राष्ट्रपति का पद संभालने के बाद ट्रंप ने वैश्विक मुक्त व्यापार व्यवस्था पर सीधा हमला करना शुरू कर दिया है। वही अमेरिका, जो विश्व व्यापार संगठन की बातचीत और गठन में सबसे आगे था, और दुनिया भर में मुक्त व्यापार का सबसे बड़ा पैरोकार था, अब संरक्षणवाद की वकालत कर रहा है...
अगर आत्मनिर्भर भारत नीति को सफल होना है तो चीन से आयात बंद करना होगा। आज भी ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो कहते हैं कि भले ही अमेरिका आयात शुल्क बढ़ा दे, लेकिन भारत को अपने आयात शुल्क में कमी लानी चाहिए। यह सलाह आर्थिक दृष्टि से विवेकपूर्ण नहीं है...
लंबे समय से इलैक्ट्रिक वाहन बनाने वाली एक अमरीकी कंपनी टेस्ला, जिसकी इलैक्ट्रिक कारें अमरीका और अन्य देशों में काफी लोकप्रिय हैं, भारत में अपनी कारों को बेचने के लिए प्रयास करती रही है। कंपनी का यह कहना रहा है कि पहले उसे अपनी कारें बेचने हेतु मार्ग प्रशस्त किया जाए, और बाद में कंपनी भारत में उत्पादन केंद्र खोलकर यहीं पर विनिर्माण शुरू करने पर विचार करेगी। गौरतलब है कि लंबे समय से भारत के ऑटोमोबाईल क्षेत्र के संरक्षण हेतु सरकार विदेशों से आने वाले वाहनों पर भारी आयात शुल्क लगाती रही है। अभी तक 40 हजार डालर की कीमत से ज्यादा की कारों पर 110 प्रतिशत आयात शुल्क लगाया जाता है। 40 हजार डालर से कम की कारों पर आयात शुल्क 60 प्रतिशत है। टेस्ला कंपनी के संस्थापक एलन मस्क, जो डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद अमरीकी प्रशासन में एक अहम भूमिका रखते हैं, का लगातार यह आग्रह रहा है कि टेस्ला कारों के भारत में आयात पर शुल्क घटाया जाए। हाल ही में प्रस्तुत केंद्र सर
यह भी समझना होगा कि पूरी सीकेडी पर ऊंचे कर और कलपुर्जों पर कम कर के प्रावधान पहले से ही हैं और इस कंपनी के लिए या उस समय के लिए उनमें कोई बदलाव नहीं किया गया था। यदि ‘सीकेडी’ पर उच्च कर लगता है और इसके भागों को कम शुल्क पर आयात करने की अनुमति दी जाती है, तो इसके पीछे भारत की स्पष्ट आर्थिक नीति है, जिसका उद्देश्य देश में मूल्य संवर्धन को प्रोत्साहित करना है...
बदबूदार और गंदा पानी दिल्ली जल बोर्ड की जैसे पहचान बन गई थी। दिल्ली जल बोर्ड की वित्तीय हालत भी इस कदर बिगड़ गई थी कि उस पर लगभग 2021-22 तक 73197 करोड़ रुपए का ऋण बकाया था। दिल्ली अपने कूड़े के ढेरों के लिए देश और दुनिया में बदनाम है। दिल्ली को कूड़े से मुक्ति भी दिलानी होगी...
यह इस तथ्य को साबित करता है कि डब्ल्यूपीआई की तुलना में सीपीआई सही लक्ष्य नहीं है। हम समझते हैं कि सीपीआई खाद्य कीमतों से काफी प्रभावित होता है। तीसरा, हालांकि अकेले सीपीआई, मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण के लिए उपयुक्त एंकर नहीं लगता है, थोक मूल्य सूचकांक भी सर्वथा उचित लक्ष्य नहीं है...
हालांकि, विनिर्माण को बढ़ावा सिर्फ एक या दूसरे क्षेत्र तक सीमित नहीं है, लेकिन सबके साथ स्वच्छ तकनीक विनिर्माण में भी स्पष्ट रूप से बढ़ावा देखा जा रहा है। पिछले कुछ वर्षों में, इलेक्ट्रिक वाहनों, सौर पैनलों, पवन ऊर्जा और जलवायु परिवर्तन के लिए ऊर्जा और प्रौद्योगिकी के अन्य नवीकरणीय स्रोतों को बढ़ावा दिया गया है। इस बजट में लिथियम बैटरी, इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए मोटर और अन्य स्वच्छ तकनीक विनिर्माण को बढ़ावा देकर स्वच्छ तकनीक मार्ग में आने वाली बाधाओं को दूर करने का प्रयास किया गया है। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि आयातित बैटरियों, इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए मोटर और सौर सेल पर हमारी अत्यधिक निर्भरता के कारण हमारा आयात बिल बढ़ रहा है और भविष्य में आयातित घटकों पर हमारी निर्भरता के कारण भविष्य में देश का शोषण भी हो सकता है। इसलिए, यह बजट आत्मनिर्भर भारत को बढ़ावा दे रहा है और देश को विदेशियों के शोषण से बचा रहा है...
व्यापक रीसाइकलिंग सिस्टम और खाद बनाने की सुविधाएं, बायोडिग्रेडेबल विकल्पों के उपयोग के साथ प्लास्टिक का प्रतिबंधित उपयोग, गंगा और यमुना की पवित्रता सुनिश्चित करने हेतु उन्नत जल उपचार संयंत्र और निगरानी प्रणाली, जल प्रतिधारण और मिट्टी के कटाव को कम करने के लिए बड़े पैमाने पर वनरोपण आदि उल्लेखनीय कार्य हैं। सौर ऊर्जा पैनल और जैव-ऊर्जा प्रणाली जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत मेला व्यवस्थाओं को ऊर्जा प्रदान करेंगे...
आज जब चीन से आयात घाटा 85 अरब डॉलर के असहनीय स्तर तक पहुंच चुका है, जिसका असर हमारे विनिर्माण और रोजगार पर भी पड़ रहा है, हमें चीन पर निर्भरता कम करने के सघन प्रयास करने की जरूरत है। सबसे पहले जब 2018-19 के बजट में प्रधानमंत्री मोदी की ‘मेक इन इंडिया’ नीति घोषणा के तहत इलेक्ट्रॉनिक्स और टेलीकॉम उत्पादों पर आयात शुल्क 10 प्रतिशत से बढ़ाकर 20 प्रतिशत करने का निर्णय लिया गया, और फिर उसी वर्ष वस्त्र और परिधानों पर आयात शुल्क बढ़ाने और तत्पश्चात अन्य गैर-जरूरी आयातों पर आयात शुल्क 10 प्रतिशत से बढ़ाकर 20 प्रतिशत करने का निर्णय लिया गया, उसके फलस्वरूप वर्ष 2018-19 में चीन से व्यापार घाटा केवल 53.6 अरब डॉलर रह गया, जबकि 2017-18 में यह 63 अरब डॉलर था। महत्वपूर्ण बात यह है कि उस समय इन आयात शुल्कों में वृद्धि का कई अर्थशास्त्रि
भारत को अपने आत्मनिर्भर भारत पहल के माध्यम से अपने घरेलू विनिर्माण को मजबूत करने का अवसर मिल सकता है। हालांकि, ट्रम्प के संरक्षणवादी रुख और टैरिफ बढ़ाने के कारण भारत को निर्यात में नुकसान होने की चिंता हो सकती है...