गुलाम नबी पहुंचे सच के नजदीक

सीटों की बात रहने भी दें तो उसे वोट प्रतिशत में भी ऐतिहासिक गिरावट आई है। लोगों को ग़ुलाम नबी की पार्टी ही ख़ुश रख सकती है। यदि सचमुच ऐसा होता तो जम्मू वाले उनकी पार्टी को गोधूली न चटाते। जहां तक कश्मीर संभाग का सवाल है, वहां कुछ गिनी-चुनी पार्टियों को छोड़ कर, कांग्रेस को कहीं भी लोगों ने घुसने नहीं दिया। दरअसल जम्मू-कश्मीर के लोगों का तो यह मत है कि कांग्रेस ने कभी अब्दुल्ला परिवार के साथ मिल कर और कभी सैयद परिवार के साथ मिल कर, उन्हें आज तक बंधक बनाए रखा था। ग़ुलाम नबी अपने बंधनों से आज़ाद हो पाए या नहीं, यह तो वे ही बेहतर जानते होंगे, लेकिन जिला परिषद के इन चुनाव परिणामों ने इतना तो सिद्ध कर ही दिया है कि राज्य के लोग सचमुच ही इस नागपाश से मुक्त हो गए हैं। लेकिन यह तभी संभव हो सका जब सबसे पहले भाजपा सरकार ने अनुच्छेद 370 को निस्तेज किया और उसके बाद सचमुच के चुनाव करवाकर, लोगों को अपना मत देने का अवसर दिया…

राज्यसभा में राष्ट्रपति के भाषण पर लाए गए धन्यवाद प्रस्ताव पर बोलते हुए सोनिया कांग्रेस के नेता ग़ुलाम नबी आज़ाद ने जम्मू-कश्मीर में जिला परिषदों के निष्पक्ष चुनाव करवाने के लिए राज्य प्रशासन को बधाई दी। सामान्य तौर पर ग़ुलाम नबी सरकार की प्रशंसा नहीं करते हैं। लेकिन अब उनके राज्यसभा से जाने का वक्त आ गया है और उनके दुर्भाग्य से उनकी पार्टी ने उन्हें दोबारा राज्यसभा भेजने में रुचि नहीं दिखाई।

वैसे तो कहा जा सकता है कि जब जम्मू-कश्मीर विधानसभा फिलहाल भंग है, इसलिए यदि सोनिया गांधी चाहती भी तो उन्हें राज्यसभा में कैसे भेज सकती थी? लेकिन यथार्थ में ऐसा है नहीं। पहले भी उन्हें राज्यसभा का सदस्य जम्मू-कश्मीर विधानसभा से नहीं बनाया जाता था, पार्टी में उनकी उपयोगिता को ध्यान में रख कर उन्हें किसी अन्य प्रांत से ही राज्यसभा में भेजा जाता था। लेकिन अब शायद कांग्रेस के लिए उनकी उपयोगिता बची नहीं, इसलिए उन्हें दरकिनार कर दिया गया।

नए हालात में उन्होंने भी सोनिया गांधी को कुछ इसी प्रकार के परजीवियों के साथ कर चिट्ठी पत्री लिखनी शुरू कर दी। चुपचाप लिखते रहते तो शायद कुछ असर होता, लेकिन इन लोगों ने उसे सार्वजनिक भी कर दिया। उससे खटास बढ़ी और ग़ुलाम नबी ने बीच-बीच में सच बोलना भी शुरू कर दिया। जिला परिषदों के चुनाव ईमानदारी से हुए हैं और शायद पहली बार है कि किसी ने दिल्ली में बैठकर इन्हें नियंत्रित करने का प्रयास नहीं किया। एक बार ईमानदारी से पता चल जाए कि जम्मू और कश्मीर दोनों संभागों के लोगों के दिल की आवाज़ क्या है?

समस्या का हल इसी लोकतांत्रिक ईमानदारी से निकलता है। लेकिन कांग्रेस, अब्दुल्ला परिवार और सैयद परिवार आज तक इसी लोकतांत्रिक ईमानदारी से बचते रहे हैं। कश्मीर में ऐसी अवधारणा बना दी गई कि राज्य के लोग चाहे जिसको भी चुनें, सत्ता वही संभाल सकेगा जिसे दिल्ली की सरकार चाहेगी। कुछ लोग तो यह भी कहते हैं कि 1987 में जब कांग्रेस ने नेशनल कान्फ्रेंस के साथ मिल कर चुनावों में दिनदहाड़े हेराफेरी की तो उसी से वर्तमान आतंकवाद पैदा हुआ और पाकिस्तान को जलती में तेल डालने का मौक़ा मिला। यह कांग्रेस ही थी जिसने नेशनल कान्फ्रेंस की विधिवत चुनी हुई सरकार को गिराने के लिए फारूक़ अब्दुल्ला के जीजा को ही तोड़ कर श्रीनगर में सांप्रदायिक सरकार बनाई थी।

इतना तो ग़ुलाम नबी ने भी माना कि जम्मू-कश्मीर में वर्तमान प्रशासन ने सचमुच राज्य के लोगों की राय को सामने लाकर रख दिया। लेकिन दुर्भाग्य से ग़ुलाम नबी, सोनिया गांधी को चिट्ठी पत्री लिखने के बावजूद झूठ के पुराने संस्कारों से मुक्त नहीं हो पाए। उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर के लोग वर्तमान प्रशासन से बहुत दुखी हैं। इतना ही नहीं, उन्होंने लगे हाथ स्वयं को लद्दाख के लोगों का भी प्रवक्ता मान कर यह भी कहा कि लद्दाख के लोग भी बहुत ज़्यादा दुखी हैं। लद्दाख के चुने हुए सांसद तो कहते हैं कि लद्दाख के लोग पहली बार अब्दुल्ला परिवार और सैयद परिवार की ग़ुलामी से मुक्त हुए हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि ग़ुलाम नबी ने जिला परिषदों के निष्पक्ष चुनावों को तो देख लिया, लेकिन चुनाव परिणामों में छिपे लोकतांत्रिक  संदेश को पढ़ पाने के लिए वे अभी तक आज़ाद नहीं हुए हैं। जम्मू संभाग में सोनिया कांग्रेस का सूपड़ा लगभग साफ हो गया है। वहां नेशनल कान्फ्रेंस तो पच्चीस सीटें जीत गई, लेकिन ग़ुलाम नबी की कांग्रेस बुरी तरह परास्त हुई।

सीटों की बात रहने भी दें तो उसे वोट प्रतिशत में भी ऐतिहासिक गिरावट आई है। लोगों को ग़ुलाम नबी की पार्टी ही ख़ुश रख सकती है। यदि सचमुच ऐसा होता तो जम्मू वाले उनकी पार्टी को गोधूली न चटाते। जहां तक कश्मीर संभाग का सवाल है, वहां कुछ गिनी-चुनी पार्टियों को छोड़ कर, कांग्रेस को कहीं भी लोगों ने घुसने नहीं दिया। दरअसल जम्मू-कश्मीर के लोगों का तो यह मत है कि कांग्रेस ने कभी अब्दुल्ला परिवार के साथ मिल कर और कभी सैयद परिवार के साथ मिल कर, उन्हें आज तक बंधक बनाए रखा था।

ग़ुलाम नबी अपने बंधनों से आज़ाद हो पाए या नहीं, यह तो वे ही बेहतर जानते होंगे, लेकिन जिला परिषद के इन चुनाव परिणामों ने इतना तो सिद्ध कर ही दिया है कि राज्य के लोग सचमुच ही इस नागपाश से मुक्त हो गए हैं। लेकिन यह तभी संभव हो सका जब सबसे पहले भाजपा सरकार ने अनुच्छेद 370 को निस्तेज किया और उसके बाद सचमुच के चुनाव करवाकर, जिसकी प्रशंसा ग़ुलाम नबी ने भी की है, लोगों को इस मुद्दे पर अपना मत देने का अवसर प्रदान कर दिया।  ग़ुलाम नबी इतना तो जानते हैं कि गुपकार मोर्चा की सात पार्टियां, जिन्होंने जिला विकास परिषदों के इन चुनावों को, अनुच्छेद 370 पर आम जनता की राय पर होने वाले चुनाव कह कर प्रचारित किया था, इन चुनावों में इतने वोट भी हासिल नहीं कर पाईं जितने निर्दलीय उम्मीदवारों ने हासिल कर लिए। ये निर्दलीय उम्मीदवार गुपकार मोर्चा के खिलाफ चुनाव लड़ रहे थे, यह भी ग़ुलाम नबी अच्छी तरह जानते हैं।

बेहतर होता जिस प्रकार जम्मू-कश्मीर के लोग 370 का नागपाश टूटने से आज़ाद हो गए हैं, उसी प्रकार ग़ुलाम नबी भी अपनी वैचारिक दरिद्रता से आज़ाद हो जाते तो वे जम्मू-कश्मीर के अवाम द्वारा लिखी इस नई इबारत को पढ़ भी लेते और उसके बाद राज्य में कोई सार्थक भूमिका भी अदा कर पाते। वैसे भी जब मालिकों ने राज्यसभा का दरवाजा बंद कर दिया है तो खुली हवा में सांस लेने में कैसा संकोच। कश्मीर में सही रास्ते को समझने-बूझने के लिए ग़ुलाम नबियों का खुली हवा में सांस लेना बहुत जरूरी है। ऐसा होने पर गुलाम नबी राज्य के लिए अपनी सकारात्मक भूमिका निभाने में भी सफल हो जाएंगे।

ईमेलः kuldeepagnihotri@gmail.com


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