बैंकों का निजीकरण क्यों सही

चूंकि सरकारी बैंकों में बड़ी तादाद में कर्मचारी हैं, अतएव निजीकरण के बाद खरीददार कर्मचारियों को किस तरह रोजगार में बनाए रखेगा, इस विषय पर भी विस्तृत खाका तैयार किया जाना होगा। साथ ही सरकारी बैंकों के सफल निजीकरण के लिए सरकार के द्वारा परिचालन के मसलों को भी प्रभावी ढंग से निपटाया  जाना होगा। बैंकों का निजीकरण पुनर्पूंजीकरण की चिंताओं को कम करेगा…

इस समय सरकार देश के बैंकिंग सेक्टर में आर्थिक सुधारों के लिए दो सूत्रीय रणनीति पर आगे बढ़ रही है। एक, छोटे और मझोले आकार के सरकारी बैंकों का चरणबद्ध निजीकरण करना और दो, कुछ सरकारी बैंकों को मिलाकर बड़े मजबूत बैंक के रूप में स्थापित करना। यह उभरकर दिखाई दे रहा है कि अब सरकारी बैंकों के निजीकरण का नया अध्याय लिखा जा रहा है। गौरतलब है कि वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने एक फरवरी को केंद्रीय बजट प्रस्तुत करते हुए कुछ सरकारी बैंकों के निजीकरण करने की घोषणा की थी। उनके मुताबिक अब सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक भारतीय बैंकिंग प्रणाली के लिए पहले की तरह अहम नहीं रह गए हैं। अब कुछ सरकारी बैंकों का निजीकरण अपरिहार्य है क्योंकि सरकार के पास पुनर्पूंजीकरण की राजकोषीय गुंजाइश नहीं है। ज्ञातव्य है कि पीजे नायक की अध्यक्षता वाली भारतीय रिजर्व बैंक की समिति ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को सरकार के नियंत्रण से बाहर निकालने के लिए सिफारिश प्रस्तुत की थी। इसी तारतम्य में हाल ही में सरकार ने छोटे एवं मझोले आकार के चार सरकारी बैंकों को निजीकरण के लिए चिन्हित किया है। ये बैंक हैं- बैंक ऑफ  महाराष्ट्र, बैंक ऑफ  इंडिया, इंडियन ओवरसीज बैंक और सेंट्रल बैंक ऑफ  इंडिया। इनमें से दो बैंकों का निजीकरण एक अप्रैल से शुरू हो रहे वित्त वर्ष 2021-22 में किया जाएगा। कहा गया है कि जिन बैंकों का निजीकरण होने जा रहा है, उनके खाताधारकों को कोई नुकसान नहीं होगा। निजीकरण के बाद भी उन्हें सभी बैंकिंग सेवाएं पहले की तरह मिलती रहेंगी।

वस्तुतः सार्वजनिक क्षेत्र के दो बैंकों का निजीकरण महज एक शुरुआत है। यदि इन चार छोटे-मझोले बैंकों के निजीकरण में सरकार को सफलता मिल जाती है तो आगामी वर्षों में कुछ अन्य बैंकों को निजी हाथों में सौंपने की प्रक्रिया शुरू की जा सकती है। यह भी उल्लेखनीय है कि जहां एक ओर सरकार बैंकों के निजीकरण की ओर आगे बढ़ी है, वहीं दूसरी ओर सरकार देश में चार बड़े मजबूत सरकारी बैंकों को आकार देने की रणनीति पर भी आगे बढ़ रही है। उल्लेखनीय है कि वर्ष 1991 में बैंकिंग सुधारों पर एमएल नरसिम्हन की अध्यक्षता में समिति का गठन हुआ था। इस समिति ने देश में बड़े और मजबूत बैंकों की सिफारिश की थी। इस समिति ने यह भी कहा था कि देश में तीन-चार अंतरराष्ट्रीय स्तर के बड़े बैंक होने चाहिए। इस समिति की रिपोर्ट के परिप्रेक्ष्य में छोटे बैंकों को बड़े बैंक में मिलाने का फार्मूला केंद्र सरकार पहले भी अपना चुकी है। इस समय देश में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की संख्या कम होकर 12 रह गई है। यह माना जा रहा है कि भारत में बैंकों की जन हितैषी योजनाओं के संचालन संबंधी भूमिका के कारण सरकारी बैंकों की मजबूती के अधिक प्रयास जरूरी हैं। चूंकि सरकार की जनहित की योजनाएं सरकारी बैंकों पर आधारित हैं, ऐसे में मजबूत सरकारी बैंकों की जरूरत स्पष्ट दिखाई दे रही है। देश भर में चल रही विभिन्न कल्याणकारी स्कीमों के लिए धन की व्यवस्था करने और उन्हें बांटने की जिम्मेदारी सरकारी बैंकों को सौंप दी गई है। सरकारी बैंकों के द्वारा एक ओर मुद्रा लोन, एजुकेशन लोन और किसान क्रेडिट कार्ड के जरिए बड़े पैमाने पर कर्ज बांटा जा रहा है, वहीं दूसरी ओर बैंकरों को लगातार पुराने लोन की रिकवरी भी करनी पड़ रही है। यह कोई छोटी बात नहीं है कि जनवरी 2021 तक जनधन योजना के तहत सरकारी बैंकों में 41.75 करोड़ खाते खोले जा चुके हैं।

इन बैंक खातों में जमा राशि एक लाख करोड़ रुपए के आंकड़े को पार कर गई है। कोविड-19 की चुनौतियों के बीच आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत किसान एवं गरीब परिवारों को जो प्रत्यक्ष राहत मिली है, वह जनधन खातों में देखते ही देखते जमा हो जाने के कारण छोटे हितग्राही कोविड-19 की आर्थिक चुनौतियों से राहत प्राप्त कर सके। ऐसे में भारत की नई जनहितैषी बैंकिंग जिम्मेदारी भी छोटे-छोटे बैंकों या प्राइवेट सेक्टर के बैंकों से संभव नहीं है। अतएव ऐसी जिम्मेदारी मजबूत सरकारी बैंक के द्वारा ही निभाई जा सकती है। निश्चित रूप से सरकारी बैंकों के एकीकरण से बड़े और मजबूत बैंक बनाया जाना एक अच्छी रणनीति का भाग है। यह कदम उद्योग-कारोबार, अर्थव्यवस्था और आम आदमी, सभी के परिप्रेक्ष्य में लाभप्रद होगा। इसमें बैंकों की बैलेंसशीट सुधरेगी, बैंकों की परिचालन लागत घटेगी। पूंजी उपलब्धता से बैंक ग्राहकों को सस्ती दरों पर कर्ज मुहैया करा सकेंगे। मजबूत बैंकों से धोखाधड़ी के गंभीर मामलों को रोका जा सकेगा, साथ ही फंसा कर्ज (एनपीए) भी घटेगा। बैंकों के विलय के साथ ही बैंकों के लिए नए परिचालन सुधार भी दिखाई देंगे। सरकारी बैंक मजबूत बनकर अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा का सामना करते हुए अर्थव्यवस्था को गतिशील कर सकेंगे। सरकारी बैंकों के विलय से बैंकों की ग्राहक सेवा बेहतर होगी। बैंकों में नई तकनीकी विशेषज्ञता आ सकेगी और बैंक कर्मियों में वेतन असमानता दूर होगी। चूंकि सरकारी बैंकों के निजीकरण की डगर पर सरकार पहली बार आगे बढ़ी है, अतएव सरकार के द्वारा बैंकों के निजीकरण पर स्पष्ट खाका पेश करना होगा।

निःसंदेह अपेक्षाकृत छोटे एवं मध्यम बैंकों के निजीकरण से शुरुआत करके बैंकों के निजीकरण के हालात का उपयुक्त जायजा लिया जा सकता है। यह स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि मजबूत सरकारी बैंकों के गठन की तुलना में बैंकों का निजीकरण अधिक कठिन काम है। सबसे पहले सरकार को रिजर्व बैंक के साथ विचार-मंथन करके यह निर्धारित करना होगा कि बैंकों के निजीकरण के लिए किस तरह के संभावित खरीददार होंगे। रिजर्व बैंक ऑफ  इंडिया के कार्य समूह की इस अनुशंसा पर भी ध्यान दिया जाना होगा कि बड़े कारपोरेट और औद्योगिक घरानों को भी खरीददार बनने की इजाजत दी जा सकती है। निःसंदेह बैंकों के निजीकरण के लिए सरकार को अगले वित्त वर्ष 2021-22 में शीघ्र शुरुआत करनी होगी क्योंकि पूरी प्रक्रिया में काफी समय लगेगा।

 इसके अलावा सरकार को परिचालन के कई मुद्दों पर भी विचार-मंथन करना होगा। सरकार को तय करना होगा कि चयनित सरकारी बैंक में सरकार अपनी पूरी हिस्सेदारी बेचेगी या कुछ हिस्सेदारी अपने पास रखकर प्रबंध का कार्य खरीददार को सौंपेगी? सरकार को कर्मचारियों के मसले से निपटने के लिए भी रणनीति बनाना होगी। चूंकि सरकारी बैंकों में बड़ी तादाद में कर्मचारी हैं, अतएव निजीकरण के बाद खरीददार कर्मचारियों को किस तरह रोजगार में बनाए रखेगा, इस विषय पर भी विस्तृत खाका तैयार किया जाना होगा। साथ ही सरकारी बैंकों के सफल निजीकरण के लिए सरकार के द्वारा परिचालन के मसलों को भी प्रभावी ढंग से निपटाया  जाना होगा। हम उम्मीद करें कि देश के बैंकिंग सेक्टर में एक ओर छोटे एवं मध्यम आकार के सरकारी बैंकों का निजीकरण पुनर्पूंजीकरण की राजकोषीय चुनौतियों की चिंताओं को कम करेगा, वहीं दूसरी ओर स्टेट बैंक सहित कुछ मजबूत सरकारी बैंक ग्रामीण इलाकों सहित विभिन्न सेक्टरों में सरल बैंकिंग सेवाओं के साथ सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं के लिए और अधिक विश्वसनीय वाहक भी दिखाई देंगे।


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