संत कबीर

By: Feb 20th, 2021 12:16 am

 हमारे ऋषि-मुनि, भागः 51

एक दिन प्रातः मुंह अंधेरे बालक कबीर पंचगंगा घाट की सीढि़यों पर जा बैठे। स्नान के लिए स्वामी रामानंद आए। उनका पांव इस बालक पर पड़ा। उनके मुंह से राम-राम निकला। बालक ने इसे ही दीक्षा का मंत्र मान लिया। ये गुरु मुख से निकले शब्द थे। तब से बालक कबीर इस स्वामी जी को अपना गुरु कहने लगे। केवल हिंदू ही नहीं, मुसलमान भी कबीरपंथी हैं। उनकी मान्यता है कि बालक कबीर ने सूफी संत फकीर शेख तकी से दीक्षा प्राप्त की थी…

काशी की एक विधवा ब्राह्मणी ने संतान प्राप्ति करने का वरदान जगदगुरु स्वामी रामानंद से पा लिया था। लोकलाज को देखते हुए मां लहतारा ताल के पास नवजात शिशु को फेंककर चली गई। फिर पीछे मुड़कर भी न देखा। नीरू जुलाहा उधर से निकला। रो रहे नवजात शिशु को उठा लिया, घर ले आया और परवरिश की। उन्होंने ही इस बालक का नाम कबीर रखा। कुछ लोगों का कहना है कि कबीर कमल के पुष्प पर लेटे देखे गए। कुछ यह भी मानते हैं कि भक्त प्रह्लाद ही कबीर रूप में आए। वह किसी योगी और प्रतीचि की संतान थे। संवत् 1455, ज्येष्ठ शुक्ला 15 को वह प्रकट हुए, ऐसा पढ़ने को मिलता है। नीरू-नीमा जुलाहों ने इस बालक का लालन-पालन किया।

दीक्षा मंत्र की प्राप्ति

एक दिन प्रातः मुंह अंधेरे बालक कबीर पंचगंगा घाट की सीढि़यों पर जा बैठे। स्नान के लिए स्वामी रामानंद आए। उनका पांव इस बालक पर पड़ा। उनके मुंह से राम-राम निकला। बालक ने इसे ही दीक्षा का मंत्र मान लिया। ये गुरु मुख से निकले शब्द थे। तब से बालक कबीर इस स्वामी जी को अपना गुरु कहने लगे।

मुसलमान भी हैं कबीरपंथी

केवल हिंदू ही नहीं, मुसलमान भी कबीरपंथी हैं। उनकी मान्यता है कि बालक कबीर ने सूफी संत फकीर शेख तकी से दीक्षा प्राप्त की थी। कबीर ने पीर पीतांबर का नाम भी आदर से लिया। उन्होंने हिंदू तथा मुसलमान में कभी फर्क नहीं माना। उन्होंने हिंदू संतों तथा मुस्लिम फकीरों का सत्संग किया। जहां से जो ज्ञान मिला,उसे सहर्ष ग्रहण कर लिया।

परिवार के सदस्य तथा भक्तिमार्ग

कबीर जी का विवाह ‘लोई’ से हुआ था। इनके पुत्र का नाम कमाल तथा पुत्री का नाम कमाली था। जुलाहा परिवार था, इसलिए कबीर जी करघे पर अधिक समय देकर आजीविका कमाया करते। क्योंकि परिवार में साधु-संत बहुत आते, इसलिए बहुत बार इन्हें स्वयं बिना भोजन भी रहना पड़ता था। मजबूरी में व्रत हो जाता। उन्हें शिक्षा ग्रहण करने का कभी मौका नहीं मिला।

कबीर की रचनाएं

रमैनी, सबद और साखी, ये तीन भाग हैं संत कबीर के ग्रंथ बीजक के। श्री माधव जी के अनुसार बीजक में वेदांत तत्त्व, हिंदू-मुसलमानों को उनके पाखंड, अंधविश्वास तथा मिथ्याचार के लिए फटकार, संसार की क्षणभंगुरता, हृदय की शुद्धि, माया, छुआछात आदि अनेक फुटकर प्रसंग हैं। भाषा खिचड़ी है, पंजाबी, राजस्थानी, खड़ी बोली, अवधी, पूरबी, ब्रजभाषा आदि कई बोलियों का पंचमेल है। भाषा साहित्यक न होने पर भी बहुत जोरदार है। कबीर को शांतिमय जीवन बहुत प्रिय था। अहिंसा, सत्य, सदाचार आदि सद्गुणों के ये उपासक थे।

ईर्ष्यालु लोगों ने सताया

संत कबीर को बुढ़ापे में कुछ ईर्ष्यालु लोगों ने तंग किया। उनकी बढ़ती कीर्ति से वे छटपटाया करते थे। इन्होंने अपने पार्थिव शरीर को मगहर में 119 वर्ष की आयु में त्यागा। उनके अंतिम शब्द उद्धृत किए जा रहे हैं हृदय का क्रूर यदि काशी में मरे, तो भी उसे मुक्ति नहीं मिल सकती और यदि हरि भक्त मगहर में भी मरे, तो भी यम के दूत उसके पास फटक नहीं सकते। काशी में शरीर त्यागने से लोगों को भ्रम होगा कि काशीवास से ही कबीर की मुक्ति हुई है। मैं नरक भले ही चला जाऊं, पर भगवान के चरणों का यश काशी को नहीं दूंगा।

– सुदर्शन भाटिया 


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App