बजट में पर्यावरण की चिंता

डा. ओपी जोशी

स्वतंत्र लेखक

देश के 10 लाख से ज्यादा जनसंख्या वाले 42 शहरों में वायु-प्रदूषण नियंत्रण के कार्य किए जाएंगे। इसके साथ ही पूर्व में चलाया जा रहा ‘राष्ट्रीय स्वच्छ हवा अभियान’ भी चयनित शहरों में जारी रहेगा। इस कार्यक्रम के तहत इसमें शामिल शहरों में वर्ष 2024 तक वायु-प्रदूषण का स्तर 30 प्रतिशत तक कम करने का लक्ष्य रखा गया है। दिल्ली एनसीआर में भी 20 करोड़ की राशि अलग से दिया जाना प्रस्तावित है। वायु-प्रदूषण नियंत्रण हेतु आबंटित राशि नगरीय प्रशासन, परिवहन, कृषि, उद्योग, पर्यावरण व ऊर्जा विभाग को अलग-अलग दिए जाने का प्रावधान किया गया है। इसमें ‘प्रदूषण नियंत्रण मंडल’ के क्षेत्रीय कार्यालयों को भी जोड़ा जाना था। ‘स्क्रैप नीति’ के तहत 20 वर्ष से पुराने वाहनों को सड़कों से हटाने पर वायु-प्रदूषण 15 से 20 प्रतिशत तक कम होने की संभावना बताई जा रही है…

कोराना काल के बाद केंद्र सरकार ने एक फरवरी को बजट पेश किया था। कोरोना के समय देश-विदेश में किए गए अध्ययनों में बताया गया था कि जहां वायु-प्रदूषण अधिक था, वहां कोरोना का संक्रमण एवं मृत्यु दर भी ज्यादा थी। संभवतः इसी को ध्यान में रखकर इस बजट में पर्यावरण सुधार के कार्यों पर काफी ध्यान दिया गया। बजट के ‘शहरी स्वच्छ भारत जल जीवन’, ‘राष्ट्रीय हाइड्रोजन अभियान’ एवं पुराने वाहनों की ‘स्क्रैप नीति’ आदि मुद्दे पर्यावरण सुधार से जुड़े आयाम हैं। पिछले बजट की तुलना में इस बार पर्यावरण मंत्रालय को 42 प्रतिशत राशि बढ़ाकर 2869 करोड़ रुपए आवंटित किए गए। लगभग 135 करोड़ रुपए पर्यावरण संरक्षण, प्रबंधन एवं सतत विकास संबंधित कार्यों तथा 1.41 लाख करोड़ कचरा प्रबंधन एवं दूषित जल उपचार पर खर्च किए जाते हैं। देश के ज्यादातर महानगरों, नगरों एवं कस्बों में वायु-प्रदूषण की स्थिति खराब है। ‘वैश्विक वायु गुणवत्ता’ पर फरवरी-2020 में स्विटजरलैंड में जारी रिपोर्ट के अनुसार प्रदूषित हवा वाले देशों में भारत बांग्लादेश, पाकिस्तान, मंगोलिया तथा अफगानिस्तान के बाद पांचवें स्थान पर है। विश्व के 30 सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में 18 हमारे देश के बताए गए हैं। कुछ अध्ययन दर्शाते हैं कि बढ़ता वायु-प्रदूषण राज्यों की अर्थव्यवस्थाओं पर विपरीत प्रभाव डालकर वहां के निवासियों की उम्र भी कम कर रहा है। वायु-प्रदूषण की इस खतरनाक स्थिति के मद्देनजर इसे नियंत्रित करने हेतु 22 करोड़ रुपए का प्रावधान बजट में किया गया है। देश के 10 लाख से ज्यादा जनसंख्या वाले 42 शहरों में वायु-प्रदूषण नियंत्रण के कार्य किए जाएंगे। इसके साथ ही पूर्व में चलाया जा रहा ‘राष्ट्रीय स्वच्छ हवा अभियान’ भी चयनित शहरों में जारी रहेगा।

इस कार्यक्रम के तहत इसमें शामिल शहरों में वर्ष 2024 तक वायु-प्रदूषण का स्तर 30 प्रतिशत तक कम करने का लक्ष्य रखा गया है। दिल्ली एनसीआर में भी 20 करोड़ की राशि अलग से दिया जाना प्रस्तावित है। वायु-प्रदूषण नियंत्रण हेतु आबंटित राशि नगरीय प्रशासन, परिवहन, कृषि, उद्योग, पर्यावरण व ऊर्जा विभाग को अलग-अलग दिए जाने का प्रावधान किया गया है। इसमें ‘प्रदूषण नियंत्रण मंडल’ के क्षेत्रीय कार्यालयों को भी जोड़ा जाना था। ‘स्क्रैप नीति’ के तहत 20 वर्ष से पुराने वाहनों को सड़कों से हटाने पर वायु-प्रदूषण 15 से 20 प्रतिशत तक कम होने की संभावना बताई जा रही है। ‘राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन’ के तहत हाइड्रोजन को ‘ग्रीन एनर्जी सोर्स’ के रूप में उपयोग करने की पहल भी एक पर्यावरण हितैषी प्रयास है। हाइड्रोजन को भविष्य का ईंधन बताया जा रहा है। ‘शहरी स्वच्छ भारत मिशन’ के लिए 2021-24 के बीच 141678 करोड़ रुपयों की राशि आबंटित की गई है। इसके तहत शोधन के कार्य किए जाएंगे। केंद्र में मोदी सरकार बनने के बाद एक ‘राष्ट्रीय सफाई अभियान’ चलाया गया था। इस अभियान के तहत प्राकृतिक संसाधनों में प्रदूषण रोकना, कूड़े-कचरे की सफाई एवं प्रबंधन तथा खुले में शौच को रोकने के प्रयास किए गए थे। ‘यूनिसेफ’ के एक अध्ययन के अनुसार ये प्रयास शुरू में तो प्रभावशाली रहे, परंतु बाद में इनका प्रभाव कम होता गया। ‘जल जीवन मिशन’ के तहत बजट में शहरी क्षेत्र पर ज्यादा ध्यान दिया गया है। 2.86 लाख करोड़ रुपए देश के 4378 शहरी निकायों को दिया जाना प्रस्तावित है, ताकि नल कनेक्शन से साफ पानी प्रदान किया जा सके। 500 ‘अमृत योजना’ वाले शहरों में तरल अपशिष्ट प्रबंधन की व्यवस्था की भी बात कही गई है। वर्ष 2019 में इस मिशन के तहत ग्रामीण क्षेत्रों को प्राथमिकता दी गई थी। ‘जल जीवन मिशन’ के तहत शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में साफ  पानी पहुंचाने के प्रयास तो अच्छे हैं, परंतु इसके लिए पानी की उपलब्धता एवं गुणवत्ता भी बढ़ाने पर विचार किया जाना चाहिए। देश के नीति आयोग की 2018 की रिपोर्ट में बताया गया है कि 60 करोड़ लोग पानी की कमी से जूझ रहे हैं तथा 70 प्रतिशत पानी पीने के योग्य नहीं है। पिछले बजट में जल संसाधन, नदी विकास व गंगा संरक्षण विभाग को 8960 करोड़ रुपए दिए गए थे।

‘नमामि गंगे योजना’ के तहत 800 करोड़ रुपए आबंटित किए गए थे। वर्तमान बजट इस प्रकार का आबंटन, विशेषकर ‘नमामि गंगा योजना’ के लिए स्पष्ट नहीं देखा गया। वित्तमंत्री द्वारा डिजिटल बजट टेबलेट से पढ़कर इसे पेपरलेस बनाना भी एक पर्यावरण हितैषी पहल है, क्योंकि इससे काफी कागज की बचत हुई एवं परोक्ष रूप से कई पेड़ बच गए। सन् 2017 में किए गए एक अध्ययन के अनुसार संसद सत्र के प्रश्नों के जवाब व संबंधित दस्तावेज होते हैं एवं शाम तक इसका बड़ा भाग रद्दी बन जाता है। बेहतर होगा कि राज्यों एवं संबंधित विभागों को भी बजट साफ्ट-कॉपी या डिजिटल रूप में भेजा जाए। स्वच्छ भारत, जलजीवन, स्वच्छ हवा एवं हाइड्रोजन अभियान तथा ‘स्क्रैप नीति’ आदि से जुड़े विभिन्न कार्य यदि समयबद्धता के साथ जिम्मेदारी एवं ईमानदारी से किए जाएं तो पर्यावरण में धीरे-धीरे सुधार निश्चित रूप से होगा। आधुनिक ‘विकास’ और पर्यावरण एक-दूसरे के जानी दुश्मन माने जाते हैं और इस अखाड़े में सरकारें विकास की तरफदार हैं। ऐसे में पर्यावरण सुधार के लिए बजट में प्रावधान सुखद माने जा सकते हैं। हालांकि इन प्रावधानों के वांछित परिणाम प्राप्त करने के लिए कार्यान्वयन एक जरूरी पहलु है। अगर योजनाओं को उसी भावना के साथ क्रियान्वित नहीं किया जाता, जिस भावना के साथ उन्हें बनाया गया है, तो वांछित परिणाम प्राप्त करना कठिन होगा। पर्यावरण संरक्षण की योजनाओं के लिए जनसहभागिता भी जरूरी है। कोई भी योजना बिना जनसहभागिता के, सफल नहीं हो सकती। इसलिए सामाजिक एवं स्वयंसेवी संगठनों को अपनी भूमिका निश्चित रूप से निभानी होगी, ताकि बिगड़ते पर्यावरण पर कुछ हद तक अंकुश लगाया जा सके। आम जनता को भी पर्यावरण से जुड़े पहलुओं की शिक्षा दी जानी चाहिए ताकि उनकी सहभागिता सुनिश्चित की जा सके।


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