जय गणेश देवा!

By: Feb 4th, 2021 12:07 am

पी. के. खुराना

राजनीतिक रणनीतिकार

भारतीय संस्कृति में गणेश जी की बड़ी महत्ता है। हर कार्य की शुरुआत से पहले गणेश वंदना द्वारा कार्य की सफलता की प्रार्थना की जाती है। गणेश जी सफलता की शुरुआत हैं। आज हम सफल जीवन के रहस्यों की जानकारी की शुरुआत भी गणेश जी से ही करेंगे। घबराइए मत, यह कोई धार्मिक प्रवचन नहीं, अपितु सफल जीवन के लिए आवश्यक गुणों का वैज्ञानिक विवेचन मात्र है। हम जानते हैं कि गणेश जी के दो बड़े-बड़े कान हैं और वे एकमुखी हैं। अपने व्यावहारिक जीवन में हम इससे बहुत बड़ी सीख ले सकते हैं। कान दो और वे भी बड़े-बड़े, यानी अच्छे श्रोता का सबसे बड़ा गुण। प्रकृति ने हमें गणेश जी जैसे बड़े कान तो नहीं दिए, पर हम यदि लोगों की बातें ध्यान से सुनना शुरू कर दें, उनकी बातों में रुचि लें, बातचीत के बीच-बीच में जताते रहें कि उनकी बात अच्छी लगी, तो निश्चय जानिए, हम सभी के प्रिय बन जाएंगे। इसके विपरीत जब हम सामने वाले की बातों पर ध्यान नहीं देते तो हमारे भाव-भंगिमा हमारी चुगली कर देती है और यह छुप नहीं पाता कि हमारा ध्यान कहीं और है। यही नहीं, कई बार बहुत-सी महत्त्वपूर्ण बातें हम इसलिए नहीं समझ पाते क्योंकि जब सामने वाला बता रहा था तो हम एकाग्रता से उन्हें नहीं सुन रहे थे। बंटे हुए ध्यान से बातें सुनने में हम बहुत कुछ सुन नहीं पाते या फिर भूल जाते हैं।

 अक्सर इसका परिणाम सुखद नहीं होता। अतः हमें गणेश जी से पहली सीख यही मिलती है कि बातचीत के वक्त हम अपने ध्यान को भटकने न दें और पूरा ध्यान सामने वाले की बातों पर लगाएं। दो बड़े-बड़े कानों के विपरीत केवल एक मुंह होना हमें यह सिखाता है कि हम कम बोलें और जो बोलें सोच-समझ कर बोलें। कोमल जिह्वा मजबूत और कठोर दांतों के बीच वास करती है, अतः इसे संभल कर रहना चाहिए और मीठा-मीठा बोलना चाहिए। अंग्रेज़ी में एक कहावत है, ‘ह्वाट इज़ सेड मोस्ट ब्रीफली, इज़ सेड मोस्ट इफेक्टिवली।’ यानी, जो बात जितने संक्षेप में कही जाएगी, वह उतनी ही प्रभावी होगी। ज्यादा बोलना, खासकर फालतू बोलना कभी भी शुभ नहीं माना जाता। यूं ही बोलते रहने वाला व्यक्ति सिर्फ बोरियत पैदा करता है जबकि मतलब की बातों तक सीमित रहने वाला व्यक्ति अपनी छाप छोड़ने में सफल रहता है। अतः गणेश जी से मिलने वाली दूसरी सीख यह है कि हम कम बोलें, मीठा बोलें और अनर्गल बातों के बजाय मतलब की, यानी प्रासंगिक बातों तक सीमित रहें।  गणेश जी की लंबी सूंड से हमें सीख मिलती है कि हम जीवन में आने वाले दुर्लभ अवसरों को दूर से सूंघ लें। उनके अनुसार खुद को तैयार करें और सफलता की राह प्रशस्त कर लें। यह कैसे संभव है? अपने विषय के प्रति ज़्यादा से ज़्यादा जानने की इच्छा और प्रवृत्ति आपको उस विषय विशेष के बारे में ज़्यादा पढ़ने, ज़्यादा जानने और उस पर ज़्यादा काम करने का उत्साह देते हैं। विषय की जानकारी बढ़ते जाने से न केवल विषय आसान हो जाता है बल्कि उसमें आपको आनंद भी आने लगता है। जिस काम में हमें आनंद मिलता हो, उसमें मन ज़्यादा रमता है, हम उसे बार-बार करते हैं और अंततः उस विषय के आधिकारिक विद्वान अथवा विशेषज्ञ बन जाते हैं। उस स्थिति में उस क्षेत्र की घटनाओं का पूर्वानुमान लगाना हमारे लिए आसान हो जाता है। यानी, हमारा ज्ञान हमारी ‘सूंड’ बन जाता है और हम आने वाले अवसरों को पहले ही भांप लेते हैं।

 गणेश जी की लंबी सूंड हमारे ज्ञान का प्रतीक है और हमें अपने विषय पर ज़्यादा से ज़्यादा काम करने की सीख देती है। गणेश जी मूषक की सवारी करते हैं, यानी कमजोर से कमजोर व्यक्ति भी निकृष्ट नहीं है और हम उससे कुछ न कुछ सहयोग अवश्य ले सकते हैं। क्या आप जानते हैं कि किसी कंपनी की मुखिया की सबसे बड़ी खूबी क्या होती है जिसके कारण वह उस सर्वोच्च पद तक पहुंच पाया? वह खूबी है, लोगों की योग्यताओं को पहचानना, उनकी कमियों को दूर करने की जुगत लगाना, उन्हें प्रेरित करना और उनकी खूबियों के अनुसार उनसे सर्वश्रेष्ठ काम करवाना। अंग्रेज़ी में इसे ‘पीपल मैनेजमेंट’ कहा जाता है। जीवन में असली नायक वही हो सकता है जो लोगों को अपने साथ जोड़ सके और जोड़े रख सके। मानव-संसाधन विकास की अवधारणा यहीं से पैदा हुई है और किसी भी अच्छे नेता को इसमें कुशल होना अत्यावश्यक है। तकनीकी विशेषज्ञता के मुकाबले में यह विशेषज्ञता ज़्यादा महत्त्वपूर्ण मानी जाती है और गणेश जी द्वारा मूषक की सवारी ‘पीपल मैनेजमेंट’ की इसी विशेषता का प्रतीक है। गणेश जी ने अपने बड़े भाई कार्तिकेय की तरह पृथ्वी का चक्कर लगाने के बजाय पिताश्री भगवान शिव और मां पार्वती की परिक्रमा करके ब्रह्मांड की परिक्रमा कर ली और गणपति बन गए। किसी भी समस्या के समाधान के लिए हमें उसके सभी उपलब्ध विकल्पों पर विचार करना चाहिए और केवल पारंपरिक तरीकों तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए। सभी संभव विकल्पों की खोज ही हमें विजेता बनाती है और हमारी सफलता का कारण बनती है। यही नहीं, इससे ही एक और सीख भी मिलती है कि हमारा हर कार्य भी यदि हमारे मुख्य उद्देश्य के इर्द-गिर्द घूमेगा और यदि जीवन के छोटे-मोटे उतार-चढ़ाव हमारा ध्यान नहीं बंटाएंगे तो हम भी जननायक हो जाएंगे। अच्छे श्रोता बनना, कम बोलना, तोल कर बोलना, मीठा बोलना, छोटी-मोटी बातों को भुलाकर मुख्य उद्देश्य की ओर ध्यान लगाना, हर व्यक्ति का सहयोग लेना आदि गुण हमारी लोकप्रियता और प्रतिष्ठा बढ़ा सकते हैं तथा हमें असफल व्यक्तियों की जमात से निकाल कर गिने-चुने सफल व्यक्तियों में शामिल करवा सकते हैं।

 लोहे और चुंबक में एक ही अंतर है। लोहे के परमाणुओं की दिशा अलग-अलग होती है जबकि चुंबक के सभी परमाणु एक ही दिशा में हो जाते हैं। सफल व्यक्तियों के व्यक्तित्व में कोई चमत्कार नहीं होता, बस उनका सारा ध्यान, उनकी हर गतिविधि, एक उद्देश्य से प्रेरित होती है। असफल व्यक्ति का कोई लक्ष्य नहीं होता या शायद कई लक्ष्य होते हैं, सफल व्यक्ति का एक ही निश्चित लक्ष्य होता है तथा वह लक्ष्य प्राप्त करने के लिए उसकी एक निश्चित कार्य-योजना होती है। असफल व्यक्ति समय गंवाता है और काम के बोझ की अधिकता से परेशान रहता है, सफल व्यक्ति एक-एक करके काम निपटाता चलता है ताकि उसका हर काम समय पर समाप्त हो जाए। भविष्य में जब कभी आपको किसी शुभ कार्य की शुरुआत से पूर्व गणेश वंदना का अवसर मिले तो कृपया उनके दो बड़े कानों की ओर अवश्य देखिए, उनके एकमात्र मुख का ध्यान रखिए, दांतों के बीच रहकर जीवन काटने वाली जिह्वा की ओर देखिए, उनकी लंबी सूंड से प्रेरणा लीजिए और याद रखिए कि उनके इन सभी अंगों से हमें कोई महत्त्वपूर्ण सीख मिलती है। गणेश जी का हर अंग हमारे लिए प्रेरणा का स्रोत है ही, उनका वाहन भी हमारे लिए सीख का अच्छा उदाहरण है। यही गणेश जी की खूबी है, इसीलिए वे गणपति हैं, वंदनीय हैं। गणेश जी का शरीर आकर्षक नहीं है, फिर भी उन्हें सबसे पहले पूजा जाता है। हमारी शक्ल-सूरत पर हमारा कोई बस नहीं है, पर हमारे गुणों और व्यवहार पर हमारा पूरा नियंत्रण है। हमारी आदतें और व्यवहार हमें सफल अथवा असफल बना सकती हैं।

ईमेलः indiatotal.features@gmail.com


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