नगर निगम से निखरेगी छोटी काशी

By: Mar 17th, 2021 12:08 am

हिमाचल के सबसे प्राचीन शहरों में शुमार छोटी काशी यानी मंडी कई मायनों में अहम है। प्रदेश का यह हृदय स्थल ऐतिहासिक, पुरातात्त्विक विरासत एवं समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर को अपने दामन में समेटे है। नगर निगम का ताज सजने के बाद अब उम्मीद है कि मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर का गृह जिला स्मार्ट सिटी के तौर पर निखरेगा। 26 साल के इंतज़ार के बाद नगर निगम का दर्जा पाने वाले इस जिला में क्या हैं नगर निगम की चुनौतियां और संभावनाएं…

दखल में बता रहे हैं अमन अग्निहोत्री

छोटी काशी मंडी के ताज में नगर निगम का नगीना तो शुरुआत है। अब वह दिन भी दूर नहीं, जब प्रदेश के सबसे प्राचीन शहरों में शामिल छोटी काशी मंडी स्मार्ट सिटी बनकर उभरेगी और सूबे में मंडी शहर ही पर्यटन का नया केंद्र होगा। शिवधाम के शिलान्यास ने मंडी को एक नई पहचान दी है और यह कहना असत्य नहीं है कि अगर मुख्यमंत्री इस अजूबे को तेजी से इसके मूर्त रूप में लाते हैं, तो छोटी काशी प्रदेश में पर्यटन और विशेष कर धार्मिक पर्यटन का एक नया केंद्र बनकर उभरेगी।

नगर निगम मंडी के विकास में शिवधाम को बड़ा पत्थर माना जा रहा है, लेकिन इसके बाद दो बडे़ रोप-वे, काशी की तरह घाट और ब्यास पर एक झील व वाटर स्पोर्ट्स मंडी के विकास में बड़ी भूमिका निभाने के इंतजार में हैं। मंडी को बड़ा पर्यटन केंद्र और कुल्लू मनाली जाने वाले हर पर्यटक को एक दिन के लिए मंडी में रोकने के विजन से आगे बढ़ रहे मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के पिटारे में अभी और भी कई ऐसी योजनाएं हैं, जो कि नगर निगम मंडी के विकास में अहम भूमिका निभाने को तैयार हैं।

नगर निगम के गठन के साथ ही अब मंडी सिटी को आने वाले समय में स्मार्ट सिटी बनाने को लेकर बुलंद होती आवाज भी सुनाई दे रही है। जिस दिशा में मंडी को लेकर मुख्यमंत्री आगे बढ़ रहे हैं, उस नजरिए से हम देखें तो प्रदेश में पर्यटन की सबसे बड़ी सैरगाह का रूप आने वाले कुछ वर्षों में नगर निगम मंडी लेकर रहेगा। वहीं, मंडी से पहली बार मुख्यमंत्री बनने वाले जयराम ठाकुर के छोटी काशी की जनता से किए वादे पूरा करने के बाद भी इसे भविष्य की राजनीति से जोड़कर देखा जा रहा है। क्योंकि हमेशा नगर निगम की दौड़ में पिछड़ने वाली छोटी काशी को अब समय की मांग के अनुसार देरी से ही सही, लेकिन नगर निगम का तोहफा मिला है। सरकार ने शिवधाम, झील, फोरलेन, रोप-वे और रेलवे परियोजना व एनडीआरएफ बटालियन जैसी परियोजनाओं से जुड़े क्षेत्रों को निगम में रखा है और आने वाले समय में लोगों की अपेक्षाओं व विकास की जरूरत के अनुरूप निगम का दायरा बढ़ाने के विकल्प पर भी खुले हैं।

शहर पहले ही परेशान अब गांव लेंगे इम्तिहान

हिमाचल प्रदेश के हृदय स्थल में बसा मंडी नगर सौंदर्य, ऐतिहासिक, पुरातात्त्विक विरासत एवं समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर को अपने दामन में समेटे हुए है। ब्यास नदी के तट पर बसे मंडी शहर की स्थापना 1527 ई. में राजा अजबर सेन द्वारा की गई। मंडी शहर प्रदेश के सबसे प्राचीन शहरों में से एक है, लेकिन दुखद यह है कि यह शहर न तो अपनी प्राचीन विरासत को सही तरह से समेटे रख सका है और न ही एक आधुनिक शहर बन सका है। बेतरतीब निर्माण की मार, आबादी का बढ़ता बोझ और भविष्य को ध्यान में रखकर न बनाई गई योजनाओं ने आज मंडी शहर को प्रदेश के सबसे तंग शहरों में खड़ा कर दिया है। जहां लोगों को कई दिक्कतों व समस्याओं से परेशान होना पड़ रहा है। वहीं, अब नगर परिषद को नगर निगम का दर्जा दे दिया है, जिससे और चुनौतियां खड़ी हो गई हैं, जबकि नगर निगम के 13 वार्ड पहले से ही आधी-अधूरी सीवरेज, पार्किंग की समस्या, बदहाल सफाई व्यवस्था, आवारा पशुओं, अतिक्रमण, खराब स्ट्रीट लाइट्स, बरसात में बाढ़-भू-स्खलन, बेरोजगारी, पार्क और अन्य समस्याओं से जूझ रहे हैं।

…तो कहां से करेंगे खर्च

नगर निगम बनने से पहले भी नगर परिषद मंडी हमेशा धन की कमी से लड़ती आई है। कभी कर्मचारियों व पेंशनर्स को वेतन पेंशन देने को पैसे नहीं रहे, तो नगर परिषद ने कई दिन तक अंधेरा भी देखा। बिजली का बिल न भरने की वजह से नगर परिषद मंडी के 13 वार्डों की स्ट्रीट लाइट कई दिन तक कटी रही। वहीं, अब निगम का दर्जा मिलने के बाद खर्चे कई गुणा और बढ़ जाएंगे। कर्मचारियों की फौज भी बढे़गी। 13 वार्ड के अलावा शामिल किए गए दो नए वार्ड के विकास का जिम्मा भी नगर निगम पर रहेगा। दूसरी तरफ सरकार ने तीन वर्ष तक कोई टैक्स न लेने का भी ऐलान कर दिया है। ऐसे में नगर निगम का खजाना खाली ही दिखेगा। ऐसे हालात में नगर निगम मंडी की सारी उम्मीदें प्रदेश सरकार पर ही टिकी रहेंगी। सरकार से अगर बड़ी ग्रांट मिलती है, तो नगर निगम चल सकेगा, वरना बैसाखियों का ही सहारा लेना पडे़गा।

 हालांकि ऐसा भी नहीं है कि नगर निगम मंडी के पास आमदनी के स्रोत नहीं हैं। नगर निगम को सबसे बड़ी आमदनी तीन साल बाद हाउस टैक्स व किराए के रूप में ही होगी। वर्तमान में नगर निगम के तहत किराया वसूली सालों पुरानी दरों के अनुसार ही चली हुई है। पिछले कई साल से नगर परिषद अपनी ऐसी संपंत्तियों में भी बढ़ोतरी नहीं कर सकी है, जिससे किराए में बढ़ोतरी हो सके। लिहाजा नगर परिषद को अपने आय के लिए ऐसी संपंत्तियों का भी और अधिक निर्माण करना होगा। पार्क, पार्किंग, विज्ञापन, विभिन्न प्रकार के पंजीकरण शुल्क और टैक्स लगाकर नगर निगम को आय बढ़ानी पडे़गी।

ग्रामीण क्षेत्रों में चुनौतियां हजार

ग्रामीण क्षेत्रों में बेहतर स्ट्रीट लाइट, पानी निकाली, सीवरेज, सफाई व्यवस्था, बेहतर सड़कें, ढांचागत विकास और स्वरोजगार व रोजगार की चुनौतियां नगर निगम के सामने खड़ी हैं। मनरेगा जैसी बड़ी योजना से वंचित होने के कारण बेरोजगारों के लिए सरकार को अब अपनी शहरी योजनाओं की गांव-गांव के हर घर पर दस्तक करवानी होगी।

कस्बों का रूप लेंगे जिला के गांव

तंग हो चुके मंडी शहर से अब लोग बड़ी तेजी से बाहर की तरफ निकलेंगे और नगर निगम में शामिल किए ग्रामीण क्षेत्र नए कस्बों का रूप लेंगे। अगर ग्रामीण क्षेत्रों में बेहतर सुविधाएं मिलती हैं, तो गांवों के आसपास नए शहरों को हम आने वाले कुछ वर्षों में विकसित होते हुए देखेंगे, जिससे मंडी शहर का बोझ भी कम होगा।

26 साल की मांग अब पूरी हुई

नगर परिषद मंडी को नगर निगम बनाने की मांग वर्तमान सरकार ने बेशक पूरी की है, लेकिन दो दशकों से भी लंबे समय से यह मांग पूरे जोर से उठती आ रही है। 1994 में नगर परिषद के रूप में आई छोटी काशी मंडी को नगर निगम की सौगात 26 वर्षों में मिली है। इससे पहले मंडी को नगर निगम तो कभी स्मार्ट सिटी बनाने के वादे कई बार किए गए, लेकिन छोटी काशी इसमें पिछड़ती रही। वर्तमान सरकार के सत्ता में आते और मुख्यमंत्री मंडी से बनने के बाद इस मांग के पूरे होने आसार बन गए थे, लेकिन आस को भी धरातल पर पूरा होने में तीन वर्ष का समय लगा है।

शहर के विभिन्न संगठनों और नेताओं ने जहां मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के सामने मंडी को नगर निगम बनाने की पैरवी की, तो वहीं इसके विरोध को लेकर भी खूब स्वर उठे। धरना-प्रदर्शन, रैलियां और कोर्ट जाने तक भी बातें हुईं, लेकिन इस सबके बाद बीते वर्ष के अंतिम महीने में मंडी को नगर निगम की सौगात देकर गए हैं। शहरी विकास विभाग द्वारा जारी अधिसूचना के मुताबिक नगर परिषद मंडी के साथ लगती 11 पंचायतों के क्षेत्र को सम्मिलित कर इसे नगर निगम बनाया गया है। इनमें से चार पंचायतों का पूर्ण और सात पंचायतों का आंशिक विलय किया गया है। नेला नवगठित पंचायत सनयारड़, बैहना और दौंधी इन चार पंचायतों को पूर्ण रूप से नगर निगम मंडी में शामिल किया गया है।

क्षेत्रफल बढ़ा, आबादी में भी बढ़ोतरी

नगर निगम में ग्रामीण क्षेत्रों के 2439 हेक्टेयर क्षेत्र व 14953 की आबादी जोड़ी गई है। पहले नगर निगम में 25 मोहाल शामिल करने प्रस्तावित थे, जिनमें से अब तीन मोहाल मनयाणा, अरढा और चंडयाल को पूरी तरह इससे बाहर रखा गया है। इस प्रकार अब नगर निगम में साथ लगते 22 मोहाल शामिल किए गए हैं, जिनमें 18 मोहाल पूर्ण रूप से और चार मोहाल आंशिक रूप से इसमें शामिल किए गए हैं। इस प्रकार मंडी नगर निगम का क्षेत्रफ ल वर्तमान के 389 हेक्टेयर से बढ़कर 2828 हेक्टेयर हो गया है। साथ ही नए क्षेत्रों के जुड़ने से नगर निगम मंडी की आबादी में 14953 की वृद्धि से यहां की कुल आबादी वर्तमान के 26422 से बढ़कर 41375 हो गई है। नगर निगम में 15 वार्ड बनाए गए हैं।

15 में से आठ वार्ड रिज़र्व महिलाएं बनाएंगी पहली सरकार

नगर निगम मंडी की पहली सरकार महिलाएं ही बनाएंगी। नगर निगम मंडी के कुल 15 वार्डों में से आठ महिलाओं के लिए आरक्षित हैं। इस बात राजनीतिक कयास और संभावनाएं भी अधिक हैं कि नगर निगम मंडी की पहली महापौर महिला की होगी। नगर निगम में वार्ड एक खलयार, वार्ड सात तल्याहड़, वार्ड नौ पैलेस कॉलोनी-दो, वार्ड 11 समखेतर, वार्ड 12 भगवाहन, वार्ड 13 थनेहड़ा महिलाओं के लिए आरक्षित हैं। इसके अलावा वार्ड दस सुहड़ा और वार्ड 15 दौहंधी अनुसूचित जाति महिलाओं के लिए आरक्षित है। वहीं, वार्ड दो पुरानी मंडी, वार्ड तीन पड्डल और वार्ड चार नेला, वार्ड  पांच मंगवाईं व वार्ड आठ पैलेस कॉलोनी-1 अनारक्षित हैं। वार्ड 14 बैहना और वार्ड छह सन्याहड़ अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं।

चुनौती बहुत बड़ी है

सरकार का एक साहसिक कदम है, क्योंकि यह काम बिल्ली के गले में घंटी बांधने जैसा माना जा रहा था। वर्ष 1985 से यह मुद्दा उठता आ रहा है, मगर शहर के साथ सटी दर्जन से अधिक पंचायतों के हजारों लोगों के विरोध के डर से कोई भी सरकार इस दिशा में कदम नहीं उठा रही थी। जयराम सरकार ने ग्रामीण क्षेत्रों के विरोध के बावजूद यह जोखिम उठाया है, जिसे लेकर अब अच्छे-बुरे परिणामों के कयास भी लगाए जाने लगे हैं। बड़े बजट की दरकार के साथ-साथ मंडी शहर को स्मार्ट सिटी का दर्जा दिलाना भी एक बड़ी चुनौती है। नगर निगम मंडी के चार प्रवेश द्वार चक्कर, बैहना, बिंदरावणी व बिजनी फोरलेन से जुड़ेंगे, जिससे शहर में प्रवेश करने से पहले बाहर से आने वालों को साफ-सुथरी सड़कें एक अच्छा अनुभव दे सकती हैं। शिवधाम, टारना से कांगणी और वहां से ढांगसीधार तक रोप-वे बडे़ प्रोजेक्ट निगम की झोली में हैं। हालांकि इन सभी को मूर्त रूप देना सरकार व निगम के तारणहारों के लिए बड़ी चुनौती होगी

— बीरबल शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार

1950 में नगर पालिका थी

नगर निगम मंडी की यात्रा काफी लंबी है। 1950 में मंडी शहर को नगर पालिका का दर्जा प्रदेश सरकार ने दे रखा था। उस समय प्रदेश सरकार द्वारा नगर पालिका के अध्यक्ष व उपाध्यक्ष नियुक्त किए जाते थे। इनका कार्यकाल एक वर्ष के लिए हुआ करता था। 1950 में नगर पालिका मंडी में नौ वार्ड हुआ करते थे, जबकि नगर निगम मंडी में वार्ड संख्या 15 हो गई है। उस समय सरकार स्वास्थ्य विभाग, लोक निर्माण और वन विभाग से एक-एक अधिकारी की नियुक्ति करती थी। इसके बाद 1985 तक यही व्यवस्था लागू रही। 1985 में नगर पालिका के पार्षदों का कार्यकाल तीन वर्ष के लिए कर दिया गया और नगर पालिका के वार्ड भी नौ से बढ़ 13 हो गए। 1994 मंडी नगर पालिका को नगर परिषद का दर्जा दिया गया और बाकायदा पांच साल के लिए पार्षदों का चुनाव किया जाने लगा, जबकि तीन पार्षद सरकार द्वारा नॉमिनेट किए जाने की प्रथा शुरू हुई।

आबादी के हिसाब से खलियार सबसे बड़ा वार्ड

नगर निगम मंडी के 15 वार्ड में इस समय 41375 लोगों को आबादी शामिल की गई है। इस समय आबादी के हिसाब से खलियार सबसे बड़ा वार्ड बना है। इस वार्ड की संख्या 4031 है, जबकि वार्ड दो पुरानी मंडी की आबादी 2502 है। इसी तरह से वार्ड तीन पड्डल में 3014 की आबादी रखी गई है। वार्ड चार नेला में 2526, वार्ड पांच मंगवाईं में 2929, वार्ड छह सनयारड़ में 2336, वार्ड सात तल्याड़ में 2538, वार्ड आठ पैलेस वन में 2527, वार्ड नौ पेलेसे दो में 2715, वार्ड दस सुहड़ा में 2634, वार्ड 11 समखेतर 2570, वार्ड 12 भगवाहन 3091, वार्ड 13 थनेहड़ा 2609, वार्ड 14 बैहना 2504 और वार्ड 15 दौंहधी में 2644 की आबादी शामिल है।

मंडी के लिए सरकार को बदलना पड़ गया कानून

नगर परिषद मंडी को नगर निगम बनाने के लिए प्रदेश सरकार को कानून में भी संशोधन करना पड़ा है। नगर निगम बनाने के लिए 50 हजार की आबादी होना जरूरी है, लेकिन नगर परिषद मंडी और इसमें मिलाए जाने वाले गांवों के बाद भी आबादी की सीमा पूरी नहीं हो रही थी। इसलिए प्रदेश सरकार ने कानून में संशोधन कर आबादी की शर्त 40 हजार तक कर दी, जिसके बाद मंडी को नगर निगम बनाने का सपना पूरा हो सका।

क्या कहते हैं शिक्षाविद्

अब पीछे नहीं हटा जा सकता

नगर निगम से अब पीछे नहीं हटा जा सकता। वर्तमान समय के हिसाब से नगर निगम को जरूरत भी माना जा सकता है, लेकिन इससे सुविधाएं बढ़ने के साथ ही लोगों की दिक्कतें भी बढे़ंगी। नगर निगम को भी कई समस्याओं और खासकर वित्त की समस्या से जूझना पडे़गा। तीन वर्ष तक टैक्स न लेने का ऐलान सरकार कर चुकी है। ऊपर से नगर निगम मंडी के पास आय के साधनों की भी कमी है। नए क्षेत्र जुड़ने से अब खर्चा और अधिक बढ़ जाएगा। ऐसे में जब टैक्स ही नहीं आएंगे, तो नगर निगम कैसे चलेगा। सरकार से हर वर्ष अगर कोई विशेष ग्रांट मिलती है, तो भी नगर निगम को अपने पैरों पर खड़ा होना ही पडे़गा

—समीर कश्यप, अधिवक्ता

विकास को मिलेगी रफ्तार

सब चाहते हैं कि मंडी शहर में भी तमाम सुविधाएं लोगों को मिलें और यह सिर्फ नगर परिषद में ही संभव नहीं है। नगर निगम बनने के बाद अब विकास की गति भी बढे़गी। सरकार से बढ़ी ग्रांट तो कई योजनाएं मिलेंगी, जिससे लोगों की समस्याओं का अंत होगा। पार्किंग, शौचालय, पार्क, पक्की व बेहतर सड़कें, पक्के रास्ते, बेहतर जल निकासी, सीवरेज, पेयजल, स्ट्रीट लाइट जैसे सभी सुविधाओं में इजाफा होगा। उन्होंने कहा कि नगर निगम बनने के बाद कुछ ही वर्षों में एक विकसित शहर में स्थापित होगी

—राजेश महेंदू्र, प्रधान, व्यापार मंडल

छोटी काशी को बनाएंगे स्मार्ट सिटी

सुमन ठाकुर, अध्यक्ष

नगर परिषद, मंडी

नगर परिषद मंडी की अध्यक्ष सुमन ठाकुर कहती हैं कि यह छोटी काशी को सौभाग्य है कि इस समय प्रदेश की बागडोर मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के हाथ में है और उन्होंने ही नगर परिषद को नगर निगम का दर्जा दिया है। नगर निगम तो एक शुरुआत है। वह दिन भी अब दूर नहीं है, जब छोटी काशी एक बेहतर, सभी सुविधाओं से संपन्न व विकसित शहर के रूप में स्थापित होगी और छोटी काशी को स्मार्ट सिटी का दर्जा मिलेगा। सुमन ठाकुर कहती हैं कि सबसे प्राचीन शहर होने और रियासत की राजधानी होने के बाद भी नगर निगम और स्मार्ट सिटी की रेस में पहले भी छोटी काशी पिछड़ती आई है, लेकिन अब फिर से एक नई शुरुआत हुई है। बेशक नगर निगम के सामने कई समस्याएं खड़ी हैं, लेकिन इन सबका समाधान प्रदेश सरकार व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के सहयोग से कर लिया जाएगा। नगर निगम को आत्मनिर्भर बनाया जाएगा। आय के साधन बढ़ाए जाएंगे। प्रदेश सरकार यहां पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए जुट चुकी है।

 शिवधाम से उसकी शुरुआत मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने कर दी है। इसके बाद रोप-वे, झील और सुंदरघाट जैसे बडे़ प्रोजेक्ट आएंगे। यही नहीं, नगर निगम का मास्टर प्लान बनाकर विकास होगा। नगर परिषद होने की वजह से विकास की बड़ी योजनाओं से छोटी काशी वंचित थी, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। प्रदेश सरकार के साथ केंद्र से भी कई बड़ी योजनाएं छोटी काशी को मिलेंगी। नगर निगम में शामिल किए गए ग्रामीण क्षेत्रों का स्वरूप गांवों की तरह ही रहेगा, लेकिन सुविधाएं अब शहरी क्षेत्र की तरह मिलेंगी। बेहतर पार्किंग, बिजली, पानी, शौचालय, सीवरेज, पक्की सड़कें, गांवों में पक्के रास्ते, रोजगार व आजीविका कमाने के नए साधन लोगों को मिलेंगे। तीन वर्ष तक टैक्स भी लोगों को नहीं देना होगा।

खूब हुए धरने-प्रदर्शन

नगर निगम मंडी में शामिल किए गए ग्रामीण क्षेत्र शुरू से ही नगर निगम में शामिल होने का विरोध करते आ रहे हैं। दो महीने तक लगातार विरोध-प्रदर्शन तक करने के बाद अब विरोध की आवाज कुछ जरूर शांत हुई है, लेकिन विरोध को लेकर राजनीति अब भी जरूर की जा रही है। टैक्स और रोजगार छीनने के मुद्दे अब चुनाव आते ही हावी होना शुरू हो गए हैं। नगर निगम में शामिल होने का विरोध करने वाले गांवों को अब कांग्रेस ने नगर निगम से बाहर करने का वादा कर दिया है। कांग्रेस का कहना है कि अगर नगर निगम में उनके हाथ सत्ता आती है और प्रदेश में कांग्रेस सरकार बनती है, तो ग्रामीण क्षेत्रों को नगर निगम से बाहर कर दिया जाएगा। मंडी शहर की जनता व शहर के साथ सटे व विकास को तरस रहे कई गांवों ने मंडी को नगर निगम बनाने के लिए जोरदार भूमिका निभाई है।

22 संस्थाओं ने भेजे थे सरकार को प्रस्ताव

शहर की 22 संस्थाओं ने मंडी को नगर निगम बनाने के लिए सरकार को प्रस्ताव भेजे थे, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों की जनता ग्रामीण संघर्ष समिति बनाकर निगम में शामिल किए जाने को लेकर आंदोलन करती रही। मौन प्रदर्शन के साथ ही अपने विधायकों को भी ग्रामीण जनता आंखें दिखा चुकी है, जिसका नतीजा यह रहा है कि नगर में 25 की 22 ही ग्रामीण मोहाल शामिल किए गए हैं। तीन मोहाल की ग्रामीण जनता को इसमें नहीं लिया गया है।

विरोध करने वाले भी चुनाव लड़ने का तैयार

नगर निगम का विरोध करने वाले कई लोग अब चुनाव लड़ने को तेयार हो गए हैं। नगर निगम के गठन के बाद कई लोगों ने ग्रामीण पृष्ठ भूमि का नेता बनते हुए नगर निगम का खूब विरोध किया, लेकिन जब सरकार ने नहीं सुनी और नगर निगम पूरी तरह से अपने अस्तित्व में आ गया, तो अब यही लोग चुनाव लड़ने के लिए भी तैयार हो गए हैं।


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