक रेगुलेटरी बॉडी पर भी विचार किया जा सकता है। सभी जि़लों में सांस्कृतिक अध्ययन केंद्र बनाकर नवोदित कलाकारों, सांस्कृतिक कर्मियों, शोध तथा अध्ययन कर्त्ताओं के लिए लाभदायक हो सकते हैं। कला तथा संस्कृति से संबंधित विभिन्न विभागों की विभागीय स्तर पर पृथक लेकिन सांस्कृतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए सामूहिक योजना हो। विभिन्न कलाओं के मूर्धन्य एवं प्रतिष्ठित कलाकारों के लिए मान-सम्मान, मानदेय तथा पुरस्कारों पर पुनः विचार होना चाहिए। लुप्त होते लोकगीतों, लोक नृत्यों, लोक वाद्यों, बोलियों तथा कलाओं को फिर से संरक्षित करने के उद्देश्य से युवा लोक कलाकारों को व्यावसायिक प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। प्राथमिक स्तर से उच्च शिक्षा तक संगीत विषय को अनिवार्य बनाया जाना चाहिए। संगीत के अनेकों संगीत शिक्षित बेरोजगार सरकार की ओर आशा की दृष्टि से देख रहे हैं। साहित्यकार, लेखक, कथाकार, नाटककार, उपन्यासकार, पत्रकार, कवि, शायर तथा लोक साहित्यकारों को साहित्य सृजन के विशेष अवसरों के साथ-साथ अनुदान तथा मानदेय की व्यवस्था होनी चाहिए।

 शास्त्रीय संगीत, गायन, वादन, नृत्य, गीत, ग़ज़ल, भजन, लोक गीत, लोक नृत्य तथा लोकनाट्य के कार्यक्रमों का आयोजन निश्चित एवं नियमित रूप से होना चाहिए तथा प्रदेश के कलाकारों को अधिमान मिलना चाहिए। कला तथा संस्कृति के क्षेत्र में शोधकर्ताओं को प्रोत्साहित कर उचित अनुदान की व्यवस्था होनी चाहिए। विभिन्न कलाओं का दस्तावेजीकरण, ध्वनि अंकन तथा फिल्मांकन करवाया जाना चाहिए। कलाकारों को उनकी प्रस्तुतियों के लिए सम्मानजनक मेहनताना, पारिश्रमिक, मानदेय तथा आकर्षक एवं गरिमामय पुरस्कारों की व्यवस्था होनी चाहिए। विभिन्न कलाओं के कलाकारों को उनके प्रदर्शन स्तर तथा योग्यता के आधार पर वर्गीकृत तथा सूचीबद्ध किया जाना चाहिए । प्रदेश के उभरते युवा कलाकारों को गीत, संगीत, नाट्य प्रतिभा को संगीत स्टूडियोज़ में तथा वीडियोज़ बनाने के लिए आर्थिक अनुदान देने की आवश्यकता है। हिमाचल पूरे विश्व में अपने नैसर्गिक सौंदर्य के लिए प्रसिद्ध है। हॉलीवुड तथा बॉलीवुड के कलाकार अपनी फिल्मों की शूटिंग के लिए प्रदेश का रुख करते हैं तथा प्रदेश के प्राकृतिक सौंदर्य का व्यवसायीकरण करते हैं। कांगड़ा, चंबा, शिमला, कुल्लू तथा मनाली की वादियों से समय-समय पर अपनी फिल्म सिटी स्थापित किए जाने की मांग उठती रहती है। विभिन्न कलाओं के कलाकारों तथा सांस्कृतिक कर्मियों द्वारा स्थापित कला केंद्रों, परिषदों तथा कला मंचों को आर्थिक अनुदान की आवश्यकता रहती है। लोक कलाओं को ढो रहे परंपरागत तथा पुश्तैनी कलाकारों की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। विभिन्न कलाओं को आगे बढ़ाने में समाज के सभी धर्मों, वर्गों, जातियों का योगदान रहता है। इन्हें आर्थिक संरक्षण दिए जाने की नितांत आवश्यकता है। प्रदेश में विभिन्न कलाकारों एवं कलाओं के संरक्षण, संवर्धन तथा सांस्कृतिक विकास के उद्देश्य से प्रदेश में एक मजबूत सांस्कृतिक नीति की आवश्यकता है।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App