महामारी की दूसरी लहर का खौफ

कोरोना संक्रमण का मिजाज समझ कर एहतियात बरतने की जरूरत है। देश में कोरोना टीकाकरण की मुहिम चल रही है, मगर स्थिति सामान्य होने तक शारीरिक दूरी, हैंड सेनेटाइजर का उपयोग व मास्क को लिबास का जरूरी हिस्सा बनाकर कोरोना गाइडलाइन का अनुपालन पूरी शिद्दत से एक समान करना होगा। इस महामारी से अपने को तथा समाज को बचाने का यही तरीका है…

पूरा विश्व पिछले एक वर्ष से सदी की सबसे बड़ी महामारी कोविड-19 से जंग लड़ रहा है। जानलेवा कोरोना वायरस दुनिया के कई देशों में लाखों लोगों की जान ले चुका है। विश्व स्वास्थ्य संगठन भी कोरोना को विश्वव्यापी महामारी घोषित कर चुका है। हमारे देश में कई राज्यों में कोरोना संक्रमण को लेकर स्थिति दोबारा संवेदनशील तथा हालात बेकाबू हो रहे हैं, मगर हिमाचल प्रदेश कोरोना के बढ़ते प्रकोप से निपटने में देश के बाकी राज्यों से कहीं बेहतर स्थिति में रहा है। इसका कारण राज्य के लोगों ने कोविड-19 के नियमों का सख्ती से पालन करके शासन व प्रशासन का भी पूरा सहयोग किया है। 25 मार्च 2020 को देश में लॉकडाउन का पहला दौर शुरू हुआ था। उस पूर्णबंदी से देश का उद्योग जगत, पर्यटन, परिवहन, खेल, शिक्षा तथा इकोनोमी तक हर क्षेत्र प्रभावित हुआ। मजदूर वर्ग बेबस होकर पैदल पलायन के लिए मजबूर हुआ। देश की करोड़ों आवाम को खाद्य पदार्थ मयस्सर कराने वाले किसानों को कोविड की पाबंदियों ने गहरे संकट में डाल दिया था। देश के निजी क्षेत्र में नौकरीपेशा करने वाले लाखों युवाओं के रोजगार पर सर्वाधिक असर पड़ा। नौकरियां छिन जाना युवावर्ग के लिए किसी सदमे से कम नहीं था। उस देशव्यापी लॉकडाउन से बड़े पैमाने पर उपजी बेरोजगारी के जख्मों पर मरहम नहीं लग पाया।

 कोरोना से मुतासिर हालात ने देश के अर्थतंत्र, लोगों की दिनचर्या व जीवनशैली से लेकर शिक्षण संस्थानों में छात्रों की पढ़ाई के तौर-तरीकों में भी व्यापक बदलाव कर दिया। हालांकि इस एक वर्ष की अवधि में लोगों ने कोविड के साथ जीना सीख लिया। कोरोना के शुरुआती खौफ  से लोग उबर चुके हैं, मगर लॉकडाउन लोगों में कोरोना से अधिक दहशत पैदा कर रहा है। आलम यह है कि छोटे स्तर के दुकानदार, लघु उद्यमी, दूर-दराज के गांवों में दिहाड़ीदार, प्रवासी मजदूर वर्ग व किसानों तथा निजी बस व ट्रक ऑप्रेटरों के लिए लॉकडाउन खौफ  का दूसरा नाम बन चुका है। 2020 में कोरोना के कहर से देश के तमाम बाजारों में तालाबंदी, शादी समारोह, सांस्कृतिक उत्सव तथा धार्मिक स्थलों के कपाट बंद होने से हिमाचल में फूलों की खेती (फ्लोरीकल्चर) से जुडे़ बागवानों का शत-प्रतिशत पुष्प व्यवसाय ध्वस्त हो गया था। आमदनी का कोई दूसरा स्रोत न होने से किसानों व बागवानों के लिए यह नुकसान आर्थिक आघात तथा मानसिक चुनौती साबित हुआ। इस संकट से उबरने के लिए राज्य के बागवान आर्थिक मदद के लिए मोहताज ही रह गए। हिमाचल के पर्यटन स्थल देश-विदेश के लाखों सैलानियों के आकर्षण का केंद्र हैं तथा राज्य में मौजूद शक्तिपीठ, सिद्धपीठ व कई अन्य धार्मिक स्थल भी देश के करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र हैं। राज्य की आर्थिकी व होटल इंडस्ट्री तथा हजारों लोगों के कारोबार में पर्यटन उद्योग की अहम भूमिका है, मगर कोरोना की दूसरी लहर ने दस्तक देकर लोगों के जहन में एक बार फिर लॉकडाउन का इंतशार पैदा कर दिया है। कोविड के मामलों में हो रही वृद्धि के चलते राज्य सरकार ने शिक्षण संस्थानों में चार अप्रैल तक छुट्टियां घोषित करके कुछ सामाजिक आयोजनों पर भी रोक लगाई थी। अप्रैल माह के पहले सप्ताह में घुमारवीं में आयोजित होने वाला ग्रीष्मोत्सव तथा कुश्ती दंगल 2020 में कोरोना की भेंट चढ़ गया था तथा इस वर्ष के ग्रीष्मोत्सव पर दोबारा कोरोना का साया पड़ चुका है।

 उत्सव, मेले व दंगल आदि का रद्द होना हमारी लोक संस्कृति, कलाकारों, छोटे कारोबारियों तथा पारंपरिक खेल कुश्ती के पहलवानों के लिए नुक्सानदायक सिद्ध होता है। अक्सर किसी बड़ी आपदा, प्रतिदिन आसमाम छू रही महंगाई, बढ़ती बेरोजगारी तथा कोरोना जैसी महामारी की जद में आम नागरिक ही आते हैं। आंदोलनों के नाम पर सड़कें जाम करना, हिंसा व विरोध प्रदर्शनों का असर भी आम लोगों के ही जनजीवन पर पड़ता है। कोरोना वायरस के जरिए हमारे हमशाया मुल्क चीन ने विश्व को यह पैगाम दे दिया कि किसी मुल्क की बर्बादी के लिए उसकी सरहदें लांघकर उस पर हमला या टैंकों का आक्रमण जरूरी नहीं है। अदृश्य शत्रु कोरोना जैसा जानलेवा संक्रमण फैलाकर भी दुनिया में तबाही का खौफनाक मंजर पैदा किया जा सकता है। लेकिन दुनिया के कई देशों में जहां कोरोना संक्रमण की दवाओं पर अभी शोध जारी है, वहीं हमारे वैज्ञानिकों व डॉक्टरों ने अपनी दिन-रात की कड़ी मेहनत के बल पर कोरोना की स्वदेशी वैक्सीन तैयार करके विश्व में अपनी प्रतिभा व काबलियत का लोहा मनवाया। नतीजतन भारत आज विश्व के उन चंद देशों में शुमार है जहां चिकित्सकों ने एक वर्ष के भीतर करोड़ों लोगों को वैक्सीन उपलब्ध करा कर कोरोना के बढ़ते प्रभाव को रोकने में सफलता हासिल की है। हमारे ऋषियों ने अपने उपनिषदों में रचित ‘सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामयाः’ श्लोक के जरिए हजारों वर्ष पूर्व समस्त विश्व के मंगलमय व रोगमुक्त होने की कामना कर डाली थी और अब भारत ने दुनिया के 76 से अधिक देशों को कोरोना वैक्सीन की लाखों डोज भेजकर अपने मनीषियों द्वारा धार्मिक ग्रंथों में लिखित उन बातों को और पुख्ता कर दिया। संयुक्त राष्ट्र संघ ने भारतीय वैज्ञानिकों के इस जज्बे की सराहना की है।

 विश्व पटल पर भारत को गौरवान्वित करने वाले चिकित्सकों का राष्ट्रीय स्तर पर सम्मान होना चाहिए। बहरहाल देश में किसी महामारी के हालात से बचाव की स्थिति में निपटने के लिए बर्तानिया हुकूमत के दौर से चला आ रहा ‘ऐपिडेमिक डिजीज एक्ट 1897’ सरकारों को आपाकालीन व्यवस्था लॉकडाउन का इक्तिदार देता है। लेकिन कोरोना संक्रमण का मिजाज समझ कर एहतियात बरतने की जरूरत है। देश में कोरोना टीकाकरण की मुहिम चल रही है, मगर स्थिति सामान्य होने तक शारीरिक दूरी, हैंड सेनेटाइजर का उपयोग व मास्क को लिबास का जरूरी हिस्सा बनाकर कोरोना गाइडलाइन का अनुपालन पूरी शिद्दत से एक समान करना होगा। हमारे हुक्मरानों की सियासी मजलिस, चुनावी रैलियों व रोड शो में उमड़ने वाली लाखों की भीड़ के हुजूम पर भी कोविड प्रोटोकोल के नियमों का पालन होना चाहिए। इसके लिए सुरक्षा एंजेसियों व प्रशासन को मुस्तैदी दिखानी होगी, ताकि आमजन पर लॉकडाउन की गर्दिश के बादल दोबारा न मंडराएं।


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