पौंग बांध में सुरक्षा के कड़े इंतजाम हों

By: Mar 31st, 2021 12:06 am

आजकल तो फ्रोजन मुर्गा, बतख, मछली, गाय मांस, सी फूड, सब्जियां तक भी डिब्बाबंद होकर बाजारों में ज्यादा बिक रही हैं। खाद्य वस्तुओं की पैकिंग कब हुई और कब इनकी अवधि समाप्त हो रही है, कोई जांच करने वाला नजर नहीं आता है। हिमाचल प्रदेश प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण होने की वजह से पर्यटन का बेहतरीन स्थल बनकर उभर रहा है। पर्यटक यहां आकर अक्सर मुर्गा, मछली और बकरे का मीट खाना बेहद पसंद करते हैं। बर्ड फ्लू की वजह से पोल्ट्री फार्म, होटल, रेस्टोरेंट, ढाबा मालिकों के कारोबार पर भी असर पड़ा है। सरकार को बर्ड फ्लू के बारे में जनजागरण करना चाहिए…

कोरोना वायरस के बाद अब पुनः पौंग बांध में बर्ड फ्लू फैलने की वजह से पोल्ट्री फार्म का धंधा बंद होने की कगार पर पहुंच गया है। पौंग बांध में पर्यटकों की आमद पूरी तरह बंद किए जाने की बजाय उन्हें कोविड के दिशा-निर्देशों का अनुसरण करते हुए ही आने की पहल होनी चाहिए थी। पर्यटकों में जागरूकता बढ़ाने की बजाय उनसे गलती किए जाने पर एक हजार रुपए जुर्माना वसूलना इस महामारी का अंत नहीं है। पर्यटक स्थलों पर सुरक्षा के पुख्ता प्रबंध किए जाने की बजाय इन्हें पूर्णतया बंद कर दिया जाना सरकारों की कार्यप्रणाली के खिलाफ है। प्रत्येक वर्ष बर्ड फ्लू फैलने की सुर्खियां आने की वजह से पोल्ट्री फार्म व्यवसाय पर विपरीत असर पड़ता है। बैंकों से ऋण लेकर इस व्यवसाय से जुड़ने वाले लोग आखिर किस तरह बैंकों की किस्तें चुकाकर अपनी आजीविका कमाएं, यह सबसे बड़ा सवाल है। पौंग बांध में करीब चार हजार प्रवासी पक्षियों की बर्ड फ्लू की वजह से मौत हो जाने के कारण मुर्गों की बिक्री पर भी रोक लगाई गई थी। हालांकि प्रदेश सरकार ने मुर्गों की जांच करवाने के बाद दावा किया कि हिमाचल प्रदेश में अभी तक उनमें बर्ड फ्लू का कोई मामला नहीं है। हिमाचल प्रदेश की जनता ने एहतियात बरतते हुए मुर्गों को खाना बंद कर दिया था। नतीजतन पोल्ट्री फार्मों में मुर्गों का वजन बढ़ने के कारण हृदयघात से उनकी लगातार मौतें हो रही हैं, जिसकी वजह से लोगों में असमंजस की स्थिति बनी हुई थी।

सरकारी आदेशों के अनुसार पोल्ट्री फार्म मालिक ऐसे मरने वाले मुर्गों को जमीन में गड्ढा खोदकर दफनाते जा रहे हैं। ऐसे हालात में लोगों के दिलों में मुर्गों को लेकर भय अधिक बनता जा रहा है। दिल्ली में चल रहे किसान आंदोलन में करीब 200 किसानों की भारी ठंड की वजह से मरने की सुर्खियां हैं। अगर किसान ठंड से मर सकते हैं तो फिर प्रवासी पक्षी कैसे सुरक्षित रह सकते हैं? पौंग बांध क्षेत्र में पेड़ बहुत कम देखने को मिलते हैं। सर्दियों के मौसम में उसमें बड़ी तेज शीत लहरें उठती हैं, ऐसे में प्रवासी पक्षी आखिर कब तक जीवित रहते? प्रवासी पक्षी अपना आशियाना कहां बनाकर प्रजजन करते, यह एक बड़ा सवाल है। साइबेरिया में अत्यधिक ठंड पड़ती है, इसी वजह से मेहमान पक्षी हिमाचल प्रदेश के डैमों में प्रजजन करने आते हैं। मगर कुछेक वर्षों से देवभूमि के मौसम में बदलाव आया है। मौजूदा समय में इस कदर ठंड पड़ रही है कि पक्षियों का खुले आसमान में लंबे समय तक जीवित रहना मुश्किल है। रहने को आशियाना नहीं, खाने को अब पहले की भांति फल-फूल न मिलें तो ऐसे प्रवासी पक्षी आखिर कैसे जीवित रहें? बागबान पहले कई तरह के फलदार पौधे लगाकर रखते थे।

 पक्षी अक्सर इन्हें खाकर ही जीवित रहते थे। एक तो फलदार पौधे रहे नहीं, अगर कहीं देखने को मिलें तो बागबान उन पर कीटनाशक दवाइयों और स्प्रे का छिड़काव करके रखते हैं। सब्जियों, फलों और फसलों पर किए जा रहे कीटनाशक दवाइयों और स्प्रे का प्रभाव मनुष्य में भी अब देखने को मिल रहा है। ऐसे में मेहमान पक्षियों की सुरक्षा फिर कैसे संभव हो सकती है? हिमाचल प्रदेश में अन्य राज्यों की कंपनियां हमारे युवाओं को कांट्रेक्ट फार्मिंग के जरिए पोल्ट्री फार्म के व्यवसाय से जोड़े हुए हैं। यह कंपनियां पोल्ट्री फार्म बनाने वाले युवाओं को मुर्गे पालने के लिए देती हैं। पोल्ट्री फार्म मालिक ऐसे मुर्गों को 35 दिनों तक पालते हैं। मुर्गे जब दो किलो के हिसाब से तैयार हो जाते हैं तो उन्हें पुनः कंपनियों के हवाले बेचने के लिए सुपुर्द कर दिया जाता है। कंपनी प्रबंधक पोल्ट्री फार्म मालिकों को कमीशन के हिसाब से भुगतान करते हैं। अगर मुर्गे की लागत बाजार में ज्यादा रहेगी, तभी पोल्ट्री फार्म मालिक के हिस्से मोटी कमीशन आती है। इस व्यवसाय में इनका आकर्षण बना रहे, इसलिए कंपनी मालिक कभी-कभार इन्हें नकद उपहार भी देते हैं। कोरोना वायरस आने की वजह से लोगों ने बिल्कुल ही मुर्गे खाने बंद कर दिए थे। नतीजतन लोग सौ रुपए के चार मुर्गे बिकने के बावजूद इन्हें खरीदना नहीं चाहते थे। लोगों का धीरे-धीरे आत्मबल बढ़ा और पोल्ट्री फार्म का कारोबार थोड़ा पटरी पर आया कि इस बीच बर्ड फ्लू आने से हालात फिर वैसे ही बन चुके हैं। अग्नि सब कुछ भस्म कर देती है। अगर मांस कीटाणु युक्त हो तो इसे अच्छी तरह पकाए जाने पर वह खाने योग्य बन जाता है, यह दावा सरकारी विभाग कर रहे हैं।

पोल्ट्री फार्म को लेकर लोगों में भ्रांतियां फैलाई जा रही हैं। मगर वर्षों से बाजारों में बिना जांच के बिकते बकरों के मीट पर कोई फोकस नहीं करना चाहता है। बूढ़े व बीमार बकरे-बकरियों को काटकर बाजारों में बिकने के लिए सजाया जाता है। ग्रामीण लोग आंखें बंद करके मीट खरीदकर खाते जा रहे हैं, मगर सरकारें इस तरफ अपना ध्यान आकर्षित नहीं करना चाहती हैं। नगर परिषदों में बकरों को पशु चिकित्सकों से जांच करवाने के बाद ही काटा जाता है, मगर अन्य बाजारों में बिना जांच के मांस बेचा जा रहा है। इनसान अंदर शरीर से संक्रमित सबसे ज्यादा मांस खाने से होता है। आजकल तो फ्रोजन मुर्गा, बतख, मछली, गाय मांस, सी फूड, सब्जियां तक भी डिब्बाबंद होकर बाजारों में ज्यादा बिक रही हैं। खाद्य वस्तुओं की पैकिंग कब हुई और कब इनकी अवधि समाप्त हो रही है, कोई जांच करने वाला नजर नहीं आता है। हिमाचल प्रदेश प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण होने की वजह से पर्यटन का बेहतरीन स्थल बनकर उभर रहा है। पर्यटक यहां आकर अक्सर मुर्गा, मछली और बकरे का मीट खाना बेहद पसंद करते हैं। बर्ड फ्लू की वजह से पोल्ट्री फार्म, होटल, रेस्टोरेंट, ढाबा मालिकों के कारोबार पर भी असर पड़ा है। हिमाचल प्रदेश सरकार को बर्ड फ्लू के बारे में जनता को सजग किए जाने के लिए अभियान छेड़ना चाहिए।


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