गली का नामकरण

By: Mar 8th, 2021 12:05 am

निर्मल असो

स्वतंत्र लेखक

अचानक उनकी नजर पकौडे़वाली गली पर पड़ गई। खासा बाजार और हर दिन हजारों ग्राहक। उनका अटूट विश्वास था कि वहां सब इसलिए खुश हैं क्योंकि सत्ता यह सब करने दे रही है, वरना इन दुकानदारों में से पता नहीं कितनों ने उनकी पार्टी को वोट नहीं दिया होगा। उन्हें यह मालूम था कि देश में एक न एक दिन जो पकौड़े बनाएगा, रोजगार उसी का हो जाएगा। लिहाजा पकौड़ेवाली गली अब पार्टी के बड़े नेता के नाम से जोड़ दी गई। बाकायदा उनके नाम का प्रवेश द्वार बना दिया गया है। दुकानदार खुश हैं कि जब से वे अपनी गली को ‘नेता-नेता’ कहकर पुकारते हैं, न कोई इंस्पेक्टर और न ही कोई इंस्पेक्शन होती है। अब साथ लगती परांठेवाली गली को शिकायत है कि उसके ऊपर नेताओं की नजर क्यों नहीं पड़ती। गली के कुछ दुकानदार चाहते हैं कि अगली सरकार आने तक रुका जाए, जबकि अन्य सहमत हैं कि इस काम में देरी न की जाए। पकौड़े का व्यापार बढ़ता जा रहा है और लोग कभी इसे नेता समझ या कभी नेता के खिलाफ जाकर खा रहे हैं। परांठेवालों ने भी सोचा कि किसी चलते हुए नेता के नाम पर अगर गली हो जाए, तो हर परांठा अपने भीतर एक नाम लेकर पैदा होगा। खैर अब परांठा ‘आप’ का परांठा हो गया, तो कहीं पक्ष और कहीं विरोध का भी होने लगा। नेताओं के नाम से व्यापार भी उड़ान भरने लगा।

 सत्ता के नाम पर कभी पकौड़े बिक रहे थे, तो कहीं जूस निकल रहा था। गलियों में व्यापार का विरोधाभास भी पैदा होने लगा। दो प्रमुख दलों के आपसी रिश्तों का असर इतना व्यापक था कि हर व्यापारी अब पांच साल का हो गया। सत्ता के साथ व्यापार बदल रहा है। क्या पता अगली बार नेता या पार्टी के हारने पर पकौड़ा हार जाए या इसके सामने परांठा जीत जाए। एक ही शहर में अब परांठा और पकौड़ा दुश्मन हो गए। दो अलग-अलग पार्टियों के प्रतीत हो गए थे। अब व्यापारी अपनी गलियों को बचाने के लिए यह सोच रहे हैं कि पकौड़े और परांठे के बीच लगे हाथ धर्म भी ढूंढ लिया जाए। किसी ने कहा परांठा विशुद्ध भारतीय है, इसलिए हिंदू ही माना जाए। दूसरे ने कहा पकौड़ा खाते-खाते धर्म परिवर्तन हो गया, लिहाजा इसे मुस्लिम माना जाए। तीसरे ने कहा दोनों शाकाहारी हैं, इसलिए इनके बीच धर्म पैदा न करें, बल्कि यह देखें कि इन्हें खाकर कब से राष्ट्रवाद पैदा हो रहा है। किसी को ‘आप’ का परांठा होने पर शिकायत है, लिहाजा इसे सरकार विरोधी माना गया। अब गली वाले बड़े नेताओं की खाने की आदतों पर गौर कर रहे हैं। किसी ने कहा कि बड़े साहब तो पोहा खाते हैं, किसी ने कहा छोटे वाले नेता खमन ढोकला पसंद करते हैं। परांठेवाली गली का एक दुकानदार बीच में बोल पड़ा, ‘आजकल पश्चिम बंगाल का चुनाव ही तय कर रहा है कि बड़े साहब क्या खाएंगे। इसलिए मुझे लगता है कि ‘मिष्टी दोई’ या नवरात्रि-विजयादशमी में बनाई जाने वाली रैसिपी ‘एलो झेलो’ खा रहे होंगे।’ दिल्ली की दोनों गलियां कन्फ्यूज्ड हैं कि अब इनका नामकरण कैसे करें। अंततः फैसला हुआ कि राजधानी के चुनाव तक रुक जाएं। तब बड़े नेता इसी परांठे के दम पर चुनावी खाना पकाएंगे, तो हम भी अपनी गली का नाम रख देंगे।


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