सशक्तिकरण की राह पर हिमाचली महिलाएं

मैंने स्वयं ग्रामीण क्षेत्रों में बहुत से ऐसे परिवार देखे हैं, जिनकी एक ही बेटी है और अभिभावक उसकी परवरिश में कोई  कसर नहीं छोड़ते। जरूरत है बस थोड़ा सजग होने की। बेटी अनमोल है, उसे इतना सशक्त बनाएं ताकि वह भी आगे जीवन में सक्षम बने, अपने फैसले स्वयं ले सके, विपरीत परिस्थिति में भी डगमगाए नहीं, बल्कि निडरता के साथ डट कर मुकाबला करे। केवल महिला दिवस के दिन विचार गोष्ठी व सम्मेलन करने से महिलाओं के प्रति हमारा दायित्व पूरा नहीं हो जाएगा। जरूरत इस बात की है कि हम महिलाओं को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करें…

प्राचीन काल से ही भारत में नारी का उच्च स्थान रहा है। पौराणिक काल से पार्वती से लेकर त्रेता युग की सीता, द्वापर युग की यशोधा, अहिल्या और आधुनिक युग में कस्तूरबा और मदर टेरेसा आदि नारी हृदय में दया, करुणा, ममता और प्रेम हमेशा विद्यमान रहा। महिला मानव सृष्टि की जननी है, वह मनुष्य की जन्मदात्री है। नारी का त्याग और बलिदान भारतीय संस्कृति की अमूल्य निधि है। मनु ने मनु स्मृति में स्त्रियों का विवेचन करते हुए लिखा है, ‘यत्र नार्यस्तु पुजयन्ते रमन्ते तत्र देवताः।’ अर्थात जहां नारी की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं। देहज प्रथा, पर्दा प्रथा, महिलाओं को उच्च शिक्षा न देना आदि कुरीतियों ने समाज में महिलाओं की स्थिति को दयनीय बना दिया था, जिसका असर समाज में आज भी बरकरार है। आज पूरे विश्व में महिलाएं हर क्षेत्र में पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं। चारदिवारी से निकलकर महिलाएं पुरुषों के साथ समाज के हर क्षेत्र में आत्मविश्वास के साथ काम कर रही हैं। कामकाजी महिलाएं हों या फिर गृहिणी, सभी कुशलता के साथ घर-परिवार चलाकर सामाजिक दायित्व निभा रही हैं। महिलाओं की जिंदगी में तमाम तरह के बदलाव आ रहे हैं, लेकिन आज भी उन्हें समाज में व्याप्त बुराइयों और घरेलू प्रताड़ना का सामना करना पड़ता है। समाचार पत्रों में आए दिन नारी की अस्मिता को तार-तार कर लहूलुहान करने के किस्सों से पन्ने भरे मिलते हैं।

जहां पर नारी की मनोस्थिति को बयां करने के लिए शब्द भी कम पड़ जाते हैं, वहीं दूसरी ओर घिनौनी मानसिकता वाले ये चेहरे भीड़ का हिस्सा बन जाते हैं, फिर किसी लाडली का चीरहरण कर उसे उम्रभर समाज के इन उजले चेहरे से चेहरा छुपाने के लिए मजबूर कर देते हैं। सुबह की पहली किरण के साथ अखबार के पन्नों को पलटती मां का दिल गुमनाम लाडली के साथ हुए घिनौने अपराध की खबर पढ़कर ज़रूर सिहर उठता है। समाज के निर्माण में महिलाओं की अहम भूमिका है। हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले के दूरस्थ गांव की प्रसिद्ध समाज सेविका किंकरी देवी ने पर्यावरण को बचाने में अहम योगदान दिया। बहुत सी ऐसी महिलाएं है जो राजनीतिक, साहित्यिक व अपनी रुचि अनुसार अपने-अपने क्षेत्र में एक अलग मुकाम हासिल कर चुकी हैं और दूसरी महिलाओं के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बन रही हैं। बदलते परिवेश में हिमाचली ग्रामीण महिलाओं की बात करें, तो वे भी किसी भी क्षेत्र में पीछे नहीं हैं। शिक्षित होने के कारण वह अपनी बेटी की शिक्षा पर उतना ही बल दे रही है जितना कि बेटों की शिक्षा पर। वह मानसिक रूप से तो सशक्त है ही, साथ ही स्वयं सहायता समूह चलाकर मधुमक्खी पालन, पापड़ व बडि़यां तैयार करना, सिलाई व कढ़ाई का काम घर बैठकर करके अपनी आर्थिक स्थिति भी मजबूत कर रही है। हिमाचल प्रदेश में वर्तमान में मनरेगा के तहत काम करने वाली महिलाओं की संख्या 61 से 63 फीसदी है। शहरी परिवेश की महिलाओं की अगर हम बात करें तो महिलाएं शिक्षित होने के कारण घर-परिवार की जिम्मेदारियों के साथ अपने कैरियर के प्रति भी सजग हैं। वे सेना, एयर हॉस्टेस, पायलट, प्रशासन, शिक्षा, टैक्नॉलौजी, मेडिकल, इंजीनियरिंग आदि क्षेत्रों में अपना लोहा मनवा चुकी हैं। वर्तमान संदर्भ में यदि हम महिलाओं की समाज में स्थिति की बात करें तो उसके भी प्रमाण हमें मिल जाएंगे। महिला सशक्तिकरण का मतलब वास्तव में महिलाओं की सामाजिक, मानसिक व आर्थिक स्थिति को मजबूत करना है, फिर चाहे वह ग्रामीण परिवेश से हो या फिर शहरी परिवेश से।

 जब तक महिलाआें की मानसिकता में बदलाव नहीं आता, वैचारिक विकास उनका नहीं होता, तब तक वह स्वतंत्र निर्णय लेने में सक्षम नहीं हो सकती। महिला परिवार की अहम धुरी होती है, जो रिश्तों की डोर को एक सूत्र में पिरोने का प्रयास उम्रभर करती रहती है, शादी से पहले मायके में और शादी के बाद ससुराल में। वास्तव में नारी तुलसी के उस पौधे की तरह है, जो घर-आंगन को हमेशा महकाती है। जब तक समाज में महिलाओं के प्रति मानसिकता में बदलाव नहीं आता, उनका वैचारिक विकास नहीं होता, तब तक समाज का विकास भी असंभव है। नारी यदि शिक्षित होगी, तो वह पूरे परिवार को शिक्षित कर सकती है, समाज को सुदृढ़ कर सकती है, पूरे राष्ट्र को सुदृढ़ कर सकती है। यदि वह शिक्षित होगी, तो उसे अपने अधिकारों का भी ज्ञान होगा। अपने ऊपर हो रही घरेलू हिंसा या फिर समाज की प्रताड़ना की शिकायत करने के लिए उसे कहां जाना है, उसे न्याय कैसे मिल सकता है, इन सभी के प्रति वह और ज्यादा सजग होगी। महिला जब सक्षम, शिक्षित ओर स्वावलंबी होगी तो सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाओं का लाभ लेने के लिए भी आगे आएगी। साथ ही समाज की अशिक्षित महिलाओं को भी दिशा देने का काम कर सकती है। गांव के अंतिम छोर तक जब शिक्षा की लौ पहुंचेगी, तो उसकी रोशनी से समाज जरूर जगमगा उठेगा। बदलते परिवेश में ग्रामीण क्षेत्रों के रहन-सहन में बहुत ज्यादा बदलाव आया है। बेटी के जन्म पर अब खुशियां बांटी जाती हैं।

मैंने स्वयं ग्रामीण क्षेत्रों में बहुत से ऐसे परिवार देखे हैं, जिनकी एक ही बेटी है और अभिभावक उसकी परवरिश में कोई  कसर नहीं छोड़ते। जरूरत है बस थोड़ा सजग होने की। बेटी अनमोल है, उसे इतना सशक्त बनाएं ताकि वह भी आगे जीवन में सक्षम बने, अपने फैसले स्वयं ले सके, विपरीत परिस्थिति में भी डगमगाए नहीं, बल्कि निडरता के साथ डट कर मुकाबला करे। केवल महिला दिवस के दिन विचार गोष्ठी व सम्मेलन करने से महिलाओं के प्रति हमारा दायित्व पूरा नहीं हो जाएगा। जरूरत है तो इस बात की कि हर दिन महिलाओं के प्रति, उसकी सोच के प्रति हमारा सम्मान जागे, जीवन के हर क्षेत्र में उसे आगे बढ़ते रहने के लिए प्रेरित करें। इसकी शुरुआत तो हमें अपने घर से ही करनी होगी। ‘नारी अबला नहीं सबला है’, इस सोच के साथ हमें अपनी मानसिकता को मजबूत करना होगा।


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