मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर से आशाएं

यद्यपि सरकार भारत को चीन के बाद दुनिया का दूसरा बड़ा मैन्युफैक्चरिंग हब बनाने की डगर पर आगे बढ़ रही है, लेकिन इस चुनौतीपूर्ण लक्ष्य को पाने के लिए भारत को कई बातों पर ध्यान देना होगा। मैन्युफैक्चरिंग के प्रोत्साहन के लिए लागत घटाने का प्रयास किया जाना होगा। चूंकि कई उत्पादों के निर्माण के लिए अभी भी भारत बहुत कुछ  आयात पर निर्भर है, अतएव उत्पादों के कच्चे माल को देश में उत्पादित करने के ठोस प्रयास किए जाने होंगे…

हाल ही में 26 मार्च को प्रतिष्ठित ईवाई उद्यमी पुरस्कार वितरण समारोह में उद्योगपति मुकेश अंबानी ने कहा कि इस समय जिस तरह सरकार के द्वारा देश के विकास में निजी क्षेत्र की बड़ी भूमिका निर्मित की गई है और जिस तरह प्रौद्योगिकी की भूमिका अहम बनाई गई है, उससे मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में उद्यमियों के लिए अवसरों की सुनामी का परिदृश्य निर्मित हो रहा है। निःसंदेह देश में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर के छलांगे लगाकर आगे बढ़ने की चमकीली संभावनाओं के चार प्रमुख कारण उभरकर दिखाई दे रहे हैं। एक, उत्पादन से संबद्ध प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना। दो, उद्योग-कारोबार के नियमों का सरलीकरण। तीन, क्वाड्रिलेटरल सिक्युरिटी डॉयलॉग (क्वाड) के कारण अमरीका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ नई उद्योग-कारोबार संभावनाएं तथा चार, कोरोना संकट के कारण चीन के प्रति नकारात्मकता के कारण भारत को वैश्विक औद्योगिक समर्थन। हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उद्योग एवं अंतरराष्ट्रीय व्यापार संवर्द्धन विभाग और नीति आयोग द्वारा उत्पादन से संबद्ध प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना पर आयोजित परिचर्चा में कहा कि पीएलआई योजना से अगले पांच वर्षों में देश में 520 अरब डॉलर यानी लगभग 40 लाख करोड़ रुपए मूल्य की वस्तुओं का उत्पादन होगा। इससे विदेशी निवेश बढ़ेगा, निर्यात बढ़ेंगे और रोजगार के भी दोगुना होने की उम्मीद है। गौरतलब है कि सरकार ने मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर के प्रोत्साहन एवं आत्मनिर्भर भारत अभियान को सफल बनाने के लिए 24 सेक्टरों की पहचान की है। इनमें से अब तक 12 सेक्टर को पीएलआई स्कीम से जोड़ा जा चुका है। पिछले वर्ष मार्च 2020 में सबसे पहले पीएलआई स्कीम के तहत सरकार के द्वारा मोबाइल विनिर्माण और विशेषीकृत इलेक्ट्रॉनिक पुर्जे, फार्मा ड्रग्स एवं एपीआई तथा चिकित्सा उपकरणों जैसे क्षेत्रों के लिए 51311 करोड़ रुपए के प्रोत्साहन दिए गए हैं। फिर 11 नवंबर को पीएलआई योजना के अंतर्गत 10 और सेक्टर के लिए 1.46 लाख करोड़ रुपए के इन्सेंटिव दिए गए हैं। ऐसे में पीएलआई के तहत दोनों प्रोत्साहनों को मिलाकर इस योजना के तहत करीब दो लाख करोड़ रुपए के प्रोत्साहन पांच साल के लिए सुनिश्चित किए गए हैं।

 जिन क्षेत्रों को पीएलआई के दायरे में लाया गया है, उनमें एडवांस कैमेस्ट्री सेल (एसीसी), बैटरी इलेक्ट्रॉनिक एवं तकनीकी उत्पादों, वाहनों और वाहन कलपुर्जा, औषधि, दूरसंचार एवं नेटवर्किंग उत्पाद, कपड़ा, खाद्य उत्पादों, सोलर पीवी मॉड्यूल, एयर कंडीशनर, एलईडी और विशेषीकृत स्टील शामिल हैं। यहां यह भी महत्त्वपूर्ण है कि सरकार को  पीएलआई योजना के अंतर्गत दवा क्षेत्र में अगले 5-6 वर्षों के दौरान 15000 करोड़ रुपए का निवेश आने की संभावना है। इससे जहां दवा क्षेत्र की बिक्री  बढ़कर करीब तीन लाख करोड़ रुपए हो जाएगी, वहीं दवा निर्यात में भी करीब दो लाख करोड़ रुपए का इजाफा होगा। मोदी के मुताबिक फार्मेसी सेक्टर की प्रमुख कंपनियां- ल्यूपिन, डा. रेड्डीज, सिप्ला और कैडिला हेल्थकेयर आदि पीएलआई योजना के तहत निवेश करने का मंतव्य बता चुकी हैं। पीएलआई स्कीम के तहत सरकार के द्वारा दवाई बनाने के लिए कच्चे माल के स्थानीय विनिर्माण को बढ़ावा देने हेतु विशेष प्रोत्साहन धनराशि भी सुनिश्चित की गई है। इससे दवाओं के एक्सीपियंट्स यानी पूरक पदार्थों के उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा। स्थिति यह है कि देश में एक्सीपियंट्स का करीब 70 फीसदी से आयात करना पड़ता है। सरकार की रणनीति है कि एक्सीपियंट्स का देश में उत्पादन बढ़ाते हुए धीरे-धीरे इसकी आयात निर्भरता कम से कम कर दी जाए। यह कोई छोटी बात नहीं है कि कोरोना काल में फॉर्मा और मेडिकल सेक्टर की कई वस्तुओं का भारत बड़ा उत्पादक और नया निर्यातक देश बन गया है। भारत दुनिया में पीपीई किट का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक बन गया है, जिसकी दैनिक उत्पादन क्षमता प्रतिदिन पांच लाख से अधिक है। इसी तरह देश में बहुत कम समय में वेंटिलेटर की स्वदेशी उत्पादन क्षमता बढ़कर तीन लाख प्रति वर्ष हो गई है। देश ने एन-95 मास्क के उत्पादन में भी आत्मनिर्भरता हासिल की है।

 भारत सर्जिकल मास्क, मेडिकल गॉगल्स और पीपीई किट का बड़े पैमाने पर निर्यात कर रहा है। निःसंदेह सरकार उद्योग-कारोबार की जटिलताएं कम करने के लिए लगातार आगे बढ़ रही है। साथ ही सरकार इस वर्ष 2021 में केंद्र और राज्य स्तर के 6000 से अधिक कारोबारी नियमों (अनुपालन) को कम किए जाने की रणनीति पर आगे बढ़ रही है। उल्लेखनीय है कि 12 मार्च को क्वाड राष्ट्र प्रमुखों की पहली वर्चुअल मीटिंग में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमरीका के राष्ट्रपति जो बाइडेन, जापान के प्रधानमंत्री योशिहिदे और ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने एक नई ताकत के उदय का शंखनाद किया है। यह स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि क्वाड भारत के उद्योग-कारोबार के विकास में मील का पत्थर साबित हो सकता है। इस मीटिग में जो बाइडेन ने भारत को वैक्सीन निर्माण का बड़ा केंद्र बनाने का ऐलान किया है। इससे भारत के मैन्युफैक्चरिंग हब बनने को बड़ा आधार मिलेगा। यह बात भी महत्त्वपूर्ण है कि कोविड-19 के बीच चीन के प्रति वैश्विक नकारात्मकता और भारत के प्रति सकारात्मकता के कारण चीन से बाहर निकलते विनिर्माण, निवेश और निर्यात के मौके भारत की ओर आने की संभावना बढ़ गई है। निःसंदेह पिछले वर्ष मार्च 2020 से सरकार के द्वारा मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर के लिए उठाए गए कदमों के साथ-साथ भारतीय उत्पादों को अपनाने के प्रचार-प्रसार से देश के उद्योगों को तेजी से आगे बढ़ने का मौका मिला है। यदि उद्योग और सरकार साथ मिलकर काम करें तो भारत सस्ती लागत के विनिर्माण में चीन को पीछे छोड़ सकता है। भारत में दुनिया में सर्वश्रेष्ठ गुणवत्ता वाले कम लागत के उत्पाद बनाए जा सकेंगे और विनिर्माण उद्योग जितनी अधिक बिक्री करेंगे, उससे अर्थव्यवस्था में उतने ही अधिक रोजगार सृजित होंगे। यद्यपि सरकार भारत को चीन के बाद दुनिया का दूसरा बड़ा मैन्युफैक्चरिंग हब बनाने की डगर पर आगे बढ़ रही है, लेकिन इस चुनौतीपूर्ण लक्ष्य को पाने के लिए भारत को कई बातों पर ध्यान देना होगा।

 मैन्युफैक्चरिंग के प्रोत्साहन के लिए लागत घटाने का प्रयास किया जाना होगा। चूंकि कई उत्पादों के निर्माण के लिए अभी भी भारत बहुत कुछ  आयात पर निर्भर है, अतएव उत्पादों के कच्चे माल को देश में उत्पादित करने के ठोस प्रयास किए जाने होंगे। स्वदेशी उत्पादों की गुणवत्ता में बढ़ोतरी के लिए शोध एवं नवाचार पर फोकस किया जाना जरूरी होगा। इनके साथ-साथ देश को मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में आगे बढ़ाने के लिए कुछ अन्य ऐसे सुधारों की डगर पर भी आगे बढ़ना होगा, जिनसे कारखाने की जमीन, परिवहन और औद्योगिक उपभोक्ताओं के लिए बिजली की लागत आदि को कम किया जा सके। कर तथा अन्य कानूनों की सरलता भी जरूरी होगी। अर्थव्यवस्था को डिजिटल करने की रफ्तार तेज करना होगी। बुनियादी संरचना में व्याप्त अकुशलता एवं भ्रष्टाचार पर नियंत्रण कर प्रॉडक्ट की उत्पादन लागत कम करनी होगी। निःसंदेह दुनिया के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में भारत के तेजी से उभरने की जो संभावनाएं निर्मित हुई हैं, उन्हें मुठ्ठियों में लेने के लिए हरसंभव रणनीतिक प्रयास किए जाने होंगे।


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