धर्मशाला नगर निगम के 5 साल

By: Mar 24th, 2021 12:08 am

देश के चुनिंदा शहरों में शुमार धर्मशाला का नगर परिषद से नगर निगम और उससे स्मार्ट सिटी बनने के बाद नया जन्म हुआ है। 1848 में अस्तित्त्व में आया धर्मशाला कभी अंग्रेजों की ग्रीष्मकालीन राजधानी बनने के करीब था, पर 1905 के भूकंप ने पूरी योजना बदल दी। इस शहर में जो सालों से नहीं हुआ, वह अब होने की उम्मीद है। इसमें सबसे बड़ी जिम्मेदारी नगर निगम की है। नगर निगम धर्मशाला में पांच साल में बहुत काम हुआ है और बहुत सा होना बाकि है। दखल में नगर निगम धर्मशाला की संभावनाओं और चुनौतियों के बारे में बता रहे हैं…

पवन कुमार शर्मा, नरेन कुमार, विनोद कुमार और अनु शर्मा

भारत जब ब्रिटिशकालीन हुकूमत की जकड़ में आ रहा था और इसका दंश झेल रहा था, उसी दौरान पंजाब राज्य के तहत आने वाले पहाड़ी क्षेत्र को जिला कांगड़ा के रूप में पहचाना जाता था। ब्रिटिश काल के दौरान 1848 में अंग्रेज धर्मशाला आए और देश की ग्रीष्मकालीन राजधानी भी बनाने की भी सोची। साथ ही 1960 में गोरखा रेजिमेंट बसाने के साथ ही धर्मशाला शहर आस्तित्त्व में आया। इस दौरान छावनी क्षेत्र में रूप में टिहरा लाइन फिर डिपो बाजार धर्मशाला में बहुत बड़ा शहर बसने लगा। इसके बाद ब्रिटिशकाल के दौरान 1867 में नगर परिषद धर्मशाला की नींव रखी गई। इसके बाद ब्रिटिश हुकूमत से आजादी के बाद भी सात दशकों तक नगर परिषद के रूप में ही कार्य करता रहा। पूरे 148 वर्षों के बाद वर्ष 2015 में धर्मशाला को नगर निगम बनाया गया। आठ अप्रैल, 2016 को प्रदेश की दूसरी व आजाद भारत की पहली नगर निगम के रूप में धर्मशाला के चुनाव संपन्न हुए, वह शपथ ग्रहण के साथ ही एमसी का कार्यकाल शुरू हो गया।

नगर परिषद धर्मशाला पिछले 150 वर्षों से चल रही थी, जिसे निगम के रूप में परिवर्तित किए जाने की कई वर्षों से दबे स्वर में मांग उठना शुरू हो गया था, लेकिन शहर के साथ लगती पंचायतों व राजनीतिक दूरदृष्टि न होने के कारण नगर परिषद को विकसित करके नगर निगम बनाया जा सकें। इसके बाद वर्ष 2015 में धर्मशाला शहर को विकसित किए जाने के लिए आजाद भारत में हिमाचल की पहली नगर निगम अस्तित्त्व में आई। इसके लिए जिला कांगड़ा के मुख्यालय धर्मशाला के साथ लगती सात पंचायतों को नगर परिषद में शामिल करके म्युनिसिपल कॉरपोरेशन धर्मशाला की नींव रखी गई। इन पंचायतों में एशिया की सबसे बड़ी पंचायत मंत पंचायत, एशिया की कभी सबसे अमीर पंचायत रही खनियारा, सिद्धपुर, सकोह, जटेहड़, दाड़ी, गबली दाड़ व बड़ोल पंचायत को शामिल करके नगर निगम धर्मशाला को बसाया गया। नगर परिषद धर्मशाला के तहत 11 वार्ड के तहत 22 हजार के करीब जनसंख्या थी, जो कि नगर निगम बनाए जाने के बाद अब 54 हजार जनंसख्या के साथ चल रहा है।

कम नहीं थी चुनौतियां

नगर निगम धर्मशाला के समक्ष मुख्य चुनौतियां सबसे पहले शामिल पंचायतों को शहरीकरण में किए जाने के लिए तैयार करने की थी। हालांकि कुछेक पंचायतों में हल्का विरोध भी हुआ। बावजूद इसके समस्त क्षेत्र को सुचारू रूप से एमसी धर्मशाला में शामिल किया गया। इसके बाद नगर निगम धर्मशाला में सबसे बड़ी चुनौती यह रही कि पंचायतों से शहरी क्षेत्र में शामिल किए गए लोगों को टैक्स को लेकर बड़ी चिंता सताने लगी। इसे देखते हुए प्रदेश सरकार ने शुरुआती दौर में दो वर्ष तक कोई भी टैक्स न लगाने की अनुमति प्रदान कर दी। इसके बाद भी पंचायत से शामिल लोगों को अब तक शहरों के तर्ज पर सुविधा न मिलने पर पांच साल तक नए क्षेत्र में किसी भी प्रकार के टैक्स की कोई वसूली नहीं की गई, तो ऐसे में निगम के समक्ष भी यह बड़ी चुनौती रही कि नए एरिया में विकास गति को तेज़ कर सुविधाएं प्रदान की जाएं।

अभी भी सुविधाएं पूरी नहीं मिल रही

शहरी क्षेत्र में स्ट्रीट लाइट व सीवरेज सहित कई सुविधा उपलब्ध है, लेकिन नए क्षेत्रों में पांच वर्ष बीत जाने के बाद भी ये सुविधएं सुचारू रूप से शुरू नहीं की जा सकी हैं। हालांकि कई क्षेत्रों में स्ट्रीट लाइट की सुविधा मिलने शुरू हो गई है।

छोटे-छोटे काम को बार-बार दौड़ो दफ्तर

नगर निगम धर्मशाला बनने के बाद पंचायत से एमसी में शामिल हुए लोगों को बहुत परेशानियां भी झेलनी पड़ी। पंचायत स्तर पर होने वाले दस्तावेजों सहित अन्य प्रकार के कार्य आसानी से अपने घर के पास ही हो जाते थे, लेकिन नगर निगम बनने के बाद लोगों को छोटे-छोटे दस्तावेजों के लिए ही कई चक्कर कार्यालय के काटने पड़ रहे हैं। इतना ही नहीं, जन्म व मृत्यु प्रमाण प्रपत्र के लिए ही कई बार कार्यालय में पहुंचना पड़ता है। हालांकि निगम द्वारा ऑनलाइन व्यवस्था किए जाने की भी बात की जाती है, लेकिन धरातल स्तर पर वह कहीं भी नज़र नहीं आती।

चुनौतियां बहुत हैं

नगर निगम धर्मशाला के समक्ष बड़ी चुनौती और समस्या कूड़े-कचरे को लेकर रही, जो अभी भी बनी हुई है। नगर परिषद में ही कूड़े प्रबंधन को लेकर बहुत अधिक दिक्कतें रही। नए क्षेत्र को शामिल किए जाने के बाद भी कूड़ा-कचरा प्रबंधन करने की बड़ी समस्या रही। हालांकि शहर में अंडरग्राउंड डस्टबिन भी स्थापित किए गए हैं। साथ ही अब घर-घर से कूड़ा-कचरा एकत्रित किए जाने की प्रक्रिया भी शुरू हो गई है, लेकिन इसी बीच अब भी सबसे बड़ी समस्या डंपिंग साइट को लेकर बनी हुई है। सुधेड़ पंयायत की डंपिगं साइट में कूड़े-कचरे को फेंका जाता है। सही प्रकार से निष्पादन न किए जाने से कूड़े का बहुत बड़ा ढेर लग गया है, जिससे गंदी बदबू भी स्मार्ट पर्यटक शहर धर्मशाला को तंग करती रहती है।स्टाफ की कमी को लेकर भी रही।

एमसी क्षेत्र बन जाने से 54 हजार की जनंसख्या शामिल हो गई, लेकिन एमसी के तहत स्टाफ की नियुक्ति अब तक धर्मशाला में नहीं की गई है, जिसका खामियाजा हर दिन आम जनता को भुगतना पड़ता है। निगम व सरकार की इस मामले लगातार फजीहत होती रहती है। निगम के पास पर्याप्त स्टाफ न होना व लचर व्यवस्था के कारण छोटे-छोटे दस्तावेज मिलने में ही कई दिन लग जाते हैं। इसके साथ ही नक्शे व एनओसी के लिए भी नगर निगम धर्मशाला कार्यालय के सैकड़ों चक्कर लगाकर आम लोगों को परेशान होना पड़ता है, जबकि इस विषय में उचित कदम उठाने में सरकार, निगम प्रतिनिधि व अधिकारी पिछले पांच वर्षों में कामयाब नहीं हो पाए हैं।

… तो अंग्रेजों की ग्रीष्मकालीन राजधानी होती धर्मशाला

कटोच वंश द्वारा करीब दो सौ वर्षों तक शासित धर्मशाला में 1848 में अंग्रेज आए थे। ब्रिटिशों की सैन्य छावनी के रूप में धर्मशाला अस्तित्त्व में आया था। उस समय दिल्ली में काम करने वाले अंग्रेजों के लिए धर्मशाला एक लोकप्रिय हिल स्टेशन था। अंग्रेजों ने धर्मशाला को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने की पूरी तैयारी कर ली थी, लेकिन 1905 के भूकंप में करीब 20 हजार से अधिक लोग मारे गए थे। तब शिमला को ग्रीष्मकालीन राजधानी बना दिया गया था। गोरखा 1860 में धर्मशाला आए थे, जो मूल रूप से नेपाली सैनिक थे, जिन्हें अंग्रेजों ने युद्ध में लड़ने के लिए भर्ती किया था। युद्ध के दौरान उनके वीरतापूर्वक कार्य को आज भी याद किया जाता है। धर्मशाला में कई जगहों को उनके नाम से सम्मानित किया जाता है।

इसमें टिहरा लाइन एक प्रमुख स्थान है। धर्मशाला की 21वीं गोरखा रेजिमेंट ने द्वितीय विश्व युद्ध में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। भारत के आठवें वायसराय ‘लॉर्ड एल्गिन’ की मृत्यु 1863 में यहां हुई थी और उन्हें यहां की एक प्रसिद्ध चर्च सेंट जोंस के पास दफनाया गया था। धर्मशाला को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान तब मिली, जब धर्मगुरु दलाईलामा 1959 में अपने 85 हजार अनुयायियों के साथ तिब्बत से निवार्सित होकर यहां पहुंचे थे। उस समय पंडित जवाहर लाल नेहरू ने उन्हें शहर के उपरी हिस्से यानि मकलोडगंज में अपनी निवार्सित तिब्बत सरकार बसाने की अनुमति दी थी। 1960 में नामग्याल बौद्ध मठ की स्थापना की गई। धर्मशाला लंबे समय से हिंदु और बौद्ध धर्म से जुड़कर दोनों धर्मों के लिए एक महत्त्वपूर्ण स्थल रहा है। 1970 में धर्मगुरु दलाईलामा ने तिब्बतन वर्क्स एंड अर्काइव नाम से एक लाइब्रेरी खोली, जिसे दुनिया भर में तिब्बतियों का एक महत्त्वपूर्ण संस्थान माना जाता है। यहां 80 हजार से भी अधिक मैन्युस्क्रिप्ट उपलब्ध हैं।

प्रशासनिक इतिहास

धर्मशाला वर्ष 1848 में कांगड़ा स्थित सैन्य छावनी के रूप में अस्तित्त्व में आया। वर्ष 1855 मेें धर्मशाला को मुख्यालय घोषित किया गया। लोगों को सुविधाएं उपलब्ध करवाने के उद्देश्य से इसे नगर परिषद बनाने का विचार आया। पांच मई, 1867 को धर्मशाला नगर परिषद अस्तित्त्व में आई। उस समय बनी नगर परिषद की पहली बैठक भी  छह मई, 1867 को तत्कालीन जिलाधीश सीएफ एल्फिनस्टोन की अध्यक्षता में हुई थी। नगर परिषद बनने के बाद यहां सुविधाओं में इजाफा हुआ। 1867 को ही धर्मशाला में बिजली मिलना भी शुरू हो गई। इसके साथ कार्यालयों के विकास के अतिरिक्त व्यापार व वाणिज्य, सार्वजनिक संस्थान, पर्यटन सुविधाओं तथा परिवहन गतिविधियों में भी उन्नति हुई। 1926 और 1947 के बीच यहां इंटर कालेज सहित महाविद्यालय खुला, वहीं वर्ष 1935 में यहां पहला सिनेमा हॉल खुला। बढ़ते समय के साथ-साथ साहित्य और कला के क्षेत्र में भी यह आगे बढ़ा।

नगर परिषद से नगर निगम का सफर

धर्मशाला को 1867 में नगर परिषद बनाया गया। उसके बाद करीब डेढ सौ वर्षों तक धर्मशाला नगर परिषद रहा। समय-समय पर धर्मशाला नगर परिषद को नगर निगम बनाने की आवाजें उठती रहीं। इन्हीं मांगों के चलते 2015 में धर्मशाला को नगर निगम का दर्जा प्रदान किया गया। अभी नगर निगम धर्मशाला का एक कार्यकाल पूरा हुआ है।

अब पालने से बाहर निकल कदम बढ़ा रहा नगर निगम

नगर निगम धर्मशाला के पांच वर्ष कुछ खट्टे-मीठे अनुभवों वाला रहा है। शहर के आम लोगों की जुबान से भी यह बात निकली है कि इन पांच साल में एमसी धर्मशाला नए-नए बच्चे जैसा था, जो पालने में रहा है और इसने अब शायद कदम उठाना सीख लिया है, लेकिन आगामी पांच वर्ष बहुत महत्त्वपूर्ण होने वाले हैं, जिसमें कैसे नगर निगम धर्मशाला अपने कदमों में चलकर आगे बढ़ पाती, यह भी देखना अहम होगा। फिलहाल इस बार के पांच साल एमसी धर्मशाला के कुछ उथल-पुतल में ही बीतते हुए नज़र आए हैं। हालांकि आजादी के बाद प्रदेश के पहले नगर निगम धर्मशाला में कई कार्य हुए भी हैं, लेकिन बहुत से कामकाज होना अभी बाकी हैं। इतना ही नहीं, एमसी धर्मशाला अपनी व्यवस्थाएं बनाने में भी इतनी कामयाब नहीं हो पाई है।

नक्शे करते हैं परेशान

एमसी धर्मशाला के पांच वर्षों की अगर बात की जाए, तो नगर निगम के कार्यालय को लेकर ही पांच वर्षों में उचित काम नहीं हो पाया है। कमांड कंट्रोल सेंटर बनाकर वहीं कार्यालय बनाए जाने का प्रोपोजल शुरुआती दौर में बनाया गया था, लेकिन शिलान्यास होने तक ही फाइलें घूमती रही, उससे आगे मामला कभी बढ़ ही नहीं पाया है। इतना ही नहीं निगम हाउस चलाने के लिए उचित मिटिंग हॉल ही पांच वर्षों में नहीं बन पाया। मात्र गुजारा करने वाले कार्यालय में ही एमसी का कामकाज पांच दिन तक चलाया गया। वहीं, नगर निगम धर्मशाला में अधिकारियों व कर्मचारियों का टोटा भी पांच साल में पूरा ही नहीं हो पाया। ऐसे में अपने छोटे से छोटे दस्तावेज को लेकर कार्यालय में पहुंचने वाले लोगों को बहुत अधिक परेशानियां भी हर दिन झेलनी पड़ी, जिसमें जन्म व मृत्यु प्रमाण प्रपत्र सहित अन्य दस्तावेजों में भी परेशानियां रहीं। इसके अलावा नक्शों को लेकर सबसे अधिक दिक्कतें आज के समय में लोग झेल रहे हैं।

नगर निगम धर्मशाला के आय के साधन

म्युनिसिपल कॉरपोरेशन धर्मशाला टैक्स, रेंट सहित विभिन्न प्रकार के संसाधनों से निगम आय जुटाती है, लेकिन कई टैक्स व सैस ऐसे हैं, जिन्हें निगम इन पांच वर्षोें में लागू ही नहीं कर पाई है। सबसे पहले निगम की आय की बात करते हैं, इसमें प्रापॅर्टी टैक्स, रेंटल इन्कम, दस्तावेजों, नक्शों, ग्रीन फीस सहित बिल्डिंग प्लान से, एनओसी, टावर व केबल बिछाने, तहबाजारी, स्वच्छता फीस, टैक्स, इन्वेस्टमेंट से इन्कम के अलावा केंद्र व राज्य सरकार व स्मार्ट सिटी के तहत मिलने वाली ग्रांट से नगर निगम धर्मशाला की आय व बजट का प्रबंध हो रहा है। नगर निगम धर्मशाला को अपनी आय बढ़ाने के लिए कई प्रकार के टैक्स व सैस लगाने अभी अधर में लटके हुए हैं। इसमें मर्ज एरिया में हाउस व प्रॉपर्टी टैक्स, एंटरटेनमेंट टैक्स, ग्रीन सैस, वाहनों के धर्मशाला में प्रवेश पर टैक्स, शराब की हर बोतल पर सैस सहित कई प्रकार के टैक्स लगाने के प्रोपोजल सरकार के पास लंबित हैं। इसके अलावा एमसी धर्मशाला को अपनी आय बढ़ाने के लिए पार्किंग सहित पर्यटन की विभिन्न अवसरों को देखते हुए उनके तहत भी आय के साधन बढ़ाने के लिए कार्य करना होगा।

नगर निगम बनने से सुधरे कई हालात

नगर निगम धर्मशाला के बनने से 17 वार्ड में कई बेहतरीन कार्य भी हुए, जिसमें सड़कों, चौंक व गलियों की दशा सुधारने के लिए भी काम किया गया। शहर की कई सड़कों व चौराहों को कंकरीटयुक्त बनाया गया। इसके साथ ही कई टाइलिकरण भी सड़कों का किया गया। वहीं शहर में कई स्थानों पर ओपन एयर जिम, पार्क व पार्किंग का निर्माण भी किया गया। बड़े स्तर पर अच्छे पार्क, पार्किंग व कई स्थानों पर अब भी सड़क की उचित सुविधा न होना और गड्ढों भरी सड़कें होना आम समस्या बनी हुई है। वहीं, एलईडी स्ट्रीट लाइट्स भी लगाई गई। स्मार्ट सिटी के तहत भी कई क्षेत्रों में स्ट्रीट लाइट स्थापित की गई, लेकिन पंचायतों से नगर निगम में शामिल हुए कई क्षेत्रों में अब भी स्ट्रीट लाइट्स की समस्या लोगों को सता रही है।

स्मार्ट सिटी बनने के बाद धर्मशाला में क्या हुआ

हिमाचल प्रदेश में देश की 125 शहरों को सबसे पहले चुने जाने पर धर्मशाला को भी स्मार्ट सिटी के रूप में विकसित किए जाने के लिए चुना गया था। स्मार्ट सिटी को लेकर जनसभागिता शुरुआती दौर में नज़र आई थी, लेकिन उसके बाद स्मार्ट सिटी का कांसेप्ट हवा-हवाई तरीके से शहर में काम करता हुआ नज़र आता है। आम लोगों को धरातल पर स्मार्ट सिटी के नाम पर कुछ खास काम होता नज़र नहीं आता है, लेकिन शहर को विकसित किए जाने के लिए स्मार्ट सिटी के तहत कई कार्य किए गए हैं। साथ ही विभिन्न योजनाओं को स्मार्ट सिटी में कन्वर्ट किए जाने से भी कई महत्त्वपूर्ण काम हुए हैं। स्मार्ट सिटी धर्मशाला के तहत विभिन्न विकास कार्य किए जाने के लिए 2106 करोड़ का बजट प्रोपोज्ड किया गया है, जिन्हें धीरे-धीरे धरातल पर उतारा जाना है। स्मार्ट सिटी में सबसे बड़ी पेरशानी यह रही है कि पहाड़ी राज्य होने पर 90ः10 के अनुपात पर हमेशा से बजट प्रदान करने की मांग होती रही है, लेकिन केंद्र की ओर से 50ः50 की तर्ज पर ही बजट उपलब्ध करवाने की बात कही है। ऐसे में प्रदेश सरकार अपने हिस्से का बजट ही जमा नहीं करवा पाती है, जो कि एक बड़ी समस्या व सवाल खड़ा करती है।

यहां खर्च हुआ बजट

स्मार्ट सिटी धर्मशाला के तहत पिछले तीन वर्षों में विभिन्न विकास कार्य किए गए हैं, जिसमें 2018-19 में 27 करोड़ 34 लाख, 2019-20 में 38 करोड़ 81 लाख व 2020-21 में 86 करोड़ 82 लाख का बजट खर्च किया जा चुका है। अंडरग्रांउड डस्टबिन, प्रॉपटी टैक्स मैपिंग, स्मार्ट क्लासरूम, सोलर पावर प्लांट, सॉलिड वेस्ट मैनजमेंट, ई-नगरपालिका, मोक्षधाम, पार्क व खेल मैदान, पार्किंग, पब्लिक ई-टायलट सहित अन्य विभिन्न विभागों में कन्वर्जन से भी योजनाओं पर काम किया गया है। आगामी समय में स्मार्ट सिटी लिमिटेड के तहत बस शेल्टर, पार्किंग, मांउटनीयरिंग इंस्टीच्यूट, फॉरेस्ट ईको टूरिज़्म व एचआरटीसी ई-बस को लेकर भी कार्य होगा।

बहुत काम हुए, बहुत होने को हैं

एमसी धर्मशाला के बुद्धिजीवि एवं शिक्षाविद डा. विजय कुमार शर्मा ने कहा कि आजादी के बाद प्रदेश में पहला नगर निगम बनाया गया है। बहुत कुछ सुधार पहली एमसी में देखने को मिले हैं। हालांकि बहुत से ऐसे काम हैं, जो करने को रह गए हैं। ऐसे में भविष्य में नगर निगम धर्मशाला को अपनी सही जिम्मेदारी समझते हुए शहर को व्यवस्थित तरीके से विकास करवाए जाने की जरूरत है, जिससे शहर की पूरे प्रदेश व देश में अलग से मॉडल व छवि प्रस्तुत हो सके।

दफ्तर में उचित व्यवस्था करें

धर्मशाला के प्रसिद्ध कारोबारी एवं समाजसेवी सुमन गुप्ता का कहना है कि नगर निगम बहुत से काम करने में सफल रहा है, लेकिन बेहतरीन व्यवस्था बनाने व शहर का समुचित विकास किए जाने की अति आवश्यकता है। एमसी धर्मशाला को अपने कार्यालय को उचित व्यवस्थित करने के साथ ही आम लोगों की हर समस्याओं पर भविष्य में बेहतर काम करने की आवश्यकता है।

पर्यटकों को मिले बेहतर सुविधा

एमसी धर्मशाला के निवासी व वीरभूमि हिमाचल के रिटायर्ड कर्नल वाईएस राणा का कहना है कि धर्मशाला एक अंतरराष्ट्रीय शहर है, ऐसे में उसे उसी तरीके से विकसित किए जाने की जरूरत है। नगर निगम का भविष्य तभी उज्ज्वल रह सकता है, जब यहां आने वाले पर्यटकों को बेहतर सुविधा मिल पाएगी। इसके साथ ही शहर की आम लोगों की समस्याओं व कार्याें को लेकर भी भविष्य में पार्षद व नगर निगम को बेहतर कार्य किए जाने की जरूरत है।

शहर को मात्र कंकरीट जंगल न बनाएं

एमसी धर्मशाला के बुद्धिजीवि एवं समाजसेवी रोशन लाल नरूला का कहना है कि निगम ने इन पांच वर्षों में पालने के बाद अब चलना शुरू कर दिया है, लेकिन भविष्य में पढ़े-लिखे व मात्र अपना हित सोचने की बजाय समाज के हित में सोचने वाले विजन रखने वाले पार्षदों के चुने जाने व अच्छी निगम बनने से सूचारू रूप से चल पाए, तो शहर का भविष्य संवरेगा। शहर को मात्र संकरा कंकरीट जंगल बनाने की बजाय सभी प्रकार की उचित व्यवस्थाओं के साथ स्मार्ट तरीके से विकसित किए जाने की जरूरत है।

पाइप लाइन में बहुत कुछ है, सरकार का साथ चाहिए

देवेंद्र जग्गी

मेयर, नगर निगम

नगर परिषद से निगम तक कौन सी नई मंजिलें तय कीं?

देवेंद्र जग्गीः नगर परिषद से नगर निगम के बीच धर्मशाला ने कई मंजिलें तय की हैं। मात्र 11000 की आबादी वाला नगर परिषद धर्मशाला अब करीब 54300 की आबादी वाला नगर निगम धर्मशाला बन गया है। इस सफर में धर्मशाला की दर्जनों पंचायतें नगर निगम में शामिल हुई, जो सटी तो शहर के साथ थी, लेकिन हालात ग्रामीण थे। नगर निगम में शामिल यह क्षेत्र मर्ज एरिया कहलाते हैं। पंचायतों से नगर निगम में शामिल होने के बाद इन मर्ज एरिया में स्ट्रीट लाइट्स, रास्ते पक्के करने,  महिलाओ-बच्चों के लिए ओपन एयर जिम सहित कई नए पहलू इसमें जुड़े। इतना ही नहीं पांच साल पहले बने नगर निगम धर्मशाला में धीरे-धीरे लोगों को ऑनलाइन डेथ, बर्थ, एनओसी, लेने और नक्शे बनाने के लिए ऑनलाइन अप्लाई करने की भी सुविधा मिलने लगी है। कई चुनौतियों को पार करते हुए नगर निगम धर्मशाला अब लोगों को सुविधाएं देने वाला निगम बनने जा रहा है।

किन किन चुनौतियों का सामना करना पड़ा?

देवेंद्र जग्गीः नगर परिषद से नगर निगम बने धर्मशाला को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। परिषद से निगम बनने पर आवश्यकता अनुसार स्टाफ न होने के कारण उन्हें कई तरह की दिक्कतें पेश आई, जो आज भी वैसे ही हैं। सरकार ने भेदभाव किया और स्टाफ ही नहीं मिला। स्किल्ड स्टाफ की कमी के चलते कई योजनाएं समय पर लागू करना मुश्किल हो जाता है, लेकिन चुनौतियों के बावजूद धीरे-धीरे निगम अपने लक्ष्य की ओर बढ़ रहा है। लोग पहले खुले स्थानों, नालों में कचरा फेंकते थे। उन्हें कचरा डस्टबिन में डालने और डोर-टू-डोर कलेक्शन के लिए व्यावहारिक रूप से बदलना भी निगम के सामने बड़ी चुनौती थी। जिस दिशा में भी निगम को बड़ी सफलता मिली है। करीब 70 फीसदी लोग अब इसे अपनाने लगे हैं।

निगम किन-किन बातों और जरूरतों को अब भी पूरा नहीं कर पा रहा है ?

देवेंद्र जग्गीः नगर निगम अभी भी कई जरूरतें पूरा नहीं कर पा रहा है, जो अभी तक पाइपलाइन में हैं। इनमें लोकल ट्रांसपोर्ट की सुविधा देना, मर्ज एरिया में सीवरेज की सुविधा, पीने का पानी 24 घंटे उपलब्ध करवाना। 100 फीसदी सुविधा, लोकल ट्रांसपोर्टेशन के माध्यम से घर से दफ्तर तक ले जाने के लिए इलेक्ट्रिक बस से चलाए जाने का प्रावधान किया जा रहा है, जो जल्द शुरू होने वाली है। 24 घंटे पानी मिले, इस बात को सुनिश्चित करने के लिए भी अभी प्रयास किए जा रहे हैं।

छोटे-छोटे रास्ते जहां लोगों को चलना मुश्किल होता था, वहां भी अब टाइलें डिलवाकर उन रास्तों को बेहतर बनाने का प्रयास चल रहा है। शहर में स्ट्रीट लाइट्स लगने से लोगों को सुविधाएं मिल रही हैं और लोग अपने गंतव्य तक पैदल चलने में भी सुविधा महसूस कर रहे हैं। आवारा कुत्तों पर काम होना भी अभी बाकी है। बहुत से काम ऐसे हैं, जो अभी पाइपलाइन में हैं, सरकार से सहयोग मिले, तो जल्द धरातल पर उतर आएगा।

सड़क-पार्किंग…बहुत कुछ चाहिए

नगर निगम धर्मशाला में अगर विकास की बात की जाए, तो बहुत से कार्य हो पाए हैं, लेकिन अभी भी बहुत कुछ करने की जरूरत है। नगर निगम धर्मशाला के तहत सड़कें, पार्किंग, पार्क, स्ट्रीट लाइट, रेनशेल्टर, सुलभ शौचालय, कूड़े-कचरा उठाने की उचित व्यवस्था, घर-घर से कूड़ा उठाने का प्रबंध, अंडरग्रांउड डस्टबिन, स्मार्ट स्ट्रीट, टाइलयुक्त रास्ते, फुटपाथ सहित अन्य विकास कार्य करवाए गए हैं। साथ ही स्मार्ट सिटी लिमिटेड के तहत भी धर्मशाला शहर में विभिन्न कार्य किए गए हैं। यहां अभी सही तरीके से सड़कें नहीं बन पाईं। शहर को व्यवस्थित तरीके से अभी तक बसाया नहीं जा रहा है, मात्र कंकरीट व संकरी सड़कों का जाल बनकर शहर रह गया है। ऐसे में शहर को दुरुस्त करके एंबुलेंस व फायर ब्रिगेड योग्य सड़कें बनाए जाने की अति आवश्यकता है। इसके अलावा धर्मशाला को अंतरराष्ट्रीय पर्यटन नगरी के रूप में भी पहचाना जाता है, जबकि शहर में पार्किंग की कोई उचित व्यवस्था अब तक नहीं हो पाई है।

इसमें बड़े स्तर पर पार्किंग होना भी बड़ी मांग है। वहीं, एमसी में कई क्षेत्रों में उचित पानी व बिजली को लेकर भी सवाल उठते हैं, उसे भी दुरुस्त किए जाने की जरूरत हैं। इसके अलावा सबसे महत्त्वपूर्ण विषय नगर निगम धर्मशाला के कार्यालय व स्टाफ की नियुक्ति की है, जिसमें उचित स्टाफ होने पर वहां आम लोगों के सभी काम बार-बार चक्कर लगाने की बजाय निर्धारित समय पर हो सकें, यह होना भी अति आवश्यक है। साथ ही डंपिंग साइट की उचित व्यवस्था व कई स्थानों पर भूमिगत कूड़ेदान के टूटने व बाहर ही कूड़ा-कचरा फेंकने की समस्या हल करना भी बड़ा कार्य है। नगर निगम के सभी क्षेत्रों में पार्क, ओपन एयर जिम सहित परिवहन की उचित व्यवस्था भी अब तक लोगों को नहीं मिल पाई है।

यहां भी नहीं हुआ काम

निगम के बहुत से क्षेत्रों में सीवरेज की सुविधा अब तक नहीं मिल पाई है। वहीं, जिन क्षेत्रों में सीवरेज सुविधा है, वहां भी हालत अति दयनीय बनी हुई है। बेतरतीब तरीके से हो रहा अवैध निर्माण, जिसे रोकने में भी अभी तक एमसी कहीं गायब रहता है, उसे लेकर भी कोई उचित कार्य अब तक नहीं हो पाया है।

नगर निगम और स्मार्ट सिटी दो अलग कांस्पेट

नगर निमग धर्मशाला व स्मार्ट सिटी धर्मशाला दोनों ही एक सिक्के के अलग-अलग पहलू हैं। एमसी धर्मशाला व स्मार्ट सिटी लिमिटेड शहर को विकसित किए जाने को कार्य कर रहे हैं। इसमें निगम के मर्ज एरिया को स्मार्ट सिटी में शामिल नहीं किया गया था, लेकिन अब कुछ कार्यों को वहां किए जाने की भी सहमति सरकार से मिल चुकी है, लेकिन ये दोनों ही अलग-अलग एजेंसियां हैं।


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