फर्जी आरसी पंजीकरण मामले की परतें खुलें

By: Apr 20th, 2021 12:07 am

आधार कार्ड की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठने अब जायज हैं। सरकारों ने आधार कार्ड प्रत्येक कार्य के लिए पहचान पत्र के तौर पर लगाए जाने को प्राथमिकता दी है। इस तरह आधार कार्ड का दुरुपयोग होने से इस मामले की कड़ी जांच होनी चाहिए। जनता के जान-माल की रक्षा करने वाली पुलिस ने शायद ही सड़कों पर चैकिंग के दौरान दस्तावेजों की सही पहचान करना भी जरूरी समझा हो। पुलिस कर्मी वाहन चालक को ज्यादातर ड्राइविंग लाइसेंस पर उसकी स्वयं की फोटो देखकर ही जाने की हरी झंडी दिखा देते हैं…

सड़क सुरक्षा सप्ताह मनाए जाने के बीच वाहनों की फर्जी आरसी पंजीकरण का मामला उजागर होना सरकार की कार्यप्रणाली पर बड़ा प्रश्नचिन्ह है। फर्जी डिग्रियां अन्य राज्यों में बेचे जाने की जांच अभी चल ही रही थी कि अब ठीक ऐसा ही मामला सामने आना दुर्भाग्यपूर्ण है। सरकार बेशक ईमानदारी का राग अलापती रहे, मगर कुछेक सरकारी कर्मचारी इसके विपरीत कार्य करके उसकी छवि खराब करने में जुटे हैं। सड़क दुर्घटनाओं में मरने वालों के लिए सदैव सड़कों की मालिया हालत को दोषी समझा जाता रहा है, मगर इन सड़क हादसों के पीछे फर्जी लाइसेंस वितरण भी प्रमुख कारण माना जा सकता है। बिना किसी परीक्षा से गुजरकर वाहनों पर सवार होना यातायात नियमों की अवहेलना करके जि़ंदगी से खिलवाड़ करने के बराबर है। आखिर क्या वजह हो सकती है कि युवा सड़क दुर्घटनाओं में मौत का ग्रास बनते रहें, इस पर आज चिंतन करने की जरूरत है। सच्चाई कभी छुप नहीं सकती और मीडिया ऐसा होने नहीं देता। इसी वजह से मीडिया को लोकतंत्र की सफलता का मुख्य स्रोत भी माना जाता है। जिला कांगड़ा नकली ड्राइविंग लाइसेंस बनाए जाने को लेकर पहले ही मीडिया की सुर्खियों में छाया रहा है।

प्रदेश सरकार अभी तक इस माफिया पर नकेल कस नहीं पाई और अब नकली वाहनों की आरसी भी रेवडि़यों की तरह बांटकर सरकार को चूना लगाने का मामला प्रकाश में आया है। कोरोना वायरस के शुरुआती दौर में नकली ड्राइविंग लाइसेंस बनाकर बेचे जाने का मामला उजागर होते ही यह प्रक्रिया ऑनलाइन शुरू किए जाने की व्यवस्था की गई थी। ऑनलाइन व्यवस्था अपनाए जाने के बावजूद भ्रष्टाचार के मामलों में कमी आने के बजाय बढ़ोतरी हो रही है। सरकार ने समय रहते अगर ऐसे दलालों पर सख्त कार्रवाई की होती तो अब नकली आरसी बेचे जाने के मामले से सरकार की छवि पुनः धूमिल न होती। ड्राइविंग लाइसेंस बनाने के लिए आवेदन किए जाने की औपचारिकताएं बहुत हैं। ड्राइविंग लाइसेंस बनवाने के लिए पंचायत, पुलिस का चरित्र प्रमाण पत्र, वरिष्ठ चिकित्सक से आवेदन पत्र सत्यापित किया जाता है। यही नहीं, नेत्र चिकित्सक से भी आंखों की रिपोर्ट लेनी जरूरी है। तदोपरांत ही आवेदन की फीस एसडीएम कार्यालयों में जमा करवाई जाती है। लाइसेंस वितरण करने वाली आरएलए अथॉरिटी की ओर से आवेदनकर्ता से लिखित और वाहन चलाने का टैस्ट उपमंडलाधिकारी और एमवीआई के समक्ष लिया जाता है। मगर आज हैरानी इस बात की कि लोग सरकारी कार्यालयों के चक्कर काटने की बजाय दलालों से ऐसे काम मोटी रकम देकर करवा रहे हैं।

 फर्जी लाइसेंस बनाने के लिए दलाल लोगों से हजारों रुपए वसूलकर सरकार की आंखों में धूल झोंकते जा रहे हैं। फर्जी ड्राइविंग लाइसेंस आवेदनों को कौन सत्यापित करके उपमंडलाधिकारी कार्यालयों में जमा करवा रहा है, इसकी कड़ी जांच होनी चाहिए। बड़ी हैरानी की बात है कि आला अधिकारियों की नाक तले ऐसे नकली ड्राइविंग लाइसेंस व आरसी बेचे जा रहे हैं और उन्हें कानोंकान तक खबर नहीं है। क्या फिर मान लिया जाए कि कमीशन पास करके सेवाएं देने वाले आला अधिकारी भी गैर-जिम्मेदारी से कार्य कर रहे हैं? हिमाचल प्रदेश में गाडि़यों की पंजीकरण फीस अन्य राज्यों की अपेक्षा बहुत कम है। पंजाब राज्य के लोग न्याय मंदिरों के अंदर बैठे कुछेक दलालों से मिलकर इस फर्जीवाड़े को अंजाम देकर सरकार के राजस्व पर भी डाका डाल रहे हैं। पड़ोसी राज्यों के लोग गाडि़यां खरीदकर उनका पंजीकरण फर्जी दस्तावेजों के सहारे हिमाचल प्रदेश में करवाने में कामयाब क्यों हो रहे हैं? शुरुआती जांच में अभी तक करीब डेढ़ सौ फर्जी गाडि़यों का रजिस्ट्रेशन किए जाने की पुष्टि हुई है। इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि अगर सरकार ने इसकी निष्पक्ष जांच करवाई तो बहुत सारे ऐसे फर्जी मामले उजागर होने की उम्मीद है। नकली ड्राइविंग लाइसेंस और गाडि़यों का पंजीकरण आम इनसान नहीं कर सकता, जिसका खुलासा जांच में होगा। वाहन मालिकों ने फर्जी आधार कार्ड सहित उसकी कीमतों में कटौती करके नियमों की धज्जियां उड़ाई हैं। इस गोरखधंधे में कुछेक उपमंडलाधिकारी कार्यालयों की कार्यप्रणाली भी अब संदेह के घेरे में है। जिस तरह फर्जी आधार कार्ड के सहारे गाडि़यों का पंजीकरण किया जा रहा है, उससे एक बात साफ  नजर आती है कि इस पहचान पत्र का दुरुपयोग भी ज्यादा हो रहा है।

आधार कार्ड की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठने अब जायज हैं। सरकारों ने आधार कार्ड प्रत्येक कार्य के लिए पहचान पत्र के तौर पर लगाए जाने को प्राथमिकता दी है। इस तरह आधार कार्ड का दुरुपयोग होने से इस मामले की कड़ी जांच होनी चाहिए। जनता के जान-माल की रक्षा करने वाली पुलिस ने शायद ही सड़कों पर चैकिंग के दौरान दस्तावेजों की सही पहचान करना भी जरूरी समझा हो। पुलिस कर्मी वाहन चालक को ज्यादातर ड्राइविंग लाइसेंस पर उसकी स्वयं की फोटो देखकर ही जाने की हरी झंडी दिखा देते हैं। अब जिस तरह नकली ड्राइविंग लाइसेंस और गाडि़यों की आरसी बांटी जा रही है, उसके दृष्टिगत पुलिस को अब सतर्कता बरतने की अधिक जरूरत है। प्रदेश की जयराम ठाकुर सरकार अगर इस मामले की निष्पक्ष जांच करती है, तभी सड़क सुरक्षा सप्ताह मनाया जाना सार्थक समझा जा सकता है। इस गोरखधंधे में संलिप्त तमाम सरकारी और गैर सरकारी लोगों के खिलाफ  कड़ी कार्रवाई करना जरूरी है, जिनकी वजह से सरकार की छवि खराब करने की कोशिश की गई है।


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