शहरों की ओर बढ़ते हिमाचल के कदम

By: Mar 31st, 2021 12:06 am

हाल ही में तीन नए नगर निगम बनने के बाद हिमाचल के कदम शहरों की ओर बढ़ रहे हैं। सोलन, मंडी और पालमपुर को नगर निगम का दर्जा मिलने के बाद शहरी विकास मंत्रालय पर काम का बोझ बढ़ना तय है। संविधान के 74वें संशोधन में नगर निगम की संरचना का उल्लेख किया गया है। कैसे काम करता है नगर निगम, क्या-कुछ आता है इसके अधीन… बता रहे हैं संवाददाता खेमराज शर्मा

प्रदेश में तीन नए नगर निगम बनने के बाद शहरी विकास मंत्रालय का काम बढ़ जाता है, ऐसे में काम का और भी बोझ बढ़ जाता है। जिस हिसाब से लोगों की डिमांड आती है, वैसे यहां फाइलें बनती जाती हैं। ऐसा कोई भी आंकड़ा नहीं है कि इतनी ही फाइलें बनेंगी, क्योंकि लोग अपने काम के हिसाब से काम करवाने के लिए पहुंचते हैं। मैन पावर भी बैकडोर के हिसाब से रखनी होती है। लोगों की मूलभूत सुविधाओं के हिसाब से फाइलें तैयार की जाती हैं। इस हिसाब से नगर निगमों में कर्मचारियों की भी भर्ती की जाती है। इसमें एक्सईएन, जेई, कमिश्नर, ज्वाइंट कमिश्नर, सेनेटरी इंस्पेक्टर, टाउन प्लानर, असिस्टेंट टाउन प्लानर समेत अन्य कई पोस्ट निकलती हैं। इसके अलावा अन्य हिसाब से भी पदों की भर्तियां की जाती हैं।

कब बनती है नगर पंचायत-परिषद

शहरीकरण के लिए जो मापदंड सरकार ने तय कर रखे हैं, उसके मुताबिक जिस क्षेत्र की जनसंख्या पूर्व जनगणना के अनुसार दो हजार हो और उसकी प्रशासनिक आमदनी सालाना पांच लाख रुपए तक की हो, उसे नगर पंचायत बनाया जा सकता है। इसी तरह पांच हजार की जनसंख्या वाले क्षेत्र, जिसमें दस लाख रुपए तक की सालाना प्रशासनिक इनकम होती है, उसे नगर परिषद के दायरे में लाया जाता है।

नगर निगम के लिए अब 40 हजार जनसंख्या

पहले 50 हजार की जनसंख्या वाले क्षेत्रों, जिनमें दो करोड़ रुपए सालाना प्रशासनिक आमदनी होती थी, उसे नगर निगम बनाए जाने का प्रावधान रहता था, लेकिन सरकार की ओर से इसमें बदलाव किया गया है। अब 40 हजार की जनसंख्या इसमें निर्धारित की गई है, जबकि सालाना प्रशासनिक आमदनी दो करोड़ रुपए ही है। इसके तहत कॉरपोरेशन की जहां 40 हजार की जनसंख्या आती है, वहां तक क्षेत्र नगर निगम के दायरे में आ जाता है।

सरकार नहीं करती सिटी की घोषणा

शहर बनाए जाने को लेकर सरकार घोषणाएं नहीं करती, बल्कि इन मापदंडों के अनुसार जो इलाके इसमें क्राइटेरिया पूरा करते हैं, उन्हें शहरीकरण में लाया जाता है। शहर की व्यवस्था नगर पंचायत, नगर परिषद या नगर निगम से ही चलती है। यहां कई तरह की नई सुविधाएं प्रदान की जाती हैं, लेकिन इसकी एवज में स्थानीय प्रशासन इन्कम बढ़ाता है। जो क्षेत्र भी शहरीकरण के दायरे में आते हैं, उन क्षेत्रों में टैक्स लगाए जाते हैं और वहां की जनता को टैक्स की अदायगी करनी पड़ती है। इसी टैक्स से वहां की व्यवस्थाएं चलती हैं।

हमीरपुर, नाहन, बीबीएन भी नगर निगम बनने योग्य

राज्य में तीन एन नगर निगमों के बनने के बाद हमीरपुर, नाहन, नालागढ़, बद्दी, बीबीएन नए नगर निगम बनने की दौड़ में शामिल हैं। ये सभी नगर निगमों के बनने के लिए पूरे मापदंड करते हैं। आबादी, सालाना आमदनी और एरिया के हिसाब से इसे नगर निगम बनाया जा सकता है। ऐसे में सरकार को चाहिए कि वे इन्हें निगम बनाने की अधिसूचना जारी करे। सरकारी उपेक्षाओं के चलते अभी तक इन्हें नगर निगम की दौड़ में शामिल नहीं किया गया है। नगर निगम बनाने के लिए जनसंख्या 50 लाख के करीब, क्षेत्रफल, आसपास के विकसित क्षेत्र, आमदनी के स्त्रोत है। अगर ये सब पूरे होते हैं तो नगर निगम बन सकते हैं। यूडी के पास अभी तक ऐसा कोई भी प्रस्ताव लंबित नहीं है। क्योंकि जब भी कोई नगर पंचायत, नगर परिषद और नगर निगम बनानी होती है, तो इसके लिए लोगों के आवेदन आते हैं, समय-समय पर यूडी की ओर से सर्वे भी किया जाता है, जिसके बाद सभी के मापदंड देख नए शहरों की और अपना ध्यान केंद्रित करता है।

नगर  निगम की संरचना

जब संविधान में 74वां संशोधन हुआ था, तो उसमें बताया गया था कि नगर निगमों की संरचना कैसी होगी। नगर निगमों में 18 फंक्शन है, जिसमें से 14 फंक्शन हिमाचल में हैं। नगर निगम का प्रशासनिक मुखिया नगर आयुक्त होता है और नगर निगम का निर्वाचित मुखिया मेयर (महापौर) होता है। इसके अलावा नगर निगम में सभी विभागीय अधिकारी जैसे इंजीनियर, वित्त अधिकारी, स्वास्थ्य अधिकारी आदि इसके नियंत्रण और पर्यवेक्षण में कार्य करते हैं। आयुक्त की नियुक्ति राज्य सरकार द्वारा की जाती है तथा यह सामान्यतः आईएएस या पीसीएस अधिकारी होता है। यह परिषद तथा स्थायी समिति द्वारा लिए गए निर्णयों के क्रियान्वयन के लिए उत्तरदायी होता है। दिल्ली या मुंबई जैसे बड़े नगर निगमों में आयुक्त आमतौर पर एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी होता है। इसके अलावा प्रत्येक पांच वर्ष में नगर निगम का चुनाव आयोजित किया जाता है। जिस तरह पार्षद चुने जाते हैं, उसी तरह मेयर का भी चुनाव होता है। नगर निगम के चुनाव में पार्षदों और मेयर का चुनाव आम जनता द्वारा किया जाता है। मेयर यानी महापौर शहर का पहला नागरिक होता है। उसके अधिकार कई हैं, जैसे, नगर निगम में होने वाले सभी कार्य मेयर की स्वीकृति के बाद ही किए जा सकते हैं, मेयर की स्वीकृति के बाद ही किसी भी एजेंडे को सदन में रखा जाता है। नगर परिषद में पार्षद होते हैं और उन्हीं में से अध्यक्ष और उपाध्यक्ष चुना जाता है। इसके अलावा सरकार की ओर से एक अधिकारी भी बैठाया जाता है। जिसे ईओ के नाम से जाना जाता है। सरकार से मिलने वाली ग्रांट संबंधित कार्य अधिकारी द्वारा किए जाते हैं।

नगर निगम के काम

* वार्डों में साफ-सफाई के इंतजाम करवाना

* सड़कों पर स्ट्रीट लाइट और वाटर सप्लाई की व्यवस्था सुनिश्चित करना

* बिल्डिंग बनाने की अनुमति देना आग बुझाने के लिए फायर ब्रिगेड की व्यवस्था

* खतरनाक भवनों को सुरक्षित करना या हटाना

* एंबुलेंस सेवा को सुचारू रखना

* सड़कों का नामकरण और घरों की नंबरिंग करना

* प्राथमिक स्कूल खोलना और चलाना

* स्कूलों में मध्यान्ह भोजन की व्यवस्था करना

* बेहतर ट्रैफिक सिस्टम के लिए सड़कों पर यातायात चिन्ह लगाना

* शहर में गार्डन और बागीचों का रखरखाव करना

* सार्वजनिक शौचालय उपलब्ध करवाना

शहरी निकायों को दो तरफ से मिलती है आर्थिक मदद

हिमाचल प्रदेश के शहरी निकायों को आर्थिक मदद की बात करें, तो प्रदेश में दो तरफ से इन्हें मदद की जाती है। एक राज्य वित्तायोग की ग्रांट मिलती है, जो तय करता है कि किसी निकाय को कितना पैसा दिया जाएगा और दूसरा केंद्रीय वित्तायोग सीधे रूप से आर्थिक मदद प्रदान करता है। वित्तायोग की धनराशि से इनका काम चलता है, जिसके अलावा इनके अपने संसाधन होते हैं। राज्य सरकार की ओर से बजट में इनके लिए विशेष प्रावधान रखा जाता है। शहरों में पार्किंग स्थलों का निर्माण करने के लिए 50 फीसदी राशि सरकार देती है और 50 फीसदी राशि शहरी निकाय खुद जुटाता है। इसके साथ पार्क के निर्माण के लिए 60 फीसदी धनराशि सरकार देती, तो 40 फीसदी शहरी निकाय खुद देता है। शहरों में रास्तों का निर्माण करने, गलियों का निर्माण, नालियों का निर्माण, ऐसे आधारभूत कार्यों के लिए प्रदेश सरकार 100 फीसदी ग्रांट प्रदान करती है। पांच करोड़ रुपए की कुल राशि सरकार द्वारा इन्हें बजट में दी जाती है। केंद्र से नगर निगमों को प्रधानमंत्री आवास योजना, अमु्रत योजना, स्वच्छ भारत योजना-2 है। इसमें सीएफसी के तहत सीधा पैसा आता है। प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत गरीब शहरियों को मकान दिए जाते हैं। इसमें किसी तरह की लिमिट नहीं है। इसके लिए संबंधित शख्स की आय तीन लाख से कम होनी चाहिए, वह प्रधानमंत्री आवास योजना के लिए पात्र है। इसके अलावा अमु्रत योजना में नगर निगमों में विकासात्मक कार्य किए जाते हैं, जिसमें फुट ओवर ब्रिज, पैदल चलने के लिए फुटपाथ समेत अन्य विकास के कार्य हैं। स्वच्छ भारत योजना के तहत विभिन्न तरह के सफाई संबंधित कार्य किए जाते हैं।

…तो घर-घर तक पहुंचेगा रास्ता

नए नगर निगम बनने से जनता को वे सभी तरह की सुविधाएं मिलेंगी, जो उन्हें पहले नहीं मिलती थी, घर-घर तक रास्ता और सड़क पहुंचेगी। वाहनों को पार्क करने के लिए जगह होगी। हर घर प्लान से बनाया जाएगा। रास्तों मेें स्ट्रीट लाइट्स होंगी। किसी भी समस्या के लिए नगर निगम के पास जाकर उसका समाधान किया जा सकता है। इसके अलावा अन्य भी ऐसी बहुत सी सुविधाएं हैं, जो उन्हें ऑनलाइन ही घर बैठे मिल जाएंगी। इसमें जन्म, मृत्यु प्रमाण पत्र, बिजली, पानी, सीवरेज, कचरे के बिल व अन्य हैं।

वक्त पर दूर होगी स्टाफ की कमी

सुरेश भारद्वाज, शहरी विकास मंत्री

सवालः-हिमाचल में तीन नए नगर निगम बनने का बाद शहरी विकास मंत्रालय का काम और बोझ बढ़ गया है क्या?

उत्तरः जब भी कोई नए नगर निगम बनता है, तो काम बढ़ जाता है। ऐसे में निदेशालय में भी वर्क लोड बढ़ जाता है। राज्य में पांच नगर निगम बन गए हैं। काम और बढ़ गया है। स्टाफ की किल्लत होगी, जिसे समय पर पूरा किया जाएगा।

सवालः नए नगर निगमों में नियम लागू करना टाउन एंड कंट्री प्लानिंग विभाग के लिए कितना मुश्किल कार्य है?

उत्तरः नियम लागू करवाने के लिए टाउन एंड कंट्री प्लानिंग को दिक्कत आती है, लेकिन लोगों को समझाने के बाद और जागरूक करने के बाद परेशानी हल हो जाती है। लोगों को समझना चाहिए कि नगर निगम बनने के बाद उनके क्षेत्र में विकास होगा। टाउन एंड कंट्री प्लानिंग विभाग से अनुमति के बाद ही कोई कार्य करने की मंजूरी मिलेगा।

सवालः तीन नए नगर निगमों के बाद प्रदेश के कौन से शहर हैं, जो नगर निगम बनने की दौड़ में शामिल हैं?

उत्तरः तीन नए नगर निगम बनने के बाद हमीरपुर, नादौन भी इस दौड़ में शामिल है। जनसंख्या, क्षेत्रफल के हिसाब से ये औपचारिकताएं पूरी करते हैं। शहरी विकास विभाग स्वयं भी देख रहा है कि किन-किन शहरों को नगर निगम बनाया जा सकता है।

सवालः आड़ा तिरछा, सड़क किनारे निर्माण भविष्य के विकास का सबसे बड़ा अवरोधक है, इस दिशा में टीसीपी क्या योजना बना रहा है? निर्माण कैसे रोका जाएगा?

उत्तरः अवैध तरीके से निर्माण हमेशा ही सभी के लिए परेशानी होते हैं। नगर निगमों में इस तरह के काम रुकवाना नगर निगम का काम है। उनकी जिम्मेदारी बनती है कि वे अवैध कंस्ट्रक्शन न बनने दें। जब भी कोई काम शुरू होता है, तो मौके पर जाकर इंस्पेक्शन की जाती है। अगर अवैध तरीके से काम हो रहा होता है, तो उसे रुकवा दिया जाता है। वहीं काम के दौरान यह भी समझाया जाता है कि वे अवैध तरीके से निर्माण न करें।

राजधानी शिमला नगर निगम सबसे पुरानी

राजधानी शिमला नगर निगम सबसे पुरानी है। यहां का एरिया ग्रीन ज़ोन में आता है। जिस पर ट्रिब्यूनल की भी यहां बनने वाले हर स्ट्रक्चर पर नजर रहती है। ऐसे में अगर किसी को भी निर्माण कार्य शुरू करना है, तो उसे टाउन एंड कंट्री प्लानिंग से परमिशन लेनी पड़ती है। इसके बाद ही वे अपने मकान का कार्य शुरू कर पाता है। संभावित है कि नए नगर निगमों में भी इसी तरह के नियम तय किए जाएं। सड़क निर्माण कार्य वैसे ही विकास के लिए बाधा है। ऐसे में जब भी शहरों में कोई निर्माण कार्य शुरू होता है, तो इसके लिए टीसीपी एक्ट की परमिशन लेनी होती है, लेकिन जो पहले से बन गए हैं, उन्हें लेकर सरकार भी कुछ नहीं कर पा रही है। ऐसे में पॉलिसी बनाने को लेकर ही चर्चाएं हो रही हैं।

नए नगर निगम बनने के बाद ऐसा कोई टीसीपी नियम नहीं है, जो लागू होता है। सब कुछ पहले की तरह ही होता है। जो टीसीपी नियम शहरों पर लागू होते हैं, वही इसमें भी चलते हैं, लेकिन बस निगम बनने के बाद मकानों समेत अन्य ढांचा तैयार करने का प्रोसिजर निगम से बनता है। एमसी से मकान बनाने के लिए एनओसी लेनी पड़ती है, जिसके बाद मकान बनाने का काम शुरू होता है। जिस तरह शिमला में अढ़ाई मंजिल से ज्यादा निर्माण नहीं हो सकता, ऐसे में अगर कोई इन आदेशों की अवहेलना करता है, तो काम को एमसी रुकवा देता है। यहां एनजीटी भी सख्त है।


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