भुला दिए चरित्रों को सामने लाने का प्रयास

By: Mar 14th, 2021 12:04 am

‘मन मंथन’,  ‘भैरों कभी नहीं मरा’ और ‘गीता बोल रही हूं’ उपन्यासों के बाद ‘एक थी रानी खैरीगढ़ी’ गंगा राम राजी का चौथा उपन्यास है। यह ऐतिहासिक उपन्यास भारतीय स्वतंत्रता-आंदोलन में ब्रिटिश कालीन हिंदुस्तान के एक छोटे से राज्य मंडी के योगदान की कहानी को बहुत सुंदर ढंग से सामने ले आता है। बीसवीं सदी के पहले दशक 1903 में राजा भवानी सेन के गद्दी-नशीन होने से लेकर प्रथम विश्व युद्ध तक के समय को उपन्यासकार ने अपनी कथा का विषय बनाया है। उपन्यास लाहौर के वातावरण में शुरू होता है, जहां मंडी के राजा विजय सेन का पुत्र भवानी सेन अपनी पढ़ाई के लिए आया है। पर, अचानक विजय सेन की मृत्यु से उसे मंडी लौट जाना पड़ता है जहां राज-परिवार के आपसी षड्यंत्रों के बीच उसे मंडी का नया राजा घोषित किया जाता है। अभी उसकी उम्र 18 साल भी पूरी नहीं हुई है, छह महीने कम हैं। तब तक अंग्रेज़ अधिकारी ही राज्य की देखरेख करते हैं।

वैसे भी, भवानी सेन धीरे-धीरे अंग्रेजों द्वारा शराब पिला-पिला कर इस कदर निष्क्रिय और बेकार कर दिया जाता है कि पूरा राज्य वजीर जीवानंद के लूट-खसोट और जनता के प्रति अत्याचार का घर बन जाता है। पर यह स्थिति बहुत दिनों तक नहीं चलती है। खैरगढ़ की राजकुमारी ललिता, जो आगे चलकर रानी खैरीगढ़ी के नाम से जनता के बीच मशहूर होती हैं, से भवानी सेन के विवाह के बाद से परिस्थितियां बदलती हैं। रानी खैरीगढ़ी का राज्य के क्रियाकलापों में दिलचस्पी लेना, उनके सुख-दुख में मानवीय आधार पर उनकी मदद करना उन्हें जनता में अत्यंत लोकप्रिय बना देता है। 39-40 अध्यायों में संरचित यह उपन्यास रानी खैरीगढ़ी को एक ऐसे मानवीय-गुणों से लैस रानी के रूप में स्थापित करता है जो उस समय पूरे हिंदुस्तान में अंग्रेजों के अधीन राज्य कर रहे वैसे अधिकांश राजाओं के लिए उदाहरण हैं, जिन्होंने अपने आपको पूरी तरह अंग्रेजी हुकूमत के आगे पंगु कर लिया था। यह उपन्यास भारतीय इतिहास में रानी खैरीगढ़ी, शोभाराम, हरदेव उर्फ  स्वामी कृष्णानंद, सिधु खराड़ा जैसे भुला दिए गए चरित्रों को सामने लाता है।

उपन्यासकर ने इस उपन्यास को इतिहास की नजर से अधिक से अधिक प्रामाणिक और तथ्यपरक बनाने के लिए उस समय के गजेटियर्स, मंडी पर लिखे गए इतिहास ग्रंथों, लोक-मान्यताओं में गहरे विन्यस्त कथाओं आदि को आधार बनाया है। यहां तक कि सभी चरित्रों के नाम तक वही रखे गए हैं जो उनके वास्तविक नाम हैं। उपन्यास में चरित्रों और वस्तु-स्थितियों के चरित्रांकन की कला बहुत महत्त्व रखती है। चरित्रों और वस्तु-स्थितियों के चरित्रांकन का विषय-वस्तु और उसको रचने वाली घटनात्मकता से बहुत गहरा रिश्ता होता है। इस लिहाज से यह उपन्यास बहुत हद तक सफल होता दिखता है।

-विनोद तिवारी, गाजियाबाद


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