शिवजी को ढूंढता शिवजी

By: Mar 15th, 2021 12:06 am

निर्मल असो

स्वतंत्र लेखक

अचानक शिमला सचिवालय के पास शिवजी मिल गए। न जटाधारी और न ही गले में सांपों की कोई माला, बिलकुल नए अवतार में। मैं प्रभु-प्रभु चिल्लाया तो मुझे लगभग शांत करते हुए बोले, ‘दोबारा प्रभु मत बोलना, वरना लोग हमसे भी जनप्रतिनिधियों जैसा व्यवहार करने लगेंगे। बड़ी मुश्किल से मंदिर से निकला हूं, आजकल टीवी सीरियल में रोल कर रहा हूं।’ मैंने पूछा, ‘प्रभु आप टीवी में कैसे पहुंच गए और इसका क्या अर्थ है।’ ‘मनुष्य प्राणी, अब त्वरित भूमिकाओं में ही संसार का भला हो रहा है। पिछले सात सालों से स्वर्ग में देवता यही देख रहे हैं कि उनकी भूमिकाओं में इनसान उतर आए हैं। कभी-कभी खुद पर भरोसा नहीं होता कि हम इनसानों से कहीं ऊपर भगवान रहे हैं। मैं तो स्वयं अब अपनी दाढ़ी-मूंछ से डरता हूं कि कहीं कोई इसे किसी नेता से न जोड़ दे।’ मैंने देवों के देव यानी महादेव के सामने फिर कोशिश करते हुए उन्हें प्रभु कहा, लेकिन वह फिर मुकर गए और कहने लगे कि ‘प्रभु’ होना अब ‘लगता’ है, पहले वास्तव में होना कुछ और था। शिवजी से यूं ही पूछ बैठा, ‘शिवरात्रि के समय आप राजधानी शिमला में घूम रहे हैं। आपके नाम पर पूरा मंडी शहर जगमगा रहा है। आपकी आराधना में हर कोई गा रहा है। मंच से लेकर जमीन तक आपके नाम पर खुशियां हैं।’ शिवजी मेरे और करीब आए और धीरे से बोले, ‘शिवजी होने के नाते मैं उसे ढूंढ रहा हूं जिसे इनसानों में शिव नजर आ रहा है, बल्कि इनसानों को भगवान बनाने की फैक्टरी यहीं कहीं गूगल मैप से लोकेट हुई है। अभी कुछ दिन पहले तक में ब्रह्मलोक में था। वहां देवताओं तक ये सूचनाएं पहुंच रही हैं कि धरती पर अब लोग अपने भीतर के शिव को देख रहे हैं।

 वहीं कोई किसी रूप में कृष्ण सरीखा हो रहा है, तो प्रगतिशील इनसान सुदामा बनने को तैयार हैं। दरअसल मैं शिमला में आपके मंत्री सुरेश भारद्वाज से यह पूछने आया हूं कि क्या उसे मेरे भीतर कोई ‘शिव’ दिखाई दे रहा है या मुझे भी अपने रूप में प्रधानमंत्री को देखना पड़ेगा।’ शिवजी को अपनी असमर्थता पर दुख था। आखिर इनसान ने उनके सांपों को भी छीन लिया था। लंबी दाढ़ी और सिर के बाल छीन लिए थे। वह नारायण के कृष्ण रूप पर होती बंदरबांट देख रहे थे। आखिर चुनावी मंच में कृष्ण लीला कैसे शुरू हुई, उन्हें यह सब जानना था। वह इससे पूर्व पश्चिम बंगाल गए थे, लेकिन वहां भी इनसान को कद से बड़ा होते देखा, तो हिमाचल आ गए। आश्चर्य यह कि अब देवभूमि में शिवजी को भी नरेंद्र मोदी के बराबर होना पड़ रहा था। अंततः मैंने उचित समझा कि इन्हें माननीय मंत्री सुरेश भारद्वाज से मिला दूं। मैंने मंत्री के एक नजदीकी को बताया कि स्वयं शिवजी उनसे मिलना चाहते हैं, मिलने की सिफारिश कर दें। वह व्यक्ति हंस दिया और बोला अब भारत में ‘शिवजी’ का फैसला हो चुका है। देश के करोड़ों लोगों ने जिसे फकीर मान लिया, वही तो शिव है। जिसकी आराधना मात्र से देश सफल हो रहा है, वही तो शिव है। अंततः शिवजी को भी हार माननी पड़ी। उन्हें हैरानी बस यह है कि चुनावी सभा में कृष्ण ढूंढते-ढूंढते लोग खुद सुदामा बनने जा रहे हैं। कल इसी तरह चुनावी सभाओं में धरती पर ही सारे देवता ढूंढ लिए जाएं, तो देवलोक का क्या होगा। शिवजी देवलोक लौटना चाहते थे, अतः उनकी इच्छा स्वरूप मैंने उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एक तस्वीर भेंट कर दी। सुना है अब तमाम देवताओं की आराधना में भी एक नया जोश आ गया है।


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