हिमाचली लोकसाहित्य में शोध परंपरा और संभावनाएं

By: Mar 28th, 2021 12:33 am

शिवा पंचकरण मो.-8894973122

लोकसाहित्य अंतरिक्ष की भांति अनंत है। साथ ही इसमें संभावनाएं भी खूब हैं। आप किसी भी छोर से इसे समझने का प्रयास कर सकते हैं। सरलता से लोक समझ भी आ जाएगा, लेकिन इसके पीछे छिपे विज्ञान के बारे में जानकारी लेते-लेते उम्र बीत जाएगी। कुल मिला कर भिन्न-भिन्न रूप लेकर लोक मानव को खुद में झांकने का निमंत्रण देता है और मानव भी शिशु की भांति लोकसाहित्य की लालिमा से प्रभावित हुआ उसके पीछे-पीछे चल देता है। आज हिमाचल प्रदेश में निरंतर लोकसाहित्य पर शोध हो रहा है।

हिमाचल के लोकसाहित्य में सबसे पहले शोध कुल्लुई लोकसाहित्य पर डा. पदमचंद्र कश्यप ने पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ से 1969 में किया था। इसके पश्चात डा. बंशीराम शर्मा ने 1970 में किन्नौर के लोकसाहित्य पर इसी विश्वविद्यालय में शोध किया था। तीसरे शोधकर्ता डा. गौतम शर्मा व्यथित भी इसी विश्वविद्यालय में पंजीकृत हुए, परंतु गुरु नानक देव विश्वविद्यालय अमृतसर के अस्तित्व में आने पर वहां से कांगड़ा के लोकगीत, साहित्यिक विश्लेषण एवं मूल्यांकन विषय पर जनवरी 1974 में हिंदी विभाग के प्रथम शोधकर्ता हैं। उसके बाद सिरमौरी लोकसाहित्य में डा. ख़ुशी राम गौतम और मंडियाल़ी में डा. कांशीराम आत्रेय का जिक्र किया जाता है। हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय भी अपनी स्थापना के उपरांत से ही लोकसाहित्य को सहेजने और उस पर कार्य करने के लिए नए छात्र-छात्राओं, शोधकर्ताओं को प्रेरित करता रहा है। विश्वविद्यालय में लोकसाहित्य और उसकी भिन्न विधाओं पर समय-समय पर शोध होते रहे हैं। हिप्र विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग से 1989 में डा. हेमप्रभा ने मंडयाली लोकसाहित्य का सांस्कृतिक अनुशीलन विषय पर और 1993 में डा. मीनाक्षी दत्ता ने मध्यकालीन कृष्ण काव्य के परिप्रेक्ष्य में हिमाचली लोकगीतों का अनुशीलन विषय पर पीएचडी की है।

हिमाचली लोकसाहित्य करियाला के साहित्यिक एवं सांगीतिक पक्ष, हिमाचली लोक रामायण का सांगीतिक पक्ष, हिमाचल लोककथा साहित्य का मनोवैज्ञानिक अध्ययन, हिमाचल प्रदेश के लोक वाद्यों का विश्लेषणात्मक अध्ययन आदि विषयों पर शोधकर्ताओं ने हमारे लिए बहुमूल्य खजाना रखा है। केवल हिमाचल ही नहीं, अपितु जिला अनुसार भी लोकसाहित्य पर शोधकर्ताओं ने शोध किया है। जैसे लाहुल-स्पीति के जनजातीय संगीत का विवेचनात्मक अध्ययन, कुल्लवी लोकसाहित्य की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, जिला मंडी की कहावतों का सांस्कृतिक अध्ययन, शिमला, सोलन व कुल्लू जिलों के लोक संगीत में लय तथा ताल का विवेचनात्मक अध्ययन, जिला मंडी में प्राचीन मंदिर, बिलासपुर जनपद के लोकसंगीत का अध्ययन, बिलासपुर, ऊना, कांगड़ा के लोकगीतों का संगीत पक्ष, किन्नौर जिले के लोकनृत्य-गीतों का सांगीतिक अध्ययन आदि विषयों पर बहुत अच्छा कार्य हुआ है। सभी विद्वान जनों के बारे में लिखना अपने आपमें मुश्किल कार्य है, इसलिए कुछ लोगों के कार्य के बारे में ही जानकारी दी जा सकती है।

आज लोक को पढ़ना, जानना सरल हुआ है तो इसका श्रेय उन विद्वान लोगों को ही जाता है जिन्होंने मेहनत करते हुए लोकसाहित्य जैसी अनमोल धरोहर को हमारे लिए संभाल कर रखने का लगातार प्रयत्न किया है। इतने सारे बुद्धिजीवियों द्वारा लोकसाहित्य में काम को देखते हुए लगता है कि आम जनमानस की लोकसाहित्य के प्रति अनुसंधान की प्रवृत्ति बढ़ी है। लोकसाहित्य पर हुए शोध के बारे में ढूंढते हुए एक अनुभव यह भी मेरे ध्यान में आया कि लोकसाहित्य की शाखा लोकगायन पर तो भरपूर शोध हुआ है, किंतु अन्य विधाओं पर अभी भी बहुत अधिक शोध की संभावनाएं हैं। हिमाचल के बाहर भी विभिन्न विश्वविद्यालयों में हिमाचली लोकसाहित्य पर बहुत सारे लोगों द्वारा समय-समय पर कार्य किया गया है, जिसकी सारी जानकारी ढूंढने में पाठक वर्ग भी मेरी सहायता कर सकता है।

लोकसाहित्य के संरक्षण और संवर्द्धन के लिए हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय और हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय अपनी भूमिका अच्छे से निभा रहे हैं और आशा है इसी प्रकार निरंतर कार्य चलता रहेगा। फिर भी आज आवश्यकता है कि इन संस्थानों में न केवल कुछ विषयों के अंतर्गत, बल्कि लोकसाहित्य को एक अलग विभाग बना कर उसमें और अधिक शोध किया जाए। हमारे पास समय कम है, पलक झपकते कब लोक आंखों के सामने से लुप्त हो जाएगा, यह हमें पता भी नहीं चल पाएगा।

ऐसा ही एक प्रयास हमारे सामने है जिमसें दिव्य हिमाचल दैनिक ने हिमाचल के लोकसाहित्य को लेकर जो चिन्हित बिंदुओं पर लेखकों के विचार आमंत्रित कर प्रतिबिंब में प्रकाशन शुरू किया है, अत्यंत सराहनीय और सामयिक प्रयास है। इससे निश्चित ही आम पाठकों को भी लोकसाहित्य के बारे में जानकारी मिल रही है। इसमें डा. गौतम शर्मा व्यथित को अतिथि संपादक के रूप में दिया दायित्व काफी लाभदायक रहा है। आशा है इस प्रकार के छोटे-छोटे प्रयासों से हिमाचली लोक और ज्यादा फलेगा-फूलेगा और आने वाली पीढि़यों के लिए लाभकारी सिद्ध होगा।


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