हाउसिंग प्रोजेक्ट्स को नई जान

यह सही है कि भारत सरकार के प्रयास से इस ‘स्वामीएच’ फंड को शुरू किया गया है, लेकिन इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं कि यह कोई सरकारी सबसिडी योजना है। यह एक निवेश फंड है, जिसमें 50 प्रतिशत भागीदारी केंद्र सरकार की है और शेष में 13 संस्थाओं का योगदान है, जिनमें भारतीय स्टेट बैंक, एचडीएफसी बैंक, भारतीय जीवन बीमा निगम आदि भी शामिल हैं। वास्तव में यह इन वित्तीय संस्थाओं के लिए भी लाभकारी योजना है क्योंकि इसमें 12 प्रतिशत रेट ऑफ  रिटर्न भी तय किया गया है। यानी इस फंड के लाभ भारत सरकार और अन्य वित्तीय संस्थाओं को भी मिलने वाले हैं। यानी कहा जा सकता है कि यह योजना ग्राहकों (मध्यमवर्गीय परिवार), सरकार, वित्तीय संस्थाओं और संपूर्ण अर्थव्यवस्था सभी के लिए लाभकारी है…

पिछले लंबे समय से भारत का रियल इस्टेट क्षेत्र भारी संकट से गुजर रहा है। जहां एक ओर पूर्व में तैयार आवास खरीददार न होने के कारण बिना बिके खाली पड़े हैं, तो दूसरी ओर हजारों की संख्या में हाउसिंग प्रोजेक्ट बिल्डरों के पास धनाभाव के कारण अधूरे पड़े हैं। सबसे कष्ट का विषय यह है कि कुछ समय पूर्व तक इस समस्या का कोई कारगर उपाय भी दिखाई नहीं दे रहा था। ऐसे में केंद्र सरकार द्वारा इन रुके हुए हाउसिंग प्रोजेक्टों को दोबारा शुरू करवाने के कई प्रयास हो रहे हैं। एक ओर जहां लोगों की गाढ़े पसीने की कमाई इन प्रोजेक्टों में लगी हुई है, लाखों की संख्या में मध्यम वर्गीय परिवारों ने इन हाउसिंग प्रोजेक्टों में बैंकों से ऋण लेकर भुगतान किया हुआ है। इन मध्यम वर्गीय खरीददारों ने यह सोचकर बुकिंग करवाई कि घर मिलने के बाद उन्हें किराया नहीं देना पड़ेगा और उसके स्थान पर वे ईएमआई दे सकेंगे। लेकिन बिल्डरों ने उनके पैसे को गलत इस्तेमाल करके उनके घर के सपने को ही धूमिल नहीं किया, बल्कि उन पर ईएमआई का बोझ भी बढ़ा दिया। ऐसे बिल्डरों को रास्ते पर लाने के लिए सरकार ने ‘रियल इस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी’ (रेरा) नाम का कानून बनाकर उनकी जिम्मेवारी तय करने का काम किया और उनसे यह वचन लिया गया कि वे निश्चित समय में हाउसिंग प्रोजेक्ट को पूरा करेंगे। यही नहीं, नए हाउसिंग प्रोजेक्टों को भी ‘रेरा’ के दायरे में लाया गया।

लेकिन इसके बावजूद यह देखा गया कि चूंकि बिल्डरों ने आवास खरीददारों का धन गलत प्रकार से इस्तेमाल कर लिया है, और उस धन को कम समय में वापस उसी प्रोजेक्ट में लाना आसान नहीं होगा और इस वजह से लोगों की मुसीबतें बदस्तूर जारी रहेंगी। ऐसे में सरकार ने रुके हुए हाउसिंग प्रोजेक्टों को वापस पटरी पर लाने हेतु एक अत्यंत सुविचारित योजना के तहत प्रयास प्रारंभ किए। इस योजना का नाम है ‘स्पेशल विंडो फॉर एफोर्डेबल एंड मिड इनकम हाउसिंग’ (स्वामीएच)। इस योजना के तहत 25 हजार करोड़ रुपए का एक निवेश फंड स्थापित किया गया, जिसमें ‘रेरा’ में रजिस्टर्ड सस्ते आवासों एवं मध्यम आयवर्ग की आवासीय परियोजनाओं, जो धन के अभाव में रुकी हुई थीं, को पूरा करने का प्रावधान रखा गया। यह फंड सेक्यूरटी एवं एक्सचेंज बोर्ड ऑफ  इंडिया यानी ‘सेबी’ के साथ रजिस्टर्ड किया गया है। एसबीआई कैप वेंचर्स को इसका संचालक बनाया गया है, जो एसबीआई कैप्टिल मार्केट्स के अंतर्गत आती है और जो स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के स्वामित्व में है। इस फंड को भारत सरकार के वित्त मंत्रालय के द्वारा प्रायोजित किया गया है। अभी तक एक लाख से ज्यादा हाउसिंग इकाइयों को पूर्ण करने के उद्देश्य से 165 परियोजनाओं को इस फंड के तहत अनुमति दी जा चुकी है। इनमें से 55 प्रोजेक्टों को अंतिम अनुमति भी मिल गई है।

 मार्च 2022 तक 6 हजार हाउसिंग इकाइयों को पूरा करने की तैयारी चल रही है। ‘स्वामीएच’ का उद्देश्य 1500 रुके हुए हाउसिंग प्रोजेक्टों को मदद देने का है, इसमें वे प्रोजेक्ट भी शामिल हैं जिन्हें नॉन परफॉरमिंग अस्सेट (एनपीए) घोषित किया जा चुका है अथवा जिन्हें दिवालिया होने की कार्रवाई भी चल रही है। इस फंड के 14 निवेशक हैं, जिसमें 50 प्रतिशत भागीदारी भारत सरकार की है और एलआईसी और स्टेट बैंक की 10-10 प्रतिशत हिस्सेदारी है। अनुमान है कि देश में कुल 4.5 लाख आवासीय इकाइयों वाले 1600 प्रोजेक्ट रुके हुए हैं, जिनमें से अधिकांश मुंबई मैट्रोपौलिटन रिजन (41 प्रतिशत) और एनसीआर (24 प्रतिशत) के हैं। इस योजना के पूर्ण होने पर यदि 4.5 लाख रुकी हुई आवासीय इकाइयों को पूर्ण करने में सफलता मिलती है तो अनुमानतः 2 लाख करोड़ रुपए के मृत निवेश पुनर्जीवित कर, अर्थव्यवस्था की मुख्यधारा में लाना संभव हो सकेगा। इसके अतिरिक्त इस योजना का एक अन्य लाभ यह होगा कि इससे निवेश का चक्रीय प्रवाह भी सकारात्मक रूप से प्रभावित होगा। समझना होगा कि जब रुके हुए आवासीय प्रोजेक्टों में काम शुरू होता है तो सीधे तौर पर घरों में निवेश करने वाले मध्यमवर्गीय परिवार अपनी बकाया राशि का भी भुगतान करेंगे और उससे निवेश में वृद्धि होगी। यही नहीं, रुके हुए प्रोजेक्टों में काम शुरू होने पर निर्माण क्षेत्र में रोजगार बढ़ेगा। यही नहीं, कई उद्योगों के साजो-सामान की मांग भी बढ़ेगी। पूर्ण हुई आवासीय परियोजनाओं का उपयोग शुरू होने पर इनकी बिक्री संभव होगी और अन्य लोग जो अभी तक रियल इस्टेट में निवेश से कतरा रहे थे, अब उसमें निवेश करने लगेंगे, जिससे रियल इस्टेट में निवेश भी बढ़ सकेगा। मध्यमवर्ग को घर मिलने के कारण उनको अभी तक जो मकान किराए पर खर्च करना पड़ रहा है, उनका वह खर्च बच सकेगा। बची हुई राशि का उपयोग वे अपने जीवन स्तर को बेहतर बनाने में करेंगे, जिससे देश में मांग में वृद्धि होगी। यानी कहा जा सकता है कि सरकार की इस योजना से न केवल रुके हुए प्रोजेक्टों में निवेश करने वाले मध्यमवर्गीय परिवारों को लाभ होगा, बल्कि अर्थव्यवस्था में आय और निवेश के चक्रीय प्रवाह पर भी इसका अनुकूल असर पड़ेगा। साथ ही यह स्पष्ट है कि यह कोई सरकारी सबसिडी योजना नहीं है।

 यह सही है कि भारत सरकार के प्रयास से इस ‘स्वामीएच’ फंड को शुरू किया गया है, लेकिन इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं कि यह कोई सरकारी सबसिडी योजना है। यह एक निवेश फंड है, जिसमें 50 प्रतिशत भागीदारी केंद्र सरकार की है और शेष में 13 संस्थाओं का योगदान है, जिनमें भारतीय स्टेट बैंक, एचडीएफसी बैंक, भारतीय जीवन बीमा निगम आदि भी शामिल हैं। वास्तव में यह इन वित्तीय संस्थाओं के लिए भी लाभकारी योजना है क्योंकि इसमें 12 प्रतिशत रेट ऑफ  रिटर्न भी तय किया गया है। यानी इस फंड के लाभ भारत सरकार और अन्य वित्तीय संस्थाओं को भी मिलने वाले हैं। यानी कहा जा सकता है कि यह योजना ग्राहकों (मध्यमवर्गीय परिवार), सरकार, वित्तीय संस्थाओं और संपूर्ण अर्थव्यवस्था सभी के लिए लाभकारी है। सरकार ने इस समझदारीपूर्ण योजना से देश के रियल इस्टेट क्षेत्र को तो गति दी ही है, वित्तीय संस्थाओं को भी इससे प्रत्यक्ष लाभ मिलेगा। यदि रियल इस्टेट क्षेत्र में स्वस्थ विकास संभव होता है तो उसका अप्रत्यक्ष लाभ भी इन वित्तीय संस्थाओं को अवश्य मिलेगा।


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