धरोहर संरक्षण के लिए लेखकीय पहल

By: Mar 14th, 2021 12:04 am

क्या आप न्यूंद्रा, पाखी, घड़ोह्ली, जुंगड़ा, खालह्डू, त्रयांगल, छिकड़ी, पातरी, खुरली, खंदोलू, उखल, चोरिंग, पाथा, भरनी, हुक्का, भ्याई पूजन, कड़याठी, मांजरी, बिन्ने, शहनाई, चक्की और ज्वारी आदि हिमाचली चीजों, उपकरणों, रस्मों, विधियों से परिचित हैं? जवाब शायद यह होगा कि पुरानी पीढ़ी तो संभवतः इनसे परिचित होगी, लेकिन युवा पीढ़ी में बिरले ही युवा होंगे जो इनसे परिचित होंगे। ज्यादातर युवाओं का इनसे कुछ भी लेना-देना नहीं है। ऐसे ही युवाओं और अन्य अनभिज्ञ लोगों को इनसे परिचित कराने के लिए साहित्यकार पवन चौहान ने बड़ी लेखकीय पहल की है। इन सबकी जानकारी आम लोगों तक पहुंचाने के लिए उन्होंने एक किताब लिखी है जिसका शीर्षक है ः ‘जड़ों से जुड़ाव’। इस विषय को केंद्र में रखकर लिखी जाने वाली यह संभवतः हिमाचल की पहली पुस्तक है।

लेखक कहते हैं कि इस पुस्तक में वह कुछ ही धरोहरों पर कलम चला पाए हैं क्योंकि एक पुस्तक में पूरी धरोहर को समेट पाना संभव नहीं था। इसलिए आगामी पुस्तक में अन्य धरोहरों पर अवश्य बात की जाएगी। युवा लेखक पवन चौहान ने मामूली-सी दिखने वाली वस्तुओं, लेकिन अमूल्य और इतिहास, कला, शिल्प, श्रम और संवेदना को समाहित करने वाली धरोहरों को सामने लाकर श्लाघनीय कार्य किया है। समस्त आलेख कल्पना से गढ़े गए नहीं हैं, बल्कि ये घर-घर, स्थान-स्थान पर जाकर, प्रत्येक जागरूक और ज्ञानी, अनुभवी लोगों से जानकारी एकत्र कर मनभावन शैली और सहज व सरल भाषा में प्रस्तुत किए हैं। समस्त धरोहरों पर लिखे आलेखों के साथ चित्र, आलेख की गुणवत्ता और समझबूझ में चार चांद लगाते हैं। हिमाचली धरोहरों के जन-प्रसार और संरक्षण की दिशा में यह बड़ा कदम है। सभी तरह के ज्ञान-पिपासुओं, शोधकर्ताओं के लिए लेखक की यह सुंदर सोच, श्रम और अतिरिक्त संवेदना से लिखी पुस्तक सदैव धरोहर के रूप में चिर-रक्षित रहेगी। लेखक को इस श्लाघनीय कर्म के लिए बधाई है और आशा है कि वह अपने प्रयास भविष्य में भी जारी रखेंगे। वनिका पब्लिकेशंज नई दिल्ली से प्रकाशित यह पुस्तक तीन सौ रुपए कीमत की है।

-फीचर डेस्क


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