कोरोना बंदिशों से परेशान कलाकार समाज

प्रदेश स्तर पर एक बहुत ही मजबूत सांस्कृतिक नीति की आवश्यकता है जिसमें कला एवं संस्कृति के विकास तथा उत्थान के साथ सभी कलाओं के कलाकारों को आर्थिक रूप से समृद्ध एवं सबल बनाने की जरूरत है…

लगभग एक वर्ष से कोरोना समाप्ति की प्रतीक्षा करते हिमाचली कलाकारों की आशाओं पर एक बार फिर से पानी फिर गया है। शादी समारोहों, त्योहारों, मेलों, जागरण, कीर्तन, सांस्कृतिक, सामाजिक तथा धार्मिक समारोहों में अपनी कलाओं से लोकरंजन करते कलाकार फिर से कोरोना की बंदिशों से मायूस हो गए हैं। कोरोना संक्रमण ने फिर से अपने तेवर दिखाने शुरू कर दिए हैं। स्कूलों, कॉलेजों, समारोहों तथा भीड़भाड़ पर प्रतिबंध शुरू हो गया है। लोगों का कहना है कि पता नहीं कोरोना को शादियों, शिक्षण संस्थानों तथा सांस्कृतिक कार्यक्रमों से क्या नफरत है, चुनावी रैलियों से तो यह कोई परहेज़ नहीं करता। प्रदेश के कलाकारों का कहना है कि शिवरात्रि तथा नलवाड़ी के मेले शुरू होने से कुछ आस बंधी थी, लेकिन अब सरकारी बंदिशों की अधिसूचना से निराशा ही हाथ लगी है। सोलन नगर निगम चुनाव में अपने प्रत्याशियों के समर्थन में आयोजित रैली को संबोधित करने पहुंचे प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से कलाकारों के एक प्रतिनिधिमंडल ने अपना आक्रोश व्यक्त करते हुए अपनी गुहार लगाई। गायकों, वादकों, नर्तकों, लाइट एंड साउंड के कारोबार करने वालों के साथ-साथ टैंट हाउस के लोगों ने मुख्यमंत्री के समक्ष कोरोना से उत्पन्न हुए हालात से परेशान कलाकारों ने लगाई गई बंदिशों का विरोध करते हुए अपना ज्ञापन दिया।

 कलाकारों को कहना है कि इस व्यवसाय के लिए उन्होंने वर्षों की संगीत साधना की है। यह व्यवसाय अपनी आजीविका के साथ-साथ उनके परिवारों का भरण-पोषण का साधन है। लेकिन इस बैरी कोरोना से लगे प्रतिबंधों ने उन्हें भूखा रहने पर मजबूर कर दिया है। उनके जीवन की परेशानियां, मानसिक तथा मनोवैज्ञानिक दबाव बढ़ रहा है। वर्तमान में सारे कारोबार चल रहे हैं, लेकिन कोरोना तथा सरकार को केवल सांस्कृतिक समारोहों से ही समस्या है। संगीतकारों, गायकों, वादकों, नर्तकों, मंच संचालकों को प्रस्तुतियों का मौका नहीं मिल रहा। इसके फलस्वरूप कई कलाकार अपना व्यवसाय छोड़कर छोटा-मोटा काम-धंधा, रेहड़ी-फड़ी, मजदूरी करने पर विवश हैं। संगीत में एमए, एम.फिल तथा पीएचडी तक शिक्षा प्राप्त कर चुके डिग्रीधारी भी परेशान हैं। नौकरी तथा रोजगार का कोई साधन नहीं है। कलाकार अपने वाद्य यंत्र बेचने पर मजबूर हैं। पालमपुर, चंबा, शिमला, कुल्लू तथा प्रदेश के कई अन्य शहरों में भी आक्रोशित कलाकारों के नाराज़गी भरे सुर उभरने लगे हैं। प्रदेश की कोई स्थायी तथा सुदृढ़ सांस्कृतिक नीति न होने के कारण कलाकारों में रोष है। समय-समय पर प्रदेश तथ विभिन्न जि़ला स्तर पर विभिन्न कलाकार परिषदों, कलाकार संघों के माध्यम से प्रशासनिक अधिकारियों, मंत्रियों तथा मुख्यमंत्रियों को ज्ञापन दिए जाते हैं, लेकिन किसी भी स्तर पर कलाकारों की समस्याओं का कोई स्थायी हल नहीं निकलता। कलाकारों को हल्के में लेकर केवल मनोरंजन का साधन ही समझा जाता है। सांस्कृतिक अवसर न मिलने के कारण उसका द्रवित तथा पीडि़त होना बहुत ही दुःखद है।

हिमाचल प्रदेश में एक बहुत बड़ा वर्ग संगीत, साहित्य, लोकसंगीत, नाट्य, अभिनय, लेखन, मूर्तिकला, चित्रकला, शिल्प कला तथा अन्य कलाओं के सृजन से जुड़ा है। सरस्वती का यह पुजारी वर्ग प्रशासनिक उदारता तथा सामाजिक व्यवस्था में लक्ष्मी की कृपा से वंचित है। समारोहों, त्योहारों, मेलों, सांस्कृतिक आयोजनों पर प्रतिबंध लगा है। अपनी कला से आजीविका पर निर्भर कलाकार पारिवारिक भरण-पोषण के लिए मजबूर हो चुका है। इन सामाजिक, धार्मिक तथा सांस्कृतिक आयोजनों में प्रदेश का लोक तथा परंपरागत विधाओं का कलाकार आर्थिक रूप से प्रभावित हुआ है। कला साधना के लिए शांति, संतुष्टि तथा आर्थिक संपन्नता की आवश्यकता होती है। भूखे भजन कभी नहीं हो सकते। प्रदेश में हज़ारों गायक, वादक, नर्तक, लोक नाट्य तथा परंपरागत कलाकार काम न मिलने के कारण अपने घरों तक सीमित हो चुके हैं। सांस्कृतिक समारोहों का आयोजन न होने के कारण वीडियोग्राफी, फिल्म निर्माता, फोटोग्राफर, लाइट एंड साउंड, टेंट हाउस तथा वस्त्र-आभूषणों के कारोबार लगभग बंद हो चुके हैं। सरकारी समारोहों में लोक कलाकारों को मौका नहीं मिलता। यदि अवसर मिलता भी है तो उचित मानदेय नहीं मिलता। बड़े समारोहों में टेंट, लाइट-साउंड वाले चंडीगढ़, पंजाब और दिल्ली से बुला लिए जाते हैं। प्रदेश का यह सामान्य वर्ग अवसर की तलाश में ठगा सा रह जाता है। प्रदेश के इतिहास में पहली बार किसी मुख्यमंत्री ने कलाकारों से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से सीधा संवाद किया। 24 मार्च 2021 को हिमाचल प्रदेश के पूर्ण राज्यत्व स्वर्ण जयंती वर्ष के उपलक्ष्य में आयोजित होने वाले कार्यक्रमों के लिए मुख्यमंत्री का कलाकारों से सीधी वार्ता करना बहुत ही प्रशंसनीय था। हालांकि चर्चा प्रदेश स्तर पर आयोजित होने वाले कार्यक्रमों से हटकर कलाकारों की व्यक्तिगत समस्याओं की ओर केंद्रित होती रही।

 स्वर्ण जयंती रथ यात्रा तथा समारोहों पर अपने मुख्य उद्देश्य से अवगत करवाकर कलाकारों का सुझाव एवं सहयोग लेने के लिए बात करना मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर का यह बहुत ही सराहनीय पहल एवं प्रशंसनीय प्रयास था। वर्तमान परिस्थितियों में कलाकारों का यह दर्द उनकी दशा को बयान करता है। कलाकार जब तक खुशहाल नहीं होगा, तब तक प्रदेश में सांस्कृतिक खुशहाली की बात करना बेमानी होगी। कलाकारों की व्यथा को सुनकर कोई हल निकाला जाना चाहिए। प्रदेश में आयोजित होने वाले सभी सरकारी, सामाजिक, सांस्कृतिक तथा धार्मिक आयोजनों में बाहर के कलाकारों की भागीदारी तथा बजट व्यय चालीस प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए।  समाज में कलाकार वर्ग को प्रोत्साहन दिए जाने की आवश्यकता है। शिक्षित युवाओं को रोजगार के अवसरों के साथ-साथ उनकी कला प्रदर्शन के अवसर मिलने चाहिएं। शास्त्रीय संगीत, फिल्म संगीत, लोक संगीत, मंच, दृश्य एवं श्रव्य कलाओं के साथ-साथ साहित्य, लेखन, लोकसाहित्य तथा विभिन्न कलाओं को प्रोत्साहन देना चाहिए। प्रदेश स्तर पर एक बहुत ही मजबूत सांस्कृतिक नीति की आवश्यकता है जिसमें कला एवं संस्कृति के विकास तथा उत्थान के साथ सभी कलाओं के कलाकारों को आर्थिक रूप से समृद्ध एवं सबल बनाने की जरूरत है।


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