पुस्तक समीक्षा : सामाजिक विसंगतियों का चित्रण करती कहानियां
10 जून 1950 को फगवाड़ा (पंजाब) में जन्मे डा. जवाहर धीर आज किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। यात्रा वृत्तांत, व्यंग्य लेख, लघुकथा, कहानी और कविता लेखन से अर्जित ख्याति के कारण ही आज वह जाने-माने लेखक हैं। उनकी नई पुस्तक ‘एक फीकी-सी मुस्कान’ प्रकाशित हो चुकी है। यह एक कहानी संग्रह है जिसमें 18 कहानियां संकलित की गई हैं। ये कहानियां सन् 1967 से 2010 के बीच लिखी गईं।
इन कहानियों को पढ़ते हुए लगता है कि उस दौर की विसंगतियां और विद्रूपताएं आज भी उसी तरह फन फैलाए हुए हैं। सिर्फ नए परिवेश में उनका स्वरूप ही बदला है। इन कहानियों का अद्भुत संसार द्रवित भी करता है और भीतर तक झिंझोड़ता भी है। जवाहर धीर की इन कहानियों में कस्बाई परिवेश भी है और महानगरों में तब्दील होते शहरों की यातनामय परिस्थितियों का आकलन भी। गुरु जी, सपनों की उड़ान, कटे हाथ वाला, उसके बाद, एक गलत आदमी, परिस्थितियों के बीच, मैं मकान ढूंढने चला, हम सभ्य हैं, टुकड़े-टुकड़े विश्वास, शहीद की पत्नी, अब तो आदत सी हो गई है, और गुड्डी मर गई, एक फीकी-सी मुस्कान, अंतराल के बाद, और वह चली गई, कॉफी हाउस, ताया जी और मुर्दा घर, ये ऐसी कहानियां हैं जो पाठकों का मनोरंजन भी करती हैं तथा कोई न कोई सामाजिक संदेश भी देती हैं। सामाजिक विसंगतियों का चित्रण करती ये कहानियां पाठक को आरंभ से लेकर अंत तक जोड़े रखती हैं। 95 पृष्ठों के इस कहानी संग्रह की कीमत 225 रुपए है। आस्था प्रकाशन जालंधर से प्रकाशित यह पुस्तक सरल भाषा में लिखी गई है। आशा है कि पाठकों को यह कहानी संग्रह पसंद आएगा। लेखक को इस किताब के प्रकाशन पर बधाई है।
-राजेंद्र ठाकुर
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