सरकार गिर न जाए

By: Feb 15th, 2021 12:06 am

निर्मल असो

स्वतंत्र लेखक

जबसे वह मुख्यमंत्री बने हैं, उन्हें डर है कि कहीं सरकार गिर न जाए। दरअसल उनके सामने एक फाइल बता रही थी कि प्रदेश में स्पीड ब्रेकर लगने से दोपहिया वाहन सवार धीमे चलने के बजाय गिर रहे हैं। उन्होंने राज्य से स्पीड ब्रेकर हटाने का ऐलान किया ताकि कोई खुद भागता हुआ न गिरे। गिर अब भी रहे हैं, लेकिन दूसरों की वजह से। स्वयं मुख्यमंत्री भी आरंभ से ही गिरते रहे हैं। कभी पार्टी के मंच से तो कभी विरोधियों के प्रपंच से। इसलिए वह जब कभी राज्य का दौरा करते हैं, समर्थक इसे ऐतिहासिक बता देते हैं। इतिहास पुरुष बनने के लिए वह हर पुराने शहर का नाम बदल रहे हैं। वह वाद-विवाद से दूर रहने के लिए जिस किसी शहर के अंत में ‘बाद’ आता है, उसका नाम बदल देते हैं। अब सरकार बचाने के लिए सरकार प्रयास कर रही है।

उन्होंने अपने सलाहकारों की बैठक बुलाई, तो पता चला कि जिन्हें पद दिए गए थे, वे टेढ़े हो चुके हैं। फिर भी हौसला करके उनसे ही पूछा, ‘सरकार बचानी है क्या करें।’ खुशफहमी में एक सलाहकार को लगा कि वह सरकार बचा लेगा, अतः कहने लगा, ‘जनाब! सरकार बनाने में अगर हम पिछली सरकार के दोष ढूंढते रहे तो बचाने में अपने ‘दोष’ छुपाने पड़ेंगे। भले ही उद्घाटन नहीं हो रहे, लेकिन शिलान्यास हो सकते हैं।’ सरकार अब शिलान्यास लेकर चल रही है और बाकायदा टारगेट पर काम हो रहा है। जनता के सामने शिलान्यास बनाम शिलान्यास मुद्दा बन रहा है। पिछली सरकार ने भी शिलान्यास किए थे, लेकिन इस बार पत्थर महंगा हो गया, तो कार्यकर्ता का इसमें भी लाभ बढ़ गया। पिछली सरकार ने जो काम पांच करोड़ में कराने का प्रस्ताव रखा था, इस बार वही प्रस्ताव दस करोड़ का हो गया।

मुख्यमंत्री खुद अब पत्थर तराश बन गए हैं और हर शिलान्यास समारोह में जनता उन्हें तराश रही है। फिर भी राज्य पर कर्ज बढ़ रहा है। सलाहकार बढ़ रहे हैं और सरकार अपने सारे मिशन को रिपीट करने के लिए हर दिन नया शिखर ढूंढ रही है। सरकार के खिलाफ जो बोलने के इच्छुक थे, उन्हें ‘आंदोलनजीवी’ की डिग्री मिलने लगी है। अब आंदोलन इस बात का है कि उन्हें ‘आंदोलनजीवी’ होने का अधिकार दिया जाए। सरकार उदार है, इसलिए ‘आंदोलनजीवी’ अब अपनी विचारधारा में भी पैदा हो गए। आंदोलनजीवी समझ गए कि उन्हें भी पगार चाहिए, सरकार चाहिए। सरकार के पक्ष में भी ‘आंदोलनजीवी’ हैं। आंदोलन सड़क पर नहीं, हर दिन चैनल के समाचार कक्ष में हो रहा है। रोजाना एंकर कहीं न कहीं से ‘आंदोलन’ ढूंढ लाता है। वह चीखता है, बीच-बीच में नारेबाजी भी करता है और सामने विपक्षी प्रवक्ता रोज हार रहा है। यह ‘आंदोलनजीवी’ भी कमाल का है और अपने प्रदर्शन से हर दिन मुख्यमंत्री को आश्वस्त कर रहा है। सरकार अब भावुक होने लगी है। जनता के आंसू देखकर भावुक है। उसे यकीन है जिस दिन टिकैत या गुलाम नबी आजाद की तरह सरकार के भी आंसू निकलेंगे, जनता समर्थन में डूब जाएगी।


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