होरी को कहा सीकरी सों काम

By: Feb 9th, 2021 12:05 am

अजय पाराशर

लेखक, धर्मशाला से हैं

पंडित जॉन अली बड़ी देर से ऑनलाइन शॉपिंग साइट्स पर कुछ ढूंढ रहे थे। लेकिन मनचाहा उत्पाद न दिखने पर वह झल्ला उठे। मैंने पूछा, ‘‘पंडित जी, क्या बात है?’’ तो बोले, ‘‘अमां यार! सीकरी जाने के लिए लोहे के जूते ़खरीदने की सोच रहा था। कुंभनदास की चप्पलें तो रास्ते में ही टूट गईं थीं। उस ज़माने में चप्पलें असली चमड़े की होती थीं। आजकल भले ही आदमी की खाल गेंडे जैसी मोटी हो गई हो लेकिन चमड़े में अब वैसी मजबूती कहां?’’ मैं बोला, ‘‘पंडित जी, लोहे के जूते? जेठा अभी दूर है और आप माघ की ठंड में ही बोराने लगे। सुना है सीकरी का प्रदूषण जानलेवा है। लेकिन आप सीकरी जाकर करेंगे क्या?’’ वह बोले, ‘‘यार, तुम कभी समझते तो हो नहीं। उधर होरी हैं कि कुंभनदास की तरह जूते की परवाह किए बिना सीकरी तो पहुंच गए लेकिन भूल गए कि सदियों से ही दुश्मनों से बचने के लिए ़िकलों के बाहर खाइयां, दीवारें और लोहे के दरवाज़े बनाने का रिवाज़ रहा है। लेकिन बेचारे होरियों को शुरू से ही अपना भला-बुरा सोचने का समय ही कब मिला? मुंह अंधेरे घर से खेतों की ओर निकल जाते हैं और रात को पानी लगाने या जंगली जानवरों की चिंता में कभी ढंग से सो नहीं पाते। इस वजह से आरंभ से ही उनका मानसिक संतुलन बिगड़ा चला आ रहा है। कटु सत्य है कि होरी शुरू से ही नासमझ रहे हैं। ऐसे में उनकी चिंता राजा के सिवा कौन करेगा? मैं केवल तत्तो-थंबो के लिए सीकरी जाना चाहता हूं ताकि उन्हें समझा सकूं कि उखाड़े गए सरियों और कीलों की जगह फूल उगाना छोड़ें और पतली गली से निकल कर, घरों में आराम से चादर तान कर सो जाएं। वैसे भी दो साल में उनकी आय दोगुनी होने वाली है।

उन्हें सोचना चाहिए कि जो हो रहा है, सब उनके भले के लिए ही हो रहा है। अगर उनकी सोच सकारात्मक नहीं होगी तो हमेशा शंकित रहेंगे। महाजनों ने कहा है कि जब तक आदमी अच्छा नहीं सोचेगा, कभी उसका भला नहीं हो सकता। शंकित आदमी न केवल नींद में बड़बड़ाता है बल्कि सपने भी बुरे ही देखता है। होरियों को तमाम चिंताएं, राजा पर छोड़ देनी चाहिए और सि़र्फ यह सोचना चाहिए कि जो हो रहा है, सब उनके भले के लिए हो रहा है, और जो होगा, उनके भले के लिए ही होगा। इससे सिद्ध होता है कि उनके जीवन में गीता अभी तक उतरी ही नहीं। होरियों को राजा का विश्वास करना चाहिए कि जब राजा कह रहा है कि वह सोते-उनींदे, नहाते-धोते, खाते-पीते या ऑनलाइन-ऑफलाइन संबोधनों-सम्मेलनों में केवल उनकी भलाई के ही बारे में सोचता है, तो वह अवश्य ही उनकी भलाई के बारे में सोच रहा होगा। विद्वानों ने कहा भी है कि जब एक ही विचार की शिद्दत से जुगाली की जाती है तो जिस तरह जुगाली करने पर पूरी कायनात न केवल भैंस का हाजमा और शरीर ही पुष्ट करती है; बल्कि उसे अच्छा दूध देने की शक्ति भी प्रदान करती है। ऐसे ही जब राजा होरियों की भलाई के बारे में चौबीस गुणा सात जुगाली करता रहता है तो ब्रह्मांड की कोई भी ता़कत उसे उनका भला करने से नहीं रोक सकती। रही बात सफलता की, वह तो ईश्वर के हाथ है।’’ मैंने कहा, ‘‘पंडित जी, जिस तरह हवा से पानी और ऑक्सीजन निकाली जा सकती है, क्या उसी तरह हवा से अन्न और ़फसल भी निकाले जा सकते हैं।’’ यह सुनकर, वह नाराज़ होते हुए बोले, ‘‘तुम जैसे लोगों के कारण ही देश रसातल में जा रहा है। अब मैं तुम्हारी किसी बात का जवाब नहीं दूंगा।’’


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