घर का कवि हलाल बराबर

By: Mar 10th, 2021 12:05 am

अशोक गौतम

ashokgautam001@Ugmail.com

कल पता नहीं कवि शिरोमणि को क्या क्यों दौरा पड़ा कि वे घर में बरतन धोने को सेकेंड्री मान बैठे और कविता को प्राइमरी। बस, फिर क्या था, ज्यों ही उन्होंने जूठे बरतनों की ओर पीठ की, उनकी बीवी उन पर वैसे ही टूट पड़ीं, जब घनानंद ने भरे राज दरबार में राजा की ओर पीठ करके राजा के बदले अपनी प्रेमिका को कविता सुनानी शुरू कर दी थी, तो राजा घनानंद पर टूट पड़ा था। तब क्रोधित होकर राजा ने घनानंद को देश निकाला दे दिया था। उस समय देश में लोकतंत्र नहीं था, पर कवि प्रजापति था। पर देश में अब लोकंतत्र है, इसलिए वैसा हाल अबके अपने कवि का न हुआ, उससे भी बुरा हुआ। सो उन्हें घर निकाला देने के बदले उनकी बीवी ने अपने हिस्से के केवल दो कामों में से एक काम और कवि कुल गुरु के मुंह पर दे मारा ताकि कवि शिरोमणि आठ पहर चौबीसों घंटे घर के कामों से इतने दबे रहें कि कविता करने की सोच भी न सकें। अब देखती हूं, कैसे करते हो बरतनों की ओर पीठ करके कविता करने का दुस्साहस! तब उनके पति यानी कि हमारे कवि कुल शिरोमणि अपनी बीवी के चरणों में बहुत गिड़गिड़ाए।

अपनी गलती के लिए बीवी के चरणों में नाक रगड़ क्षमा मांगी, पर उनकी बीवी ने साफ  कह दिया, ‘घर के काम करते हुए कविता करना तो दूर, कविता के बारे में सोचना भी घोर अक्षम्य अपराध है। दूसरे अपराध की सजा मिले या न, पर इसकी सजा जरूर मिलकर रहेगी। और वह सजा है कि कल से मेरे हिस्से का इकलौता चाय बनाने का काम भी तुम ही करोगे। कल से तुम्हारी कविता न भुला दी तो मेरा नाम भी…।’ उनकी बीवी को केवल उनके द्वारा किए जाने वाले घर के कामों से सरोकार हैं। या कि उनकी बीवी ने उनसे विवाह किया ही उनसे घर के काम करवाने को है। उनकी कविता से उनकी धर्मपत्नी को कोई लेना-देना नहीं। जब वे घर के काम ठीक ढंग से करते हुए कविता सोच रहे होते हैं तो भी कई बार उनकी बीवी को उन पर गुस्से के बदले बहुत गुस्सा आता है। पतियों में कवि किस्म का पति ही सबसे निरीह पति होता है। कविता को बचाए रखने के लिए वह बीवी से कोई भी समझौता कर लेता है। उससे किसी भी ग्रेवटी की लताड़ हंसते हुए सुन लेता है। उनकी बीवी को इससे क्या लेना कि देहरी से बाहर उनकी क्या इज्जत है?

कि वे कितने बड़े कवि हैं? कि वे जब मंच पर दहाड़ते हैं तो बड़े बड़ों सरस्वती के चांस पुत्रों के होश उड़ जाते हैं। पर बेचारे वे ज्यों ही मंच पर से न चाहते हुए भी घर आते हैं, तो कवि शिरोमणि से कुवि हो जाते हैं। सारा वीर रस मंच से उतरते ही सीढि़यों पर बेहोश हो जाता है। वीर रस से लबरेज सारे शब्द होंठों पर से एकाएक यों गायब हो जाते हैं ज्यों गधे के सिर से सींग। …और घर की देहरी पार करते ही चंदरबरदाई चारण हो जाते हैं। बीवी का स्तुतिगान करने वाले। घर में फटे जूतों की कद्र है, घर में रद्दी अखबार की कद्र है, घर में फटे तौलिए की कद्र है, घर में फटे कनस्तर की कद्र है, पर अपने कवि कुल शिरोमणि की नहीं। उनको घर में गधे से अधिक कुछ नहीं समझा जाता। हे घर गृहस्थ की चक्की में पिसते कवि प्रजापति! मेरी कामना! कविता तुम्हारी आत्मा को शांति दे। हे घर की कूं कूं करने वाली राशन की दाल से भी गई गुजरी मुर्गी। तुम्हारी बीवी तुम्हें प्रजापति के दर्जे पर आसीन करे। हालांकि मैं जानता हूं कि मेरी यह न मुराद मुराद तब तक पूरी नहीं होगी जब तक गृहस्थ धर्म का पूरी ईमानदारी से पालन करने वाला कवि कविता करने का डर-डर कर रिस्क उठाता रहेगा।


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