मध्यम वर्ग की बढ़ती चुनौतियां

इसके साथ-साथ उद्योग-कारोबार से जुड़े मध्यम वर्ग की मुश्किलें कम करने के लिए वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) की पेचीदगियां कम की जानी होंगी। एमएसएमई को संभालने के लिए एक बार फिर से सरकार के द्वारा ब्याज राहत की डगर पर आगे बढ़ना होगा। एक बार फिर से रिजर्व बैंक के द्वारा छोटे कर्जधारकों के लिए मोरेटोरियम योजना पर तुरंत विचार करना होगा। हम उम्मीद करें कि मध्यम वर्ग भी कोरोना संक्रमण के बचाव के लिए दवाई भी और कड़ाई भी के मंत्र का परिपालन करेगा। हम उम्मीद करें कि इस समय स्वास्थ्य क्षेत्र पर जो सावर्जनिक व्यय जीडीपी का करीब एक फीसदी है, उसे बढ़ाकर करीब ढाई फीसदी तक किया जाए। इससे मध्यम वर्ग को स्वास्थ्य संबंधी खर्चों में बचत की बड़ी राहत मिलेगी…

निःसंदेह देश का मध्यम वर्ग एक बार फिर जहां कोरोना की दूसरी घातक लहर के कारण अपने उद्योग-कारोबार, रोजगार और आमदनी संबंधी चिंताओं से ग्रसित है, वहीं बड़ी संख्या में कोरोना से पीडि़त मध्यमवर्गीय परिवारों के बजट बिगड़ गए हैं। यद्यपि एक अप्रैल 2021 से लागू हुए वर्ष 2021-22 के बजट में वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने स्वास्थ्य, शिक्षा, बुनियादी ढांचा और शेयर बाजार को प्रोत्साहन देने के लिए जो चमकीले प्रोत्साहन सुनिश्चित किए हैं, उसका लाभ अप्रत्यक्ष रूप से मध्यम वर्ग को अवश्य मिलेगा, लेकिन इस बजट में छोटे आयकरदाताओं और मध्यम वर्ग की उम्मीदें पूरी नहीं हुई हैं। यह स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि कोरोना के कारण पैदा हुए आर्थिक हालात का मुकाबला करने के लिए आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत मध्यम वर्ग को कोई विशेष राहत नहीं मिली है। गौरतलब है कि देश का सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग (एमएसएमई) फिर हिचकोले खा रहा है। एक बार फिर से जहां देश के कई राज्यों में लॉकडाउन जैसी सख्त पाबंदियां और नाइट कर्फ्यू का परिदृश्य निर्मित होते हुए दिखाई दे रहा है, वहीं लॉकडाउन के कारण कहीं बड़े शहरों से एक बार फिर प्रवासी मजदूरों का पलायन दिखाई दे रहा है। उद्योग-कारोबार भी इसलिए चिंतित हैं क्योंकि देश में कोविड-19 संक्रमण का आंकड़ा प्रतिदिन दो लाख को पार कर गया है। ऐसे में देश की विनिर्माण गतिविधियों और सर्विस सेक्टर की रफ्तार सुस्त पड़ गई है।

उद्योग और बाजार के ऐसे चिंताजनक परिदृश्य ने मध्यम वर्ग की नींद उड़ा दी है। उल्लेखनीय है कि अमरीका के प्यू रिसर्च सेंटर के द्वारा प्रकाशित भारत के मध्यम वर्ग की संख्या में कमी आने से संबंधित रिपोर्ट के मुताबिक कोविड-19 महामारी के कारण आए आर्थिक संकट से एक साल के दौरान भारत में मध्यम वर्ग के लोगों की संख्या करीब 9.9 करोड़ से घटकर करीब 6.6 करोड़ रह गई है। रिपोर्ट के मुताबिक प्रतिदिन 10 डॉलर से 20 डॉलर (यानी करीब 700 रुपए से 1500 रुपए प्रतिदिन) के बीच कमाने वाले को मध्यम वर्ग में शामिल किया गया है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि चीन में कोरोना संक्रमण के कारण पिछले एक वर्ष में मध्यम आय वर्ग की संख्या करीब एक करोड़ ही घटी है। जहां कोविड-19 के कारण देश में मध्यम वर्ग के लोगों की संख्या कम हुई है, वहीं भारतीय परिवारों पर कर्ज का बोझ बढ़ा है। विभिन्न अध्ययन रिपोर्टों में कहा गया है कि कोरोना महामारी की वजह से बड़ी संख्या में लोगों की रोजगार मुश्किलें बढ़ी हैं। जहां वर्क फ्रॉम होम की वजह से टैक्स में छूट के कुछ माध्यम कम हो गए, वहीं बड़ी संख्या में लोगों के लिए डिजिटल तकनीक, ब्रॉडबैंड, बिजली का बिल जैसे खर्चों के भुगतान बढ़ने से आमदनी घट गई है। मध्यम वर्ग की स्तरीय शैक्षणिक सुविधाओं संबंधी कठिनाइयां बढ़ती जा रही हैं। चाहे सामाजिक प्रतिष्ठा और जीवन स्तर के लिए मध्यम वर्ग के द्वारा हाउसिंग लोन, ऑटो लोन, कन्ज्यूमर लोन लिए गए हैं, लेकिन इस समय मध्यम वर्ग के करोड़ों लोगों के चेहरे पर महंगाई, बच्चों की शिक्षा, रोजगार, कर्ज पर बढ़ता ब्याज जैसी कई चिंताएं साफ  दिखाई दे रही हैं। उल्लेखनीय है कि कोरोना की पहली लहर बड़ी संख्या में मध्यम वर्ग की आमदनी घटा चुकी है और मध्यम वर्ग के बैंकों में बचत खातों को बहुत कुछ खाली कर चुकी है। देश में निजी और विभिन्न सरकारी सेवाओं में काम करने वाले लाखों मध्यम वर्गीय लोग कोरोना की दूसरी लहर के बाद निजी क्षेत्र के महंगे स्वास्थ्य संबंधी खर्च की वजह से गरीब वर्ग में शामिल होने से सिर्फ  एक कदम दूर हैं। यहां यह भी महत्त्वपूर्ण है कि पिछले एक वर्ष में देश में मध्यम वर्ग के सामने एक बड़ी चिंता उनकी बचत योजनाओं और बैंकों में स्थायी जमा (एफडी) पर ब्याज दर घटने संबंधी भी रही है।

 यद्यपि सरकार ने एक अप्रैल 2021 से कई बचत स्कीमों पर ब्याज दर और घटा दी थी, लेकिन फिर शीघ्र ही कुछ ही घंटों में यूटर्न लेते हुए यह निर्णय वापस ले लिया। सरकार के द्वारा यह कहा गया था कि  बचत स्कीमों पर बैंक अब चार के बजाय 3.5 फीसदी सालाना ब्याज देंगे। सीनियर सिटीजन के लिए बचत स्कीमों पर देय ब्याज 7.4 फीसदी से घटाकर 6.5 फीसदी कर दिया गया है। नेशनल सेविंग सर्टिफिकेट पर देय ब्याज 6.8 फीसदी  से घटाकर 5.9 फीसदी तथा पब्लिक प्रोविडेंट फंड स्कीम पर देय ब्याज 7.1 फीसदी से घटाकर 6.4 फीसदी कर दिया गया है। वास्तव में सरकार के द्वारा इस निर्णय पर यूटर्न से देश के मध्यम वर्ग के बचत से भविष्य की जीवन संबंधी योजनाओं पर निर्भर करोड़ों मध्यम वर्गीय लोगों को राहत मिली है। अब एमएसएमई के तहत कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए 45 वर्ष से कम उम्र के उन लोगों का टीकाकरण करना भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है जो संक्रमण के उच्च जोखिम में हैं। उन लोगों की रक्षा करना भी महत्त्वपूर्ण है जिन्हें काम के लिए घरों से बाहर निकलना पड़ता है। ऐसे में खुदरा और ट्रेड जैसे क्षेत्रों में काम कर रहे लोगों की कोरोना वायरस से सुरक्षा जरूरी है। हम उम्मीद करें कि सरकार चालू वित्त वर्ष 2021-22 में कोरोना महामारी और विभिन्न आर्थिक मुश्किलों के कारण मध्यम वर्ग की परेशानियों को कम करने हेतु, मध्यम वर्ग को संतोषप्रद वित्तीय राहत और प्रोत्साहन देने की डगर पर आगे बढ़ेगी।

इसके साथ-साथ उद्योग-कारोबार से जुड़े मध्यम वर्ग की मुश्किलें कम करने के लिए वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) की पेचीदगियां कम की जानी होंगी। एमएसएमई को संभालने के लिए एक बार फिर से सरकार के द्वारा ब्याज राहत की डगर पर आगे बढ़ना होगा। एक बार फिर से रिजर्व बैंक के द्वारा छोटे कर्जधारकों के लिए मोरेटोरियम योजना पर तुरंत विचार करना होगा। हम उम्मीद करें कि मध्यम वर्ग भी कोरोना संक्रमण के बचाव के लिए दवाई भी और कड़ाई भी के मंत्र का परिपालन करेगा। हम उम्मीद करें कि इस समय स्वास्थ्य क्षेत्र पर जो सावर्जनिक व्यय जीडीपी का करीब एक फीसदी है, उसे बढ़ाकर करीब ढाई फीसदी तक किया जाए। इससे मध्यम वर्ग को स्वास्थ्य संबंधी खर्चों में बचत की बड़ी राहत मिलेगी। अब यह उपयुक्त होगा कि कोरोना की दूसरी लहर के रुकने तक एफडी और छोटी बचत योजनाओं पर ब्याज दर न घटाई जाए। इससे मध्यम वर्ग की क्रय शक्ति बढ़ेगी, नई मांग का निर्माण होगा और विकास दर बढ़ाई जा सकेगी।

संपर्क :        

डॉ. जयंतीलाल भंडारी


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