भाजपा की चुनावी पहल

By: Apr 24th, 2021 12:05 am

राजनीति की कोख में कोशिश न हो, सारे भ्रमों की भ्रूण हत्या हो जाएगी। यही अंदाज सियासत को रेत-रेगिस्तान, श्मशान-कब्रिस्तान में टहलने का दुस्साहस देता है। अकल्पपनीय शक्ति और अतार्किक संबोधनों की मस्ती में राजनीति के इतर तो कुछ भी प्राथमिक नहीं हो सकता, इसलिए कोरोना की कालावधि में सारे संयम की गुंजाइश जनता से ही जुड़ी रहेगी। यह इसलिए कि नए दौर में भले ही पाबंदियों की बेडि़यों में जनता की मंजिलें लहूलुहान हो जाएं, राजनीतिक कदम न थकेंगे और न ही हारेंगे। कोरोना बंदिशों के बीच मंडी संसदीय क्षेत्र का उपचुनाव व उसकी संभावना को जीवंत करती राजनीति ने भाजपा के उत्साह को कम नहीं होने दिया। भाजपा ने अपनी शक्ति के प्रतीक के रूप में जल शक्ति मंत्री महेंद्र सिंह, शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह ठाकुर और राकेश जम्वाल के हाथों में कमान सौंपी है। जाहिर है इसके जवाब में कांग्रेस पार्टी भी अपनी एकजुटता के गुणगान में कुछ नेताओं का अग्रिम मोर्चा बनाएगी। इसी के साथ फतेहपुर  विधानसभा उपचुनाव की बागडोर में राजनीतिक इश्तिहार तैयार होंगे। यानी कोविड काल के बीच सियासी दुर्ग बचाने की अनूठी मुहिम में भाजपा ने पुनः बता दिया कि यह पार्टी किसी भी सरहद के पार जा सकती है।

 यह उपचुनाव ऐसा क्या तय करेगा, जो स्थानीय निकाय या नगर निगम चुनावों से हासिल नहीं हुआ या यही ऐसा मोड़ है जहां से अगली सत्ता का रुख तय होगा। जाहिर है इस मचान पर मुख्यमंत्री का हर दांव देखा जाएगा, लेकिन कोरोना से निपटना भी तो एक कसौटी है। राष्ट्रीय स्तर पर भी सिरधर की बाजी लगा कर भाजपा ने अपने सारे जहाज पश्चिम बंगाल के चुनावी मैदान पर उतार कर, अपने साहस, सामर्थ्य और समर्थन के दांव पर लगा कर राजनीति का लंगर लगा दिया है, तो क्या हिमाचल भी ऐसी ही किसी संस्कृति का मुरीद हो जाएगा। एक प्रयोगशाला नगर निगम चुनावों में जरूर बनी और इसी के परिप्रेक्ष्य में परिणामों की खेप में सभी पार्टियों की उधेड़बुन खत्म नहीं हुई। दरअसल राजनीति अपने घौंसलों के निर्माण में जनता को चिडि़या बनाने में माहिर है। अब फिर मंडी के घौंसले का सवाल इस प्रदेश की इज्जत पर भारी पड़ने वाला है। यह कोविड संकट पर भारी पड़े या न पड़े, लेकिन सियासत को तो अपना वजन साबित करना है। भाजपा की चुनावी पहल में जलशक्ति मंत्री महेंद्र सिंह का वजन अब निर्विवादित रूप से भारी है और वह आधी सरकार अपने कंधों पर ढोते हैं। ऐसे में मंडी उपचुनाव अगर सरकार को साबित करने का जरिया बन गया, तो इस कशमकश में कहीं जनहित की किश्तियां बहक न जाएं। राज्य अपने कर्मयोग की ऐसी परीक्षा का सामना कर रहा है जहां कोविड के बढ़ते मामले, सरकारी तामझाम का अवमूल्यन ही कर रहे हैं। सरकारी कामकाज का दारोमदार इस समय प्रशासन व सेहत महकमे का रहेगा।

 ऐसे में चुनावी सफलता के आयाम किस तरह वर्तमान परिस्थितियों से भिन्न होंगे या यह भी कि सरकार के प्रदर्शन में चिकित्सकीय सुविधाएं किस हद तक देखी जाएंगी, इस पर नए मुद्दे उभरेंगे। नगर निगम चुनावों ने जनप्रतिनिधियों के चयन की समीक्षा में जहां तक हेकड़ी उतारी, उससे कहीं आगे मंडी संसदीय क्षेत्र का उपचुनाव पूरी सरकार को शीशे पर उतार सकता है। कोविड संक्रमण के बढ़ते मामलों के बीच चुनावी यलगार का औचित्य कितना तर्कपूर्ण या अर्थपूर्ण हो सकता है, इसे हिमाचल का साक्षर मतदाता अवश्य ही समझ सकता है। आश्चर्य यह कि कहीं कोविड फंड की दरकार में सरकार को अपने इंतजाम की बपौती में सरकारी कर्मचारी की जेब देखनी पड़ती है तो कहीं सत्ता को दो उपचुनावों की खेती में सियासी फसल उगानी पड़ती है। आपदा के बीचोंबीच खुलती राजनीति की खिड़कियां न जाने किस क्षितिज को अपना रही हैं, जबकि मानव इतिहास के पन्नों को गहन अनिश्चय बदरंग कर रहा है। कांटों में फंसा मानव भविष्य किस तरह एक चुनावी रसीद से सुधर सकता है, इसका अनुमान लगाना भी पाप सरीखा होना चाहिए, लेकिन यहां राजनीति को अवतार बनने की लत लग गई है। देखें कल इस फिराक में उतर रही सियासत न जाने कौन सा अफीम चटा देती है।


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