प्रो. सुरेश शर्मा ,लेखक घुमारवीं से हैं

वर्दी या यूनिफॉर्म एक प्रकार की वह पोशाक है जिसे किसी पाठशाला के विद्यार्थियों या किसी संगठन के सदस्यों, कर्मियों या श्रमिकों द्वारा उस संस्थान या संगठन की गतिविधियों में भाग लेते हुए पहनी जाती है। वर्दी को आम तौर पर सशस्त्र बलों, अर्धसैनिक संगठनों जैसे पुलिस, आपातकालीन सेवाओं, सुरक्षा गार्डों, कुछ कार्यस्थलों और स्कूलों के विद्यार्थियों, श्रमिकों तथा जेलों में कैदियों द्वारा पहनी जाती है। किसी संस्था के सदस्यों द्वारा उस संस्था

इस भव्य आयोजन के साथ देश तथा दुनिया में समभाव, सद्भाव, प्रेम तथा शांति की प्रार्थना की जानी चाहिए। श्रद्धा के साथ इसे मनाया जाए...

हालांकि इस तरह के विरोध के तरीके को जायज नहीं ठहराया जा सकता, लेकिन आक्रोश तथा विरोध में मजबूर व्यक्ति इस तरह के कदम उठाने पर भी विवश हो जाता है। राजनीतिक दलों, सरकारों, नेताओं तथा सुरक्षा एजेंसियों को इस घटनाक्रम के अपराधियों तथा छुपे हुए सूत्रधारों से सख्ती से

शिक्षा की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए शिक्षा तंत्र को समय-समय पर कड़े निर्णय लेने पड़ते हैं। जिस प्रकार लम्बे समय से ठहरा हुआ पानी अपनी स्वच्छता तथा गुणवत्ता को खोकर प्रदूषित हो जाता है...

इस आलेख का शीर्षक आम तौर पर ट्रकों के पीछे लिखा रहता है, क्योंकि ट्रक का ड्राइवर परिवार के भरण पोषण के लिए हमेशा घर से दूर तथा सफर में ही रहता है। लगभग दो-तीन दशक पूर्व यह बात इसलिए समझ नहीं आती थी क्योंकि ज्ञान, अनुभव और समझ भी कम थी। उस समय आबादी भी अधिक नहीं थी तथा गरिमापूर्ण तरीके से भरण-पोषण के अवसर भी मौजूद थे। घर के युवा तथा बड़े अपने गांव-शहर के आसपास ही मौ

प्रकृति ने अनेकों बार हमें हमारे कृत्यों की सजा दी है। कितनी बार हमने प्रकृति की सजा को भुगता है। इसके बावजूद हम कितने नासमझ हैं कि समझते हुए भी अपने स्वार्थ के लिए समझना नहीं चाहते। हमें यह समझना होगा कि किसी भी धर्म या धर्मग्रंथ में खुशी और उल्लास के अवसर पर पटाखे

थोड़ी देर के लिए अपने आप को मोबाइल के बिना महसूस करें, मनोवैज्ञानिक रूप से ऐसा लगेगा जैसे जीवन नीरस, असहज, असुरक्षित और शक्तिहीन हो गया है। आज संचार तकनीक का यह बच्चा यानी मोबाइल अब जवान हो गया है। दुनिया भर के ज्ञान-विज्ञान, तकनीक, सूचना, मनोरंजन की इस प्रतिमूर्ति ने दुनिया को मुठ्ठी में कर रखा है। यह उपकरण अब हर व्यक्ति की जेब में अपनी जगह बना चुका है। हर रोज घर से निकलते हुए ह

भारत में अनुसूचित जनजाति की जनसंख्या देश की कुल जनसंख्या का 8.6 प्रतिशत है जो कि लगभग 10.4 करोड़ के लगभग है। इसी प्रकार हिमाचल प्रदेश की कुल जनसंख्या का 5.7 प्रतिशत जनजातीय लोग निवास करते हैं। एक अध्ययन के अनुसार हिमाचल में लगभग 32 प्रतिशत लोग ही जनजातीय क्षेत्रों में निवास करते हैं, बाकि 68 प्रतिशत लोग शिक्षा, नौकरी के लिए तथा भू-सम्पत्ति खरीद कर दिल्ली, चंडीगढ़ एवं समीपवर्ती जिलों सोलन, शिमला, कुल्लू,

अपने पूर्वजों के सम्मान तथा उनकी आत्मिक शांति के लिए श्रद्धा का प्रतीक श्राद्ध अवश्य करें, परन्तु जीते जी उनसे प्रेम करें, उनका सम्मान करें, उन्हें सुख-शान्ति प्रदान करें। श्राद्ध कर्म का फर्ज निभाते हुए वृद्धों का दर्द भी महसूस करने का प्रयास करें। यह श्राद्ध कर्म सामाजिक रूप से पीढिय़ों

प्रशासन, एसडीआरएफ, एनडीआरएफ, पुलिस में तालमेल हो। कुछ वर्षों से हिमाचल भी विकास की अंधी दौड़ में शामिल हो चुका है। विकास होना चाहिए, लेकिन प्रकृति की कीमत पर नहीं...