चार्ल्स डार्विन की क्रांति

इसी प्रकार जब बाइबिल में कहा गया कि गॉड ने पुरुष के शरीर से हड्डी निकालकर उससे ईव बनाया तो हम इसे इस प्रकार समझ सकते हैं कि मनुष्य के अंतर्मन में विद्यमान सर्वव्यापी चेतना ने उन मनुष्यों को प्रेरित किया कि वे स्त्री और पुरुष के भौतिक और मानसिक कार्यों में विभाजन करें। वर्तमान समय में बाइबिल के धर्मशास्त्रियों का मानना है कि अदम की हड्डी से ईव को बनाए जाने का सही अर्थ स्त्री-पुरुष के बीच विवाह का शुरू होना है अथवा उनके बीच कार्य के विभाजन का शुरू होना है। पहले कोई भी स्त्री किसी भी पुरुष से समागम करती थी। किसी समय यह व्यवस्था बनी कि एक स्त्री एक पुरुष से ही समागम करेगी। उनके बीच कार्य का विभाजन हुआ। यह विचारधारा डार्विन से मेल खाती है…

चार्ल्स डार्विन  का जन्म 12 फरवरी को 1809 में हुआ था। डार्विन ने दक्षिण अमरीका के गालापागोस द्वीप में कछुओं के क्रम से विकास का गहन अध्यनन किया। उस अध्ययन के आधार पर उन्होंने विचार बनाया कि वर्तमान मनुष्य की उत्पत्ति क्रम से बंदरों से हुई है। उस समय पाश्चात्य जगत में मान्यता थी कि गॉड ने मनुष्य को बनाया है, जैसे छेनी हथौड़ी लेकर मूर्तिकार एक मूर्ति को बनाता है। डार्विन के विचार से गॉड की इस भूमिका पर प्रश्न चिन्ह उठता था। उनका कितना विरोध हुआ, यह 1860 में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में एक चर्चा की घटना से पता लगता है। बिशप सामुएल विल्बरफार्स ने डार्विन के समर्थक हक्सले से पूछा कि यदि वे अपने को बंदरों से उत्पन्न हुआ मानते हैं तो वे बंदर उनके दादा के पूर्वज थे अथवा दादी के? उत्तर में हक्सले ने कहा कि वे अपने को बंदर के वंशज मानने में ज्यादा प्रसन्न होंगे, बल्कि इससे कि वे ऐसे मनुष्य के वंशज हो जो वैज्ञानिक तथ्यों का मजाक उड़ाता है। डार्विन के विचारों से ईसाई जगत में गॉड की भूमिका का सीधा खंडन होता दिखता था। यद्यपि उस समय यह बात नहीं उठी, लेकिन जिस प्रकार अब्राहमी (यहूदी, ईसाई एवं मुसलमान) धर्मों में गॉड द्वारा मनुष्य को बनाया गया बताया गया है, उसी प्रकार हिंदू धर्म में ब्रह्मा द्वारा मनुष्य को बनाया गया बताया गया है। जैसे बाइबिल की किताब जेनेसिस 1.7 में कहा गया कि गॉड ने मनुष्य को अपनी ही प्रतिमा के रूप में बनाया, इसी के सामानांतर वायु पुराण 8.37 में कहा गया कि ब्रह्मा ने हजार-हजार पुरुष और स्त्री के जोड़ों के चार समूह बनाए।

बाइबिल में कहा गया कि गॉड ने धूल, राख अथवा कूड़े से पुन: जीवंत मनुष्य को बनाया (जेनेसिस 2.7)। इसी के समानांतर वायु पुराण में कहा गया कि ब्रह्मा ने अंधकार से राक्षसों, देवताओं, मनुष्य आदि को बनाया (9.6)। बाइबिल में कहा गया कि गॉड ने ईव को अदम की हड्डियों से बनाया (जेनेसिस 2.21.22)। इसी के समानांतर वायु पुराण में कहा गया कि ब्रह्मा ने अपने शरीर को विभक्त कर स्वयंभू और उनकी पत्नी शतरूपा को बनाया (10.7.8)। बाइबिल में कहा गया कि गॉड ने अदम को गार्डन ऑफ ईडन (अदन की वाटिका) से निष्कासित किया और अदम खेती करने लगे। इसी के समानांतर वायु पुराण में कहा गया कि किसी समय वृक्ष मरने लगे थे और मनुष्यों ने इस विषय पर चिंता की और उसके बाद वृक्ष उनके घर में पुन: उगने लगे (8.83.90)। अत: डार्विन ने जिस प्रकार गॉड द्वारा मनुष्य के बनाए जाने का खंडन किया, उसी प्रकार उन्होंने हिंदू धर्म में भी ब्रह्मा द्वारा मनुष्य को बनाए जाने का खंडन किया, भले ही हम इसका संज्ञान न लें। मेरी समझ से डार्विन के विचारों से बाइबिल और वायु पुराण का खंडन नहीं होता है। विषय इस बात पर टिकता है कि गॉड अथवा ब्रह्मा को हम किस प्रकार समझते हैं? वैज्ञानिक बताते हैं कि किसी समय संपूर्ण ब्रह्माण्ड ब्लैक होल में समाया हुआ था। फिर उसमें एक विस्फोट हुआ। उसके बाद क्रम से हाइड्रोजन, ऑक्सीजन आदि तत्व बने और उसके बाद धरती, सूर्य, आकाश, पानी, वनस्पतियां, पशु और मनुष्य की उत्पत्ति हुई। प्रश्न उठता है कि जब संपूर्ण ब्रह्माण्ड ब्लैक होल में था उस समय गॉड अथवा ब्रह्मा कहां थे? एक संभावना है कि उस समय गॉड, ब्रह्मा और ब्रह्माण्ड एकमय थे। उस एकमय गॉड-ब्रह्मा-ब्रह्माण्ड ने स्वयं ब्लैक होल में अपने शरीर को प्रस्फुटित किया अथवा विभाजित किया और ब्लैक होल से वे निकल पड़े, जैसे कोई बंद कमरे से एकदम से बाहर निकल आए।

हिंदू शास्त्रों में कहा गया कि किसी समय ब्रह्म ने सोचा कि मैं अकेला हूं और अनेक हो जाऊं। इस कथन का समन्वय गॉड-ब्रह्मा-ब्रह्माण्ड के ब्लैक होल से निकलने में पूर्णत: हो जाता है। लेकिन इस समझ के विपरीत हम मानें कि गॉड-ब्रह्मा ब्लैक होल से बाहर कहीं थे और उन्होंने ब्लैक होल को प्रस्फुटित किया जैसे उसमें रीजेंट डाल कर अथवा उसे छेनी से मार कर, तो प्रश्न उठता है कि जब ब्रह्माण्ड में ब्लैक होल को छोड़ कर कुछ था ही नहीं तो गॉड-ब्रह्मा कहां थे? इसलिए यह विचार ज्यादा सही दिखता है कि गॉड-ब्रह्मा-ब्रह्माण्ड उस समय एकसार ही थे। इस विचारधारा को ‘मोनिस्ट’ कहा जाता है। इसके विपरीत बाहरी गॉड की विचारधारा को ‘मोनोथीएस्ट’ कहा जाता है। अत: डार्विन ने ‘मोनोथीएस्ट’ गॉड का खंडन किया। ‘मोनिस्ट’ गॉड का विचार डार्विन से मेल खाता है। बहरहाल हम ‘मोनिस्ट’ गॉड के विचार को मानें तो डार्विन और विज्ञान आपस में पूर्णत: मेल खाते हैं। तब डार्विन का कथन कि मनुष्य बंदर से बना है, को हम इस प्रकार से समझ सकते हैं कि बंदर की अंतर्चेतना ने स्वयं का विकास किया और वह मनुष्य रूप में आ गया। अथवा वायु पुराण में कहा गया कि ब्रह्मा ने अंधकार में अपने तामसिक शरीर को विभक्त कर स्वयंभू और शतरूपा को बनाया। इसे हम इस प्रकार समझ सकते हैं कि हजार-हजार पुरुष और स्त्री के जोड़ों के चार समूह ब्रह्मा पहले ही बना चुके थे, लेकिन उन जोड़ों ने अपनी चेतना को स्त्री और पुरुष के भौतिक एवं मानसिक कार्यों में विभक्त नहीं किया था, जैसे पशुओं में नर और मादा के भौतिक एवं मानसिक कार्यों में अंतर नहीं होता है। अत: ब्रह्मा ने अपने शरीर को विभक्त कर स्वयंभू और शतरूपा को बनाया, का अर्थ हो सकता है कि उन जोड़ों ने आपस में स्त्री-पुरुष के कार्यों और चेतना में अंतर किया।

इसी प्रकार जब बाइबिल में कहा गया कि गॉड ने पुरुष के शरीर से हड्डी निकालकर उससे ईव बनाया तो हम इसे इस प्रकार समझ सकते हैं कि मनुष्य के अंतर्मन में विद्यमान सर्वव्यापी चेतना ने उन मनुष्यों को प्रेरित किया कि वे स्त्री और पुरुष के भौतिक और मानसिक कार्यों में विभाजन करें। वर्तमान समय में बाइबिल के धर्मशास्त्रियों का मानना है कि अदम की हड्डी से ईव को बनाए जाने का सही अर्थ स्त्री-पुरुष के बीच विवाह का शुरू होना है अथवा उनके बीच कार्य के विभाजन का शुरू होना है। पहले कोई भी स्त्री किसी भी पुरुष से समागम करती थी। किसी समय यह व्यवस्था बनी कि एक स्त्री एक पुरुष से ही समागम करेगी। उनके बीच कार्य का विभाजन हुआ। यह विचारधारा डार्विन से मेल खाती है। चाल्र्स डार्विन ने हमारी संस्कृति में एक बहुत बड़ा पड़ाव लाया है जिसमें गॉड अथवा ब्रह्मा को किसी बाहरी छेनी की हथौड़ी की शक्ति के स्थान पर अंतर चेतना से जोडऩे का काम किया है। यद्यपि यह कार्य अभी भी जारी है और हमें इस दिशा में और विचार करना चाहिए।

ई-मेल: bharatjj@gmail.com


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