ममता बनर्जी का घायल होना…

पैर पर चोट के माध्यम से ममता को हिंसा कराने वाली नहीं बल्कि हिंसा की शिकार निरीह महिला बनाने की कोशिश की गई। लेकिन सार्वजनिक स्थान पर हज़ारों लोगों के सामने हमला कैसे हुआ? सुरक्षा कर्मचारी कहां थे? हज़ारों लोगों के सामने हमला करने के बाद कोई भाग कैसे सकता है? क्योंकि ममता कम से कम यह तो कह ही नहीं सकती थी कि हमलावर हमला करने के बाद कार अथवा मोटर साइकिल से भाग गए। इतना झूठ बोल पाना किसी भी स्थिति में संभव नहीं था, वह भी तब जब हर एक क्षण की वीडियो रिकार्डिंग की जा रही हो। इस पूरे प्रकरण से ममता कितनी सहानुभूति बटोर पाएंगी और कितनी उपहास्यपूर्ण स्थिति में पहुंचेंगी, यह समय ही बताएगा, लेकिन इस पूरे प्रकरण ने कुछ सवाल अवश्य खड़े कर दिए हैं…

दो दिन पहले पश्चिमी बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी नंदीग्राम में घायल हो गईं। उन्होंने इस बार नंदीग्राम विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने का निर्णय किया है। इससे पहले वे भवानीपुर से चुनाव लड़ती रही हैं। नंदीग्राम शुभेंदु अधिकारी का गढ़ माना जाता है। अधिकारी ममता के अत्यंत विश्वासी रहे हैं। लेकिन कुछ दिन पहले वे ममता के व्यवहार से दुखी होकर भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए हैं। ज़ाहिर है कि वे किसी भी हालत में ममता को पराजित करने चाहेंगे। लेकिन यह तभी संभव हो सकता था कि किसी तरह ममता बनर्जी अपना इलाका छोड़ कर शुभेंदु के इलाके में आ जाएं। लेकिन ऐसा कैसे हो सकता था? अधिकारी ममता के स्वभाव को अच्छी तरह जानते हैं। उसी का लाभ उन्होंने उठाया। उन्होंने एक-दो बार ममता को सार्वजनिक तौर पर चुनौती दी और ममता उनके बिछाए जाल में फंस गई लगती हैं। वे भवानीपुर छोड़ कर नंदीग्राम पहुंच गईं। लेकिन आखिर जनता का झुकाव जानने के ममता के पास भी साधन सूत्र हैं ही। इसके अतिरिक्त सरकारी सूत्र तो हैं ही। वहां से सूचनाएं मिलने लगी होंगी कि नंदीग्राम सुरक्षित नहीं है। लेकिन ममता अपना स्वभाव तो नहीं बदल सकतीं। एक बार डट गई हैं तो अब पीछे नहीं हटेंगी। अपने इसी गुण के कारण उन्होंने बंगाल में तीस साल से जमी सीपीएम की सत्ता उखाड़ दी थी। लेकिन इस बार मामला उतना सीधा दिखाई नहीं देता। लेकिन ममता बनर्जी हिंसा का पुराना फार्मूला इस बार भी आज़माना चाहती थीं। सीपीएम के साथ यह फार्मूला इसलिए सफल रहा था क्योंकि सीपीएम भी अपनी तीस साल की सत्ता में विरोधियों को दबाने और डराने के लिए हिंसा का ही इस्तेमाल करती थी। तृणमूल कांग्रेस की सरकार ने भारतीय जनता पार्टी को दबाने व डराने के लिए भी बड़े स्तर पर हिंसा को प्रोत्साहित करना शुरू कर दिया। यहां तक कि अमित शाह, कैलाश विजयवर्गीय और जगत प्रकाश नड्डा तक के काफिले पर हमला किया गया। इस हमले की निंदा करने की बजाय ममता के लोग इसे प्रायोजित हमला कहते रहे। लेकिन इस बार हिंसा की यह नीति ममता को हानि देने लगी।

जन सहानुभूति ममता की बजाय भारतीय जनता पार्टी के साथ होने लगी। पार्टी के अनेक कार्यकर्ताओं की हत्या तक होने लगी। ऐसा नहीं कि ममता इस बार बह रही हवा को सूंघ न पाई हों। इसका तोड़ यही हो सकता था कि मुसलमान वोटों का ध्रुवीकृत कर लिया जाए। ममता अच्छी तरह जानती हैं कि हिंदू तो कभी उनके पक्ष में वोट कर नहीं सकता, लेकिन अल्पसंख्यक मुसलमान ऐसा कर सकता है। ममता ने मुसलमानों को खुश करने के लिए बंगलादेशी व रोहिंग्या की भाषा बोलनी शुरू कर दी। यहां तक कि जय श्री राम के अभिवादन को भी ममता ने अपमान बताना शुरू कर दिया। मामला जम ही रहा था कि बीच में हैदराबाद वाले ओवैसी आ टपके। उसने हिंदुस्तान में इस्लाम की रक्षा का नारा इतनी ज़ोर से लगाया कि ममता भी चौंक गईं। यदि मामला इस्लाम की रक्षा का होगा तो बंगाल का मुसलमान ममता पर विश्वास करेगा या ओवैसी पर? इसका उत्तर जानने के लिए ममता को किसी गुप्तचर एजेंसी की जरूरत नहीं थी। जब वे नंदीग्राम पहुंची तो इन सभी प्रश्नों का उत्तर उन्हें मिल चुका था। इसलिए नंदीग्राम पहुंचते ही उन्होंने सार्वजनिक सभाओं में चंडीपाठ करना शुरू कर दिया। मंदिरों की परिक्रमा करनी शुरू कर दी। पहली बार बंगाल की जनता को यह भी बताया कि मैं ब्राह्मण की बेटी हूं। लेकिन इन्हीं यात्राओं में अपनी कार में बैठते समय या तो उनके पैर में मोच आ गई या फिर कार की खिड़की बंद करते समय पैर बीच में आ गया और चोट आ गई। या फिर भीड़ में दरवाज़ा भिंच गया हो और ममता का पैर बीच में आ गया हो। जिनका पैर या हाथ कभी दरवाज़े में आ गया हो वे जानते हैं कि दर्द कितना तीव्र होता है। यहां तक तो ठीक था। चोट लगती है तो दर्द होता ही है। लेकिन ममता ठहरी राजनीतिज्ञ, राजनीतिज्ञ भी ऐसी जो चुनाव के भीषण संग्राम में फंसी हुई हैं। इतना ही नहीं, उनकी छवि भी ऐसी बन रही है जो विरोधियों को डराने व धमकाने के लिए हिंसा का प्रयोग कर रही हैं। इसलिए इस घायल हुए पैर का राजनीतिक प्रयोग क्यों न कर लिया जाए? राजनीति में सब जायज़ माना जात है, ख़ासकर उस समय जब लड़ाई आरपार की बन गई हो।  इसी रणनीति में से ममता पर हमले की बात पैदा हुई। ममता पर कार चढ़ाने की कोशिश की गई। उनको ज़बरदस्ती कार में डालने की कोशिश की गई। मामला ममता को मारने की साजि़श तक पहुंचाया गया।

पैर पर चोट के माध्यम से ममता को हिंसा कराने वाली नहीं बल्कि हिंसा की शिकार निरीह महिला बनाने की कोशिश की गई। लेकिन सार्वजनिक स्थान पर हज़ारों लोगों के सामने हमला कैसे हुआ? सुरक्षा कर्मचारी कहां थे? हज़ारों लोगों के सामने हमला करने के बाद कोई भाग कैसे सकता है? क्योंकि ममता कम से कम यह तो कह ही नहीं सकती थी कि हमलावर हमला करने के बाद कार अथवा मोटर साइकिल से भाग गए। इतना झूठ बोल पाना किसी भी स्थिति में संभव नहीं था, वह भी तब जब हर एक क्षण की वीडियो रिकार्डिंग की जा रही हो। लेकिन इस पूरे प्रकरण से ममता बनर्जी कितनी सहानुभूति बटोर पाएंगी और कितनी उपहास्यपूर्ण स्थिति में पहुंचेंगी, यह तो समय ही बताएगा, लेकिन इस पूरे प्रकरण ने कुछ सवाल अवश्य खड़े कर दिए हैं। पहला सवाल तो यही है कि दरवाज़े में फंस कर घायल हुए पैर की मरहम पट्टी कर सकने लायक कोई अस्पताल नंदीग्राम में नहीं था। इससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि बंगाल में मूलभूत सुविधाओं की उपलब्धता की क्या स्थिति है। इसके बावजूद ममता नंदीग्राम में विकास के लिए वोट मांग रही हैं। दूसरा सवाल इससे भी महत्त्वपूर्ण है। यदि सार्वजनिक स्थान में हज़ारों की भीड़ के सामने राज्य की मुख्यमंत्री को कुछ लोग धक्के मार सकते हैं, उन्हें जबरदस्ती कार में धकेल कर अपहरण का प्रयास कर सकते हैं, इतना ही नहीं सभी के सामने उनको कार से कुचलने की कोशिश कर सकते हैं तो प्रदेश में क़ानून व्यवस्था कैसी है? इस पर शोध करने की जरूरत नहीं है। इसके बावजूद ममता बंगाल के लोगों से आग्रह कर रही हैं कि उन्हें अगले पांच साल के लिए फिर मुख्यमंत्री बना दिया जाए, तो उनके साहस को सलाम किया जाना चाहिए।

ईमेलः kuldeepagnihotri@gmail.com


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