पुस्तक समीक्षा : सामाजिक प्रतिबद्धता की औपन्यासिक कृति

By: Mar 21st, 2021 12:05 am

साधुराम दर्शक ने साहित्य की विविध विधाओं में सृजन किया  है। नब्बे वर्ष की उम्र में भी उनकी  सृजनशीलता बनी हुई है।  इसकी सुखद परिणति उनकी नव्यतम सद्य औपन्यासिक कृति ‘बादलों से ढका आकाश’ है। यह  व्यापक फलक का उपन्यास है। इसमें जमींदारों द्वारा शोषण, उत्पीड़न, दलितों-निर्धनों के साथ निर्ममतापूर्ण व्यवहार, जमींदारों द्वारा नाजायज भूमि पर स्वामित्व अधिकार, शामलात जमीन पर सामान्य निर्धन जनों के पशुओं को चराने का विरोध, नारी शोषण, पेयजल और बिजली की समस्या आदि अनेक समस्याओं को उठाया है। हिमाचल प्रदेश के ऊना के अंचल में सुदूर स्थित गांव के संदर्भ में उपन्यास की घटनाओं का ताना-बाना बुना गया है।

भगत संतराम केंद्रीय चरित्र है। औपन्यासिक कथा पूर्व दीप्ति शैली में प्रस्तुत की गई है। इसमें भगत संत राम के जीवन पर्यंत संघर्ष को चित्रित किया गया है। वह ‘सहयोग संस्था’ को संगठित करके गांव में सामाजिक सुधार के कार्यों के माध्यम से जन चेतना जगाता है। सूबेदार रत्न सिंह, पिशौरी लाल, मंगतराम, मास्टर रमेश, सुरेश बाबू, बरकत अली, सोमू, विमला, गुलजारीलाल, हुकम सिंह, कम्मो आदि चरित्र सहयोग संस्था के सदस्य बनकर उसमें व्यापक चेतना का माध्यम बनते हैं। गांव में पानी की समस्या, पशुओं को पालने-चराने की समस्या, शिक्षा, बैंकों से ऋण लेने की समस्या, प्राकृतिक आपदाओं, बाढ़ वर्षा से उत्पन्न स्थितियों आदि के निदान के लिए ‘सहयोग’, ‘गौरस सहयोग’, ‘कृषि सहयोग’, ‘अक्षर ज्ञान’ सहकारी समिति आदि सहयोगी संस्थाओं का गठन करते हैं और सुदूर पिछड़े गांव में जनचेतना जगाते हैं।

गांव की प्रतिक्रियावादी शक्तियां राय साहब, जमींदार, भ्रष्ट पटवारी, थानेदार, पंचायत प्रधान, नंबरदार, सरपंच, महाजन आदि सहयोग संस्था के कार्य को संचालित करने वाले लोगों के विरुद्ध दुष्प्रचार ही नहीं करते अपितु हिंसा के मार्ग पर अग्रसर होते हुए भगत संत राम की हत्या भी कर देते हैं और दूसरे लोगों पर झूठे आरोप लगाकर जेल तक पहुंचाते हैं। परंतु सहयोग संस्था अनेक प्रतिक्रियावादी शक्तियों के विरुद्ध संघर्ष करते हुए  अग्रसर होते हैं। प्रस्तुत उपन्यास आजादी के बाद के प्रथम दशक के गांव के पिछड़ेपन की स्थितियों  और उनके दुष्परिणामों को सामने लाता है। सहयोग संस्था निरंतर कार्य करती हुई प्रतिक्रियावादी शक्तियों को समय के साथ परास्त करती है और गांव में राजनीतिक और सामाजिक चेतना का आविर्भाव होता है। उपन्यास की समग्र घटनाओं के माध्यम से कथाकार साधु राम दर्शक ने  सामाजिक प्रतिबद्धता और प्रगतिशील चेतना परिलक्षित की है। उपन्यास की भाषा में स्थान-स्थान पर एक नया रचना प्रवाह है। भाषा और शैली का सहज स्वाभाविक स्वरूप और स्थानीयता पाठक को आकर्षित करती है। अभिमन्यु प्रकाशन, दिल्ली से प्रकाशित बावन अध्यायों और दो सौ बीस पृष्ठों में व्याप्त यह उपन्यास पठनीय है।

-डा. हेमराज कौशिक

दार्शनिकता, रिश्तों तथा प्रकृति की संश्लिष्ट अभिव्यक्ति

जीवन पथ की सहज-असहज, रेतीली, पत्थरीली-कंटीली पगडंडियों-राहों पर हुई व्यावहारिक अनुभूतियों की बिम्बात्मक, रूपात्मक एवं प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति है ‘कण कण फैलता आकाश मेरा’ की सायासिक-अनायासिक रचना प्रक्रिया से जनित कविताएं। इसमें कवयित्री डा. प्रेमलता चसवाल ‘प्रेमपुष्प’ की संवेदना अनायास भावबोध से तादातम्य जोड़ती प्रतिपादन को ग्रहण या अनुभूत करती, शिल्पगत सौंदर्य से उसके अंतस में डूबती, सराबोर होती लेखक-पाठक के सनातन संबंधों को साकार करती कविता के अंतस को सार्थक करती सम्प्रेषित अभिधेयार्थ को ग्रहण करने में सहायक बनती है।

लेखकीय अध्ययन-अनुभव यात्रा में वय विकास के साथ बढ़ती अनुभूतियां, संघर्ष-अंतः संघर्ष, चेतन-अवचेतन में उठते ज्वार, अभिव्यक्ति की उत्सुकता, भाषा की तलाश, परिवेशगत अहसास, संबंधों के व्यावहारिक स्पर्श, संवेदना, छटपटाहट, तिक्तता में अभिव्यक्ति हेतु सही शब्दों की तलाश करती हैं। संभवतः इसी कारण कविकर्म एक दूसरे से भिन्न रोचक-अरोचक, सुबोध-दुर्बोध हो जाता है अथवा पृथक दिखता है। प्रस्तुत संग्रह में संकलित कविताएं तीन संवर्गों- दर्शन झरोखा, महकते रिश्ते तथा नैसर्गिक प्रकृति में वर्गीकृत हैं। रचना काल 1970 से 2019 के मध्य का है। बीसवीं सदी के आठवें दशक से इक्कीसवीं सदी के दूसरे दशक तक कवयित्री का कवि-मानस, इस अवधि के मध्य के इतिहास, सामाजिक बदलाव तथा सांस्कृतिक संक्रमण व प्राकृतिक परिवर्तन या पर्यावरण हृस से कितना प्रभावित हुआ है, इस सबका संश्लिष्ट प्रभाव दिखता है इस संग्रह की कविताओं में। नैसर्गिक प्राकृतिक परिवेश में रचनाकर्म सहज संवाद करता मिलता है।

संवर्ग एक ‘दर्शन झरोखा’ में प्रकृति के विविध रूपों में संवाद करती मानवीकृत रूपांकन संबंधी कविताएं संकलित हैं जिनमें दार्शनिकता झलकती है। इसमें श्वेताम्बरा, मृगतृष्णा, कक्षा क्रमांक, कर्मफल गीता का, बुधुआ चेत, ब्लैंक होल, मोहपाश, अनंत उड़ान, एकाकार, मच्छावतार, कविता सत्य, भागीरथ से, युधिष्ठिर आदि कविताएं द्रष्टव्य हैं। प्रथम संवर्ग की कविताएं दार्शनिकता की ओढ़नी में ऐसी दुबकी, लिपटी, सुगुम्फित-सी हैं कि इनमें निहित अभीष्ट अभिधेयार्थ साधारणीकरण होने में कहीं सहज स्पष्ट नहीं हो पाता तो कहीं दुरूहता है। समग्रतः ‘कण कण फैलता आकाश मेरा’ काव्य संग्रह में एक नहीं, अनेक ऐसी कविताएं हैं जो बार-बार पढ़ने का आग्रह करती हैं। स्वानुभूति की परानुभूति, परानुभूति को स्वानुभूति का स्पर्श कराती ये कविताएं विषय विविधता, सरसता, रोचकतापूर्ण हैं, चिंतन-मनन का आग्रह करती हैं। कवयित्री प्रेमलता का सहज व्यक्तित्व एवं भाषा व्यवहार प्रस्तुत संग्रह में सामाजिक-साहित्यिक व्यवहार के चिंतन एवं मर्मस्पर्शी भावबोध को मुखरित करता है, निःसंदेह बधाई की पात्र हैं। कविकर्म व साहित्य सृजन की निरंतरता की शुभकामनाएं।

-डा. गौतम ‘व्यथित’    


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