आशा से बहुत पीछे बजट

यह न्यून वृद्धि किसानों की आय दुगना करने के लिए पूरी तरह अपर्याप्त है। यह भी देखने की बात है कि इस वृद्धि में किसान की लागत में कितनी वृद्धि हुई है। यह भी वित्त मंत्री ने नहीं बताया है। इसलिए किसान की आय में शुद्ध वृद्धि बहुत कम ही दिखती है। सरकार का उद्देश्य बीते वर्षों में ही किसान की आय को दुगना करने का था, लेकिन दुगना करने के स्थान पर सरकार अधिकतम केवल पांच प्रतिशत की वृद्धि हासिल कर सकी है। इसलिए इस दिशा में और ठोस कदम उठाने चाहिए थे, जो कि बजट में नहीं उठाए गए हैं। कुल मिलाकर यह बजट विशिष्ट नहीं, बल्कि सामान्य है…

इस बजट में कई सार्थक कदम उठाए गए हैं। पहला यह कि बुनियादी संरचना जैसे शहरों की मेट्रो में निवेश बढ़ाया गया है, दूसरा यह कि सरकारी उपक्रमों जैसे एयर इंडिया, शिपिंग कारपोरेशन, आईडीबीआई बैंक, भारत अर्थ मूवर्स लिमिटेड और दो सार्वजनिक बैंकों के निजीकरण का भी लक्ष्य रखा गया है। इस मद से 1.75 लाख करोड़ रुपए की रकम अर्जित करने का अगले वर्ष का लक्ष्य है। तीसरे, प्राइवेट कंपनियों को बिजली के वितरण के लिए आह्वान किया गया है जिससे कि उपभोक्ता को राज्य बिजली बोर्डों की अकुशलता एवं भ्रष्टाचार से छुट्टी मिल सके। लेकिन सार्थक कदमों के बाद जो प्रमुख समस्या नौजवानों के रोजगार की है, उस पर यह बजट सफल नहीं है। यह रोजगार केवल युवा के कार्य करने के अधिकार को हासिल करने के लिए ही जरूरी नहीं है, बल्कि यह अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए भी उतना ही जरूरी है। जब युवकों को रोजगार मिलता है तो उनके हाथों में क्रय शक्ति आती है और उस क्रय शक्ति से बाजार में मांग बनती है और अर्थव्यवस्था चाल पड़ती है। लेकिन इस बजट में रोजगार उपलब्ध कराने का प्रमुख मुद्दा गायब है। इसलिए यह बजट आशा से बहुत पीछे रह जाता है। पहला मुद्दा कृषि का है। वित्त मंत्री ने सही बताया है कि वर्ष 2013-14 की तुलना में वर्ष 2019-20 यानी बीते वर्ष में समर्थन मूल्य के अंतर्गत किसानों को लगभग डेढ़ गुना रकम अदा की गई है। लेकिन उन्होंने इस बात का जिक्र नहीं किया कि इसी अवधि में महंगाई में लगभग 31 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इसलिए किसानों को समर्थन मूल्य के अंतर्गत दी गई रकम में वास्तविक वृद्धि 6 वर्षों में मात्र 19 प्रतिशत की हुई है।

यह न्यून वृद्धि किसानों की आय दुगना करने के लिए पूरी तरह अपर्याप्त है। यह भी देखने की बात है कि इस वृद्धि में किसान की लागत में कितनी वृद्धि हुई है। यह भी वित्त मंत्री ने नहीं बताया है। इसलिए किसान की आय में शुद्ध वृद्धि बहुत कम ही दिखती है। सरकार का उद्देश्य बीते वर्षों में ही किसान की आय को दुगना करने का था, लेकिन दुगना करने के स्थान पर सरकार अधिकतम केवल पांच प्रतिशत की वृद्धि हासिल कर सकी है। इसलिए इस दिशा में और ठोस कदम उठाने चाहिए थे, जो कि बजट में नहीं उठाए गए हैं। किसान की आय समर्थन मूल्य के माध्यम से बढ़ाने में समस्या यह है कि समर्थित फसलों का उत्पादन बढ़ जाता है। अधिक उत्पादन के भंडारण और उसके निस्तारण में सरकार को पुनः घाटा लगता है।

इसलिए समर्थन मूल्य के आधार पर किसान का हित हासिल करने के स्थान पर सरकार को चाहिए था कि कृषि फसलों के विविधिकरण की ओर ठोस कदम उठाती। जैसे उच्च मूल्य की फसलें यथा आम, अखरोट, सेब, लाल मिर्च, केले और अंगूर जैसी फसलों को वैश्विक गुणवत्ता के मानकों के अनुसार उत्पादन करने के लिए रिसर्च एवं बुनियादी संरचना स्थापित करनी थी। पिछला अनुभव बताता है कि हमारी रिसर्च प्रयोगशालाएं इस कार्य को सफलता देने में सक्षम नहीं हैं। इसलिए सरकार को चाहिए था कि निजी एनजीओ अथवा कंपनियों को ठेका देती कि चिन्हित क्षेत्रों में इन उच्च कीमत की फसलों पर रिसर्च कराए, उसको किसानों तक पहुंचाए, फसलों का उत्पादन कराए और फिर उसका निर्यात कराए।

इन सब कार्यों का सम्मिलित ठेका देती जैसे मैसूर के किसानों के लिए रेशम के उत्पादन का इस प्रकार का ठेका दिया जाता तो मैसूर में रेशम का उत्पादन बढ़ सकता था और किसान का हित हासिल हो जाता। लेकिन सरकार इस कदम को उठाने में चूक गई है। दूसरा विषय स्वास्थ्य का है। सरकार ने 35 हजार करोड़ रुपए वैक्सीन के निर्माण के लिए और स्वच्छ पानी उपलब्ध कराने के लिए आने वाले पांच वर्षों में 2.87 लाख करोड़ रुपए की रकम को आवंटित किया है, जो कि सही दिशा में है, लेकिन हम कोविड का सामना करने में वैक्सीन के भरोसे सफल नहीं हुए हैं। हम सफल हुए हैं अपनी जीवन शैली और गंगाजल, हल्दी, गिलोय, अश्वगंधा, तुलसी, अदरक आदि जड़ी-बूटियों के सेवन से। इसलिए जरूरत थी कि सरकार इन जड़ी-बूटियों के रोग रोधक गुणों पर रिसर्च करके इनका वैश्वीकरण कराती। कई शोधकर्ताओं की मान्यता है कि भारत में जीवन शैली में स्वच्छता न होने के कारण हमारे शरीर पर तमाम कीटाणुओं का आक्रमण पहले ही होता रहता है। इसलिए हमारी जनता की इम्युनिटी तुलना में अधिक है। इसको हम इस प्रकार से समझ सकते हैं कि अपने देश में तमाम लोग साफ  पानी के अभाव और सीवेज के निस्तारण की कमी के कारण पहले ही कीटाणुओं से संक्रमित होकर मरते रहते हैं। जो विकसित देशों में कोविड के कारण लोगों की मृत्यु हुई है, वही हमारे यहां सामान्य गंदगी के कारण मृत्यु को प्राप्त हुई हैं। इसलिए सरकार ने जो पानी और सीवेज के निस्तारण के लिए रकम आवंटित की है, वह पूर्णतया ठीक दिशा में है। हमारे लोग कम मरेंगे। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए पर्याप्त नहीं दिखती है। इसमें बहुत अधिक निवेश करने की जरूरत थी, जिससे कि हम अपनी जनता की सामान्य इम्युनिटी को बढ़ा सकें।

तीसरा प्रमुख क्षेत्र शिक्षा का है। अपने देश में बड़ी संख्या में युवा श्रम बाजार में प्रवेश करने को हैं। रोजगार न मिलने की स्थिति में ये लोग किसी न किसी आपराधिक गतिविधियों में संलग्न हो सकते हैं। अतएव इनके लिए रोजगार उत्पन्न करना ज्यादा जरूरी था। तमाम शोधकर्ताओं का मानना है कि हम मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र में रोजगार उत्पन्न नहीं कर पाएंगे, क्योंकि इस क्षेत्र में दिनोंदिन रोबोट का उपयोग बढ़ रहा है और रोजगार कम ही उत्पन्न हो रहे हैं। हमें बढ़ना था सेवा क्षेत्र में। इस दिशा में वित्त मंत्री ने देश की प्रमुख भाषाओं में देश के सरकारी दस्तावेज का अनुवाद करके जनता में उपलब्ध करने का सही कदम उठाया है। लेकिन इसी को बहुत आगे ले जाने की जरूरत थी। सरकार को चाहिए था कि भारतीय युवाओं को विदेशी भाषाओं में अनुवाद करने की क्षमता विकसित करने के लिए ट्रेनिंग की व्यवस्था करती। सेवा क्षेत्र में संगीत बनाना, ऑनलाइन ट्यूशन देना, ऑनलाइन मेडिकल सुविधाएं उपलब्ध कराना, ऐसे तमाम अवसर खुल रहे हैं। इनके लिए अपने युवाओं को ट्रेंड करने के लिए कदम उठाने थे जो कि वर्तमान बजट में नहीं उठाए गए हैं। अतः यह बजट किसी विशिष्टता से परे अति सामान्य है। इस बजट में वर्तमान में व्याप्त देश की जो चुनौतियां हैं, उनका सामना करने के लिए जो नए तरीके से सोचने की जरूरत थी, उसका अति अभाव है। मेरा आकलन है कि अर्थव्यवस्था की परिस्थिति सामान्य अथवा विपरीत बनी रहेगी।

ई-मेलः bharatjj@gmail.com


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