पुराने समझौते पर नई सहमति

By: Mar 1st, 2021 12:05 am

भारत-पाकिस्तान के महानिदेशक, सैन्य ऑपरेशन (डीजीएमओ) के बीच पुराने समझौते पर नई सहमति बनी है कि नियंत्रण-रेखा (एलओसी) के आर-पार युद्धविराम का सम्मान किया जाएगा। यानी अब ग्रेनेड नहीं फेंके जाएंगे, गोलीबारी नहीं होगी और गोले भी नहीं दागे जाएंगे। बेशक यह शांति-प्रयास स्वागतयोग्य है, लेकिन सवालिया भी है। युद्धविराम का समझौता 2003 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी और पाकिस्तान के तानाशाह राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ के दरमियान तय हुआ था। उसके बाद शायद ही कोई ऐसा दिन रहा होगा, जब सीमापार से संघर्षविराम का उल्लंघन न किया गया हो! बीते साल 2020 में ही 5133 बार यह उल्लंघन किया गया। उनमें 126 जवान घायल हुए, 21 नागरिक मारे गए और 71 लोग जख्मी हुए। सेना और अर्द्धसैन्य बलों के 70 से अधिक रणबांकुरों की ‘शहादत’ भी हमने देखी। बीते तीन सालों के दौरान 10,752 बार युद्धविराम का उल्लंघन किया गया, जिनमें 72 जवान शहीद हुए। सिर्फ  गोलीबारी या ग्रेनेड फेंकने तक ही उल्लंघन नहीं किया गया, बल्कि आतंकी लॉन्चपैड्स से घुसपैठ भी कराई गई और ज्यादातर आतंकी हमले सरहदी राज्य कश्मीर में कराए गए।

 यह है युद्धविराम पर पुराने समझौते का क्रूर सच…! बेशक पलटवार में भारतीय सेना ने भी पाकिस्तान की चौकियां तबाह की हैं और फौजी भी मारे गए हैं, लेकिन सवाल है कि इस मारा-काटी का हासिल क्या रहा? अब दोनों देशों के डीजीएमओ स्तर पर युद्धविराम समझौते की इबारत नए सिरे से लिखी गई है, तो यह विश्वहित और मानवहित में है। पाकिस्तान की फितरत भारत-विरोधी रही है। उसके स्कूली पाठ्यक्रमों में नफरतों के पाठ पढ़ाए जाते रहे हैं, जबकि भारत ने पाकिस्तान को ‘सबसे पसंदीदा मुल्क’ का दर्जा दे रखा था। कई स्तरों पर भारत अपने पड़ोसी देश की मदद भी करता रहा। भारत आज भी सह-अस्तित्व के मानवीय दर्शन में विश्वास रखता है। इसका एक छोटा, लेकिन बहुत महत्त्वपूर्ण उदाहरण यह है कि बीते दिनों पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान को श्रीलंका जाना था। पाकिस्तान ने भारत के वायु-क्षेत्र से गुज़र कर जाने की इज़ाज़त मांगी, तो भारत सरकार ने अनुमति प्रदान की। हालांकि ऐसे निर्णय कूटनीतिक सदाशयता के होते हैं। नई सहमति के बावजूद आशंकाएं और सवाल हैं, क्योंकि पाकिस्तान की सरज़मीं पर हाफिज सईद, मसूद अज़हर, लखवी, सैयद सलाउद्दीन सरीखे असंख्य आतंकियों के गुट और अड्डे लगातार सक्रिय रहे हैं। पाकिस्तान में आतंकवाद अब भी जिंदा है, लिहाजा ‘फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स’ (फाट्फ) को हालिया बैठक में फैसला लेना पड़ा कि पाकिस्तान अब भी ‘ग्रे लिस्ट’ में रहेगा। शुक्र है कि पाकिस्तान ‘काली सूची’ में जाने से फिलहाल बच गया। यदि उसे ‘काली सूची’ में धकेल दिया जाता, तो पाकिस्तान बर्बाद हो सकता था। ऐसा इमरान खान का भी सार्वजनिक तौर पर मानना है। बहरहाल मुद्दा पुराने समझौते पर नई सहमति का है, लेकिन पाकिस्तान ने सरहद पर एयर डिफेंस सिस्टम तैनात कर रखा है।

 इस्लामाबाद के आसमान में एफ-16 और जे-17 लड़ाकू विमानों की गर्जना सुनाई दे रही है और वजीर-ए-आजम इमरान ने कश्मीर समेत अन्य विषयों पर द्विपक्षीय संवाद के लिए माकूल माहौल बनाने का दायित्व भारत के जिम्मे मढ़ दिया है। पाक प्रधानमंत्री ने कश्मीर पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पुराने प्रस्तावों का राग फिर अलापा है। सहमति के बावजूद यह दोगलापन और सैन्य गतिविधियों का प्रदर्शन क्यों किया जा रहा है। हालांकि समझौते पर नई सहमति का स्वागत इमरान खान ने भी किया है। यह ऐसा निर्णय है, जो जाहिरा तौर पर शीर्ष राजनीतिक नेतृत्व और सैन्य प्रमुखों ने लिया होगा। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल की अंदरूनी भूमिका क्या रही है, उसकी सार्वजनिक व्याख्या नहीं की जा सकती। ऐसे फैसले के बावजूद दो सवाल गौरतलब हैं कि पाकिस्तान इस सहमति के लिए तैयार क्यों और कैसे हुआ? और आतंकवाद को लेकर क्या उसकी फितरत बदलेगी? इन दोनों सवालों के संदर्भ में अमरीका में नए राष्ट्रपति जो बाइडेन का आगमन और पूर्वी लद्दाख में चीनी सेना का पीछे हटना और अपने ढांचों को ध्वस्त करना बेहद महत्त्वपूर्ण और सामरिक घटनाक्रम हैं। दोनों ही स्थितियों में भारत विजयी मुद्रा में है। फिर भी पाकिस्तान कहां तक नई सहमति का निर्वाह करता है, यह वक्त ही साफ करेगा, क्योंकि पुराना समझौता भी पाकिस्तान ने ही तोड़ा था।


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