मार्च का महत्त्व

By: Mar 20th, 2021 12:06 am

डा. ओपी जोशी

स्वतंत्र लेखक

अंग्रेजी कैलेंडर का मार्च महीना एक ओर जहां वसंत ऋतु के आगमन का आभास देता है, तो वहीं दूसरी ओर पर्यावरण से जुड़े कई मुद्दों के दिवसों से भी भरपूर है। पर्यावरण से जुड़े वन्य-जीवन, वन, पेड़, जल, गौरेया, तितली एवं ऊर्जा बचत के दिवस इसी माह में आते हैं। 03 मार्च को विश्व वन्य दिवस से शुरू होकर अंतिम शनिवार को अर्थ-अवर से समाप्त होता है। 20, 21, 22 व 23 मार्च को क्रमशः विश्व गौरेया, वानिकी, जल एवं मौसम दिवस मनाए जाते हैं। वर्ष 2014 से 03 मार्च को विश्व वन्य जीवन दिवस मनाया जा रहा है। जंतुओं की वे प्रजातियां जिन्हें पालतू नहीं बनाया गया तथा वे पेड़-पौधे जिनकी खेती नहीं की जाती, वन्य जीवन में शामिल हैं। वन्य-जीवन प्रकृति की अमूल्य धरोहर है, अतः विलुप्त होती प्रजातियों का संरक्षण अति आवश्यक है। कई मानवीय गतिविधियों से वन्य जीवन पर खतरा मंडरा रहा है।

वर्ल्ड वाइल्ड लाईफ  फंड के अध्ययन के अनुसार 1970 से 2015 के मध्य वन्य जीवों की संख्या में लगभग 52 प्रतिशत कमी आई है। वैश्विक स्तर पर इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ व नेचर (आययूसीएन) एवं हमारे देश में राज्यों में गठित जैव विविधता मंडल वन्य जीवन संरक्षण हेतु प्रयासरत हैं। वर्ष 1977 में संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा ने 08 मार्च को विश्व महिला दिवस मनाने का प्रस्ताव स्वीकृत किया था। कई लेखकों, कवियों तथा दर्शनिकों ने महिलाओं एवं प्रकृति में काफी समानता बतलाई है। किसी कवि ने तो यहां तक लिखा है कि प्रकृति अपने स्वभाव में स्त्री तथा स्त्री अपने स्वभाव में प्रकृति समान होती है।

वर्तमान समय में प्रकृति एवं स्त्रियों का दोहन तथा शोषण समान रूप से हो रहा है। इस दिवस को मनाने की मूल भावना यही है कि महिला सशक्त बने एवं समाज के हर क्षेत्र में उसकी भागीदारी सुनिश्चित हो। पिछले एक-दो वर्षों में 14 मार्च को विश्व तितली दिवस मनाने के भी समाचार पढ़ने में आए हैं। वर्ष 2019 में लखनऊ के कई स्कूलों में विश्व तितली-गौरेया सप्ताह मनाया गया। पटना के चिडि़याघर में भी बच्चों के साथ तितली दिवस का आयोजन कर प्रतियोगिताएं की थीं। फूलों पर मंडराकर मधुपान करती रंग-बिरंगी तितलियां सभी को आकर्षित करती हैं। विश्व में 20 हजार प्रकार की तितलियां बताई गई हैं। इनका जीवनकाल काफी छोटा होता है। मधुमक्खियों की तरह ये भी पौधों के परागण की क्रिया में मददगार होती हैं। हमारे देश में पिछले वर्ष नागरिकों ने ऑनलाइन वोटिंग कर आरेंज ओकलिफ तितली का राष्ट्रीय तितली हेतु चयन किया था। फ्रांस की इकोसीस एक्शन फाउंडेशन तथा हमारे देश के हैदराबाद में कार्यरत नेचर फार-एवर सोसायटी के प्रयासों से 20 मार्च को विश्व गौरेया दिवस मनाया जाने लगा है। गौरेया मनुष्य के सबसे नजदीक का पक्षी है, इसीलिए इसे अंग्रेजी में हाउस-स्पेरो कहते हैं। घास के बीज, इल्ली एवं कीट इसका प्रमुख भोजन हैं। पक्के भवन, सड़कें, फुटपाथ, प्रदूषण, मोबाइल टॉवर से पैदा विकिरण, कीटनाशियों का उपयोग, घरों के आसपास बागड़ तथा भोजन के अभाव से गौरेया की संख्या घट रही है, परंतु अभी यह संकटग्रस्त नहीं है। वर्ष 1971 के नवंबर में खाद्य एवं कृषि आयोग की सिफारिश पर 21 मार्च को विश्व वानिकी दिवस मनाया जाता है। इसका प्रमुख उद्देश्य है लोगों में वन तथा पेड़ों के महत्व की जागरूकता पैदा करना। पृथ्वी के लगभग आधे भू-भाग पर फैले वनों से 1.6 अरब लोगों की आजीविका जुड़ी है। वनों में 80 प्रतिशत जैव-विविधता पाई जाती है। ज्यादा जंगल वाले दुनिया के 10 देशों में हमारा देश भी शामिल है। कई कारणों से विश्व में वनों का क्षेत्र लगातार घट रहा है। एक गणना के अनुसार 15 अरब पेड़ दुनिया में प्रतिवर्ष काटे जाते हैं। मानव के सुखद भविष्य हेतु वन एवं पेड़ों का संरक्षण जरूरी है। वर्ष 1992 में ब्राजील की राजधानी रियो-डी-जिनेरो में आयोजित पृथ्वी शिखर सम्मेलन में 22 मार्च को विश्व जल दिवस मनाने पर सहमति बनी थी। इसका उद्देश्य है कि लोगों को साफ  पेयजल उपलब्ध कराया जाए एवं जल संरक्षण के प्रति जागरूकता पैदा हो। जल हमारा सबसे मूल्यवान खजाना है, परंतु इसकी बहुतायत के कारण हमें यह मूल्यवान नहीं लगता है। पृथ्वी पर उपयोगी जल केवल 03 प्रतिशत है एवं इसमें भी 02 प्रतिशत धु्रवों पर बर्फ  के रूप में एवं केवल 01 प्रतिशत सतही तथा भूजल है। दुनिया भर में जल की उपलब्धता घट रही है तथा प्रदूषण बढ़ रहा है।

अतः जल जीवन के लिए बचाना जरूरी है। सन् 1950 में हुई विश्व मौसम संगठन की स्थापना के बाद से 23 मार्च विश्व मौसम दिवस के रूप में मनाया जा रहा है। मौसम पर्यावरण का एक महत्वपूर्ण अंग है। मानव-जनित कई कारणों से मौसम में बदलाव आ गया है। कुछ वैज्ञानिक इसे बदलाव न मानकर इसे एक्सट्रीम-वेदर मानते हैं। मौसम का बदलाव कृषि-पैदावार एवं मानव स्वास्थ्य के लिए खतरनाक बताया गया है। 26 मार्च वैसे तो कोई घोषित दिवस नहीं है, परंतु इस दिन विश्व प्रसिद्ध पेड़ों को बचाने के चिपको-आंदोलन की शुरुआत हुई थी। हाल ही में 07 फरवरी को उत्तराखंड के चमोली में ग्लेशियर के फटने से सर्वाधिक प्रभावित गांव रेणी की महिला श्रीमती गौरादेवी ने 26 मार्च 1974 की रात को 27 अन्य महिलाओं के साथ पेड़ों से लिपटकर उन्हें कटने से बचा लिया था। सुंदरलाल बहुगुणा, चंडीप्रसाद भट्ट एवं कई अन्य लोगों ने चिपको आंदोलन को विश्व प्रसिद्ध बना दिया था। राज्य सरकार की जांच समिति ने भी गौरादेवी के पेड़ बचाने के कार्य को सही बताया था। वर्तमान में बिजली ऊर्जा का प्रमुख स्त्रोत है। कोयला जलाकर बिजली पैदा करने से काफी वायुप्रदूषण होता है। बिजली की बचत हेतु मार्च का अंतिम शनिवार (इस वर्ष 27 मार्च) को अर्थ-अवर मनाया जाता है। इस दिन रात्रि को 8.30 से 9.30 तक अनावश्यक बिजली को बंद रखा जाता है। सिडनी में वर्ष 2007 में प्रारंभ अर्थ-अवर मनाने का अभियान डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के प्रयासों से दुनिया के लगभग 200 देशों में मनाया जाने लगा है। एक अनुमान के अनुसार छोटे-बड़े शहरों में एक घंटे में 5 से 10 लाख यूनिट बिजली बचाई जा सकती है। मार्च महीने के पर्यावरण से जुडे़ मुद्दों के दिवसों को हम ईमानदारी से मनाकर पर्यावरण सुरक्षा में अपना योगदान दे सकते हैं।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App