सतर्कता के बिना संभव नहीं सड़क सुरक्षा

भले ही केंद्र तथा राज्य सरकारें मिलकर कितने भी अभियान चला लें, सड़क पर जीवन तभी सुरक्षित हो सकता है जब इसके लिए समाज एकजुट हो जाए। लेकिन यह तभी संभव होगा जब लोग सड़क सुरक्षा के नियमों को अपने जीवन का अनिवार्य अंग बना लें। भले ही अपने गंतव्य पर पहुंच कर लोगों को कुछ भी न करना हो, लेकिन सड़क पर उनका उतावला व्यवहार उनके साथ अन्यों का जीवन भी ़खतरे में डालता है। सड़क पर होने वाली दुर्घटनाएं हमारे समग्र विकास का नकारात्मक पहलू हैं। कोई भी अभियान या आंदोलन ़कानून बनाने से ही सफल नहीं हो सकता। इसमें जनता की सक्रिय सहभागिता ज़रूरी है। हर चौक-चौराहे पर पुलिस तैनात करना संभव नहीं…

हर साल मनाए जाने वाले सड़क सुरक्षा सप्ताह के स्थान पर हम इस वर्ष 18 जनवरी से 17 फरवरी, 2021 तक राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा माह मना रहे हैं। इस वर्ष मनाए जाने वाले राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा माह का विषय है, ‘‘सड़क सुरक्षा-जीवन रक्षा।’’ इस एक माह के दौरान लोगों को सड़क सुरक्षा के माध्यम से जीवन रक्षा के प्रति संवेदनशील बनाने के लिए केंद्रीय सरकार तथा राज्य सरकारें विभिन्न कार्यक्रम आयोजित कर रही हैं। लेकिन सवाल उठता है कि क्या इससे वास्तव में लोगों में जागरूकता बढ़ेगी या खुली आंखों से सब कुछ देखने के बावजूद लोग यूं ही आगे बढ़ते रहेंगे। उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार देश में सड़क पर होने वाले हादसों में प्रति वर्ष त़करीबन 1.5 लाख लोग अपनी जान से हाथ धो बैठते हैं। इससे अधिक भयावह आंकड़ा है उन लोगों का, जो इन हादसों में शारीरिक क्षति के कारण उम्र भर के लिए अक्षम हो जाते हैं। ऐसे में प्रभावित परिवारों को भारी आर्थिक एवं भावनात्मक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। विभिन्न सरकारों द्वारा लोगों को सड़क सुरक्षा के प्रति संवेदनशील बनाए जाने के लिए विभिन्न प्रयासों के मध्य यह कटु सत्य है कि सड़क हादसों में अधिकतर लोग स्वयं या चालक की लापरवाही से हादसों का शिकार होते हैं।

अगर हिमाचल के संदर्भ में बात की जाए तो प्रदेश में उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार राज्य में हर साल लगभग 3,000 सड़क हादसों में ़करीब 1,200 लोग मौत का शिकार होते हैं। इन हादसों में ़करीब 95 ़फीसदी लोग अपनी ़गलती की वजह से अकाल मृत्यु को प्राप्त होते हैं। ऐसी दुर्घटनाएं मानवीय ़गलतियों की वजह से होती हैं; जिसका सबसे बड़ा कारण है- ट्रैफिक नियमों की आधी-अधूरी जानकारी और नियमों के प्रति लापरवाही। अधिकांश लोग अपने जीवन से समझौता करते हुए सड़क पर वाहन चलाते हैं। यहां तक कि पढ़े-लिखे लोग भी थोड़ी सी जगह मिलने पर, अपनी और दूसरों की जान जो़िखम में डाल कर, अपना वाहन निकालने की कोशिश करते हैं। ़खासकर, जब से प्रदेश में पिछले चार-पांच सालों से दोपहिया वाहन के चालकों द्वारा ़गलत दिशा से दूसरे वाहनों को टेकओवर करने की जानलेवा प्रथा आरंभ हुई है, सड़क हादसों का अंदेशा बढ़ गया है। कई बार तो यातायात ड्यूटी पर तैनात कर्मी ही लोगों को ़गलत पास लेने के लिए निर्देश देते नज़र आते हैं या स्वयं भी ़गलत ओर से पास लेते हैं। मौजूदा तथ्यों के मुताबि़क राज्य सरकार द्वारा पिछले वर्ष आरंभ सड़क सुरक्षा जागरूकता अभियान के चलते साल 2019 में सड़क हादसों तथा मौतों में कुछ प्रतिशत की कमी आई थी। वर्ष 2018 में 3,110 हादसों में 5,551 व्यक्ति घायल हुए थे, जबकि मरने वालों की संख्या 1,208 थी। इसकी तुलना में यह अभियान आरंभ किए जाने के बाद वर्ष 2019 में हादसों की संख्या 2,873, घायलों की संख्या 4,901 और मृतकों की संख्या 1,141 रही।

 इस तरह सड़क हादसों में 7.62 प्रतिशत, मृतकों की संख्या में 5.54 ़फीसदी और घायल व्यक्तियों की संख्या में 11.70 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। भले ही केंद्र तथा राज्य सरकारें मिलकर कितने भी अभियान चला लें, सड़क पर जीवन तभी सुरक्षित हो सकता है जब इसके लिए समाज एकजुट हो जाए। लेकिन यह तभी संभव होगा जब लोग सड़क सुरक्षा के नियमों को अपने जीवन का अनिवार्य अंग बना लें। भले ही अपने गंतव्य पर पहुंच कर लोगों को कुछ भी न करना हो, लेकिन सड़क पर उनका उतावला व्यवहार उनके साथ अन्यों का जीवन भी ़खतरे में डालता है। सड़क पर होने वाली दुर्घटनाएं हमारे समग्र विकास का नकारात्मक पहलू हैं। कोई भी अभियान या आंदोलन ़कानून बनाने से ही सफल नहीं हो सकता। इसमें जनता की सक्रिय सहभागिता ज़रूरी है। हर चौक-चौराहे पर पुलिस तैनात करना संभव नहीं। अगर चालक का व्यवहार नियंत्रित न हो तो सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं। इसके लिए आवश्यक है कि ़कानूनों का पालन स़ख्ती से हो और ऐसा सिस्टम में सुधार के बिना संभव नहीं।

 लेकिन सिस्टम तभी सुधर सकता है, अगर हम प्रण करें कि हम न केवल स्वयं ़कानूनों का पालन करेंगे, बल्कि उन्हें लागू करवाने के लिए औरों पर भी दबाव बनाएंगे। कहते हैं कि अज्ञानी को समझाना मुश्किल नहीं; लेकिन मचलों को नियंत्रित करना कठिन होता है। जब तक लोग यातायात के नियमों को भली प्रकार समझ कर, सड़क पर संयमित व्यवहार का प्रदर्शन नहीं करेंगे, जीवन को पूरी तरह सुरक्षित बनाना संभव नहीं। बेहतर होगा अगर हम वाहन प्रशिक्षण के समय न केवल यातायात नियमों की पूरी जानकारी हासिल करें, बल्कि सड़क पर संयम साधना भी सीखें। इससे न केवल हम अपना और दूसरे जीवन ही सुरक्षित बनाने में मदद करेंगे बल्कि आर्थिक और भावनात्मक नु़कसान को समाप्त कर राष्ट्र के समग्र विकास में सक्रिय सहयोगी भी बनेंगे। सरकार की कोई भी योजना जन-सहभागिता के बिना पूरी नहीं हो सकती। सड़क सुरक्षा के मामले में भी यही बात लागू होती है।


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