निजी अनुभव की परिपक्वता के साहित्यकार ‘अज्ञेय’

By: Mar 7th, 2021 12:03 am

जयंती विशेष

‘मधुशाला’ जैसी वैयक्तिक स्वतंत्रता की पोषक रचना देने वाले सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ हिंदी के सुप्रसिद्ध साहित्यकार थे। अज्ञेय को प्रतिभासंपन्न कवि, शैलीकार, कथा साहित्य को एक महत्त्वपूर्ण मोड़ देने वाले कथाकार, ललित-निबंधकार, संपादक और सफल अध्यापक के रूप में जाना जाता है। अज्ञेय जी के पिता पंडित हीरानंद शास्त्री प्राचीन लिपियों के विशेषज्ञ थे। उनका बचपन उनके पिता की नौकरी के साथ कई स्थानों की परिक्रमा करते हुए बीता। कुशीनगर में अज्ञेय जी का जन्म 7 मार्च 1911 को हुआ था। लखनऊ, श्रीनगर, जम्मू घूमते हुए उनका परिवार 1919 में नालंदा पहुंचा। नालंदा में अज्ञेय के पिता ने अज्ञेय से हिंदी लिखवाना शुरू किया। इसके बाद 1921 में अज्ञेय का परिवार ऊटी पहुंचा। ऊटी में अज्ञेय के पिता ने अज्ञेय का यज्ञोपवीत कराया और अज्ञेय को वात्स्यायन कुलनाम दिया। अज्ञेय ने घर पर ही भाषा, साहित्य, इतिहास और विज्ञान की प्रारंभिक शिक्षा आरंभ की। 1925 में अज्ञेय ने मैट्रिक की प्राइवेट परीक्षा पंजाब से उत्तीर्ण की।

इसके बाद दो वर्ष मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज में एवं तीन वर्ष फॉर्मन कॉलेज लाहौर में संस्थागत शिक्षा पाई। वहीं बीएससी और अंग्रेज़ी में एमए पूर्वार्द्ध पूरा किया। इसी बीच भगत सिंह के साथी बने और 1930 में गिरफ़्तार हो गए। अज्ञेय ने छह वर्ष जेल और नज़रबंदी भोगने के बाद 1936 में कुछ दिनों तक आगरा के समाचारपत्र सैनिक के संपादन मंडल में रहे और बाद में 1937-39 में विशाल भारत के संपादकीय विभाग में रहे। कुछ दिन ऑल इंडिया रेडियो में रहने के बाद अज्ञेय 1943 में सैन्य सेवा में प्रविष्ट हुए। 1946 में सैन्य सेवा से मुक्त होकर वह शुद्ध रूप से साहित्य में लगे। मेरठ और उसके बाद इलाहाबाद और अंत में दिल्ली को उन्होंने अपना केंद्र बनाया। अज्ञेय ने प्रतीक का संपादन किया। प्रतीक ने ही हिंदी के आधुनिक साहित्य की नई धारणा के लेखकों, कवियों को एक नया सशक्त मंच दिया और साहित्यिक पत्रकारिता का नया इतिहास रचा। 1965 से 1968 तक अज्ञेय साप्ताहिक दिनमान के संपादक रहे। पुनः प्रतीक को नाम, नया प्रतीक देकर 1973 से निकालना शुरू किया और अपना अधिकाधिक समय लेखन को देने लगे। 1977 में उन्होंने दैनिक पत्र नवभारत टाइम्स के संपादन का भार संभाला। अगस्त 1979 में उन्होंने नवभारत टाइम्स से अवकाश ग्रहण किया। अज्ञेय ने 1943 में सात कवियों के वक्तव्य और कविताओं को लेकर एक लंबी भूमिका के साथ तार सप्तक का संपादन किया। अज्ञेय ने आधुनिक हिंदी कविता को एक नया मोड़ दिया, जिसे प्रयोगशील कविता की संज्ञा दी गई। इसके बाद समय-समय पर उन्होंने दूसरा सप्तक, तीसरा सप्तक और चौथा सप्तक का संपादन भी किया।

अज्ञेय का कृतित्व बहुमुखी है और वह उनके समृद्ध अनुभव की सहज परिणति है। अज्ञेय की प्रारंभ की रचनाएं अध्ययन की गहरी छाप अंकित करती हैं या प्रेरक व्यक्तियों से दीक्षा की गरमाई का स्पर्श देती हैं। बाद की रचनाएं निजी अनुभव की परिपक्वता की खनक देती हैं। और साथ ही भारतीय विश्वदृष्टि से तादात्म्य का बोध कराती हैं। अज्ञेय स्वाधीनता को महत्त्वपूर्ण मानवीय मूल्य मानते थे, परंतु स्वाधीनता उनके लिए एक सतत जागरूक प्रक्रिया रही। अज्ञेय ने अभिव्यक्ति के लिए कई विधाओं, कई कलाओं और भाषाओं का प्रयोग किया, जैसे कविता, कहानी, उपन्यास, नाटक, यात्रा वृत्तांत, वैयक्तिक निबंध, वैचारिक निबंध, आत्मचिंतन, अनुवाद, समीक्षा व संपादन। उपन्यास के क्षेत्र में ‘शेखर ः एक जीवनी’ हिंदी उपन्यास का एक कीर्तिस्तंभ बना।

नाट्य-विधान के प्रयोग के लिए ‘उत्तर प्रियदर्शी’ लिखा, तो आंगन के पार द्वार संग्रह में वह अपने को विशाल के साथ एकाकार करने लगते हैं। चार अप्रैल 1987 को वह इस संसार को छोड़कर चले गए, किंतु आज भी वह अपनी कृतियों के लिए याद किए जाते हैं।


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