शिकायत, गुस्सा और सलाह

By: Apr 1st, 2021 12:07 am

अक्सर हम पूरी स्थिति समझे बिना फटाफट सलाह देने पर उतारू हो जाते हैं। उससे बात बिगड़ जाती है। हम सामने वाले का भला चाहते हैं, लेकिन हम इस ढंग से काम नहीं करते कि हमारा रुख उसे पसंद आए। यही स्थिति तब होती है जब हम अपनी कोई बात किसी को समझाना चाहें, मनवाना चाहें तो हमारा रुख क्या होना चाहिए? यह एक आम समस्या है जिससे हम रोज़ ही दो-चार होते हैं। इस समस्या से पार पाने का तरीका यह है कि हम सवाल पूछें, ज्यादा सवाल पूछें और अंततः सवालों के ही माध्यम से सामने वाले को उस स्थिति तक ले आएं जहां या तो उसे अपनी समस्या का समाधान मिल जाए या वह हमारे प्रस्ताव पर सहमत हो जाए, हमारी बात से सहमत हो जाए, हमारा काम कर दे…

यूट्यूब एक ऐसा मंच है जहां दुनिया का कोई भी व्यक्ति कोई वीडियो अपलोड कर सकता है और दुनिया भर में अपना संदेश फैला सकता है। यूट्यूब पर अपने वीडियो अपलोड करने वालों का एक समूह है यूट्यूबर्स कलैक्टिव, जिसने हाल ही में मेरे यूट्यूब चैनल से प्रभावित होकर मुझे आमंत्रित किया ताकि मैं उनके साथ अपने अनुभव बांट सकूं। यूट्यूबर्स कलैक्टिव के सदस्य पेशेवर लोग हैं और उनमें से कई बहुत वरिष्ठ पदों पर विराजमान हैं, बड़ी कंपनियों में बड़े पदों पर विराजमान हैं या कंपनियों के मालिक हैं। ये लोग बड़ी-बड़ी टीमों का नेतृत्व कर रहे हैं। मैंने उन्हें प्रस्ताव दिया कि पहले पंद्रह मिनट हम अनौपचारिक बातचीत करेंगे और फिर मैं अपने अनुभवों की बात करूंगा। बातचीत में शीघ्र ही स्पष्ट हो गया कि ये वरिष्ठ, सफल और प्रतिष्ठित लोग भी तीन समस्याओं से परेशान हैं और वे समस्याएं हैं अपने जीवन से शिकायत, अचानक गुस्से का लावा फूट पड़ना और किसी प्रियजन को उसके लाभ की सलाह देने के बावजूद उसकी उपेक्षा या नाराज़गी मोल लेना, तो मैंने तय किया कि मैं इन्हीं विषयों पर बात करूंगा। मैंने यूट्यूब के इन रसिया लोगों से अपने यूट्यूब चैनल हैपीनेस गुरू पीके खुराना के संदर्भ में ही बात की ताकि वे बाद में भी उसका लाभ ले सकें। इसी पृष्ठभूमि में मेरा सैशन शुरू हुआ।

बचपन में जब हमारे दूध के दांत टूटते हैं तो सबको खुशी होती है कि अब नए और पक्के दांत उगने का समय आ गया है। लेकिन जब हम बड़े हो जाते हैं और हमारी गलत आदतों के कारण दांत में कीड़ा लग जाए तो वह दांत दर्द करने लगता है। कोई एक दांत जब दर्द कर रहा हो तो मानो दिल, दिमाग़ और शरीर उसी दांत में सिमट जाते हैं। दर्द दे रहा दांत याद रहता है और हम बाक़ी सब कुछ भूल जाते हैं। तब वो समय है जब हम याद रखें कि हमारे सभी दांत दर्द नहीं कर रहे हैं और हमारा बाक़ी शरीर भी स्वस्थ है। जब हम सिर्फ  एक परेशानी की ओर ध्यान देने के बजाय जीवन की दूसरी खुशियों को न भूलें, उन खुशियों का आनंद लें, भरपूर आनंद लें और परेशानी के कारण को दूर करने का उपाय करें। समस्या यह है कि हमने अपना जीवन भी ऐसा ही बना लिया है कि जो खुशियां और वरदान हमारे पास हैं, हम उनका आनंद नहीं लेते और दर्द कर रहे किसी एक दांत की परेशानी में ही उलझे रहते हैं। इसी आदत को बदलकर हम अपना जीवन बदल सकते हैं। यह सीख मेरे अपने जीवन का वह मोड़ थी, जिसने मुझे हैपीनेस गुरू बना दिया। मैं समझ गया कि लोग उन जगहों पर खुशी ढूंढ़ रहे हैं, जहां असल में कुछ भी नहीं है, और मैंने खुशियां बांटनी शुरू कर दीं। इस प्रकार मैं जीवन में खुशियों का खज़ाना ढूंढ़ सका और बांट सका।

 हम यदि यह कर सकें तो जीवन में शिकायतें समाप्त हो जाएंगी। हमारे गुस्से का भी यही हाल है। जब कोई हमारी बात न माने तो हमें गुस्सा आ जाता है, कोई हमें चिढ़ा दे तो हमें गुस्सा आ जाता है, कोई हमारा अपमान कर दे तो हमें गुस्सा आ जाता है, कोई हमारा नुकसान कर दे तो हमें गुस्सा आ जाता है। पर बहुत बार ऐसा भी होता है कि हमें गुस्सा आया लेकिन हम अपना गुस्सा प्रकट नहीं कर पाते और चुपचाप गुस्सा पी जाते हैं। ऐसा जाने-अनजाने कई बार होता है। इसके विपरीत कई बार ऐसा भी होता है कि हमें गुस्सा आया, हम फट पड़े और बाद में हमें पछताना पड़ा। कोई हमारा अपमान कर दे या नुकसान कर दे तो गुस्सा आना स्वाभाविक है। लेकिन क्या हमने कभी सोचा है कि गुस्सा आना और गुस्सा दिखाना दो अलग-अलग बातें हैं, दो अलग-अलग क्रियाएं हैं? गुस्सा आया, इसका मतलब है कि हम गुस्से में हैं और गुस्सा हमें नियंत्रित कर रहा है। कंट्रोल में हम नहीं हैं, हम भावनाओं में बह गए हैं और हमारा गुस्सा हमें कंट्रोल कर रहा है। गुस्सा दिखाया, इसका मतलब है कि हमें गुस्सा आया या नहीं आया, आया भी तो हमने उसका विश्लेषण किया और अपने गुस्से पर काबू पाकर ऐसा अभिनय किया मानो हम गुस्से में हों। इसका मतलब है कि हम अपने कंट्रोल में हैं, हम गुस्सा होने की एक्टिंग कर रहे हैं ताकि सामने वाले से मनचाहा काम करवा सकें। ‘गुस्सा आया’ और ‘गुस्सा दिखाया’ में यही अंतर है। इसका गुर बहुत छोटा-सा है और बहुत कारगर है। यूट्यूब पर मेरे वीडियो ‘जेब में चने, तो रिश्ते घने’ में इसी का वर्णन है। मैं अपनी जेब में हमेशा भूने हुए चने का पैकेट रखता हूं। जब भी गुस्सा आए, मैं पहले पैकेट निकालता हूं, चने चबाने लगता हूं और सोचता हूं कि गुस्सा क्यों आया? इससे मुझे विश्लेषण का समय मिल जाता है, लौह विटामिन से भरपूर चने खाता हूं और मौका संभाल लेता हूं। बस इस छोटे-से गुर से मैं सफलता की सीढि़यां चढ़ता चला गया। शिकायत और गुस्से पर बात करने के बाद मैंने अगली समस्या की चर्चा की।

कभी जब हमारा कोई साथी, कोई प्रियजन किसी समस्या से दो-चार होता है तो हमारा बहुत मन होता है कि हम उसे सलाह दें ताकि वह उस समस्या से मुक्ति पा सके। इस उत्साह में कई बार हम पूरी पृष्ठभूमि जाने बिना सलाह दे डालते हैं, कई बार तो बिना मांगे ही सलाह दे डालते हैं। लेकिन अगर सचमुच किसी ने हमसे सलाह मांगी तो भी हमारा रुख क्या होता है? अक्सर हम पूरी स्थिति समझे बिना फटाफट सलाह देने पर उतारू हो जाते हैं। उससे बात बिगड़ जाती है। हम सामने वाले का भला चाहते हैं, लेकिन हम इस ढंग से काम नहीं करते कि हमारा रुख उसे पसंद आए। यही स्थिति तब होती है जब हम अपनी कोई बात किसी को समझाना चाहें, मनवाना चाहें तो हमारा रुख क्या होना चाहिए? यह एक आम समस्या है जिससे हम रोज़ ही दो-चार होते हैं। इस समस्या से पार पाने का तरीका यह है कि हम सवाल पूछें, ज्यादा सवाल पूछें और अंततः सवालों के ही माध्यम से सामने वाले को उस स्थिति तक ले आएं जहां या तो उसे अपनी समस्या का समाधान मिल जाए या वह हमारे प्रस्ताव पर सहमत हो जाए, हमारी बात से सहमत हो जाए और हमारा काम कर दे। जब हम बिना कोई सुझाव दिए सिर्फ  सवाल पूछते चलते हैं और सामने वाले को इस स्थिति पर ले आते हैं कि उसे ही हल सूझ जाए तो वह आदर्श स्थिति है क्योंकि सामने वाले को यह नहीं लगता कि हमने उस पर कोई निर्णय या हल थोप दिया, बल्कि उसे लगता है कि वह हल उसने खुद ढूंढ़ा और उसे जीवन में उतारना उसके लिए आसान हो जाता है। सफलता का यह तीसरा मंत्र है। इन तीनों मंत्रों को अपना लें तो हमारा जीवन सुखमय हो सकता है, परेशानियों से मुक्त हो सकता है और हम सफलता के शिखर पर आ जाते हैं।

ईमेलःindiatotal.features@gmail.com


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