इतिहास लेखन में सहायक होता है लोकसाहित्य

By: Mar 21st, 2021 12:06 am

अतिथि संपादक : डा. गौतम शर्मा व्यथित

हिमाचली लोक साहित्य एवं सांस्कृतिक विवेचन -24

विमर्श के बिंदु

-लोक साहित्य की हिमाचली परंपरा

-साहित्य से दूर होता हिमाचली लोक

-हिमाचली लोक साहित्य का स्वरूप

-हिमाचली बोलियों के बंद दरवाजे

-हिमाचली बोलियों में साहित्यिक उर्वरता

-हिमाचली बोलियों में सामाजिक-सांस्कृतिक नेतृत्व

-सांस्कृतिक विरासत के लेखकीय सरोकार

-हिमाचली इतिहास से लोक परंपराओं का ताल्लुक

-लोक कलाओं का ऐतिहासिक परिदृश्य

-हिमाचल के जनपदीय साहित्य का अवलोकन

-लोक गायन में प्रतिबिंबित साहित्य

-हिमाचली लोक साहित्य का विधा होना

-लोक साहित्य में शोध व नए प्रयोग

-लोक परंपराओं के सेतु पर हिमाचली भाषा का आंदोलन

लोकसाहित्य की दृष्टि से हिमाचल कितना संपन्न है, यह हमारी इस शृंखला का विषय है। यह शृांखला हिमाचली लोकसाहित्य के विविध आयामों से परिचित करवाती है। प्रस्तुत है इसकी 24वीं किस्त…

डा. गौतम शर्मा ‘व्यथित’ मो.-9418130860

लोकसाहित्य से अभिप्राय उस मौखिक साहित्य से है जिसे लोक श्रुत परंपरा में समयानुरूप रचता है। वह जो देखता, अनुभव करता है, श्रुति-स्मृति में ही रच देता है और वही श्रुत परंपरा में कालजयी हो जाता है। अतः लोकसाहित्य में कल्पना की अपेक्षा प्रत्यक्षदर्शी भाव या प्रत्यक्षानुभूत भावों की व्यंजना होती है। निःसंदेह श्रुत परंपरा पर कहीं कुछ भूलने पर, स्वयं से जोड़ देने की प्रवृत्ति के कारण, प्रक्षिप्तांश जुड़ते चले जाते हैं। इसी कारण कई गाथाओं, कथाओं, गीतों के पाठांतर लोकप्रिय हो जाते हैं। कर्नल टाड ने भी राजस्थानी लोकगाथाओं के संकलन इतिहास में ऐसा कहा है। लोकगीत, लोकगाथाएं, लोककथाएं, कहावतें, लोकनाट्य, मुहावरे-प्रहेलिकाएं आदि लोकसाहित्य के लोकतत्त्व हैं। इन्हीं का संश्लिष्ट रूप लोकसाहित्य है। लोकसाहित्य इतिहास का सामयिक श्रुत दस्तावेज है।

इतिहास लेखन में यह अनेकविध सहायक होता है। उदाहरणतया लोकगीतों पर गहनता से विचार करें तो हमें ज्ञात होता है कि संस्कार गीत हमारी सांस्कृतिक परंपराओं, धर्म, पूजा, आस्था, लोकाचार पर प्रकाश डालते हैं। किस धर्म, संप्रदाय, मत-मतांतर ने कब, कैसे समाज को प्रभावित किया, इसका संकेत देते हैं लोकगीतों के विभिन्न रूप। लोकगाथाओं की बात करें तो पंवाड़े, हारें, बारें, हारुल स्थानीय राजाओं, राणों के पारस्परिक द्वंद्वों, द्वेषों, सामरिक अभियानों, विदेशी आक्रांताओं के अत्याचारों, सामरिक घटनाओं का परिचय देती हैं। इस दिशा में सिरमौर की हौकू मियां, मदना-ऊदू की हारें, कांगड़ा में राजा जगता, वीर राम सिंह पठानिया, राजा राज सिंह, गूग्गा पीर आदि की बारें, गाथाएं, हारें उद्वरणीय हैं। ऐसी ही गाथाएं कुल्लू, मंडी, कहलूर रियासतों में भी परंपरित हैं।

लाहुल-किन्नौर के घुरे गीत (कथा गीत) भी कम महत्त्वपूर्ण नहीं। लोकनाट्यों की बात करें तो मंडी का बांठड़ा रियासती काल में ‘स्टेट प्रेस’ की भूमिका निभाता था। राजा मंडयाल स्वयं बांठडि़यों को आमंत्रित कर उनके प्रदर्शन को देखता। वे अभयदान प्राप्त थे। राज्य में हो रहे अनाचार, अत्याचार, किसी भी प्रकार की घटना को स्वांग के माध्यम से राजा के सम्मुख प्रस्तुत करते। राजा के प्रति जनता क्या सोचती है, कानून, न्याय की क्या दशा है, इस लोकमंच के माध्यम से ज्ञात होता। यही भूमिका कम-अधिक रूप में करयाल़ची (करियाल़ा), भगतिए (भगत), बौरा, हरण, हौरण आदि प्रदर्शित करते। लाहुल का बूचेन लोकनाट्य भी मुखौटा स्वांगों के माध्यम से अतीत के इतिहास को दोहराता है।

समय के सच को कहना ही लोकनाट्यों की विशेषता रही है जिसका माध्यम हास्य-व्यंग्य-विनोद हैं। परंतु आज अपने सच को कोई भी सुन या देखकर हंसता नहीं, स्वयं को सुधारता नहीं, प्रत्युत क्रोधित होकर प्रदर्शनकारियों को दंडित करता है। अतः अपने मूल स्वभाव से अपरिचित होता जा रहा है लोकनाट्य मंच क्योंकि वह दर्शक समाज का कोपभाजन नहीं बनना चाहता। लोकसाहित्य के कहावतें, मुहावरे आदि भी भाषा की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण दस्तावेज हैं। हिमाचल की भाषाओं में प्रयुक्त ये लोक तत्त्व आक्रांता की भाषा के अनेक व्यापारों को स्वयं में पचाए हुए हैं। लोक भाषा में देशी-विदेशी हर प्रकार के शब्द, कहावतें, मुहावरे प्रचलित मिलते हैं जिनका व्यवहार या प्रयोग ग्रामीण जनमानस अनायासिक रूप में करता है। इस शब्द संपदा से भी जनपदीय इतिहास पर प्रकाश पड़ता है।

समग्र रूप में कहा जा सकता है कि इतिहास बोध या लेखन हेतु लोक भाषा भी महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। प्रसंगवश लोकनृत्यों की बात करना भी वाजिब होगा। लोकनृत्यों में गायन, नृत्य, भाव मुद्राएं, वाद्य ताल, संगीत, अभिनय समाहित रहते हैं या इन तत्त्वों की समग्रता का नाम ही लोकनृत्य है। इनका अध्ययन भी ऐतिहासिक प्रभावों को उद्घाटित करता है। अतः यह कहना कि लोकसाहित्य के विभिन्न तत्त्व, लोक तत्त्व, इतिहास लेखन में सहायक होते हैं, निराधार नहीं है, बल्कि सही है।


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