आधुनिकता की जद में संस्कृति-परंपराएं

समाज में बढ़ती नशाखोरी की घटनाएं, आत्महत्याएं, संगीन अपराधों में इजाफा, नस्लभेद, धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना, बॉलीवुड में अश्लीलता व समाज में दरकते पारिवारिक रिश्ते इसी पश्चिमी विचारधारा का प्रदूषण व विकृत मानसिकता की देन है। सामाजिक संस्कारों को दूषित करने वाली इन चीजों को आधुनिकता नहीं कहा जा सकता। बहरहाल सत्य, अहिंसा, शिष्टाचार, अध्यात्म व संयम का संदेश देने वाले संस्कारों को अपनाने की जरूरत है…

किसी भी राज्य या देश को अपनी संस्कृति व परंपराओं पर गर्व होता है। हिमाचल प्रदेश सदियों से देव उत्सव संस्कृति व कई परंपराओं का धरातल रहा है। मगर अब प्राचीन से चली आ रही समृद्ध भारतीय संस्कृति व पुरातन परंपराओं पर आधुनिकता व पश्चिमी संस्कृति के प्रभाव को नकारा नहीं जा सकता। पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव इस कदर हावी हो रहा है कि लोगों की पारंपरिक जीवनशैली, व्यवहार, विचार, आपसी सौहार्द तथा कई पारंपरिक उसूलों में बदलाव हो चुका है। शहरों से लेकर गांव, कस्बों तक शायद ही कोई क्षेत्र बचा हो जहां आधुनिकता के खुमार ने विश्व की श्रेष्ठ भारतीय संस्कृति व परंपराओं को अपनी जद में न लिया हो। परंपरागत कृषि पद्धति, कृषि बीज, पारंपरिक पशुधन, पारंपरिक रीति-रिवाज, त्यौहार, पर्व, रहन-सहन, वेशभूषा से लेकर पारंपरिक शिक्षा पद्धति तक पश्चिमी संस्कृति का प्रभाव बढ़ रहा है। पारंपरिक खानपान में गुणवत्तायुक्त देसी अनाजों की जगह विदेशी जंक व फास्ट फूड शामिल हो रहे हैं। विवाह समारोहों के पारंपरिक रीति-रिवाज, लोकगीत तथा कई स्थानीय भाषाएं एक खास दायरे में सिमट रहे हैं।

भारतीय धार्मिक मान्यताओं में प्रकृति को वंदनीय माना गया है, मगर आधुनिक विकास व अनियंत्रित निर्माण कार्यों की जद्दोजहद में पर्यावरण संरक्षण की धज्जियां उड़ रही हैं। हमारी संस्कृति में मुकद्दस रहे परंपरागत पेयजल स्रोत, पवित्र नदियां तथा कई प्राकृतिक संसाधनों का आधुनिक विकास के नाम पर दोहन हो रहा है। पारंपरिक ज्ञान का अभाव होने से प्रकृति संरक्षण के प्रति आवाम का नजरिया बदल चुका है। पर्यावरण की पैरवी व चिंता के सरोकार सिर्फ नाममात्र ही रह गए हैं। लेकिन आज पाश्चात्य संस्कृति के खुमार में जहां भारतीय संस्कार व कई परंपराएं उपेक्षित हो रही हैं, वहीं पश्चिमी देशों के लोग भारत की समृद्ध संस्कृति से जुड़ी कई चीजों व संस्कारों को अपने आचरण में शामिल कर रहे हैं। पिछले वर्ष कोरोना काल में विश्व के कई देशों ने हमारी धार्मिक संस्कृति से जुड़ी पूजा पद्धति, हवन, यज्ञ, योग, अध्यात्म व आयुर्वेद आदि चीजों को अपनी जीवनशैली में अपनाकर भारतीय दर्शन के प्रति गहरी आस्था दिखाई।

 कई देशों में लोग भारतीय वैदिक संस्कृति के अनुसार विवाह संस्कार, वास्तु, ज्योतिष सहित कई धार्मिक कर्मकांडों का अनुपालन कर रहे हैं। बिहार स्थित मोक्षनगरी ‘गया’ में विष्णुपद मंदिर व फाल्गु नदी के तट पर पितरों के तर्पण व पितृयज्ञ के लिए प्रतिवर्ष हजारों की संख्या में विदेशी श्रद्धालु पहुंचते हैं जो विदेशों में भारतीय संस्कृति के प्रति आस्था को दर्शाता है। कुछ वर्षों से शिक्षा क्षेत्र में अंग्रेजी भाषा के बढ़ते प्रभाव से सभी भाषाओं की जननी व पारंपरिक ज्ञान का स्रोत भारत की पुरातन धरोहर संस्कृत भाषा उपेक्षा का शिकार हो रही है, लेकिन हाल ही में बनारस के ‘सम्पूर्णानंद’ संस्कृत विश्वविद्यालय में स्पेन की छात्रा ‘मारिया रूईस’ ने मीमांसा विषय में एमए (परास्नातक) की परीक्षा में प्रथम स्थान हासिल करके नया कीर्तिमान स्थापित किया है। इस उपलब्धि के लिए मारिया को उसी विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में उत्तर प्रदेश की मौजूदा राज्यपाल ने स्वर्ण पदक प्रदान करके सम्मानित किया। बनारस के इसी विश्वविद्यालय में कई देशों व धर्म समुदाय के छात्र कई वर्षों से संस्कृत में शिक्षा ग्रहण करते आ रहे हैं। इन विद्यार्थियों का मानना है कि दुनिया का ज्ञान व ब्रह्मांड के रहस्यों को जानने के लिए ज्ञान संपदा का भंडार भारत की प्राच्य विद्या संस्कृत का अध्ययन जरूरी है। हमारे देश में कर्नाटक राज्य के शिमोगा जिले के ‘मुतुर’ गांव में वहां के लोगों की आम वार्तालाप की भाषा संस्कृत है। वहां एक स्थानीय विद्यालय (गुरुकुल) में संस्कृत में ही शिक्षा दी जाती है तथा वहीं एक पुस्तकालय में कुछ प्राचीन गं्रथों को भी सहेज कर रखा गया है। हालांकि हिमाचल में संस्कृत को हिंदी के बाद राज्य की दूसरी राजभाषा का दर्जा प्राप्त है। राज्य के स्कूलों में संस्कृत विषय की शिक्षा दी जाती है। हमारे महान मनीषियों के अथक प्रयासों व कड़े परिश्रम द्वारा रचे गए वेद, उपवेद, पुराण, उपपुराण, उपनिषद, शास्त्र व कई प्राचीन ग्रंथों की रचना संस्कृत भाषा में हुई है। इन ग्रंथों में समाहित ज्ञान को कई विदेशी विद्वानों ने अंग्रेजी व फारसी सहित कई भाषाओं में अनुवाद करके कई देशों में पहुंचा दिया। संस्कृत में रचित हमारे पवित्र ग्रंथों व वैदिक मंत्रों में हजारों वर्ष पूर्व दुनिया के कई गूढ़ रहस्यों का जिक्र हो चुका था। अमरीकी अंतरिक्ष एजेंसी ‘नासा’ के वैज्ञानिक भी भारतीय प्राच्य ग्रंथों के पन्ने खंगाल कर इनके महत्व का अहसास कर चुके हैं।

इसीलिए वर्तमान में दुनिया के कई देशों का भारतीय संस्कृति की तरफ  आकर्षण बढ़ रहा है, लेकिन हमारे देश में वेलेंटाइन डे, फादर्स डे, मदर्स डे जैसे विदेशी दिवस मनाने की रिवायत बढ़ रही है। साथ ही वृद्धाश्रम, अनाथाश्रम का प्रचलन भी बढ़ रहा है। ये चीजें हमारी तहजीब का हिस्सा नहीं हैं, बल्कि पाश्चात्य संस्कृति का अंधानुकरण है। समाज में बढ़ती नशाखोरी की घटनाएं, आत्महत्याएं, संगीन अपराधों में इजाफा, नस्लभेद, धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना, बॉलीवुड में अश्लीलता व समाज में दरकते पारिवारिक रिश्ते इसी पश्चिमी विचारधारा का प्रदूषण व विकृत मानसिकता की देन है। सामाजिक संस्कारों को दूषित करने वाली इन चीजों को आधुनिकता नहीं कहा जा सकता। बहरहाल इन तमाम बुराइयों के उन्मूलन व सशक्त समाज के निर्माण के लिए अपने पुरखों की विरासत सत्य, अहिंसा, शिष्टाचार, अध्यात्म व संयम का संदेश देने वाले उन आदर्श संस्कारों व नैतिक मूल्यों को अपनाने की जरूरत है जिनके ध्वजवाहक हमारे ऋषि-मुनि तथा चाणक्य व स्वामी विवेकानंद जैसे विद्वान प्रबल समर्थक व प्रखर आवाज थे। उन मूल सिद्धांतों के दम पर ‘विश्व गुरू’ भारत दुनिया का नेतृत्व करता था। भारत की प्राचीन संस्कृति में शक्ति व शांति का संदेश तथा शस्त्र व शास्त्र दोनों पूजनीय रहे हैं। अतः आधुनिकता, टेक्नोलॉजी व इस डिजिटल युग में लुप्तप्राय हो रही भारत के गौरव की अतीत से चली आ रही शाश्वत ज्ञान परंपरा व संस्कृति का संरक्षण व संवर्धन होना चाहिए ताकि देश की भावी पीढि़यां भारत के प्राचीन वैभव से अवगत रह सकें।


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