अच्छे दिन तो एक स्लोगन था!

By: Mar 12th, 2021 12:06 am

पूरन सरमा

स्वतंत्र लेखक

नए-नए केंद्रीय मंत्री थे। एक पार्टी में मिल गए। प्लेट में पांच-सात गुलाब जामुन रखे बारी-बारी से गटक रहे थे। मैंने भी अपनी प्लेट भरी और उनके पास पहुंच गया। गुलाब जामुन का एक पीस पेट में जमा कर मैंने मंत्री जी से पूछा-‘क्यों साब ये अच्छे दिनों की उम्मीद कब तक की जा सकती है।’ मेरी बात पर हंसने लगे और ‘इससे बढिया अच्छे दिन क्या होंगे? हम लोग एक साथ गुलाब जामुन खा रहे है।’ मेरे मुंह का गुलाब जामुन बाहर आते-आते बचा, मैंने पूछा- ‘सर, यह तो पार्टी है। इसमें तो सभी खा रहे हैं। लेकिन आम आदमी की जद में गुलाब जामुन कब तक आएगा? मेरा मतलब महंगाई पर लगाम लगाने से है।’ वे बोले-‘मैं सब समझ रहा हूं। देखिए आलू-प्याज को तो हमने सुरक्षित कर लिया है। चीनी के दाम बढ़ाकर उसे भी लगभग स्थिर कर दिया है। भाई चुनाव में हमने 15 हजार करोड़ खर्च किए हैं। जिनसे लिया है, उनको चुकाना भी तो है। एक बार यह देनदारी खत्म हो जाए, बाद में महंगाई को पूरी तरह काबू में कर लेंगे।’ मैंने कहा-‘यह तो बड़ा लंबा प्रोसेस है। तब तक नए चुनाव आ जाएंगे और आप कार्पोरेट से फिर धन ले लेंगे और देनदारी हो जाएगी।

 इस तरह तो आपका घोषणा-पत्र रद्दी की टोकरी में चला जाएगा।’ मंत्री जी बोले- ‘देखो भाई, यह तो एक प्रोसेस है। अच्छे दिन तो हमारा एक स्लोगन था, जिसे जनता ने सच मान लिया। इसमें हमारी क्या गलती है। चुनाव जीतने के लिए पता नहीं क्या-क्या झूठे-सच्चे वायदे करने पड़ते हैं।’ मंत्री जी की बात सुनकर मैंने कहा – ‘सर, इससे तो आपका भी हश्र पहले वालों की तरह होगा। जनता आपको पटखनी दे देगी।’ ‘चुनाव नागनाथ और सांपनाथ वाला खेल है। इसमें विकल्प तो कुछ होता नहीं। इसलिए ज्यादा परेशान होने की बात नहीं है। वैसे भी हमने अच्छे दिनों के लिए जनता से दो टर्म मांगे हैं। हमारे नेताजी बोलने में इतने पटु हैं कि मुझे तो दो दशक तक गुलाब जामुन खाने से कोई रोक नहीं सकता।’ मंत्री जी ने कहा। ‘यह तो सरासर धोखा है। आप इस तरह जनता की आंखों में धूल कैसे झोंक सकते है?’ मैंने कहा तो वे बोले -‘देखो शर्मा, ज्यादा देश की चिंता में अपने आप को दुबले मत होने दो। यह हमारा मामला है। जैसा भी होगा सलटा लेंगे। कांदा सस्ता है, रोटी उसी से खाओ।’


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